________________
२३८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
आवश्यक हो गया।...राष्ट्रीयता की भावना ने हममें अपने अतीत गौरव का इतिहास जानने की प्रेरणा उत्पन्न की और इस प्रकार हमने इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र विज्ञान, व्यापार इत्यादि का अध्ययन प्रारम्भ किया ।"१
युग और समाज की इस मांग को लक्ष्य कर द्विवेदीजी ने विज्ञान, अर्थशास्त्र, धर्म, शिक्षाशास्त्र, आविष्कार, चिकित्सा आदि उपयोगी विषयो पर लेखनी चलाई। 'सरस्वती' के सम्पादक-पद पर रहने के नाते उन्हे विविध उपयोगी विषयों पर लिखने एवं औरों से इन विषयो पर लिखवाने का भरपूर अवसर मिला। उन्होंने उपयोगी साहित्य के अन्तर्गत दो वर्षों के विषयों को ग्रहण किया। उपयोगी साहित्य के ये दो प्रमुख वर्ग इस प्रकार है :
१. उपयोगी साहित्य की वे शाखाएँ, जो परम्परित हैं तथा जिनका चलन प्राचीन __ भारत में भी था। २. उपयोगी माहित्य की वे धाराएं, जो नवीन हैं तथा आधुनिक वैज्ञानिक युग के
फलस्वरूप जिनका विकास हुआ है। परम्परित उपयोगी साहित्य की सीमा में उनकी धर्म एवं दर्शन-सम्बन्धी रचनाओं की चर्चा की जा सकती है। इस दिशा में उनकी 'आध्यात्मिकी' (सन् १९२७ ई०) शीर्षक पुस्तक की चर्चा ही एकमेव की जा सकती है। इस पुस्तक में धर्म और दर्शनसम्बन्धी द्विवेदीजी के लेख सकलित हैं। नवीन युगानुरूप उपयोगी विषयों पर द्विवेदीजी ने अनेक मौलिक-अनूदित पुस्तकों की रचना की है । यथा :
१. अर्थशास्त्र :
'सम्पत्ति-शास्त्र' (सन् १९०८ ई.) २. विज्ञान एवं आविष्कार :
(क) 'हिन्दी-वैज्ञानिक कोश' (सन् १९०६ ई०) ३. चिकित्सा एवं प्राणिशास्त्र :
(क) 'वैचित्र्य-चित्रण' (सन् १९२८ ई०) (ख) 'जल-चिकित्सा' (सन् १९०७ ई०)-लुई कुने के तद्विषयक ख्यात ग्रन्थ
का अनुवाद । ४. समाजशास्त्र: 'स्वाधीनता' (सन् १९०७ ई.)-जॉन स्टुअर्ट मिल-रचित 'ऑन लिबर्टी' का
अनुवाद। ५. उद्योग-व्यापार : _ 'औद्योगिकी' (सन् १९२१ ई०)
१. डॉ० श्रीकृष्ण लाल : 'आधुनिक हिन्दी-साहित्य का विकास', पृ० ३७८ ।