Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/010416/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website. Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility. If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर री ओळखाण [ भगवान् महावीर रै जीवन पर उपदेसां पर राजस्थानी भाषा में लिख्योड़ी पैली पोथी ] श्री हंसराज बच्छराज नाहटा सरदारशहर निवासी द्वारा जैन विश्व भारती, लाडनूं को सप्रेम भेंट - अनुपम प्रकाशन चौड़ा रास्ता, जयपुर-३ Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण भगवान् महावीर ₹ धरम तीरथ रूप चतुरविध संघ साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका नं घर आदर और सरधाभाव सू समर्पित - शान्ता भानावत Page #6 --------------------------------------------------------------------------  Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपणी और सूं भगवान महावीर ₹ २५००वे परिनिर्वाण बरस रै सुभ अवसर पर उणां रै जीयन अर उपदेसां पर राजस्थानी भाषा में लिख्योड़ी या पोथी पाठकां रै सामें प्रस्तुत करतां म्हनै घणो हरख पर उमाव है । प्रभु महावीर लोक धरम रा नायक हा । वारो धरम किणी जाति या वर्ग विशेष खातर नी हो । वां सगळा लोगां ने आपणो जीवन नैतिक अर पवित्र वणवण खातर उण वगत री लोक भाषा अर्ध मागधी (प्राकृत) में आपणा उपदेस दिया। ___ हर मिनख प्रापणी वोली में कह्योड़ी वात वेगो समझ जावै । उणरो असर भी वी पर घणो टिकाऊ हुवे । ओ इज कारण हो के प्रभु महावीर र सम्पर्क में जै भी आया वै उरणां रै उपदेसां सूआपणो जनम-मरण सुधारण खातर भोग मारग सू त्याग मारग कांनी वढ्या । राजस्थानी भाषा र प्रति सरु सूई म्हारो लगाव रह्यो। म्हारै मन में विचार आयो के जै प्रभु महावीर री जीवन-गाथा अर इमरत वाणी कदास राजस्थानी भाषा में प्रस्तुत की जावे तो अठारा लोगो पर उणरो गेहरो असर पड़ेला । इणीज भावना सू प्रेरित होय'र म्हैं आ पोथी लिखी। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस पोथी में बारा अध्याय है। सरुपात रा तीन अध्याय काळचक्र, चवदह कुळकरअर महावीर सूपैली हुयोड़ा तैवीस तीर्थकरां सूसम्बन्ध राखे। बाद रा छह अध्यायां मांय महावीर रै जनम काळ री स्थिति, उणारै जनम, टाबरपण, वैराग, साधक जीवन, केवळीचर्या अर परिनिर्वाण रो विवरण है। माखरी तीन अध्याय महावीर रै सिद्धान्त, महावीर री परम्परा पर महावीर-वाणी सू सम्बन्धित है । महावीर-वाणी में भगवान महावीर रा जीवनस्पर्शी उपदेस मूळ प्राकृत भाषा में राजस्थानी अनुवाद रै सागै संकलित किया गया है। इण पोथी रै लिखण में म्हारा पति डा. नरेन्द्र भानावत सरु सूई म्हारो मार्गदर्शन करियो । प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. द्वारा लिख्योड़ी 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' प्रथम भाग (तीर्थङ्कर खण्ड) अर श्री मधुकर मुनि, श्री रतन मुनि, श्री श्रीचन्द सुराना 'सरस' द्वारा लिख्योड़ी 'तीर्थङ्कर महावीर' पोथियाँ सू म्हनै विशेष मदद मिली । इणारे प्रति आभार प्रगट करणो म्हूं आपणो परम कर्तव्य मानूं। अनुपम प्रकाशन रा संचाळक श्री मोहनलाल जैन इण पोथी र छपावरण रो जिम्मो ले'र जिण साहस रो परिचय दियो वो प्रशंसा जोग है। पोथी जलदी में त्यार करीजगी है । इण कारण जै कोई अशुद्धियां रेयगी है, उण खातर म्हूं पाठकां सू माफी चाऊ। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म्हनं पूरो भरोसो है के आ पोथी जन साधारण नै भगवान महावीर रं जीवन पर उपदेसां री ओळखाण करावण में सहायक हुसी । जे लोग इणन पढ'र आपणो जोवन संयमित अर पवित्र वरणावण रो दिसा में थोड़ा भी आगे बड्या तो म्हूं आपणो ओ प्रयास सार्थक समझ ली। ---शान्ता भानावत सी.२३५ ए, तिलकनगर जयपुर-४. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका १. काल रो पहियो २. चवदह कुलकर ३. चौबीस तीर्थकर ४. महावीर रै जनमकाल री स्थिति ५. जनम पर टाबरपरण ६. विवाह पर वैराग ७. साधक जीवन ८. केवलीचर्या ६. परिनिर्वाण १०. महावीर रा सिद्धान्त ११. महावीर री परम्परा १२. महावीर-वाणी Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काल रो पहियो जैन सास्त्रां रै माफिक काळ रो प्रवाह अनादि-अनन्त है। काळ री मवमूछोटी अविभाज्य इकाई 'समय' पर सवसू बडी 'कळपकाळ' कहीजै । एक कळरकाळ रो परिमाण वीस कोड़ाकोडि 'सागर' मानीज जो मोटे तौर सूसंख्यातीत वरसां रो व्है। हरेक कळपकाळ रा दो विभाग व्है-एक 'अवसर्पिणीकाळ' अर दूजो उत्सपिरणीकाळ । जिण भांत दिन पूरो हयां पछै रात पावै अर रात पूरी हुयां पछ दिन प्रावै. उणीज भाँत अवसपिणीकाळ अर उत्सपिणीकाळ एक दूसरां रे लारै प्रावता रैवै । अवसर्पिणी लगोलग ह्रास पर अवनति रो काळ व्है अर उत्सपिरगी उत्तरोत्तर विकास पर बढ़ोतरी रो काळ कही । अवसपिरणीकाळ नीचे लिख्योड़ा छह भागा मै वांट्यो जा सके 1. सुखमासुखम 2. सुखम 3. सुखमादुखम 4. दुखमासुखम 5. दुखम 6. दुखमादुखम पैलड़े सुखमासुखम काळ में जीव ने किणी भांत री कोई तकलीफ नी व्है । इण काळ मैं मिनख री काया रो वळ, उमर, डीलडील वत्तो व्है । मिनख नै गुजारा खातर सगळी चीजां बिगर मनत-मजूरी कर्यां कळपव्रक्षा सू सहज रूप में मिल जावै । कुदरत रे चोखै, शांत वातावरण में मिनख रो मन हर वगत आनन्द सू हिलोरां लेवतो वै । दूजे सुखम काळ में पैलडै काळ री सुख-सांति में थोड़ी कमी पावै अर तीजै सुखमादुखम काळ ताई आवताश्रावतां मिनख नै सुख र सागै दुखां रो अनुभव पण होवरण लागे । में तीन्यू काळ सुख प्रर भोग प्रधान हुवै । मिनखां रो पूरो जीवण Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुदरत रै भरुसे रैवै । अं काळ भोगयुग या भोगभूमिकाळ रै नाम सूजाणीजै। चौथै काळे दुखमासखम में धरती रै रंग, रूप, रस, गंध स्पर्श अर उपजाऊपण में कमी होणी सरू व्है। .खावरण-पीवण री चीजों री कमी पड़ जावै । कळपवृक्षां सू सगळो काम नी सरै। मिनखां रा डीलडौल, बळ, उमर सैं घट जावै अर जीवण में दुखां री प्रधानता रैवण लागै। पांचवै काळ दुखम' ताई पावतां-पावतां मिनखां रै जीवण में संघर्ष री ओरूं बढ़ोतरी व्है पर सुख नाम मातर रो रै जावै । छठ काळ दुखमादुखम में दुख प्रापरणी सीमा लांघ जावै । सुख नाममातर ई नी रैवै । इण काळ में मिनख असान्ति री आग मे वळवा लागे। पण आ स्थिति भी पळटौ खावै । काळ रो पहियो घूमै । छठे दुखमादुखम काळ सू सरू होय नै पांचवौ (दुखम) चौथो. (दुखमासुखम) काळ पावै । ओ काळ उत्तरोत्तर विकास पर बढ़ोतरी रो हुवै । इरणां रै सरुपोत रा तीन काळां में करमभूमि री अर लारला तीन काळां में भोगभूमि री व्यवस्था रैवै। अबार अवसर्पिणीकाळ रो पांचवो पारो दुखम चाले । