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२६ ] आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व
विचारो में युगान्तर उपस्थित किया । इन बदली हुई परिस्थितियों ने द्विवेदी युग को जन्म दिया। डॉ० श्री कृष्णलाल के शब्दो में :
" इस परिवर्तन युग के सबसे महान् युगप्रवर्त्तक पुरुष तथा नायक महावीरप्रसाद द्विवेदी थे । सन् १९०० से १९२५ ई० के बीच में पद्य रचना अथवा गद्यशैली में ऐसा कोई भी साहित्यिक आन्दोलन नहीं, जिसपर द्विवेदीजी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव न पड़ा हो ।" "
अपने पूर्ववर्त्ती युग की साहित्यिक पृष्ठभूमि तथा समकालीन परिस्वितियो का अध्ययन करने के बाद द्विवेदीजी ने हिन्दी के स्वरूप - निर्धारण का बीड़ा उठाया था । उस समय तक हिन्दी साहित्य पर पाश्चात्त्य साहित्य, विशेषतः अँगरेजी - साहित्य का प्रभाव पड़ने लगा था । अँगरेजी साहित्य में जैसा स्वच्छन्दतावादी आन्दोलन चल रहा था, उन्नीसवीं शती के अन्तिम चरण से हिन्दी के श्रीधर पाठक प्रभृति कवि उसको ग्रहण करने लगे थे । इसी प्रकार, हिन्दी के साथ उर्दू के साहित्य का सम्पर्क भी भाषा - विवाद आदि के सन्दर्भ में बढा । इस कारण राष्ट्रीय जागरण, समाज-सुधार जैसी भावनाएँ दोनो में समान रूप से मिलती है । इस दृष्टि से हाली - कृत 'मुसद्दस' और गुप्तजी की 'भारत-भारती' का विषयसाम्य उल्लेखनीय है । बीसवीं शती के प्रथम चरण मे ही बॅगला - कवि श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार मिला। इसका रोब उस समय हिन्दी - साहित्य पर भी पड़ा और वंग- साहित्य के माध्यम से नवीन भावनाओं का हिन्दी में आगमन हुआ । यद्यपि भाषा और छन्द को लेकर स्वयं हिन्दी - साहित्य भी उस समय कई समस्याओं से जूझ रहा था, तथापि भाषा, छन्द और विषय को लेकर खड़ी - बोली- सम्बन्धी क्रान्ति के बीज भारतेन्दु के समय से ही अंकुरित हो उठे थे, परन्तु काव्य - सिंहासन के लिए व्रजभाषा और खड़ीबोली के कवियों में स्पर्द्धा लगी हुई थी । इस संघर्ष के निराकरण के रूप में द्विवेदीजी ने काव्य-भाषास्वरूप खड़ीबोली को ही स्थापित किया । उन्होंने ही सर्वप्रथम खड़ीबोली में कविता का शुद्ध एवं टकसाली रूप प्रस्तुत किया | खड़ीबोली में उनकी पहली कविता 'बलीवर्द' है, जिसका प्रकाशन १९ अक्टूबर, १९०० ई० के 'वेंकटेश्वर - समाचार' में हुआ था :
तुम्हीं अन्नदाता भारत के सचमुच बेताज महाराज । बिना तुम्हारे हो जाते हम दाना दाना को मुहताज । तुम्हें खण्ड कर देते हैं जो महा-निर्दयी जन-सिरताज ॥ धिक उनको, उनपर हँसता है बुरी तरह यह सकल समाज । २
१. डॉ० श्रीकृष्णलाल : 'आधुनिक हिन्दी - साहित्य का विकास', पृ० ३१ २. श्रीमहावीरप्रसाद द्विवेदी : 'द्विवेदी - काव्यमाला', पृ० २७५ ।