________________
कविता एवं इतर साहित्य [ २३९
६. शिक्षाशास्त्र :
'शिक्षा' (सन् १९०६ ई० ) - हर्बर्ट स्पेंसर - लिखित पुस्तक 'एजुकेशन' का अनुवाद |
७. कामशास्त्र :
(क) 'तरुणोपदेश' (रचनाकाल : सन् १८९४ ई०)
कर्तृत्व का बहुत
(ख) 'सोहागरात ' - अँगरेजी कवि बायरन- कृत 'ब्राइडल नाइट' का अनुवाद | इन विषयों पर लेखनी दौड़ाने के साथ-ही-साथ द्विवेदीजी के बड़ा उपयोगी साहित्य-विषयक अश 'सरस्वती' के अंकों में बिखरा पड़ा है । विविध शिल्पों, कुतूहलवर्द्धक तत्त्वों, नवीन आविष्कारों, सामाजिक विषयो और समस्याओं पर निबन्धों - टिप्पणियों की रचना उन्होंने की है । वे सम्पादक को देश का बौद्धिक विधायक मानते थे । उन्होंने लिखा है :
" देश का स्वास्थ्य किस तरह सुधर सकता है, कृषि, शिल्प और वाणिज्य की उन्नति कैसे हो सकती है, शिक्षा का विस्तार और उत्कर्ष साधन कैसे किया जा सकता है, किन उपायों के अवलम्बन से हम राष्ट्र-सम्बन्धी नाना प्रकार के अधिकार पा सकते है, सामाजिक कुरीतियों को किस प्रकार दूर कर सकते हैं - इत्यादि अनेक विषयों पर सम्पादकों को लेख लिखने चाहिए ।"
सम्पादक के इस धर्म का उन्होने स्वयं पालन किया है एवं अर्थशास्त्र, विज्ञान, चिकित्सा, प्राणिशास्त्र, समाजशास्त्र, उद्योग-व्यापार, शिक्षाशास्त्र एवं कामशास्त्र आदि विविध विषयों पर पुस्तकों की रचना की, निबन्धों तथा टिप्पणियों का प्रणयन किया । इन विविध उपयोगी विषयों में मात्र कामशास्त्र सम्बन्धी द्विवेदीजी की दो पुस्तकें ही अप्रकाशित रह गई हैं : ' तरुणोपदेश' एवं 'सुहागरात' । इन दोनों को स्वयं द्विवेदीजी ने रसीली पुस्तकें कहकर सम्बोधित किया है और इनके अप्रकाशित रह जाने में अपनी धर्मपत्नी का उपकार माना है । यथा :
"दुर्घटना कुछ ऐसी हुई कि उसने ये पुस्तकें देख लीं। देखा ही नहीं, उलट-पुलट कर पढ़ा भी । फिर क्या था, उसके शरीर में कराला काली का समावेश हो गया ।... उसने उन पुस्तकों की कापियों को आजन्म कारावास या कालेपानी की सजा दे दी। वे
उसके सन्दूक में बन्द हो गई । उसके मरने पर ही उनका छुटकारा उस दायमुलहब्स
खे
हुआ ।... इस तरह मेरी पत्नी ने तो मुझे साहित्य के इस पंक-पयोधि में डूबने से बचा लिया । २
१. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'विचार-विमर्श', पृ० ४४ ।
२. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'मेरी जीवनरेखा', 'भाषा' : द्विवेदीस्मृति-अंक, पृ० १५ ।