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ चवदह कुलकर __ अवपिणी काळ रे इण पहिय रै तीज काळ सुखमादुखम रो जद साध सूवत्तो वगत वीतग्यो, तद मिनखां नै दुख रो अहसास हुयी। वळपक्षां सू चीजां मिलणी वन्द होवा लागी। गुजारा खातर लोग आपस में लडबा लाग्या। से मिनख ससकित अर भयभीत हया, वां में क्रोध, लोभ, छल, प्रपंच, घमंड, जिसी राक्षसी वृत्तियां पनपवा लागी, जिमूमानव समाज असांति री आग में बलवा लागो । तद उरणारी संका मिटावरा पर समस्यावां रो समाधान करण खातर एक नई व्यवस्था रो जनम इयो । प्रा नई व्यवस्था कुळकर व्यवस्था कहीजै । सगळा मिनख मिल'र छोटाछोटा पुळ वणाया अर प्रतिभावान चोखै मिनख नै अापण कुळ रो नेता मजूर करियो। कुळ री व्यवस्था पर उगरो नेतृत्व करण खातर कुळनायक 'कुळकर' नाम सूप्रसिद्ध हुया। मननसील हुवरण ₹ कारण 'मनु' पण कहावा लाग्या । इगा री संतान मानव कही। कुळकगं री सख्या नौदह मानीजै। पैला कुळकर मनु या प्रतिवन हा। अगां लोगों ने सूरज पर चांद रै उदय अर अस्त जिसी कुदन्ती घटनावा रो भेद बतायो । दुजा कुळकर सन्मति लोगों नै नखत अर तारा रो जान कगयो । तीजा कुळकर क्षेमंकर लोगों नै जगली जिनावरां सू निरभं रैय उगानै पाळतू वरणावरण री तरकीव वताई। चौथा कुळकर क्षेमधर ना'र जिसा हिंसक जिनावरां सूअापणी रक्षा खातर लकडी पर भाटा आदि नै काम मे लेवण री कळा सिखाई। पांचवां कुळकर सीमकर लोगां में कळपवक्षा खातर हुवरण ग्राळा आपसी झगडा मेट'र हरेक कुळ रै अधिकार क्षेत्र री सीमा तै करी पर लोगां ने झगड़ा-फिसाद सूबचाया। इण काळ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं अपराधी ने सजा देवरण खातर 'हाकार' दण्डनीति री व्यवस्था ही । जो आदमी मर्यादा नै उलांघतो उरगने इतरो सोक केवरणौ कै 'हा' थे प्रो कांई करो, बड़ो जबरो डड हो । एक दफा इतरो कड़ो डंड देण रै बाद वो मिनख कदैइ दुबारा वा गलती नी करतो । छठा कुळकर सीमंधर बचियोड़ा कळपत्रक्षां पर वैयक्तिक मालकियत पर सीमा तै करी । श्रा बात कहीजं के जद सूं ही मिनखां में निजी सम्पत्ति री भावना पैदा हुई । सातमा कुळकर विमलवाहन हाथी अर पालतू जिनावरां ने बांध राखण अर उरणारो सवारी आदि कामां में उपयोग करण री सीख दीवी । आठमा कुळकर चक्षुष्मान जुगळिया स्त्री, पुरुसां ने संतान रो सुख देखरणो बतायो । इरणांसू पैलां जुगलिया संतान नै जनम देयर खुद मर जावता । नवमा कुळकर यसस्वन लोगां नै संतान सू नेह करणो अर उरणरो नामकरण कररण री सीख दीवी । दसवे कुळकर अभिचन्द्र बाळक रै रौण, चुप करा बुलवाणे अर लाल-पाळण करण री लोगां नै सीख दीवी । छठा सूं दसवां कुळकर ताई दण्डनीति में 'हा' री जगां 'मा' (नीं, मती करो) सबद रो प्रयोग हुवरण लागो । ग्यारवे कुळकर चन्द्राभ सरदी, गरमी अर वायरे ₹ प्रकोप सू दुखी र भयभीत हुयोड़ा लोगां ने बचावरण री तरकीब बताई श्रर बाळकां रे पाळण पोसण जैड़ी उपयोगी बातां सिखाई । बारहवा कुळकर मरुदेव लोगां नै नदी-नाळा पार करण अर पहाड़ी पर चढ़ण री कला सिखाई । तेरहवे कुळकर प्रसेनजित बाळकां रे भली-भांत पाळण-पोषण री राय दीवी । चौदहवे कुळकर नाभिराय नवजात टाबर री नाभिनाल काटण री विधि बताई । इण समय ताई सगळा कळपक्ष खतम हुयग्या हा । नाभिराय गुजारा खातर लोगां ने धरती पर उग्योड़ा जौ, सालि, तुवर, उड़द, तिल प्रादि चीजां खावरण रो तरीको बतायो । प्राखरी चार कुळकरां रै समै दण्डनीति में 'धिक्कार' सबद रो प्रयोग हुवण लागो । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोगभूमि पर कुळकर काळ रै साग एक तर सूप्रागैतिहासिक जुग समाप्त हुवे । मिनख करम अर पुरुपार्थ र जुग में प्रवेस कर'र नू ई सभ्यता र संस्कृति रो इतिहास मांडणो सरु करै। इण नूवै जुग रा प्रमुख धरम नेता चौवीस तीर्थकर तथा वीजा उनतालीस' महापुरुष हुया । से मिला'र 'विपण्ठिशलाका पुरुष' कहीजै । १. क-बारा चक्रवर्ती- (१) भरत (२) सगर (३) मधवा (४) सनत कुमार (५) गान्तिनाथ (६) कुन्युनाथ (७) प्ररनाथ (८) सुभूम (६) पद्म (१०) हरिषेण (११) जयसेन (१२) ब्रह्मदत्त । ख-मीनळदेव- (१३) विजय (१४) प्रचल (१५) सुधर्म (१६) सुप्रम (१७) मुदगंन (१८) नन्दी (१९) नन्दि मित्र (२०) राम (२१) पद्म (बळराम)। ग-नी वासुदेव- (२२) त्रिपृष्ठ (२३) द्विपृष्ठ (२४) स्वयम्भू (२५) पुरुषोत्तम (२६) पुरुपसिंह (२७)पुरुषपुण्डरीक (२८) दत्त (२९) नारायण (लक्षमण) (३०) कृष्ण। प-नो प्रतिवासुदेव- (२१) अश्वनीव (३२) तारक (३३) मेरक (३४) मधुकंटभ (३५) निशुम्भ (३६) वाळ (३७) प्रहलाद (३८) रावण (३६) जरासंध । - Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RU ३ | चौबीस तीर्थकर ma 'तीर्थ' नाम धरमशासन रो है। जै महापुरुस जनम-मरण रूपी संसार समन्दर सूपार करण खातर धरमतीरथ री थरपणा करै, वै 'तीर्थ कर' कहीजै। जैन परम्परा में तीर्थ करां री संख्या चौवीस मानीजै । इणां तीर्थ करां में पैला तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव पर पाखरी तीर्थकर भगवान महावीर हुया। चौवीस तीर्थङ्करां रा नाम अर ओळखाण इण भांत है १. ऋषभदेव : आखरी कुळकर नाभिराय री पत्नी मरूदेवी री कूख सू पैला तीर्थंकर भगवान ऋषभ रो जनम चैत वद आठम (नवमी) रे दिन अयोध्या में हुयौ। बाळक ऋषभ जद मां रै गरम में हा तद मां सुपना में पैलाई पैल वृषभ देख्यो हो पर बाळक रै छाती पै वृषभ रो लांछण पण हो, ई कारण इणांरो नाम ऋषभदेव (वृषभदेव, वृषभनाथ) प्रसिद्ध हुयौ । वाळक ऋषभ वड़ा हुयनै कुळ -री व्यवस्था आपण हाथ में लीवी। ई खातर अ कुळकर अर मनु पण कही जै । मानव सम्यता रै विकास रो श्रेय ऋषभ नैइज दियो जावै। ई कारण औ आदिनाथ, आदिदेव, आदीश्वर, आदिब्रह्म पण कहीजै । इणां जै काम करिया बिगर किणी री सीख सू आपोआप मतैइ करिया, ई खातर औ स्वयंभू पण कही जै। जद ऋषभ वड़ा हुया तद आपरौ ब्याव सुनन्दा अर सुमंगळा सूहयो । आ मानी जै कै ब्याव री रीत इणीज काळ सूचाली। ब्याव रै पछै ऋषभ रो राजतिळक हुयो । अमानव सम्यता रै विकास रा सूत्रधार हा। इणासूपैलां से मिनखां रो गुजारो कळपव्रक्षा Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू' चालतो हो । होळ -होळे मिनखां री बढ़ोतरी सू कळपत्रक्ष कम पड़वा लागा तद गुजारा खातर मिनख आपस मे लड़ता-झगड़ता। श्रा देख ऋषभ लोगां ने खेती करण, लिखण-पढरण अर बीजा काम धन्धा री सीख दीवी । आ मानी