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सम्पादन-कला एवं भाषा-सुधार [ ९७
बाजार सिक्का' आदि लेखों के प्रकाशनार्थ श्रीकण्ठ पाठक, एम्. ए.' की उपाधि से मण्डित संज्ञा पाई। 'मस्तिष्क'२ की विचारणा के लिए 'लोचनप्रसाद पाण्डेय' बन गये। एक बार 'स्त्रियों के विषय में अत्यल्प निवेदन'3 करने के लिए 'कस्यचित् कान्यकुब्जस्य' पण्डिताऊ जामा पहनाया, तो दूसरी बार 'शब्दों के रूपान्तरण'४ की विवेचना करने के लिए 'नियमनारायण शर्मा' का सैनिक वेष धारण किया।
आचार्य द्विवेदीजी की इस नामावली से स्पष्ट है कि वे विविध रचनाओं को प्रस्तुत करने के उद्देश्य से 'सरस्वती' के पाठकों के समक्ष नये-नये कल्पित नामों से आते थे। इस प्रकार, द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' को विविध विषयों से भूषित एवं सर्वागसुन्दर बनाने के लिए हर सम्भव प्रयत्न किया । 'सरस्वती' में विविध विषयों की इस योजना के फलस्वरूप उस युग की अन्यान्य पत्र-पत्रिकाओं में भी धीरे-धीरे इन विषयों का समावेश होने लगा। 'सरस्वती' में विविध विषयों की इस योजना को डॉ० उदयभानु सिंह ने मराठी के एक मासिक 'केरल-कोकिल' के आधार पर निर्मित माना है :
"द्विवेदी-सम्पादित 'सरस्वती' के विविध विषयों पर 'केरल-कोकिल' का विशेष प्रभाव परिलक्षित होता है। द्विवेदीजी ने उपर्युक्त पत्रिका का अन्धानुकरण न करके उसके दोषों का परिहार और गुणों का ग्रहण क्यिा ।. . . 'केरल-कोकिल' के अतिरिक्त 'महाराष्ट्र-कोकिल' की इतिहास-विषयक लेखमाला और 'प्रवासी' (बँगला) के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि विषयों के लेखों का भी प्रभाव लक्षित है।"
इस भांति, समसामयिक अँगरेजी, बँगला, उर्दू, मराठी आदि विभिन्न भाषाओं की पत्रिकाओं से उपयुक्त सामग्री का चयन कर एवं उनके गुणों को आत्मसात कर द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' को समृद्ध किया था। अन्य पत्रिकाओं से 'सरस्वती' ने जितना ग्रहण किया है, उसकी अपेक्षा अन्य पत्रिकाओं को किये गये उसके दान की संख्या चौगुनी है। 'मर्यादा', 'चाँद', 'माधुरी', 'प्रभा', 'लक्ष्मी', 'इन्दु' आदि पत्रिकाओं ने 'सरस्वती' के ही आदर्श पर अपनी विषय-योजना निर्धारित की थी। इस प्रकार, अपनी विविध-विषयक सामग्री और कलात्मक योजना के बल पर 'सरस्वती' ने अपना
१. सरस्वती, सन् १९१२ ई०, पृ० २४२ । २. सरस्वती, सन् १९०९ ई०, पृ० ६०९ । ३. सरस्वती, सन् १९१३ ई०, पृ० ३८४ । ४. सरस्वती, सन् १९१४ ई०, पृ० ४८३। ५. डॉ० उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग',
पृ० १६६-१६८। ६. उपरिवत्, पृ० १८३-८४ ।