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द्विवेदीजी का सम्पूर्ण साहित्य [ ६१
सूची के आधार पर ही डॉ० रामसकल राय शर्मा ने भी इन तीनों पुस्तकों का अस्तित्व आँख मूंदकर स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार, आचार्य द्विवेदीजी की मौलिक काव्य-कृतियों के रूप में पूर्वविवृत छह रचनाओं की ही गणना की जा सकती है।
आचार्य द्विवेदीजी का अनूदित काव्य-कृतियाँ :
१. विनयविनोद : भर्तृहरिकृत 'वैराग्यशतक' के कुछ दोहों का पद्यात्मक अनुवाद इस पुस्तक के रूप में हुआ है । 'विनयविनोद' का प्रकाशन सन् १८८९ ई० में हुआ था । व्रजभाषा में लिखित इस दोहा संग्रह को कवि की कला का प्राथमिक उन्मेष माना जा सकता है ।
२. विहार-वाटिका : संस्कृत के कवि जयदेव के ख्यात ग्रन्थ 'गीतगोविन्द' का भावानुवाद, संक्षिप्त रूप में व्रजभाषा के छन्दों में, 'विहार - वाटिका' में हुआ है । इसका प्रकाशन सन् १८९० ई० में हुआ था ।
३. स्नेहमाला : भर्तृहरि - विरचित 'श्रृंगारशतक' के श्लोकों का व्रजभाषा में अनुवाद कर द्विवेदीजी ने इसे 'स्नेहमाला' का रूप दिया था । इसका प्रकाशन सन् १८६० ई० में हुआ था ।
४. ऋतुतरंगिणी : महाकवि कालिदास कृत 'ऋतुसंहार' की छाया लेकर खड़ी बोली में रचे गये छन्दों का इसमें संकलन है । १७ सें० आकार में, आर्यावर्त्त प्रेस (कलकत्ता) में प्रकाशित इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष १८९१ ई० है ।
५. गंगालहरी : प्रस्तुत पुस्तक पण्डितराज जगन्नाथ द्वारा रचित संस्कृत 'गंगालहरी' का व्रजभाषा में, सवैया वृत्त के अन्तर्गत अनुवाद है । इसका प्रकाशन सन् १८६१ ई० में हुआ था ।
६. श्रीमहिम्नः स्तोत्रम् : पुष्पदन्त - विरचित इसी नाम की पुस्तक का पद्यात्मक अनुवाद द्विवेदीजी ने सन् १८८५ ई० में सम्पन्न कर दिया था, परन्तु इसका प्रकाशन सन् १८९१ ई० में हुआ । डॉ० रामसकल राय शर्मा ने इसका प्रकाशन वर्ष सन् १८९० ई० माना है । परन्तु, अन्य विद्वानों ने इसे सन् १८९१ ई० में ही प्रकाशित माना है ।
७. कुमारसम्भबसार : महाकवि कालिदास के ख्यात महाकाव्य 'कुमारसम्भवम्' के प्रथम पाँच सर्गो का भावार्थबोधक अनुवाद इस रूप में किया गया है। काशी --
१. डॉ० रामसकलराय शर्मा : 'द्विवेदी युग का हिन्दी - काव्य', पृ० ५८ । २. उपरिवत्, पृ० ५७ ।