कै ऋपभ पुरुषां नै वहत्तर पर लुगायां ने चौंसठ कळावां पण सिखाई। ऋषभ लुगायाँ री पढ़ाई-लिखाई रा हामी हा । अापणी बेटो सुन्दरी नै आप अक ज्ञान अर ब्राह्मो नै लिपि ज्ञान सिखायो । आगे जा'र प्रा लिपि ब्राह्मी लिपि रै नाम सूप्रसिद्ध हुई । इण भांत ऋषभ प्रजा रोपाळण-पोपण अर मार्गदर्शन घरणा बरसांताई करियो । ऋषभ प्रा मानता हा के धरम र मारग पर चाल्यां विगर आत्मिक सान्ति कोनो मिल । प्रा सोच वी आपण बड़े पुत्र भरत नै राज रो भार सूप'र खुद विरक्त हो र आतम साधना रे मारग पर प्रागै वढ्या । ऋपभ चैत बद आठम रै दिन मुनि दीक्षा अंगीकार करी। दीक्षा धारण करवासू पैली आप आपणी सम्पत्ति जरुरतमंद लोगों में वांटी अर या वात समझाई कै सम्पत्ति री महत्ता भोग में नीं हो र त्याग में है। मुनि वण' र ऋषभ घणी कठोर तपस्या करणी सरु करी । छह माह रो अनसन वरत धारण कर प्रभु ध्यान साधना में लीन च्हैग्या । छह माह वीतवा पर प्रभु भिक्षा खातर गांव-गांव बिहार करता यऱ्या । इण समै में वी मौन रैवता हा। ई कारण लोग प्रा नी जाण सक्या के प्रभु नै किरण चीज री चावना है । मिनख इणांने भेंट में कीमती गैणां गाभा पर हाथी-घोड़ा देवता पण प्रभु बिगर काई चीजवसत्त लियां, पाछा फिर जावता। यू करता-करतां छह माह पोरु बीतग्या। एकदा प्रभु विचरण करता-करतां हस्तिनापुर पधारिया। अठारो राजा सोमयश हो । ई रो छोटो भाई श्रेयांसकुमार धार्मिक Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति रो हो । पूरव जनम रा संस्कारां सूप्रेरित होयर वीं प्रभु ने ईख रै रस री भिक्षा दीवी। बो बैसाख सुद तीज रो दिन हो। भगवान री लम्बी तपस्या रो पारणो ई दिन हुयो। इण खातर श्रो दिन आखातीज रै नाम सूप्रसिद्ध हुयो । आज पण इण दिन वरसी तप रा पारणा हुदै । तप पर साधना करता-करतां पुरिमताळ नगर ₹ बार बड़ र रूख हेठे ध्यानमगन प्रभु नै केवळज्ञान हुयो। वे सर्वज्ञ, जिन, महन्त, बरणग्या। पछै लोककल्याण खातर उपदेस देवता थका केळास परवत पर आप निर्वाण प्राप्त करियो। भगवान ऋषभदेव जैन धर्म रा प्रवर्तक अर जैन परम्परा रा पैला तीर्थ कर हा । २. अजितनाथ : भगवान ऋषभ रै निर्वाण २ घणां बरसां पाछै विनीता नगरी रै महाराजा जितसत्रु री राणी विजयादेदी री कूख सूदूजा तीर्थंकर श्री अजितनाथ रो जनम हुयो । इणारो लांछण हाथी है। घरणा बरसां ताई पाप राज्य पर गिरस्थ जीवन रो उपभोग करियो । पछै आप दीक्षा लीवी पर कठोर तपस्या कर'र केवळज्ञानी बरण'र आप लोगां नै धरमदेसना दीवी पर सम्मेदसिखर पर निर्वाण प्राप्त करियो। ३. संभवनाथ : तीजा तीर्थ कर श्री संभवनाथ हुया । इरो जनम लावस्ती नगरी में इक्ष्वाकु वंस में हुयो । इणारै पिता रो नाम जितारी पर माता रो सोना देवी हो। आपरो लांछण घोड़ो है। लम्बा समय ताई गिरस्त जीवन में रैय'र आप दीक्षा लीवी पर तपस्या कर र केवळज्ञान प्राप्त करियो । आपरो निर्वाण सम्मेदसिखर पर हुयो। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. अभिनन्दन : चौथा तीर्थंकर श्री अभिनन्दन हुया । इणां रो जनम अयोध्या नगरी में हुयो । आपरै पिता रो नाम महाराजा संवर पर मातारो महाराणी सिद्धार्था हो । इरणांरो लांछण वानर है। मुनि धरम अंगीकार कर पाप कठोर तपस्या करीअर सम्मेदसिखर पर निर्वाण प्राप्त करियो। ५. सुमतिनाथ : पांचवा तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ हुया । आपरो जनम अयोध्या में हुयो । आपरो लाँछण कोंच है । आपरै पिता रो नाम महाराज मेघ पर माता रो राणी मगळावती हो । आप कठोर तपस्या कर'र केवळज्ञानी बण्या पर सम्मेदसिखर सू मुगति प्राप्त करी। ६. पदमप्रभुः छट्ठा श्री पदमप्रभु रो जनम कोसाम्वी नगरी में हुयो। इणांरै पिता रो नाम महाराजा घर पर माता रो सुसीमा हो । आपरो लांछरण कमळ है। आप दीक्षा ल य नै कठोर तप करियो अर केवळज्ञान प्राप्त कर संसारी प्राणियां नै घरम रो उपदेस दियो। सम्मेदसिख र सूआप निर्वाण प्राप्त करियो। ७. सुपार्श्वनाथ सातवां तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ रो लांछण स्वस्तिक है। आपरो जनम वाराणसी में हुयो। आपरै पिता रो नाम महाराज प्रतिष्ठसेन अर माता रो राणी पृथ्वी हो । आप घोर तपस्या कर'र सम्मेदसिखर सूनिर्वाण प्राप्त करियो। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. ८. चन्द्रप्रभ : आठवां तीर्थङ्कर श्री चन्द्रप्रभ रो लांछरण चन्द्रमा है । आपरो जनम चन्द्रपुरी में हुयौ । आप पिता रो नाम राजा महासेन अर माता रो राणी सुलक्षरणा हो । श्राप घोर तपस्या कर र सम्मेद • सिखर स निर्वाण प्राप्त करियो । ६. सुविधिनाथ : नौवां तीर्थङ्कर श्री सुविधानाथ हुया । आपरो बीजो नाम पुष्पदंत परण हो । आपरो लांछरण मगर है । आपरे पितारो नाम राजा सुग्रीव र माता रो नाम वामादेवी हो । आपरो जनम काकंदी नगरी में हुयो अर निर्वारण सम्मेदसिखर पर । सिन्धुघाटी सभ्यता रो श्रो उत्कर्ष काळ हो । उरण काळ में मगर प्रतीक री घरणी मानता ही । इणीज कारण उरण देस रो नाम मकरदेस प्रसिद्ध हुयो । इ सूठा पड़ के तीर्थङ्कर पुष्पदत री श्रठे घरणी मानता पर प्रसिद्धि ही । १०. सीतलनाथ : दसमा तीर्थंकर श्री सीतलनाथ हुया । इणांरो लांछ श्रीवत्स है | आप पिता रो नाम महाराज दृढरथ पर माता रो नन्दादेवी हो । आपरो जनम भद्दिलपुर में हुयो र निर्धारण सम्मेद - सिखर पर । ११. श्रेयांसनाथ : ग्यारमा तीर्थंकर श्री श्र ेयांसनाथ हुया । इणांरो लांछा गैंडो अर वंस इक्ष्वाकु हो । इरणांरो जनम सिहपुरी नगरी में हुयो | आपरे पिता रो नाम महाराज विष्णु र माता रो महाराणा विष्णुदेवी हो । आपरे समं मे पैदनपुर में राजा त्रिपृष्ठ हुयो जो, नो वासुदेवां में Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलो हो । त्रिपृष्ठ रो भाई विजय नौ वळदेवां में पैलो गिण्यो जावै । अं दोन्यू भाई घणा प्रतापी पर तीर्थङ्कर श्रेयांसनाथ रा खास भगत हा । श्री श्रेयांसनाथ धरम री टूटी परम्परा नै फेलं जोड़ी अर तीर्थङ्कर धरम री लोक में पुखती थरपणा करी। आपरो निर्वाण सम्मेदसिखर पर हुयो। १२. वासुपूज्य : वारमा तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य हुया। इणांरो लांचरण भैसो है। प्रापरो जनम चम्पानगरी में हुयो। आपरै पिता रो नाम वसुपूज्य अर माता रो जयादेवी हो। आपरै सम में दूजो बळदेव अबळ, दूजी वासुदेव हिपृष्ठ अर दूजो प्रतिवासुदेव तारक हुयो । यापरो निर्वाण स्थळ चम्पा मानीजै। . १३, विमलनाथ : तेरहवां तीर्थङ्कर श्री विमळनाथ हुया । इणांरो जनम स्थान कम्पिळपुर हो । ग्रापर पिता रो नाम कृतवर्मा पर माता रो स्यामा हो। आपरो लांछण सुअर पर निर्वाण स्थळ सम्मेदसिखर है। अापरै समै में सुधर्म नाम रो वळदेव, स्वयंभू नाम रो वासुदेव अर मेरक नाम रो प्रतिवासुदेव हुयो। १४. अनन्तनाथ : चवदवां तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ हुया। इणां रो जनमस्थान अयोध्या, वंस इक्ष्वाकु, पिता रो नाम सिंहसेन अर माता रो सुयसा हो। प्रापरो लांछरण बाज अर निर्वाणस्थळ सम्मेदसिखर हो । इणीज काळ में सुप्रभ वळदेव, पुरुसोत्तम वासुदेव अर मधुकैटभ प्रतिवासुदेव हुया। