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६६ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व डॉ० उदयभानु सिंह ने इसका प्रकाशन-वर्ष सन् १९२६ ई०, लिखा है। इस पुस्तक में 'सरस्वती' में प्रकाशित लेखों को क्रमशः नराध्याय, वानराध्याय, जलचराध्याय, स्थलचराध्याय, उद्भिज्जाध्याय, प्रकीर्णकाध्याय जैसे छह अध्यायों में विभाजित कर प्रस्तुत किया गया है।
२८. साहित्य-सन्दर्भ : गंगा पुस्तकमाला-कार्यालय (लखनऊ) द्वारा सन् १९२८ ई० में प्रकाशित इस पुस्तक का प्रकाशन-वर्ष डॉ० उदयभानु सिंह ने सन् १९२४ ई० माना है। इस पुस्तक में आचार्य द्विवेदीजी द्वारा लिखे गये और 'सरस्वती' में पूर्वप्रकाशित लेखों के साथ-साथ अन्य चार विद्वानों द्वारा लिखे गये लेख भी है। लेखों की कुल संख्या ७० है । २७४ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें० है।
२९ पुरावृत्त : इण्डियन प्रेस (इलाहाबाद) द्वारा सन् १९२८ ई० में प्रकाशित इस पुस्तक में 'सरस्वती' में छपे इतिहास-सम्बन्धी १२ लेख संग्रहित है । डॉ० उदयभानु सिंह ने इसका प्रकाशन-वर्ष सन् १९२७ ई० माना है । 3 कुल १५४ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकर १८ सें० है ।
३०. पुरातत्त्व-प्रसंग : साहित्य-सदन (चिरगाँव) से प्रकाशित इस पुस्तक में १७१ पृष्ठ हैं तथा इसका आकार १७ सें० है। इसमें 'सरस्वती' में प्रकाशित पुरातत्त्वसम्बन्धी १३ निबन्ध संकलित है। इस पुस्तक का प्रकाशन-वर्ष सन् १९२९ ई० है।
३१. प्राचीन चिह्न : 'सरस्वती' मे प्रकाशित एलोरा, साँची, खजुराहो आदि से सम्बद्ध निबन्धों का प्रस्तुत पुस्तक के रूप में प्रकाशन इण्डियन प्रेस (इलाहाबाद) द्वारा सन् १९२९ ई० में हुआ था। १२३ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें० है ।
३२. साहित्यालाप : खड्गविलास प्रेस (पटना) द्वारा मन् १९२९ ई० में प्रकाशित इस पुस्तक में 'सरस्वती' में प्रकाशित हिन्दी-भाषा और लिपिविषयक १८ लेख संकलित हैं। इस संग्रह में कुछ अन्य लेखकों के लेख भी संगृहीत है । डॉ० उदयभानु सिंह ने इस पुस्तक का प्रकाशन-वर्ष सन् १९२६ ई० माना है । कुल ३५२ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें० है।
३१. चरित-चर्चा : इस पुस्तक का प्रकाशन साहित्य-सदन, चिरगांव (झाँसी) द्वारा सन १९३० ई० में हुआ था। 'सरस्वती' में प्रकाशित जीवनचरितों के इस संग्रह का प्रकाशन-वर्ष डॉ० उदयभानु सिंह के अनुसार सन् १९२७ ई० है । १६३ पृष्ठों की इस पुस्तक का आकार १८ सें है।
१. डॉ. उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उसका युग', पृ० ८४ । २. उपरिवत्। ३. उपरिवत्, पृ० ८५। ४. उपरिवत, १०८४। ५. उपरिवत्, पृ० ८५॥