Book Title: Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Author(s): Shaivya Jha
Publisher: Anupam Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 216
________________ २०२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व 'बलीवर्द' के प्रकाशन के पश्चात् द्विवेदीजी का काव्य-लेखन एक-दो अपवादों को छोड़कर मुख्यतया खड़ी बोली में ही हुआ । अपनी कविताओं को पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कराते रहने की दिशा में द्विवेदीजी सचेष्ट थे । 'सरस्वती' के प्रकाशनारम्भ के पूर्व उनकी कई कविताएँ श्रीवेंकटेश्वर - समाचार, हिन्दोस्थान, हिन्दी - बंगवासी, नागरी प्रचारिणी - पत्रिका, भारतमित्र, भारतजीवन, राजस्थान- समाचार, सुदर्शन इत्यादि पत्रिकाओं में छप चुकी थीं। 'सरस्वती' में उनकी पहली कविता 'द्रौपदी - वचन - वाणावली' अक्टूबर, १९०० ई० के अंक में छपी । फिर तो 'सरस्वती' में उनकी कविताओं का अनवरत रूप से प्रकाशन होता रहा । 'द्रौपदी - वचन - बाणावली' खड़ी बोली की रचना थी, फिर भी इसकी भाषा में कहीं-कहीं व्रजभाषा का पुट था । 'सरस्वती' में प्रकाशित उनकी परवत्र्त्ती कविताएँ पूर्णतः खड़ी बोली में लिखी गई । 'सरस्वती' के प्रारम्भिक दस वर्षों में ही द्विवेदीजी की कुल इतनी कविताएं, उसमें प्रकाशित हो गई : १. द्रौपदी - वचन - वाणावली : नवम्बर, १९०० ई० । २. विधि-विडम्बना : फरवरी, १९०१ ई० । ३. हे कविता : जून, १९०१ ई० । ४. ग्रन्थकार-लक्षण : अगस्त, १९०१ ई० । ५. कोकिल : सितम्बर, १९०१ ई० । ६. वसन्त : अक्टूबर, १९०१ ई० । ७. ईश्वर की महिमा : दिसम्बर, १९०१ ई० । ८. भारत की परमेश्वर से प्रार्थना : फरवरी, १९०१ ई० । ९. सेवा - विगर्हण : सितम्बर, १९०२ ई० । १०. सरस्वती का विनय : जनवरी, १९०३ ई० । ११. जन्मभूमि : फरवरी मार्च १९०३ ई० । 1 १२. विदेशी वस्त्र का स्वीकार : जुलाई, १९०३ ई० । १३. गानविद्या : सितम्बर, १९०३ ई० । १४. श्रीहार्नली-पंचक : अक्टूबर, १९०३ ई० । १५. विचार करने योग्य बाते : फरवरी, १९०४ ई० । १६. ग्रन्थकारों से विनय : फरवरी, १९०५ ई० । १७. रम्भा : मार्च, १९०५ ई० । १८. कुमुदसुन्दरी : अगस्त, १९०५ ई० । १९. महाश्वेता : सितम्बर, १९०५ ई० । २०. ऊषा - स्वप्न : जनवरी, १९०६ ई० । २१. महिला परिषद् के गीत : जनवरी, १९०६ ई० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277