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ १५. धरमनाथ : पन्द्रहवां तीर्थकर धरमनाथ हुया । इणारी जनमस्थान रतनपुर हो । कुरुवसी राजा भानु प्रापरा पिता पर माता सुव्रता ही । आपरो लांछरण वज्रदंड पर निर्वारणस्थळ सम्मेदसिखर हो । आापरै समै में सुदरसन बळदेव, पुरुषसिंह वासुदेव अर निसुम्भ प्रति बासुदेव हुया । प्रापरै निर्वाण पर्छ प्रपरे तीरथ में मघवा अर सनतकुमार नाम राक्षे चक्रवर्ती सम्राट हुया । १६. शांतिनाथ : सोलवां तीर्थंकर श्री शांतिनाथ हुया । इणां रो जीवन प्रभावशाली अर लोकोपकारी हो । आपरो लांछरण, हरिण, जनमस्थान हस्तिनापुर, पितारो नाम महाराज विश्वसेन पर माता रो महाराणी श्रचिरा हो । शांतिनाथ चक्रवर्ती सम्राट हा धरणा बरसां ताई ई धरती पर आप राज करियो । पछे दोक्षा लै'र कठोर तप कर' र केवळज्ञान री प्राप्ति करी । आप सम्मेदसिखर सू निर्वाण प्राप्त करियो । शांतिनाथ भगवान घरणा लोकप्रिय तीर्थंकर हुया । प्रापरी उपासना रो आज भी घरणो महत्त्व है । १७. कुंथुनाथ : सतरहवां तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ हुया । इणांरो जनम हस्तिनापुर में हुयो | पर पिता रो नाम महाराज वसु र माता रो श्री देवी हो । आप भी आप स रा चक्रवर्ती सम्राट हा । प्रापरो लांछ बकरो र निर्वाण स्थळ सम्मेदशिखर हो । १८. अरनाथ : अठारमां तीर्थंकर भगवान अरनाथ हुया । प्रापरी जनमस्थान हस्तिनापुर, लांछरण नन्दावर्त, पिता रो नाम महाराज Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुदर्शन, माता रो राणी महादेवी पर निर्वाण स्थळ सम्मेदसिखर हो । आप पण पापण समै रा चक्रवर्ती सम्राट हा । इणीज काळ में नंटिपेण बळदेव, पुण्डरीक वासदेव अर बळि प्रतिवासुदेव हुया । प्रापरै निर्वाण पछै आपरै घरमतीरथ में सुभूम नाम ग चक्रवर्ती हुया । परसुराम अर सहस्रवाहु र संघर्ष रो पोइज काळ है। १६. मल्लिनाथ : उन्नीसमा तीर्थ कर श्री मल्लिनाथ हुया। इणांरो जनम मिथिला नगरी में हुयो । प्रापरं पिता रो नाम महाराज कुभ अर माता रो प्रभावती हो । प्रापरो लांश्रण कळस पर निवारण स्थळ सम्मेदसिखर है। आपरै तीरथ काळ में पदम नाम रा चक्रवर्ती सम्राट, नन्दिमित्र वळदेव, दत्त वासुदेव अर प्रहलाद प्रतिवासुदेव हुया। श्वेताम्बर परम्परा मान है के तीर्थ कर मल्लिनाथ स्त्री रूप में जनमिया हा । वाळिका मल्ली धरणी रूपाळी पर गुणवती ही। आपर रूप पर गुण री चरचा चारूंकानी फेल्योड़ी ही। जद मल्ली कुंवरी बड़ी हुई तो वार रूप पर गुणां सूमोहित हो र छ देसां रा राजावां मल्ली कुवरी रे पितारै कनै दूता लारै संदेसो मोकल्यो के म्हां मल्ली रै सागै ब्याव करणो चावां । मल्ली रा पिता कुंभ लाचार हा। छ राजा रे सागै एक राजकंवरी रो व्याव कोंकर हो सके, प्रा सोच राजा कुंभ सगळा राजावां रा दूतां नै नां दे दीवी। नां रा समीचार सुरण छऊ राजा बेगजी हुयग्या। वां राजा कुभरी नगरी मिथिला पर धावो बोल दियो । कुंभ छऊ राजावां सू मुकावलो करण में समरथ नी हा । ई कारण वी दुगध्या में पड़ग्या अर उदास रैबा लाग्या । पिता ने उदास देख राजकवरी बोली-पाप किरणी भांत री चिन्ता Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मती करो। छऊ राजावां नै दूतां सागै संदेसो दिरा देवी के कवरी मल्ली थां सूब्याव करण नै तैयार है । बेटी मल्ली री लायकी अर बुद्धिबळ सू राजा कुम्भ वाकब हा । वां सोच्यो-राजकुवरी मतैइ समस्या रो समाधान करलेला। आ सोच वां छऊ राजावां नै जुदो-जुदो संदेसो भिजवा दियो । ब्याव री रजामंदी रा समीचार सुण' र साकेतपुरी रा राजा प्रतिबुद्ध, चम्पा रा चन्द्रछाग, कुरणाळा रा रूक्मी, वाराणसी रा संख, हस्तिनापुर रा अदीनसत्रु अर कम्पिळपुर रा जितसत्रु मिथिला नगरी पोचिया। मल्लीकुवरी रै रूप पर मोहित हयौड़ा राजावां नै प्रतिबोध देण खातर मल्ली एक मोहनघर बरणवायो हो । वो घर र बीचोबीच कुवरी आपरै सरीर जिसी रूपाळी सोने री एक पोली मूरत बरणवाई । बी मूरत मे रोजाना खाणो खावरण सूपैलां वां एक:एक कवौ नाखती ही। मल्लीकुमारी व्याव खातर प्रायोड़ा राजावां नै अशोकवाड़ी में बण्योड़े मोहन घर मे रुकाया। वी घर में मूरत कनै जावा रा जुदा-जुदा दरवाजा हा। मांयनै बड़ियां पछै कोई एक दूजां नै कोनी देख सकता हा । जूदी-जुदी जगां मे बैठ्योड़ा राजा मल्ली कुवरी री बरणी रूपाळी सूरत नै देखबा लाग्या। मनहरणमाळी सुन्दर मूरत नै देख सैं राजा दग रैग्या। वांके मन में रैय रैय नै रूपवती कुवरी मल्ली नै पटराणी बरणावरण री भावना उठ री ही । राजावां नै मूरत पै रीझ्योड़ा देख मल्ली कुवरी मूरत पर सू ऊपरलो ढांकरणो हटा दियो। ढांकरणो हटताई मूरत में जम्योड़ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सड़ियोड़े भोजन री दुर्गन्ध सूराजावां रो माथो फाटबा लाग्यो, जीव मिचलावा लाग्यो । नाक आडो दस्तीरूमाल लगार वी बारै भागवा री कोसिस करवा लाग्या। अवै सूरत पर सू वांको ध्यान हटग्यो । वी समै मल्ली कुवरी राजावां ने प्रतिवोध दैवता कैवरण लागी-ई मूरत मे पड़िय सड़ यौड़े अन्न री दाई ओ सरीर पण सूगळो अर निस्सार है। ज्ञानी पुरुस बाह्य सरीर रै रूप-रंग सूप्रीत कोनी करै। आप लोग म्हारै ई नश्वर सरीर खातर पिताजी पर हमलो करण ने तैयार हो। जरा सोचो ! ई जुद्ध में कितरा निरपराध प्राणियां री हिंसा हुवैली। __ मल्ली कुमारी रो प्रतिवोध सुरण छऊ राजा पापणी गलती पर पछतावो करियो । वी विनय भाव मूबोलिया- भगवती ! थां म्हानै अधारां सूउजाळा में ले आया हो । अवै म्हां सजम रै मारग पर चालर आपणां करम काटाला । छऊ राजावां नै प्रतिवोध देय'र मल्लिकुमारी दीक्षा अगीकार करी । पछै कठोर तपस्या करनै निर्वाण प्राप्त करियो । २०. मुनिसुव्रत : बीसवां तीर्यङ्कर थी मुनिसुव्रत हुया। इणारो जनम राजगृही में हुयो । आपरै पिता रो नाम महाराज सुमित्र अर माता रो महाराणी पद्मावती हो । प्रापरो लाछरण काछवो पर निर्वाणस्थळ सम्मेदसिखर हो । आपरै समै मै इज राम-रावण रो सघर्ष हुयो। जैन मतानुसार इणीज काळ में राम वळदेव, लक्षमण बासुदेव अर रावण प्रतिवासुदेव हुया । महाराणी सीता री गणना जैन परम्परा माफिक सौळे सतियां में हुवै । मुनि सुव्रत रै तीरथकाळ में हरिषेण नाम न चक्रवर्ती सम्राट हुया। