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सम्पादन-कला एवं भाषा-सुधार [ ११७
करके द्विवेदीजी ने जिस कौशल के साथ प्रस्तुतीकरण किया, उनका कोई मिसाल नहीं है। उनके समय की 'सरस्वती' के पन्ने-पन्ने पर द्विवेदीजी की कला और प्रतिभा की मुहर लगी हुई है। प्रूफ-संशोधन, रचनाओं के संशोधन एवं विषय-संयोजन से लेकर सम्पादकीय टिप्पणियों तक में द्विवेदीजी का पसीना बहता था । श्रीनारायण चतुर्वेदी ने लिखा है : ___ "नियमित रूप से इस प्रकार सम्पादकीय टिप्पणियाँ लिखना हिन्दी-मासिक पत्रों में शायद सबसे पहले 'सरस्वती' ने ही आरम्भ किया था।'' __ वास्तव में, द्विवेदीजी की 'सरस्वती' ने पत्रकारिता एवं साहित्यिक उपलब्धियों की अनेक दिशाओं में पहलकदमी की थी। और, यह द्विवेदीजी की देन थी। निःसन्देह, द्विवेदीजी अथक परिश्रमी, कर्मठ एवं आदर्श सम्पादक, भाषासंस्कारक एवं हिन्दी के महारथी थे।
१. श्रीश्रीनारायण चतुर्वेदी : 'सरस्वती' की कहानी, सरस्वती-हीरक-जयन्ती
अंक, सन् १९६१ ई०, पृ० २४ ।