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कविता एवं इतर साहित्य [ २३७.
इन विविध निबन्धों के संग्रहों में विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता एवं ख्याति प्राप्त स्त्री-पुरुषों के जीवनवृत्त है । साहित्यकारों एवं साहित्यप्रेमियों (पं० दुर्गाप्रसाद, माइकेल मधुसूदन दत्त, नवीनचन्द्र सेन, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, राय देवीप्रसाद पूर्ण, हाफिज, विलियम जोन्स आदि), विद्वानों एवं इतिहास- वेत्ताओं ( डॉ० गंगानाथ झा, पं० वामन शिवराम आप्टे, पं० आदित्यराम भट्टाचार्य हर्बर्ट स्पेसर, बौद्धाचार्य शीलभद्र आदि), शाहों, राजो एवं सुल्तान ( राजा भगवानदास, सुल्तान अब्बुल अजीज, फारस के शाह मुजफ्फरुद्दीन, राजा मानसिंह आदि) ख्यात राजनीतिज्ञों, राजकीय उच्च पदाधिकारियों और योद्धाओं (जनरल कुरेपाटकिन, लार्ड कर्जन, लार्ड मिण्टो, कर्नल जालकूट, श्रीगुरु हरिकृष्णजी आदि), इतिहासप्रसिद्ध एवं नवयुग की आदर्श नारियों (रानी दुर्गावती, लेडी जेन ग्र े, कुमारी एफ्०पी० कॉब, झाँसी की रानी बाई, श्रीमती निर्मलाबाला सोम आदि), धर्मप्रचारकों, सुधारकों या किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट ख्याति अर्जित करनेवाले पुरुषों (महात्मा रामकृष्ण परमहंस, प्रसिद्ध पहलवान सैण्डो, प्रसिद्ध मूर्तिकार महातरे, डॉ० जी० थोबो, गायनाचार्य विष्णुदिगम्बर पलुसकर, नवीनचन्द्र सेन आदि) की जीवनियाँ आचार्य द्विवेदीजी ने लिखी हैं। इन विविध आदर्श नर-नारियों के जीवन चरित्र लिखने के पीछे आचार्य द्विवेदीजी का यही लक्ष्य था कि देशवासी इन चरित्रों से प्रेरणा ग्रहण करें तथा इनके बतलाये आदर्शपूर्ण मार्ग पर चलकर अधिकाधिक उन्नति कर सकें। इस प्रकार द्विवेदीजी ने जीवनीसाहित्य का सोद्देश्य प्रणयन किया और अपने इस उद्देश्य में वे उपयोगी साहित्य :
सफल भी हुए ।
कला का विभाजन ललित एवं उपयोगी दो विभागों में किया गया है। उपयोगी कलाएँ मानव-आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होती है । इन्हीं उपयोगी कलाओं का शास्त्रीय विस्तृत अध्ययन करनेवाला साहित्य उपयोगी साहित्य कहा जा सकता है । प्राचीन काल में संस्कृत के अन्तर्गत कामसूत्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, गणित, ज्यौतिष, शिल्पकला आदि पर ग्रन्थों की रचना हुई थी । परन्तु, परवर्ती काल में हिन्दी-साहित्य इन उपयोगी विषयों की दृष्टि से हीन रहा । उपयोगी साहित्य के नाम पर मात्र धर्मशास्त्रीय पुस्तकों की रचना हुई । भारत मे अँगरेजों के आगमन के पश्चात् यहाँ अर्थप्रधान वैज्ञानिक युग का सूत्रपात हुआ । डॉ० श्रीकृष्ण लाल ने इस परिवर्तन को अधोलिखित शब्दों में व्यक्त किया है :
" उन्नीसवीं शताब्दी में भारतवर्ष में अँगरेजी - राज्य की स्थापना हुई, जिससे देश की आर्थिक, राजनीतिक और व्यावहारिक अवस्था में एक अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ । ... रेल, तार, डाक, मोटर, बिजली इत्यादि के अद्भुत युग में प्रत्येक मनुष्य को विज्ञान, यन्त्रसंचालन- विद्या, आधुनिक समाजशास्त्र इत्यादि का थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त करना