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१. नेमिनाथ : - इक्कीसमां तीर्थकर श्री नमिनाथ हुया। आपरो लांछण नीलकमळ, जनम स्थान मिथिला, पिता रो नाम महाराज विजय पर माता रो नाम महाराणी वप्रा हो। आपरो निर्वाण स्थळ सम्मेदसिखर मानीजै । आपरै तीरथकाळ में इज कौसाम्बी नगरी में जयसेन नाम रा चक्रवर्ती सम्राट हुया। २२. अरिष्टनेमि : बाइसमा तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि हुया। नैमिनाथ पण कहीजै। आपरो जनम सौरीपुर में हुयो। आपरै पिता रो नाम समुद्रविजय पर माता रो शिवादेवी हो । नेमिनाथ यदुवंसी हा । श्रीकृष्ण समुद्रबिजय रै छोटा भाई वासुदेव रा पुत्र हा । नेमिनाथ रो लांछरण शङ्ख है। नेमिनाथ ब्याव नी करणो चावता पण श्रीकृष्ण अर प्रापणी भाभी सत्यभामा व रूक्मणी रै घणे आग्रह करण सू आप ब्याव करण नै राजी हुया । श्रीकृष्ण जूनागढ़ रै राजा उग्रसेन री रूपाळी कन्या राजुळ सू आपरी सगाई पक्की करी। सावण सुद छठ रै दिन विवाह रो मोरत प्रायो। बरात चढी । वींद वेस में राजकुवर नेमि खूब सजायाग्या । बारात रवाना व्हैय नै उग्रसेन रै महला कनै पहुँची के एकाएक नेमिकुवर पसुवां रो हाको सुरिणयो। वां सारथि नै पूछियो-ओ पसुवां रो करुण क्रन्दन कठा सूप्रावै ? सारथि कयो-राजकुवर आपरै ब्याव री खुसी में बहोत बड़ी जीमणवार हुवैली, वीं में इस पसुवां री बळि दी जावैली। पसुवां री बळि देवण री बात सुण'र नेमिकुमार रो कोमळ काळजो पसीजग्यो। वरणा सारथि नै आज्ञा दीवी कै-जार से पसु-पक्षियां नै बाड़े सूवार काढ दो। मिनख नै जियां आपणो जीव वाल्हो लागै उणीज भांत जिनावरां नै परण प्रापाशो जीव वाल्हो है। म्हारै ब्याव रै मौक हजारां-लाखां निरपराध भोला Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जणा एक निजर सूमहावीर कांनी देखऱ्या हा। एकाएक मंगळ गीत अर बाजा वन्द व्हैग्या। चारुकांनी एकदम सांति छायगी। महावीर पंचमुष्ठि केसलुचन करियो । वरणाँ रै चेहरा पर घरणी खुसी ही, लिलाट अलौकिक तेज सूचमकर्यो हो। महावीर हाथ-जोड़ सिद्ध भगवान नै नमसकार करियो अर प्रतिज्ञा करी के मुहूं आज सू समभाव धारण करूं हूँ। मन, वचन अर करम सूपापपूर्ण सावद्य) प्राचरण रो त्याग करू हूँ। मारै मारग में जे मुसीबतां पर उपसर्गा प्रावैला म्हूं उरणानै समभाव सू सहन करू ला । अर साधना ई कंटीला मारग पर लगातार चालतोइ रैऊला । देखता ई देखता वर्धमान श्रमण वरणग्या । अव वां रो घर, परिवार पर राज सू नातो टूटग्यो । वी इसा राज में पोंचग्या हा जठे किणी भांत रो दुख नी हो, वी इसा परिवार में मिलग्या हा जठ म्हारै अर थारै रै वीचै कोई भेद नी हो। अगणित प्रांख्यां प्रभु महावीर र दिव्य सरूप रो दरसरण कर री ही, अगणित कान वांकी दिव्य साधना रो उद्घोष सुरगऱ्या हा। श्रद्धा अर उमाव सूहजारू प्रख्यां एक सागै बरसवा लागी। लोगां रा हाथ आप आप जुड़ग्या अर माथा प्रापै प्रभु रा चरणां में नमग्या। असंख्य कंठा सूएकै सागै आवाज गूजी 'श्रमण महावीर री जय । - - - Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधक जीवन श्रमण वर्धनान ने क्षत्रिय कुंडपुर पर अठारा लोगां सूमोहममता नी री। वणा कयो-म्है तो अवै श्रमण हैं। गज पर देसी सीमा सूऊपर । थां लोग अवै म्हारे साथ कठाताई रेवोला। वर्धमान री वाणी सुरण में लोग आप आपरो गैलो पकड़ियो। श्रमण महावीर भी सवमूविदा लैर चालिया एकला वनकांनी। महावीर मन मांय निश्चय करियो के जठा ताई म्हनै ज्ञान री पूरी प्रोळखाण अर प्राप्ति नी हुवैला हूँ सरीर री ममता छोड'र जनभाव सू साधना में लीन रऊला । देव, मिनल पर तिर्थच जीवा झूजित्ता भी उपसर्ग (कप्ट) मिलेला, वान समभाव सू सहन कला। महावीर री करुणा : जातखण्ड वन संप्रागै बढ़ती बखत एक गरीब वामरा आय ने महावीर र चरण में पड्यो अर कैवरण लाग्यो-हे कुंवर! थां साल भर ताई खूब दान-दक्षिणा देयर गरीवां री गरीबी मेटी, पण म्हूं खोटा भाग रो गरीब कोरोइज रेइग्यो। म्हारा टावर अन्न रा दारणा-दाणा ताई तरसा है। हे भगवन ! अवै म्हारी गरीवी मेटो । श्रमण महावीर बोलिया-अवै तो म्है घरबार, धनदौलत, राजसी ठाठ-बाठ से त्याग दिया है। वामण कवरण लाग्योप्रापर कन कांई चीज नी हुवै तो आपर कांधा पर पड़ियौ ओ कपड़ो म्हन बगस दो। महावीर उरग कपड़े मांय सू भी माधो फाड़र बामण नै दे दियो अर आतम चिन्तन मे लीन व्हग्या। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर रो पुरुसारथ : कुरमारगांव पोहच'र महावीर एक रूठ हेठे ध्यान में लीन हुया । इण समै एक गवाळियो वळदां री जोडी लै'र वठीकर निकलियो । नवाळिया ने गायां दुवण खातर वेगोसोक गांव जाणों हो, ई वास्तै वो प्रापण वळदां री जोडी ने साग नी लेजा'र वठे ध्यानमगन उभिनोड़े महात्मा नै देख'र वो वोल्यो-बावा! थोडो म्हारै बळदा रो ध्यान राग्वज्यं । हूं अवार गायां रो दूध काढर वेगोसोक पाऊ। यूं कैर गवाळियो वीर हयो। घड़ी दोय केड़े जद वो गांव जार पायो पायो तो वठे वळदा नै नी देख गवाळियै नै घणी रीस आई। वो महावीर तूंपूछयो-वोल ! म्हारा बळद कठे गया। मनावीर प्रापर्ण ध्यान में मगन आतम चिन्तर करऱ्या हा। वरणां गवाळिय री वात नी तो सुरणी अर नी कांई पडूतर दियो। गवाळियो वळदां री तलासी में रात भर अठी-उठी घूमतो रैयो। पण कठं वळद नी दिखिया। दिन उगै वो फेरू बळदा री तलासी में महावीर कांनी प्रायो। वठे अचाणचक वळदा नै जुगाळी करता देख'र वो दंग रैयग्यो। वो महावीर पर आग बवूलो हुयौ। वीं ने लाग्यौ के प्रो साधू तो कोई ठग है, ढोंगी है । इणीज कपट सू म्हारा वळद छुपाय राखिया हा । प्रा सोच गवाळियो वळदां ने बांधण री रस्सी सूमहावीर पर वार करवा लाग्यो । पण महावीर सांत हा। इतरा में इन्द्र प्राय गवाळियै नै ललकारियो पर कयो के- मुनि तो सिद्धार्थ रा पुत्र वर्धमान है। प्रातम कल्याण अर लोक-कल्याण खातर साधना में लीन है। इण घटणा रै पछै इन्द्र प्रभु सूअरज करी के आपरी सेवा खातर म्हूं प्रापर सरणां में रैवरणो चावू पण प्रभु ना दैवता कयोसिद्धि पावा खातर म्हनै किणी री सहायता री जरूरत कोयनी। माधक मापण पुरसारथ पर प्रातमबळ सू इज सिद्धि प्राप्त करें। