Book Title: Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Author(s): Shaivya Jha
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 267
________________ शोध-निष्कर्ष [ २५३ द्विवेदीजी का इतर साहित्य वैविध्य-पूर्ण एवं बिखरा हुआ है। कथा-साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी लेखनी का कमाल किचित् मात्रा मे दीखता है और जीवनी-साहित्य की रचना में तो द्विवेदीजी पट ही थे। नाटकों की रचना द्विवेदीजी ने नहीं की। उपयोगी विषयों के साहित्य का भाण्डार उन्होंने 'सरस्वती' के माध्यम से भरा और इस दिशा में उनकी उपलब्धियाँ महत्त्वपूर्ण भी हैं। आविष्कार, चिकित्सा-विज्ञान. प्राणिशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र जैसे उपयोगी शास्त्रो से सम्बन्ध रखनेवाली कई मौलिक-अनूदित रचनाएं द्विवेदीजी ने प्रस्तुत की। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की सम्पूर्ण साहित्यिक उपलब्धियों के इस अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है कि साहित्यकार केवल अपने रचनात्मक साहित्य से ही ऐतिहासिक गौरव का अधिकारी नही बन जाता है। द्विवेदीजी इसके उदाहरण है। उनके द्वारा लिखा गया साहित्य अधिकांशतः शीर्षकोटि का नही है, फिर भी हिन्दीसाहित्य के इतिहास में उनका महत्त्व आलोक-स्तम्भ के समान है एवं उनके नाम पर सामयिक काल का नामकरण 'द्विवेदी-युग' उचित ही हुआ है । डॉ० रामअवध द्विवेदी ने लिखा है: "साधारणतया कह सकते हैं कि द्विवेदीजी में असाधारण प्रतिभा न थी, न वे महान् चिन्तक ही थे, परन्तु उनमें सुधारक का उत्साह था और उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त कार्य करने की शक्ति थी । इन्ही कारणो से वे अपने युग के अप्रतिम साहित्य कार है।" द्विवेदीजी ने साहित्यिक मार्ग-निर्देशन करके, भाषा और व्याकरण की दृष्टि से हिन्दी का संस्कार करके एवं हिन्दी-जगत का परिचय विभिन्न नये लेखकों-कवियों से कराकर वह ऐतिहासिक स्थान हिन्दी के साहित्येतिहास में प्राप्त कर लिया था, जिसके लिए महान् साहित्यिक उपलब्धियों की पृष्ठभूमि अन्य साहित्यिक रखते है। द्विवेदीजी की साधना का यही उत्कर्ष एव निष्कर्ष माना जा सकता है। हिन्दीसाहित्य की आज जितनी भी उन्नति हुई है, उसकी विकासात्मक दिशा का निर्देश द्विवेदीजी ने किया था। अतएव, आधुनिक समस्त हिन्दी-साहित्य द्विवेदीजी की ही देन है-यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण नही कहा जायगा। १. डॉ० रामअवध द्विवेदी : 'हिन्दी-साहित्य के विकास की रूपरेखा',पु० १६० ।

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