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शोध-निष्कर्ष [ २४९ किया और प्रोत्साहन देकर 'सरस्वती' का अपना विशाल लेखक-परिवार तैयार कर लिया। 'सरस्वती' के इस लेखक-समुदाय ने हिन्दी-साहित्य का भाण्डार अभूतपूर्व रीति से भरा है और इसके लिए हिन्दी-जगत् सदैव द्विवेदीजी का ऋणी रहेगा। उन्होंने न केवल नये-नये विषयों का उपस्थापन किया और नये लेखकों-कवियों को प्रकाश में लाया, अपितु साहित्यिक लेखन का एक आदर्श मार्ग भी 'सरस्वती' द्वारा निर्देशित किया। इसी सन्दर्भ मे डॉ० ओंकारनाथ शर्मा ने लिखा है :
"द्विवेदीजी का प्रबल व्यक्तित्व एक विद्युत्-गृह की भाँति चतुर्दिक शक्ति-संचार कर रहा था और चतुर्दिक अनुगासन का भाव दिखाई पड़ता था। ...प्रत्येक लेखक के लिए 'सरस्वती' के निबन्ध रचना-कार्य के उदाहरण थे और द्विवेदीजी के शब्द प्रेरणा थे।"
साहित्यकारो का मार्ग-निर्देश करने एवं 'सरस्वती' का सम्पादन करने के क्रम में उनकी सर्वाधिक विशिष्ट उपलब्धि भाषा-सुधार के क्षेत्र में रही। इसी क्षेत्र में वे सबसे अधिक सक्रिय भी थे। उनके पूर्व सम्पादक रचनाओं की भाषा-शैली एवं रचनाविन्यास पर ध्यान नहीं देते थे। इस कारण भाषा-सम्बन्धी अव्यवस्था हिन्दी-जगत् में व्याप्त थी। व्रजभाषा और पण्डिताऊ भाषा का प्रचर प्रभाव भी हिन्दी पर परिलक्षित होता था। व्याकरण के नियमों की अवहेलना तो आम बात थी। ऐसे समय में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने 'सरस्वती' में प्रकाशनार्थ आई सभी रचनाओं की भाषा को व्याकरण और रचना-विन्यास की दृष्टि से सुधार कर प्रस्तुत करना शुरू किया। उनके इस भाषाई आन्दोलन के फलस्वरूप परम्परित साहित्यिकों ने इनके विरुद्ध जेहाद बोल दिया। भाषा के नाम पर बड़ा भीषण साहित्यिक विवाद छिड़ गया। इस झगड़े में द्विवेदीजी के साथ श्रीबालमुकुन्द गुप्त, गोपालराम गहमरी, गोविन्दनारायण मिश्र, मन्नन द्विवेदी आदि साहित्यसेवी सम्बद्ध थे। परन्तु, घोर विरोध एवं विवादों के बीच भी द्विवेदीजी ने भाषा की स्वच्छता से सम्बद्ध अपनी नीति नहीं छोड़ी और 'सरस्वती' की रचनाओं का भाषा-संस्कार करते-करते सम्पूर्ण हिन्दी-भाषा एवं साहित्य को ही एक सर्वथा नई भाषागत क्रांति के दौर में खड़ा कर दिया। उनके अकथ परिश्रम एवं सत्प्रयासों के फलस्वरूप ही हिन्दी-भाषा अपने वर्तमान व्यवस्थित रूप को पा सकी। इसमें सन्देह नहीं कि द्विवेदीजी की निजी प्रारम्भिक रचनाओं में वे सारी व्याकरण एवं भाषागत त्रुटियाँ विद्यमान हैं, जिनको दूर करने के लिए उन्होंने भाषा-आन्दोलन चलाया। उनकी परवर्ती रचनाएँ आदर्श भाषा एवं व्याकरण-सम्मत रचना-विधान का उदाहरण हैं। व्याकरण की स्वच्छता एवं भाषा की सफाई से सम्बद्ध क्रान्ति के द्विवेदीजी
१. डॉ० ओंकारनाथ शर्मा : 'हिन्दी-निबन्ध का विकास', पृ० १०८ ।