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेह भाव: __महावीर जिण दिन सूप्रवजित हुया, उरण दिन सू सरीर री मोह ममता छोड़ दी ही। आपण साधनाकाळ में वी एकान्त गुफा, निर्जन झूपड़ी पर धरमसाळा में ध्यानस्थ रैवता। कड़कड़ाती सरदी अर बळतै तावड़े में वा नै घणी तकलीफां झेलणी पड़ती। सरप, बिच्छू जिसा जहरीला कीड़ा अर कागळा, गिरजड़ा जिसा नुकीली चोच आळा जिनावर वां रै सरीर नै नोंचता पण महावीर कदै वासूदुखी हो'र आपणा ध्यान सूविचलित नी हुया। साधना काळ में महावीर नै एकला विचरण करतां देख लोग वां नै चोर, ठग समझ'र मारता-पीटता, घरणी नकलीफा दैवता पण महावीर देह भाव सूमुक्त अचल, अडोल र्या। ___ साधना काळ में महावीर नींद लैणी छोड़ दिवी। आहार खातर वी घर-घर गोचरी जावता । अमीर-गरीब रो उरणारे मन में काई भेद-भाव नी हो। मौका पर रूखो-सूखो जिसो सुद्ध निरदोस आहार मिल जावतो वी बी नै निस्पह भाव सू ग्रहण कर लेवता। मांदहाज में वी काई पोखद नी लैवता। इण भांत वां रो देह रे प्रति मोह भाव नी हो। साधना काल रो पैलो बरस : कोल्लागसन्निवेस सू विहार कर महावीर मोराक सन्निवेस पधारिया । बठे दुईज्जतक तापसियां रो एक आश्रम हो। उरण प्राश्रम रा कुळपति राजा सिद्धार्थ रा भायळा हा । महावीर नै आश्रम कांनी प्रावता देख पाश्रम रा कुळपति उरणा सू इण आश्रम में चौमासौ करण री विनती करी। महावार विनता मजूर कर बठे एक झूपड़ी में ध्यान साधना में लीन हुया। महावीर रै हिरदै मे जीव मातर रैप्रति दया पर मैत्री री Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावना ही। किणी प्राणी नै किणी भांत रो कष्ट देणो वी नी चावता। उरण बरस पाणी कम बरस्यो हो, चारा री कमी ही। जिनावर भूखा मरता अठी-उठी मूडौ मारता रैवता । महावीर जिरण झूपड़ी मे साधना रत हा वा घास फूम री बणियोड़ी ही। भूखी मरती गायां आश्रम री झू पड़ियां रो चारो खावा लागती। झुपड़ियां में रंगमाळा दूजा तापसी गायां ने भगा-भगा'र झुपड़ियां री रक्षा करता । महावीर जिण झूपड़ी में साधनारत हा, वीरी घणकरी घास गायां खायगी परण महावीर निश्चिन्त होय आतमचिंतन में लोन हा। महावीर री झूपडी र प्रति इण उदासीनता नै देख तापसी कुळपति सू वांकी सिकायत करी । कुळपति पण महावीर नै ओळमो दैरण खातर पाया पर कवण लागा- कुंवर ! इतरी उदासीनता किरण कामरी ? पछी पण आपण घोंसला री रक्षा करै फेर आप तो राजकुवर हो। कांई झुपड़ी री रक्षा प्राप सूनी हुय सकै? महावीर कैवण लाग्या-किरणरी झूपड़ी? किरणर, राजमहल ? पांच प्रतिज्ञा : महावीर ने अनुभव हुयो के इस आश्रम मे माधना सू बत्तो महत्त्व चीजां रो है । अठ म्हारै रैवरण सूतापसियां रै मन में ईर्ष्या री भावना पैदा हुए। अब म्हनै अठ नो रैवरणो चावै । यूं सोच'र महावीर वठा सूविहार कर दियो। इण समै वा पांच प्रतिज्ञावां करी (१) इसी जगां नी रैबूला जठै म्हारै रैवण सू लोगां नै किणी भात रो कष्ट, ईर्ष्यादि हुवे । (२) साधना खातर पाच्छो स्थान खोजबा री कोसिस नी करूंला पर सदा ध्यान में लोन रेऊला। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) मौन वरत राखूला। , (४) हाथां में आहार करूंला। (५) जरूरत री चीजां खातर किणी गिरस्ती नै राजी राखण री कोसिस नी करूंला। यक्ष री बाधा : । वठासू महावीर अस्थिग्राम पधारिया। वठे एकान्त मे एक पुराणो टूट्योड़ो मिन्दर हो। इण मिन्दर में ठहरबारी प्राज्ञा वा वठारा गिरस्ती लोगां सूलीवी। गामवासी महावीर नै कयौ-अठ मत ठहरो।ओ तो सूळपाणी यक्ष रो मिन्दर है। अठ भूल सूकोई रेय जाव तो वो जिन्दो नी बचे । पण महावीर बठेइ ठहरबा रो निसचे कर लियो । वी मौत सूकद डरबानाळा हा । गामाळां लोगों ने महावीर री इण हिम्मत पर घणो इचरज हुयो। - यक्षरै मिन्दर में जा'र महावीर ध्यानलीन हुयग्या। रात रा अधारा में घणी डरावणी आवाजां प्रावण लागी । इण रोमहावीर पर काई प्रभाव नी देख यक्ष नै गुस्सौ पायग्यो। वी विकराळ हाथी, ना'र राक्षस, अर नाग जिसा सरूप बरणार महावीर नै घणी तकलीफां दीवी, पण महावीर सांत भाव सूसै परीसह सहन करता र्या। पाखर यक्ष हारग्यो। वीं नै पापणी इण हार पर घणी सरम पाई। वो मन ही मन सोचबा लाग्यो-यो पुरुस कोई साधारण मिनख नी हो'र बड़ो मिनख है। वीं प्रभु रै चरणों में पड़'र माफी मांगी। उण रो हिरदय पळटग्यो। वीं प्रापणी हिंसावृत्ति सदा-सदा खातर छोड़ दी। दिन उगै महावीर नै राजी खुसी ध्यानमगन देख गांवमाळा नै घणो इचरज हुयौ। 'दूजो बरस : अस्थि ग्राम रो चौमासो पूरो कर र महावीर वाचाला नगरी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कांनी चालिया। वीचे मोराक सन्निवेस पड़तो हो, सूनी ठौड़ देख महावीर थोड़ा दिन बठेइ ध्यान करण रो विचार कियो । कड़कड़ाती ठंड में महावीर नै उघाड़े सरीर कठोर साधना करतां देख पाखो गांव वरणारं दरसण खातर आयो । महावीर री ध्यान साधना सू प्रभावित हुयर घरणा मिनख वारा भगत वरणग्या । महावीर दक्षिण वाचाला सूजाय ऱ्या हा के सुवर्ण वाळ का नदी रे किनारं री एक झाड़ी में उरणार कांधा पर पड़ यो देवदुष्य वस्त्र उलझ'र अटकग्यो । ई घटना रै पर्छ वा कदैइ वस्त्र धारण नी करिया। चण्डकोसिक नाग नै प्रतिबोध : महावीर कनखळ पाश्रम सूउत्तर वाचाला कांनी जायऱ्या हा । उण रस्ते मे एक भयङ्कर नाग रैवतो हो । वीरो नाम चडकोसिक हो। महावीर ने इण रस्ता सूजावतां देख एक गवाळिये हाको पाड़'र कयो-महात्माजी ! इण रस्त मती जायो । अठीने भयङ्कर काळो नाग रैवै है। बो दृष्टिविष सरप है । वीके देखतां पारण मिनख पर जिनावर मर जावै । प्रो हरियो-भरियो वनखंड इणीज सरप री विष दृस्टि सूउजड़ग्यो है। पण महावीर पर ई वात रो काई असर नी पड़ियो। वान नी तो जिनगाणी री चावना ही अर नी मौत रो डर । वी तो चण्ड नै प्रतिबोध देणौ चावता हा । इण कारण लोगां रै विरोध करवा पर भी वां आपरणी गैल नी बदली। वै उगगीज रस्तै गया अर जा'र सरपरी बांवी माथै ध्यान मगन हुयग्या। वांवी माथै उभियौडा मिनख नै देख चण्डकोसिक आगबवूलो हुयग्यो । वी खूब जोरां सूफुफकार करी पर किरोध में प्राय महावीर रे चरण नै डस लियो। पण महावीर इण सूतनिक भी नी Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० घबराया । वी आपण ध्यान में बराबर लीनरया । महावीर री आ हिम्मत पर मजबूती देख सांप भी कई दफा वांनै 'डसियो पण महावीर तो उणीज भांत अडोल, अकम्प ऊभा रह्या । महावीर री प्रा असाधारण वीरता देख सरप रो विश्वास डोलग्यो। वीर डसण री ताकत नष्ट हुयगी। सरप नै यूं लाचार देख महावीर सांत भाव सू कयो-सरपराज! जाग, आपण किरोध नै सांत कर। इण किरोध रै कारण ईज थनै सरपरी जूण मिली है । अबै थू आपणै मन में प्रेम अर मित्रता रा भाव ला । जै मन में शुद्धि