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गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १९१ हुआ था, जिस प्रकार अंगरेजी मे मेटाफिजिकल पोएट्री का। छायावादी कवि व्रजभाषा मे रची गई तथा रीति-पद्धति पर आधृत कविताओं के स्थान पर. खड़ीबोली में लिखी गई नई सवेदनाओ के अनुकूल रचे गये काव्य मे नये-नये बिम्बों की प्राणप्रतिष्ठा करने लगे। उनका लिखना अनाप-शनाप लिखना नहीं था, परन्तु चूंकि प्रतिक्रिया आरम्भ में अत्यन्त उग्र हुआ करती है, इसलिए छायावादी कवि नव्यता की खोज मे कही-कही अत्यन्त सपाट दीखने लगते हैं।
'विचार-विमर्श' के साहित्य-खण्ड में संगृहीत निबन्धों में भी आचार्य द्विवेदीजी की साहित्य-विषयक अवधारणाओ का सम्यक् निरूपण हुआ है । इस ग्रन्थ का 'आधुनिक कविता' शीर्षक प्रथम निबन्ध मार्च, १९१२ ई० में कहा था। इसमें आचार्यजी ने आर्थर जेविसन फिके की कवि और काव्य-सम्बन्धी मान्यताओं का उल्लेख किया है और उनसे सहमति प्रकट की है। फिके के मतानुसार कवि को देश और काल की अवस्था का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। वही कवि कालजयी होता है, जिसकी रचनाओं मे जीवन की सार्थकता के उपाय बतलाये जाते हैं। फिके ने काव्य के कलापक्ष की अवहेलना नहीं की और अपने पाठकों का ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट किया कि कविता सोद्देश्य तो हो, पर साथ ही उसकी भापा मनोहारिणी हो । फिके के विचारों को उद्धत करते हुए आचार्य द्विवेदी ने कहा है : 'अच्छी कविता में उन्ही विषयों का वर्णन होता है, जो मनुष्य के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते है और जो उसकी आत्मा
और आध्यात्मिकता पर गहरा असर डाल सकते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि स्वयं द्विवेदीजी उसी कविता के प्रशंसक थे, जो नीतिमूलक होती थी, जिसमें 'उच्च विचारों' को वाणी मिलती थी, जो 'हृदय और बुद्धि' के ऊपर अच्छा प्रभाव डालती थी और जिसमें 'समयोपयोगी आवश्यक उपदेशों को' इस ढंग से व्यक्त किया जाता था, 'जिससे मनुष्य बहुत जल्द उन्हें ग्रहण कर सकें।'
_ 'आजकल के छायावादी कवि और कविता' नामक निबन्ध में भी द्विवेदीजी ने विभिन्न शब्दावली का प्रयोग करते हुए उसी काव्य को श्रेष्ठ घोषित किया है, जो बहुत जल्द ग्रहण हो जाय। इसमें सन्देह नहीं कि द्विवेदीजी के अनुसार 'कविता का सबसे बड़ा गुण है उसकी प्रासादिकता।'२ चूकि, छायावादी कविता में प्रासादिकता अत्यल्प होती है, इसलिए द्विवेदीजी उसका समर्थन नहीं करते और कहते है कि प्रासादिकता 'जब नहीं, तब कविता सुनकर श्रोता रीझ किस तरह सकेंगे और उसका असर उनपर होगा क्या खाक ।' 3 द्विवेदीजी की दृष्टि में छायावादी कवि : "ऐसे-वैसे
१. महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'विचार-विमर्श', पृ० १ (सं० १९८८, काशी। २. महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'साहित्यालाप', पृ० ३४५, सन् १९२९ ई० । ३. उपरिवत् ।