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१०२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व सबको छाप देना सम्भव नहीं था। उनका समुचित परिष्कार करके, भाव एवं भाषा की दृष्टि से उन्हें शुद्ध करके ही द्विवेदीजी उन्हें छपने के लिए प्रेस के हवाले करते थे। परिष्कार के इस क्रम मे द्विवेदीजी रचनाओं को आमूल परिवर्तित भी कर देते थे। परिवर्तन की इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद उन रचनाओं को उनके मूल रचयिता भी नहीं पहचान पाते थे। मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी 'हेमन्त' शीर्षक कविता को 'सरस्वती' में प्रकाशित देखकर अनुभव किया था :
"मेरा रोम-रोम पुलक उठा, जिस रूप में मैने उसे भेजा था, उससे दूसरी ही वस्तु वह दिखाई पड़ती थी, बाहर से ही नही, भीतर से भी। पढ़ने पर मेरा आनन्द आश्चर्य मे बदल गया। इसमें तो इतना संशोधन और परिवर्द्धन हुआ कि यह मेरी रचना ही नहीं कही जा सकती थी।"५ ___इसी तरह, एक बार द्विवेदीजी ने स्व० पं० लक्ष्मीधर वाजपेयी को नाना फड़नवीस पर कुछ लिखकर अपनी पत्रिका के लिए भेजने का आदेश दिया। उन्होंने पर्याप्त अध्ययन करके पचास पृष्ठों का लम्बा लेख लिखकर उनके पास भेज दिया । लौटती डाक से वाजपेयीजी को द्विवेदीजी का पत्र मिला कि आपने 'सरस्वती' के लिए यह लेख लिखा है या ग्रन्थ लिखा है ? खैर, किसी तरह उसका उपयोग कर लिया जायगा।
और, बाद में 'सरस्वती' में पचास पृष्ठों के अपने उक्त जीवनवृत्त को आठ पृष्ठो मे प्रकाशित देखकर वाजपेयीजी को आश्चर्य हुआ। लेख का सार और सिलसिला इतना उत्तम बँधा था कि कही शिथिलता नही दीखती थी। अपने लेखकों की सभी रचनाओ के साथ द्विवेदीजी यह नीति अपनाते थे। कोई भी रचना उनके द्वारा मंशोधित परिवत्तित हुए विना 'सरस्वती' मे प्रकाशित नहीं होती थी। इस अतिशयसुधारवादिता से कई लेखक अप्रसन्न भी रहते थे। वे अपनी रचना में अधिक परिवर्तन सहन नहीं कर सकते थे और द्विवेदीजी बिना परिवर्तन किये सन्तोष की साँस नहीं लेते थे। श्री श्रीप्रकाशजी ने 'सरस्वती' में अपनी अधिक रचनाओं के प्रकाशित न होने का कारण द्विवेदीजी की इस संशोधनवादिता को ही बताया है :
__ "सरस्वती' में अधिक लेख न लिखने का कारण यह हुआ कि द्विवेदीजी को अपनी शैली पसन्द थी। वे सबके लेख फिर से इस शैली-विशेष में लिखते थे और तब प्रकाशित करते थे । मुझे यह न पसन्द था, न है। इस सम्बन्ध में द्विवेदीजी से मेरा कुछ पत्र-व्यवहार भी हुआ। पत्र लिखने में वे बड़े प्रवीण थे, तुरत उत्तर देते थे। इस सम्बन्ध में मेरा उनका मतभेद बना रहा। इस कारण दो के बाद तीसरा लेख मैने नहीं लिखा ।१२
१. श्रीमैथिलीशरण गुप्त : 'आचार्य द्विवेदी' 'भाषा' : द्विवेदी-स्मृति-अंक, पृ० २२ । २. श्री श्रीप्रकाश : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी', 'भाषा' : द्विवेदी-स्मृति-अंक,
पृ० २४-२५ ।