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५८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
नं० ७ से ३२ तक की पुस्तकें सम्भवतः इण्डियन प्रेस, प्रयाग से निकली हैं। नं. ६ का प्रकाशन हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर-कार्यालय (बम्बई) है। नं० ३३, ३४ और ३५ जबलपुर के राष्ट्रीय मन्दिर से तथा नं० ३८ और ३९ हिन्दी प्रेस, प्रयाग से प्रकाशित है । नं० ४० के प्रकाशक है रामनारायण लाल, इलाहाबाद और नं० ४१ के हैं वैदेहीशरण, हिन्दी-पुस्तक-भण्डार, लहेरियासराय (बिहार)। नं० ३२ से ४७ तक का प्रकाशन लखनऊ के गंगा पुस्तकमाला-कार्यालय द्वारा हुआ है। नं०४८ और ४९ काशी के भारती-भण्डार ने प्रकाशित किया है। नं० ५० चिरगांव, झाँसी के साहित्यसदन से, नं० ५१ पटना के खड्गविलास प्रेस से, नं० ५२ कलकत्ता की हिन्दी-पुस्तक एजेन्सी से, नं० ५३ प्रयाग के तरुण भारत-ग्रन्थावली-कार्यालय से प्रकाशित है, नं० ५४ मतवाला मण्डल (कलकत्ता) से और नं० ५५ काशी के ज्ञानमण्डल-कार्यालय से प्रकाशित हैं । नं० १४ से २६ और नं० ३२ से ५४ तक की पुस्तकों में अधिकतर सरस्वती में प्रकाशित लेखों और सम्पादकीय नोटों का ही संग्रह है। कुछ लेख अन्य पत्रिकाओं के भी हैं। फिर भी, मेरा खयाल है कि द्विवेदीजी के बहुत छोटे-छोटे लेख अब भी पुस्तकाकार में संगृहीत नहीं हुए हैं। मैंने मोटे तौर पर हिसाब लगाकर देखा है कि २५-३० वर्षों के अन्दर आचार्य महोदय ने २०,००० पृष्ठों से भी अधिक लिखा है।"
आचार्य शिवपूजन सहाय द्वारा प्रस्तुत सूची में द्विवेदीजी की सभी अप्रकाशित एवं अनेक प्रकाशित रचनाओं को सम्मिलित नही किया गया है। इसके साथ ही इस सूची में रचनाओं के प्रकाशन-काल एवं प्रकाशकों की पूरी तथा प्रामाणिक जानकारी भी नहीं दी गई है। अतएव, इस सूची को सर्वगुणसम्पन्न एवं अन्तिम नही माना जा सकता। इसकी प्रामाणिकता केवल इस बात में है कि इसमें परिगणित सभी कृतियाँ द्विवेदीजी द्वारा लिखी हुई ही हैं। आचार्य द्विवेदीजी की रचनाओं की दूसरी सूची डॉ. प्रेमनारायण टण्डन ने प्रस्तुत की है। उन्होंने जिस सूची को प्रस्तुत किया है, उसमें आचार्य शिवपूजन सहाय की सूची से परे और भिन्न नामवाली पुरतको की अतिरिक्त सूचना है : १. देवीस्तुतिशतक
६. चरितचित्रण २. ऋतुतरंगिणी
७. साहित्यालाप ३. वैज्ञानिक कोष
८. वक्तृत्व-कला ४. विदेशी विद्वान्
९. वेणीसंहार नाटक ५. बालबोध या वर्णबोध १०. स्पेंसर की ज्ञेय और अज्ञेय मीमांसाएँ १. आचार्य शिवपूजन सहाय : 'शिवपूजन-रचनावली', खण्ड ४, पृ० १८१-१८२॥ २. डॉ० प्रेमनारायण टण्डन : 'द्विवेदी-मीमांसा', पृ० १४ ।