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९० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व एवं शृगार का विकृत रूप प्रतीकित करनेवाली इस स्त्री का उर्वभाग नग्न है, बायाँ हाथ कटा हुआ है, बाल कटे हुए है और इस बीभत्स कविता को देखकर जनसमूह भाग रहा है। इस चित्र के द्वारा द्विवेदीजी ने साहित्यिकों को सचेत किया है कि वे अश्लील एवं विकलांग कविता का निर्माण नहीं करे । 'सरस्वती' का सम्पादन अपने हाथ में लेते ही द्विवेदीजी ने 'साहित्य-समाचार' का स्थायी स्तम्भ ही पत्रिका ने प्रारम्भ कर दिया और प्रत्येक अक में एक-न-एक व्यंग्य-चित्र देने लगे। सन् १९०३ ई० मे, 'म्दती' के अंकों में द्विवेदीजी की कल्पनाप्रसूत अधोलिखित व्यंग्य-चित्र प्रकाशित हुए थे।
१ कविता-कुटुम्ब पर विपत्ति २. साहित्य-मभा
पृ० ११३ ३. नायिका-भेद के कवि और उनके पुरस्कर्ता राजा
पृ० १५० ४. कलासर्वज्ञ सम्पादक
पृ० १८६ ५. मातृभाषा का सत्कार
पृ० २२२ ६. काशी का साहित्य-वृक्ष
पृ० २५८ ७. शूरवीर ममालोचक
पृ० २९५ ८ मदरसो मे प्रचलित पुस्तक-प्रणेता और हिन्दी
पृ० ३३६ ६. चातकी की चरम लीला
पृ० ८०६ ये सभी शीर्षक प्रतिभाशाली 'सरस्वती'-सम्पादक की हिन्दी-साहित्यगत विपत्तियों और कमियो को दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहने की प्रवृत्ति के परिचायक है। 'प्रो० निर्मल तालवार ने ठीक ही लिखा है : ___सन् १९०२-०३ ई० में 'सरस्वती' ने इन व्यंग्य-चित्रो द्वारा काव्य की विपनि को बताया; सम्पादक, समालोचक, उपन्यासकार के कर्त्तव्य को समझाया, साहित्य की कौन-सी शैलियाँ और साहित्य के कौन-से विषय अछूते पड़े हैं, उस ओर लेखकों का ध्यान आकृष्ट किया। जनसाधारण के सामने स्थूल रूप में साहित्य की स्थिति बताकर उनको प्रबुद्ध किया। इन चित्रों ने निश्चय ही अपने युग में एक ऐसी पृष्ठभूमि बना दी थी कि इसके बाद साहित्य का विकास समृद्ध तथा स्वस्थ रूप मे सम्भव हो सका। पाठक और लेखक दोनों ही स्वस्थ साहित्य की कामना करने लगे।''
स्वस्थ साहित्य की उत्कट लालसा से रचे गये इन व्यंग्य-चित्रों में प्रत्येक के द्वारा हिन्दी-साहित्य की किसी-न-किसी समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है। 'कविता-कुटुम्ब पर विपत्ति' चित्र के द्वारा नमस्यापूर्ति की व्यापक, किन्तु अहितकर प्रवृत्ति को हटाने की अपील की गई है। 'माहिन्य-मभा' तो तत्कालीन समस्त हिन्दीसंसार का ही लेखा-जोखा है। उस समय इतिहास, कोश और जीवनचरित्र उपेक्षित विधाएँ थी, उन्हें रिक्त दिखाया गया है । मन् १९०३ ई० मे साहित्य के जिन अंगों पर
१. निर्मल तालवार : 'आचार्य द्विवेदी', पृ० १६७ ।