नी लावला तो थारी प्रातमा यूईज अंधारा में भटकती रेवैली। महावीर रा इमरत वचन सुरण'र चण्डकौसिक रो किरोध सांत व्हैग्यो । वो टकटकी लगा'र महावीर कांनी देखतो रह्यो । अब वीनै ज्ञान रो प्रकास मिलग्यो हो । बीनै पापणा कियोडा खोटा करम एक-एक कर याद आवण लाग्या। प्रातमगलानि अर पछतावो करता थकां उरणरो हिरदय पळटग्यो । उपरी द्रष्टि रो सगळो जहर इमरत में बदलग्यो । महावीर रै डसियोड़े चरणां री ठौड़ सू खून री जगां दूध री धारा बेवण लागी। महावीर रै समभाव अर वत्सलता सू सारो वातावरण प्रेममय बणग्यो। चण्डकौसिक नाग रो उद्धार कर महावीर उत्तर वाचाला मांय पधारिया। अठै नागसेन रै घरै पन्द्रह दिन रै उपवास रो पारणो कियो। वठासू महावीर श्वेताम्बिका नगरी पधारिया। अठ राजा परदेसी आपरा दरसरण कर घणा प्रभावित हुया अर पक्का भगत बरणग्या। नाव किनारे लागी: महावीर श्वेताम्बिका नगरी सूसुरभिपुर कांनी विहार Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कियो । वीचै गंगा नदी पड़ती ही । महावीर नदी पार करण खातर नाविक री आग्या लेय नाव में वैठिया । नाव में घणाई मिनख बैठा हा । नटी रोपाट घरको चौड़ो हो । देखतां-देखतां भयंकर प्रांधी अर तूफान बालबा लागो । नाव डगमगावा लागी । नाव में वैठ्या लोग डरग्या । व रोवा-चिल्लाबा लाग्या पण महावीर तो आपण ध्यान में मगन हा । बाने मीत रो डर कोनो हो । पाखर उरणारी माधना परताप मूांधी पर तूफान थमग्यो प्रर नाव किनारै लागी। धर्म चक्रवर्ती : श्रमण महावीर गगा रै किनारै रा रेतीला मारग सूहो'र स्थूणाक सन्निवेस पधाऱ्या । अठा'र अाप ध्यान में लीन हुयग्या। इण गांव में पुष्य नाम गे एक जोतमी हो। वीं रेत मे मडयोडा महावीर रा चरण चिह्न देख्य । वी प्रापरै ज्ञान सू सोच्यो के अं वरण-चिह्न किणी चक्रवर्ती सम्राट रा है। म्हनै लखावै के कोई सम्राट मुसीबत में पड़ग्यो है। वो अवार उरवाणे पगा ई रेतीला मंदान मूहुयर गयो है अर एकलोई दीसै। ई समे म्हूंजायर बीकी मदद करूं तो सायद उरण री किया सूम्हारी गरीबी मिट जावै । या सोच'र पगां रा निसाग-निसारण वो जोतसी प्रभू रे पास पोच्यो । वठे जाय वी देख्यो के एक महात्मा ज्यान मुद्रा में लीन ऊभो है । वी व्यान सू देख्यौ तो वी नै श्रमरण रे सरीर पर चक्रवर्ती रा सं सैनारण नजर आया। वो अचम्भा में पड़ग्यो अर सोचण लाग्यो के चक्रवर्ती रा नाग आळो पुरस भी कदई भिक्षु हो सके पर दर-दर, जंगळ-जगळ मारो-मारो फिर? म्हनै तो लागे के सास्त्र सव झूठा है, पान गंगा में फैक देणा चाइजै । इरा में एक दिव्य ध्वनि वीकै कानां में पड़ी पडित ! सास्त्रां नै असरधा रै भाव संमत देख । श्रमरण महावीर साधारण चक्रवर्ती नी हो'र धरम चक्रवर्ती है । अ वड़ा-बड़ा सम्राटां रा भी सम्राट है । आखा जगत Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रा पूजनीक है। दिव्य वारणी सुणर पुष्य रा अन्तर्चक्षु खुलग्या । बीरो माथो सरधा अर विनय भाव सूप्रभु रै चरगां मे झुकना। गोसालक रो प्रसंग: विहार करता-करतां चौमासौ करण खातर महावीर नाळन्दा नगर पधारिया । वी एक तन्तुवाय साळ (जुलाहै री दुकान या कारखानो) में ठहरिया। अठै मंखलीपुत्र गोसाळक नाम रो एक तापमा पैला सू ईज ठहरियोड़ो हो। गोसाळक घणो मुह फट, जीभ रो चटोरो पर झगड़ालू सभाव रो हो । बो ईर्ष्यावश भगवान री कयोड़ी बातां नै झूठी पटकणो चावतो हो । एकदा गोसाळक भगवान नै पूछयो-हे तपस्वी ! आज म्हनै भिक्षा में काई-कांई चीजां मिलेला। महावीर सहज भाव सू कयो-कौदू रो बासी भात, खाटी छाछ अर खोटो रीपियो। महावीर री वाणी नै झूठी साबत करण खातर गोसाळक बड़ा-बड़ा सेठां रै घरै भिक्षा सारू गयो, पण वीं नै खाली हाथ प्रावणो पड्यो । पाखर में एक लुहार रै घरै वीनै कौटू रो बासी भात, खाटी छाछ पर खोटो रीपियो मिल्यो । प्रभु रा वचन सांचा जाण गोसाळक नियतिवाद रो समर्थक बरणग्यो अर महावीर रै तप त्याग सूघणो प्रभावित हुयो। महावीर चौमासी पूरो कर नाळन्दा सू कोल्लाग सन्निवेस पधारिया । गोसाळक उण समै भिक्षा खातर बाहर गयौड़ो हो । भिक्षा लेयनै पाछौ पायो तो तंतुवायस ळ में महावीर नै नी देख वो घणो दुखी हुयो अर प्रापरणा कपड़ा, कुडिका, जिसी चीजां ब्राह्मणानै देय'र माथो मुडवाय खुद भगवान री खोज मे निकळ पड्यो । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जावतां-जावतां कोल्लाग सनिवेस में ध्यानस्य महावीर रा दरसरण करिया । वठे बहुल ब्राह्मण रे दान री महिमा सुणी तो वी को दिल महावीर रै प्रति सरघा सू भरग्यो । वो सोचरण लाग्यो प्रो महावीर र तप पर साधना रो फळ है। वी हाथ जोड़ महावीर सू वदना नमस्कार करीअर कयो~-प्राज सू आप म्हारा धरम गुरु हो अर म्हें आप रो चेलो। तीजो बरस : कोल्लाग सन्निवेस, सुवर्णखळ, वामगागांव होता हुया महावीर चपा नगरी पधारिया। अठं चीमासे माय दो-दो मास री कठोर तपस्या करता हुया महावीर प्रापरणी ध्यान साधना में लीन रैया। चौथो बरस : गांव-गांव विहार करता या महावीर चौराक सन्निवेस पवारिया । उणां दिना उठ चोरां रो घणो डर हो। पैरेदार रातदिन पैरो देवता हा । महाबोर नै देव पैरेदारों वांको परिचय पूछयो पण महावीर मौन हुवरण सूकाई नी चोल्या। इस कारण पैरदारां नै संका हुई । वी वांनै चोर पर भेदू समझ घरणी तकलीफां दीवी। श्रा वात उत्पल निमितज्ञ री वैनां सोमा अर जयन्ती नै मालम पड़ी तो वी पैरेदारां कनै गई पर उणान महावीर री सांचो अोळखाण कराई । महावीर नै ऊँचो महात्मा जागर पैरेदारांपापणी गलती पर घणो पछतावो करियो पर महावीर सू माफी मांगी। चौराक सन्निवेस सू महावीर पृष्ठचंपा पधारिया पर पो चौमासो अठई पूरो करियो । ई काळ मे महावीर चार महिना री लम्बी तपस्या कीवी। पांचमो बरस : पृष्ठचंपा सूविहार कर श्रमण महावीर कयंगळा होता हुया Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ सावत्थी नगरी पधारिया । अठ नगर रै बा'रै कड़कड़ाती सर्दी री परबा कियां विगर रात भर ध्यान में लीन रह्या । सावत्थी सू विहार कर महावीर हेळदुग पधारिया । अठै एक रूख हेढ़ महावीर ध्यान मग्न हुया। सरदी सू बचवा खातर मारग चालरिणया लोगां वठे आग जलाई अर परभात व्हता पण बिगर आग बुझायांई वै प्रागै रवाना व्हैग्या। हवा रै झोखे सूसूखा घास फूस बळग्या। आग बळती-बळती महावीर रै कनै आयगी जिसू वांका पग दाझग्या पण फैरू भी महावीर ध्यान सूडिगिया कोनी। करम खफावरण खातर महावीर अनार्य देसां मांय पण विचरण करियो। एकदा महावीर लाढ देस कांनी आया । वठे उणाने भांत-भांत रा उपसर्ग (कष्ट) मिल्या। रैवरण नै ठीक