Book Title: Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Author(s): Shaivya Jha
Publisher: Anupam Prakashan
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कविता एवं इतर साहित्य [ २२१
राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-ही-साथ द्विवेदी युगीन कवियों का ध्यान सामाजिक अस्तव्यस्तता और दूषणों पर भी गया। डॉ० परशुराम शुक्ल विरही ने लिखा है :
"अपने समाज की समकालीन सामाजिक और आर्थिक दशा पर कवियों ने अनेक प्रकार से अपनी भावाभिव्यक्ति की है । कहीं सीधे-सादे रूप में यथार्थ चित्रण किया है, कहीं समाज और देश की दयनीय दशा पर क्षोभ प्रकट किया है, कहीं हास्यव्यंग्य के चुटीले माध्यम से कवि ने अपनी बात कही है ।" "
आचार्य द्विवेदीजी की कविताओ में भी देश की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दशा के अंकन की यही प्रविधियाँ अपनाई गई है । नारी-सुधार, ब्राह्मण समाज के उत्थान, दहेज-प्रथा, आर्थिक संकट, बाल-विवाह, मांस भक्षण आदि देशव्यापी विविध समस्याओं और कुप्रथाओं को विषय बनाकर द्विवेदीजी ने कविताएँ लिखी । इस दृष्टि से उनकी 'भारतदुर्भिक्ष' २, 'बाल-विधवा विलाह', 3 'मांसाहारी को हण्टर', ४ 'विधि - विडम्बना ', ' 'कान्यकुब्ज - अबला - विलाप', 'ठहरौनी' ७ आदि खड़ी बोली की तथा 'कान्यकुब्जलीलामृतम्' जैसी संस्कृत की कविताएँ द्रष्टव्य हैं। अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों के कारण द्विवेदीजी को गहरा क्षोभ था, इस कारण उन्होने अवसर मिलते ही उन दुर्गुणों को प्रकाश मे लाया है । देश की दुर्गति पर उन्हें भी इतना ही क्षोभ था, जितना दुःख भारतेन्दु एवं उनके सहयोगी साहित्यकारों को होता था । भारतेन्दु श्रीहरिश्चन्द्र' की तरह उन्होने भी भारत दुर्दशा पर आँसू बहाये हैं :
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यदि कोई पीड़ित होता है,
उसे देख सब घर रोता है । देश-दशा पर प्यारे भाई, आई कितनी रुलाई ॥
बार
१. डॉ० परशुराम शुक्ल विरही : 'आधुनिक हिन्दी काव्य में यथार्थवाद', पृ० ९० ।
२. श्रीदेवीदत्त शुक्ल : (सं०) 'द्विवेदी - काव्यमाला', पृ० १०५ ।
३. 'भारतमित्र', ७ अक्टूबर, १८९८ ई० ।
४. ‘हिन्दी-बंगवासी', १९ नवम्बर, १९०० ई० ।
५. 'सरस्वती', मई, १९०१ ई०, पृ० १४७-१४८ ।
६. 'सरस्वती', सितम्बर, १९०६ ई०, पृ० ३५१ -- ३५४ ।
७. 'सरस्वती', नवम्बर, १९०६ ई०, पृ० ४३७–४४२ ।
८. 'रोवहु सब मिलिके आवहु भारत भाई ।
हा हा भारत दुर्दशा देखि न जाई ॥'
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : 'भारत-दुर्दशा', भारतेन्दु ग्रन्थावली, पृ० ४६९ ।
९. श्रीदेवीदत्त शुक्ल : (सं०) द्विवेदी काव्यमाला', पू० ३६७ ॥

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