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द्विवेदीजी का सम्पूर्ण साहित्य [ ६५
१९. महिला-मोद : 'सरस्वती' में प्रकाशित महिलापयोगी दस लेखों का संग्रह ६७ पृष्ठों की. १८ सें० आकार में छपी इस सचित्र पुस्तक में हुआ है। इसका प्रकाशन गंगा पुस्तकमाला-कार्यालय (लखनऊ) द्वारा सन् १९२५ ई० में हुआ था।
२०. आख्यायिका-सप्तक : इस पुस्तक में बँगला, अँगरेजी और संस्कृत से सामग्री लेकर लिखे गये सात निबन्धों का संकलन हुआ था। इण्डियन प्रेस (प्रयाग) द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का आकार १८ सें० है एवं इसकी पृष्ठ-संख्या ६९ है। 'आख्यायिका-सप्तक' का प्रकाशन-वर्ष सन् १९२७ ई० है।
२१. आध्यात्मिकी : 'सरस्वती' में प्रकाशित धर्म एवं दर्शन-विषयक लेखों के इस संकलन को इण्डियन प्रेस (इलाहाबाद) ने सन् १९२७ ई० में प्रकाशित किया था। डॉ० उदयभानु सिंह ने इसका प्रकाशन-वर्ष सन् १९२६ ई० माना है। १८ सें. आकार में छत्री इस पुस्तक की पृष्ठ-संख्या २०३ है ।
२२. कोविद-कीर्तन : 'सरस्वती' में प्रकाशित बारह विद्वानों का जीवनचरित इस पुस्तक में संकलित किया गया है। इण्डियन प्रेस (इलाहाबाद) द्वारा २०३ पृष्ठों की, १८ सें० आकार में मुद्रित एवं प्रकाशित इस पुस्तक का प्रकाशन-वर्ष सन् १९२७ ई० है।
२३/ विदेशी विद्वान् : इस पुस्तक में 'सरस्वती' में प्रकाशित विद्वानों के संक्षिप्त जीवनचरितों का संग्रह है। इलाहाबाद के इण्डियन प्रेस ने इसका प्रकाशन सन् १९२७ ई० में किया था। १२९ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें० है। ___ २४. आलोचनांजलि : इलाहाबाद के इण्डियन प्रेस द्वारा सन् १९२८ ई० में प्रकाशित इस पुस्तक में 'सरस्वती' के कतिपय पूर्व-प्रकाशित लेखों का संग्रह हुआ है। १२४ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें० है ।
२५. दृश्य-दर्शन : 'सरस्वती' में प्रकाशित कुछ लेखों का प्रकाशन सन् १९२८ ई० में इस पुस्तक के रूप में सुलभ ग्रन्थ-प्रचारक मण्डल (कलकत्ता) ने किया था। १३३ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें० है।
२६. लेखांजलि : सन् १९२८ ई० में ही प्रस्तुत पुस्तक को भी हिन्दी पुस्तकएजेन्सी (कलकत्ता) ने प्रकाशित किया। 'सरस्वती' में प्रकाशित लेखों के इस संग्रह में १६७ पुष्ठ हैं और आकार १८ सें० है । सामाजिक विषयों पर लिखे गये इन लेखों की संख्या १९ है।
२७. वैचित्र्य-चित्रण : हिन्दी के ख्यात उपन्यासकार प्रेमचन्द द्वारा सम्पादित इस पुस्तक का प्रकाशन लखनऊ के नवलकिशोर प्रेस द्वारा सन् १९२८ ई० में हुआ था।
१. डॉ. उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', पृ० ८४ ।