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सम्पादन-कला एवं भाषा-सुधार [ ७९ लेखों के प्रतिपाद्य विषय का सम्पादन करना तो दूर, उनकी भाषा तक को नहीं सुधारा जाता था । समय की पाबन्दी पर तो किसी का ध्यान ही नहीं था।"१
कुल मिलाकर, जिस समय आचार्य द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' का सम्पादन-कार्य स्वीकार किया, उस समय उनके समक्ष हिन्दी-पत्रकारिता की निम्नांकित न्यूनताओं को समाप्त करने की समस्या थी :
(क) अच्छे लेखकों का अभाव। (ख) बड़ी संख्या में हिन्दी-पाठकों की कमी । (ग) खड़ीबोली हिन्दी-गद्य के व्यावहारिक एवं व्याकरण-सम्मत रूप का अभाव । (घ) अँगरेजी, बँगला, मराठी, संस्कृत आदि के साहित्य की उत्कृष्ट उपलब्धियों
__ के साथ हिन्दी-जगत् का अपरिचय । (ङ) विदेशों में होनेवाली ज्ञान-विज्ञान के नूतन शोधों एवं परिवर्तनों के प्रति
हिन्दीभाषी जनता का अज्ञान ।। (च) हिन्दी में प्रकाशित होनेवाले अस्वरूप साहित्य का प्रसार एवं उत्कृष्ट
रचनाओं की कमी। उपर्युक्त त्रुटियों एवं अभावों से हिन्दी-पत्रकारिता उस समय व्याप्त थी। ऐसे ही समय आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' के सम्पादन का कार्यभार ग्रहण किया। ___ काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा द्वारा अनुमोदित 'सरस्वती' का प्रकाशन इण्डियन प्रेस, इलाहाबाद द्वारा सन् १९०० ई० में प्रारम्भ हुआ था। इसके सम्पादक-मण्डल में पांच व्यक्ति ये-कात्तिकप्रसाद खत्री, किशोरीलाल गोस्वामी, जगन्नाथ रत्नाकर, बाबू श्यामसुन्दरदास एवं राधाकृष्णदास । इस नवप्रकाशित पत्रिका के प्रथम अंक की भूमिका में ही 'सरस्वती' के उद्देश्य और रूपरेखा का उल्लेख इन पंक्तियों में किया गया : ___“....और, इस पत्रिका में कौन-कौन-से विषय रहेंगे, यह केवल इसी से अनुमान करना चाहिए कि इसका नाम 'सरस्वती' है । इनमें गद्य, पद्य, काव्य, नाटक, उपन्यास, चम्पू, इतिहास, जीवनचरित, पत्र, हास्य, परिहास, कौतुक पुरावृत्त, विज्ञान, शिल्प, कला-कौशल आदि साहित्य के यावतीय विषयों का यथावकाश, समावेश रहेगा और आगत ग्रन्थादिकों की यथोचित समालोचना की जायगी। यह हमलोग निज मुख से नहीं कह सकते कि भाषा में यह पत्रिका अपने ढंग की प्रथम होगी। किन्तु, हाँ, १. डॉ० लक्ष्मीनारायण सुधांशु : 'हिन्दी-साहित्य का बृहत् इतिहास', भाग १३.
पृ० १४७ ।