________________
१३८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कत्तृत्व
इस प्रकार, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के निबन्धों में परिगणित होनेवाली गभग सभी रचनाओं में निबन्ध-कला के लक्षण सम्पूर्णता में नही मिलते हैं। विविध निबन्ध संग्रहों तथा 'सरस्वती' के स्तम्भों में प्रकाशित इन निबन्धों के चार विधागत रूप परिलक्षित होते है। इसमें सन्देह नहीं कि द्विवेदीजी के कई लेख अपने आकार, गरिमा एवं लक्षणों की दृष्टि से निबन्ध की सीमा मे आ जाते हैं। ऐसे निबन्धों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। द्विवेदीजी के लेखों का पहला रूप तो निबन्धात्मक ही है और दूसरे रूप-वर्ग में वे भूमिकाएँ है, जो विविध पुस्तकों या ग्रन्थकारों के विषय में परिचय-स्वरूप लिखी गई हैं। रघुवश, किरातार्जुनीय, स्वाधीनता आदि पुस्तकों की भूमिकाएँ निबन्ध की इसी कोटि में हैं। द्विवेदीजी के निबन्धों का तीसरा रूपग त वर्ग उन विविध-विषयाश्रित टिप्पणियो का है, जिन्हें सम्पादकीय, विविध विषय, विनोद
और आख्यायिका आदि स्तम्भों के रूप में द्विवेदीजी ने नियमित रूप से 'सरस्वती' में लिखा था। द्विवेदीजी के ऐसे टिप्पणी जैसे निबन्धों की संख्या ही सर्वाधिक अधिक है। उनके निबन्धों का चौथा एवं अन्तिम रूप भाषणों का है। इस कोटि में उनके द्वारा अभिनन्दन-समारोह, द्विवेदी-मेला एवं हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के तेरहवें अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष-पद से दिये गये उनके भाषणों की गणना होती है। निबन्धो के रूप में संकलित एवं ख्यात इन सभी रूप-विधाओं मे द्विवेदीजी की विविध विषयो से सम्बद्ध पैठ तथा सरल भाषाशैली के दर्शन होते है। आकार में छोटी तथा निबन्धोचित गुणों मे किचित् पृथक् होती हुई भी उनकी इन रचनाओं का विषयवैविध्य के कारण अपना एक विशेष माधुर्य एवं महत्त्व है। प्रेमनारायण टण्डन ने लिखा है :
"द्विवेदीजी की तुलना विषय की दृष्टि से उनके समय के लेखको में किसी से नहीं की जा सकती। द्विवेदीजी का उद्देश्य साहित्यकता और मौलिक चिन्तन का आदर्श जनता के सामने उपस्थित करना ही नहीं था, वे यह भी चाहते थे कि उवयोगी और मनोरंजक विषय जनता तक पहुँचा दिये जायें, जिससे हिन्दी के प्रति उनके हृदय में कुछ प्रेम हो और साथ ही उनका ज्ञान भी बढ़े। दूसरे शब्दों में, वे उद्देश्थ-विशेष से जनता की रुचि तथा उसके स्टैण्डर्ड का ध्यान रखते हुए निबन्ध लिखते थे।"१
इसी कारण, उनकी निबन्ध-कला का प्रामाणिक ढंग से सुनियोजित विकास नहीं हुआ, अपितु उनके निबन्धो की इस विषयगत विविधता एवं सम्पन्नता का सहज अनुमान 'सरस्वती' में प्रकाशित उनके निबन्धों की किसी भी सूची को देखकर लगाया जा सकता है। उनके निबन्धों के प्रकाशन-क्रम को ध्यान में रखकर बनाई गई
१.श्रीप्रेमनारायण टण्डन : 'द्विवेदी-मीमांसा', पृ० १२८ ।