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१. देवीस्तुतिशतक (सन् १८९२ ई० ) २. नागरी (सन् १९०० ई०)
३. काव्यमंजूषा (सन् १९०३ ई०) ४. कविता-कलाप (सन् १९०९ ई० )
कविता एवं इतर साहित्य [ २११
५. सुमन (सन् १९२३ ई०)
६. द्विवेदी-काव्यमाला (सन् १९४० ई०, श्रीदेवीदत्त शुक्ल द्वारा सम्पादित सम्पूर्ण काव्य संकलन)
इन छह काव्य-संकलनों के अतिरिक्त द्विवेदीजी की मौलिक काव्यकृतियों की सूची में डॉ० उदयभानु सिंह ने क्रमशः 'कान्यकुब्जलीव्रतम्' (सन् १८९८ ई०), “समाचारपत्र-सम्पादकस्तवः ' ( सन् १८९८ ई० ) और 'कान्यकुब्ज - अबला - विलाप (सन् १९०७ ई०) नामक तीन रचनाओं की भी गणना की है । इसमें सन्देह नहीं कि इन तीनों कविताओं की रचना द्विवेदीजी ने ही की थी और इनका प्रकाशन भी निर्दिष्ट वर्ष मे ही पत्रिकाओ मे हुआ था, परन्तु इनका पुस्तकाकार प्रकाशन भी हुआ था—यह कहना प्राप्त प्रमाणों के आधार पर तर्कसंगत नहीं है । 'द्विवेदी + काव्यमाला' में इन तीनों ही कविताओं का संकलन हुआ है । अतएव द्विवेदीजी की मौलिक काव्यकृतियों के रूप में उपर्युक्त छह काव्य-सकलनों की ही गणना की जा सकती है । भाषा की दृष्टि से द्विवेदीजी के मौलिक काव्य को इन्हीं चार विभागों में विभक्त किया जा सकता हैं । अपनी साहित्यिक साधना के प्रारम्भिक युग में द्विवेदीजी ने ब्रजभाषा में ही अनूदित काव्य रचने का काम प्रारम्भ किया था । उनको प्रारम्भिक
for कविताएँ भी इसी कारण व्रजभाषा मे ही रचित हैं । उनका पहला मौलिंक काव्य 'देवीस्तुतिशतक' इस प्रारम्भिक भाषा का सुन्दर उदाहरण है । संस्कृत के परमेश्वरशतक, सूर्यशतक, चण्डीशतक आदि की शैली में दैहिक तापों से मुक्ति पाने तथा आराध्या चण्डी देवी की स्तुतिपरक आत्मनिवेदन करने के लिए द्विवेदीजी ने - 'देवी स्तुतिशतक' की रचना की थी । उनके इस प्रथम मौलिक काव्यग्रन्थ में प्रयुक्त व्रजभाषा का एक उदाहरण द्रष्टव्य है :..
शक्ति विशूल असि पास गदा कुठारा, धन्वा धुरीण युत केहरि पे सवारा
जासों समस्त महिषासुर सैन्य हारी ता अष्टबाहु जननीहि नमो हमारी ॥१६॥३
१. डॉ० उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग, पृ० ७८-७९ २. 'आचार्यं द्विवेदी' : (सं० ) निर्मल तालवार, पृ० ७० पर उद्धृत है.