Book Title: Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Author(s): Shaivya Jha
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 244
________________ २३० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व कविताएँ भी द्विवेदीजी ने लिखी हैं। मुक्तक रचनाओं में द्विवेदीजी ने मुख्य रूप से सौन्दर्य अथवा उपदेश को विषय के रूप ग्रहण किया है । 'स्नेहमाला', 'विहार - वाटिका', ‘प्रभातवर्णनम्’, ‘सूर्यग्रहणम्' जैसी उनकी मुक्तक - रचनाओं मे नारी अथवा प्रकृति । दूसरी ओर, 'विचार सौन्द का निरूपण ही लक्ष्य प्रतीत होता है करने योग्य बातें' और 'विनयविनोद' में नीति- उपदेश के लिए मुक्तक - शैली में काव्यप्रयोग द्विवेदीजी ने किये हैं । प्रबन्ध और मुक्तक की परम्परित शैलियों में काव्य-रचना करने के साथ-हीसाथ द्विवेदीजी ने कतिपय गीत भी लिखे । महिला परिषद् के लिए लिखे गये गीत और 'टेसू की टाँग' की गणना इनमें हो सकती है । आल्हापरक गेयता के आधार पर 'सरगौ नरक ठेकाना नाहीं' की गिनती भी गीतों की श्रृंखला में होनी चाहिए । गीतों के साथ-ही-साथ द्विवेदीजी ने गद्यकाव्य लेखन की दिशा में भी प्राथमिक प्रयास किया । उनकी 'प्लेगराजस्तव', 'समाचारपत्रों का विराट रूप' जैसी रचनाएँ " गद्यकाव्यात्मक गरिमा से सपन्न हैं । इस कोटि की कविताओं में कल्पना एक भाव-व्यंजना की उच्चता भले न हो, परन्तु गद्यकाव्य की दिशा में पहलकदमी होने के कारण इनका ऐतिहासिक महत्त्व अवश्य है । द्विवेदीजी ने अपनी कविताओं में संस्कृत, हिन्दी, बँगला, मराठी और उर्दू के विविध छन्दों का प्रयोग किया है । वे छन्द को कविता की आत्मा नहीं मानते थे और उनको दृष्टि में छन्द का महत्त्व अलंकार के ही समकक्ष था । डॉ० सुरेशचन्द्र गुप्त ने लिखा है : योजना पर बल देते "छन्दोविधान की दृष्टि से उन्होंने काव्य में समर्थ छन्दों की हुए वर्णवृत्तों और अतुकान्त रचना का समर्थन किया है । उन्होंने अपनी कविताओं में छन्दोवैविध्य रखते हुए मात्रिक छन्दों के अन्तर्गत मुख्यतः दोहा, हरिगीतिका और तोमर का प्रयोग किया है ।"१ छन्दों का प्रयोग करने में द्विवेदीजी ने वास्तव में वैविध्य दिखलाया है । उन्होंने संस्कृत-हिन्दी की हरिगीतिका, दोहा, स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीडित, द्रुतविलम्बित, वंशस्थ, शिखरिणी, भुजंगप्रयात, मालिनी, मन्दाक्रान्ता, नाराच, चामर, वसन्ततिलिका, उपजाति, उपेन्द्रवज्रा इन्द्रवज्रा, तोमर, पज्झटिका, सवैया आदि जैसी छन्द- सरणियों का प्रयोग किया है । संस्कृत-वृत्तों का प्रयोग करते समय मराठी काव्यरचना-पद्धति उनके दृष्टिपथ में थी । बंगला के अमिताक्षर छन्द को भी उन्होंने अपनाया । अपनी प्रारम्भिक अनूदित एवं मौलिक कविताओं की रचना द्विवेदीजी ने वसन्तलतिका, शार्दूलविक्रीडित, द्रुतविलम्बित, इन्द्रवज्रा और मालिनी, जैसे गणात्मक वृत्तों में ही की है । वे गणात्मक छन्दों के प्रयोग में विशेष सिद्ध थे । अतुकान्त काव्य-रचना उन्हें विशेषा १. डॉ० सुरेशचन्द्र गुप्त 'आधुनिक हिन्दी कवियों के काव्य-सिद्धान्त', १२४०

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