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कविता एवं इतर साहित्य [ २२७
स्पष्ट ही ऐसी परिचयात्मक कविताओं में द्विवेदीजी द्वारा किया गया नारीसौन्दर्य-वर्णन अपेक्षित मनोहारिता और सुरुचि से सम्पन्न नहीं है । कविता इन स्थलों "पर आदर्शवादी नीतियों से दबी होने के कारण पूर्ण रूप से उन्मुक्त नहीं हो सकी है । साथ ही, काव्यत्व की दृष्टि से भी इन कविताओं में किसी विशेषता के दर्शन नहीं होते हैं। निर्मम तुकबन्दी अथवा शब्दो को पद का रूप प्रदान करना ही इसे कहा जा सकता है । उदाहरणार्थ, 'महाश्वेता' के इस वर्णन में आलोचक भला किस काव्यगत सौन्दर्य का शोध कर सकते हैं :
यह सुन्दरी कहाँ से आई, सुन्दरता अति अद्भुत पाई ।
सूरत इसको अति भोली है,
और न इसकी हमजोली है ॥ '
इस प्रकार, 'प्रियंवदा' के अधोलिखित वर्णन मे भी किसी प्रकार का कोई काव्यत्व नहीं है :
सीखा चित्र बनाना इसने, करके कौशल नाना इसने । पढ़ना और पढ़ाना इसने, पति का चित्त चुराना इसने ॥ पुरुषों में भी जाना इसने । मन्द मन्द मुस्काना इसने । सुधा-सलिल बरसाना इसने, जरा नहीं शरमाना इसने ॥ २
स्पष्ट है कि नारी सौन्दर्य के मौलिक काव्याभिव्यजन में द्विवेदीजी को सफलता नहीं मिली है। प्रकृति-सौन्दर्य के क्षेत्र में भी उनकी प्रतिभा ने मौलिकता कर प्रदर्शन नहीं किया है । कालिदास जैसे महाकवियों के काव्य में वर्णित प्रकृति को हिन्दी में अनूदित करने में भी वे अधिक सफल नहीं हुए है । उनकी कविताओं में कहों तो प्रकृति का भाव चित्रग हुआ है और कही रूगत चित्रण हुआ है । प्रकृति के भा चित्रण की दृष्टि से प्रभातवर्णनम्' की पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :
क्व मामनादृत्य निशान्धकारः पलाय्य पापः किल यस्तनोति । ज्वलन्निव क्रोधमरेण भातुरङ्गाररूपः सहसाविरासीत् ॥3
१. निर्मल तालवार : (सं०) 'आचार्य द्विवेदी, पृ० ७८ पर उद्धृत २. श्रीदेवीदत्त शुक्ल : (सं०) 'द्विवेदी - काव्यमाला', पृ० ४४१ । ३. उपरिवत् पृ० १६९ ।