जग्यांनी मिली। खावरण नै लखो-सूखो भोजन भी मुश्किलों सूमिलियो । अज्ञानी लोग वां पर रेत फेकता, गंडकड़ा पाछे दौड़ाय देवता, हथियारां सू सरीर पर वार करता पण महावीर सांत भाव सू सगळा कष्ट सहन करता पर निर्द्वन्द्व भाव सूआपण ध्यान में लीन रैवता । अनार्य देसां मांय विचरण करता-करता महावीर आर्य देस री भद्दिला नगरी मांय पधारिया अर अठै चौमासो कियो । इण काळ में महावीर भांत-भांत रा आसना रै सागै ध्यान करता थकां चातुमासिक तप री आराधना कीवी । छठो बरस : भद्दिला नगरी सूकदळी समागम, जम्बूसंड, तंबाय सन्निवेस जिसा नगरां में विहार करता थकां प्रभु वैसाली नगर पधारिया अर बठा सूग्रामक सन्निवेस । बठे विभेलक यक्ष रै रैवरण री ठौड़ महावीर ध्यान मगन हुया । यक्ष प्रभु र ध्यान पर तपोमय जीवन सू घणो प्रभावित हुयो । ग्रामक सन्निवेस सूप्रभु महावीर शालिशीर्ष नगर रै बारे Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ एक बगीचे में प्राय'र ध्यान मगन हुया । माघ महिनो हो । सुनसान जंगल में ठंडी वरफीली हवा चाल री ही । उरण समै कटपूतना नामरी देव कन्या रै मन में ध्यान मगन महावीर नै देख पूरब जनम रो बैर जाग्यो। वीं महावीर रो ध्यान भंग करण खातर विक राळ रूप धारण करियो । विखरियोड़ी जटावां मे वी वरफ जिसो ठंडो पाणी भर'र महावीर रै उघाड़े सरीर माथ जोरदार बरसात कीवी। महावीर इण उपसर्ग सूतनिक भी विचलित नी हुया । कस्ट अर तकलीफा सूवारी साधना रो तेज और निखरयो । वार धीरज पर हिम्मत र आगे कटपूतना रो वैर सांत हुयग्यो । वी प्रभु र चरणा में सिर नवाय माफी मांगी। सातमो वरस : ... महावीर प्रो चौमासो अालंभिया नगरी में बितायो । अठा सूवी कडाग पर भरणा सन्निवेस होता हुआ बहुमाल गांव पधारिया । अठ शालार्य नाम री देवी महावीर नै घणा उपसर्ग दिया पण वी पापणे ध्यान सूतनिक भी विचलित नी हुया। पाठमो बरस : __ भद्दणा सू विहार कर महावीर लोहार्गला पधारिया । अठ पडोसी राजावां में आपसी झगड़ा हा । ई कारण नगर मे प्रवेस करण पर पाबंदी ही । विगर अोळखाण करियां किरणी नै नगर में प्रवेस नी दियो जावतो। महावीर सू भी उणारो परिचय पूछयो । वांनै मौन देख अधिकारियां उणांन राजा जितसच रै साम हाजर किया । बठे निमितज्ञ उत्पल आयोड़ो हो । बी राजा ने महावीर री ओळखारण कराय दी। राजा महावीर रै तप-त्याग सूघणो प्रभावित हुयो। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वीं घर श्रादर मान सूं महावीर नै नमन करियो । बठा सू' विहार कर प्रभु राजगृह पधारिया । अठे चातुर्मासिक तप कियो । नवमो बरस : राजगृह सू विहार कर' र महावीर फेरू अनार्य देसां में विचरिया । अठारा लोग अज्ञानी पर निरदयी हा । वां महावीर नै घरणी यातना दीवी । उणां रे उघाड़ सरीर पर भाला, लाठी भाटा श्रादि सु वार करिया । महावीर लहूलुहान हुयग्या पण समता भाव सू वां से तकलीफां सहन करी । वांने ठहरण खातर पड़ी तक नी मिली। वी रूखांरै हेठे ध्यान मगन रेय' र चौमासो पूरो करियो । दसमो बरस : गोसालकरी रक्षा : अनार्य देसां सू विहार कर महावीर करमगांव पधारिया । गोसाळक परण इण समे वारे सागै हो । अठे गांव रे बारे वैस्यायन नाम रो एक तापस सूरज रै सामै दीठ कर, दोन्यू हाथ ऊपर उठा'र आतापना लेर्यो हो । उपरै लाम्बी - लाम्बी जटावा ही। सूरज री गरमी सू तपर उगरी जटावां सू घणकरी जू वां हे गिर री ही । वो उगानें उठा'र उठा'र पाछी जटावां मे राखरयौ हो । तापस री ना हरकत देख गोसाळक ऊरणरे कनै आयो श्रर बोल्यो – अरे, तू कोई तापस है या जू वां रो घर ? तापस मौनरयो । पण जद गोसाळक वार-बार श्री बात दोहराई तद तापस नै किरोध आयग्यो । वी गोसाळक नै भसम करण खातर आपण तपोबळ सू ं प्राप्त करयोड़ी तेजोलेश्या (आग बरसावण आळी लब्धि) उरण पर फेंकी । गोसाळक इरण सू' डर र भाग्यो अर महावीर रै चरणां मांय छिपग्यो । वीं महावीर सू अरज करी - प्रभु ! म्हारी रक्षा करो, म्हनै बचाओ । गोसाळकरी करुण कातर पुकार सुण महावीर गोसाळक काँनी देखियो । महाबीर है तप-त्याग अय - Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ साधनामय जीवन रै प्रभाव सूदेखतापांण गोसाळक री जळन सांत हुयगी। ___करमगांव सूसिद्धार्थपुर होता या महावीर वैसाळी पधारिया पर नगर रै वारै ध्यान मगन हया । आता-जाता लोग महावीर नै भूत-परेत समझर घणी तकलीफां दीवी । महावीर से तकलीफां सांत भाव सू सहन करी । संयोग सू राजा सिद्धार्थ रा दा मित्र संख पर भूपति उण रास्ता सूनिकळिया । वां महावीर नै ओळख लिया। वां उपसर्ग देवरिणयां लोगों ने समझा'र बठा सू अळगा किया अर प्रभु चरणों में वन्दना करी । खेवट रो किरोध : वैसाळी सूमहावीर वाणिजगाम कांनी आया। रास्ते में गंडकी नदी पड़ती ही । नदी पार करण खातर प्रभुनाव में बैटिया। जद नाव किनार लागी, खेवट महावीर सूकिरायो माग्यो, पण महावीर काई देवता ? महावीर नै मौन देख खेवट नै घणो किरोध प्रायो। वी प्रभु नै खरीखोटी सुणाई अर तपती वाळू पर ले जाय वांने ऊमा कर दिया । प्रभु महावीर वठे जाय ध्यानलीन हयग्या। अचाणचक उठी नै राजा संख रो भाररोज चित्र आयो। वो महावीर नै जारणतो हो । वीं खेवट नै परण महावीर री अोळखाण कराई। वाणिजगाम सूसावत्थी पधार र प्रभु चौमासो पूरो करियो । ग्यारमो बरस : महावीर सावत्थी सूविहार करता-करता सानुलठ्ठिय सन्निवेस पधारिया । अठ तपस्या करर ध्यान साधना मे लीन हुया। एक दा पारणे रै दिन भिक्षा खातर महावीर आनन्द गाथापति रै धरै गया । उरण समै दासी बहुला बच्योड़ो वासी अन्न फेकण खातर बारे पाई। बा'रै साधु नै उभो देख वीं पूछियो- महाराज ! थाने Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ किण चीज री चावना है ? महावीर दासी र सामैं हाथ फैलाय दिया । दासी घरणी भगति पर सरधा भाव सू' प्रभु नै बासी भोजन बैराय दियो । महावीर उस पारणो कियो । संगम रो उपसर्ग : I सानुलट्ठिय सन्निवेस सूं महावीर द्रिढ़भूमि पधारिया । श्रठे पैढाळ बाग रै पोलास नाम रै चैत्य में घ्यानलीन हुया | साधना काळरै इरण दस बरसां में महावीर नै घरगाईं दुख देवरिया अर सरधा राखणिया लोग मिलिया । हरेक रे सागै वरणां रै मन में मैत्री भाव हो । वी नतहमेस सगळा री भलाई चावता | महावीर ₹ इण समभावी आचरण सू इन्द्र घणो प्रभावित हुयो | आपणी देवसभा में वीं प्रभु रैइा तपत्याग री घणी बड़ाई करी । महावीर बड़ाई सुरण सगळा देव राजी हुया परण संगम नाम रो एक ईर्ष्यालु देव महावीर री बड़ाई सहन कोनी कर सक्यो । वो किरोध में प्राय केवा लाग्यो - हाड़-मांस रो पुतलो कद इतरा गुणा बाळोनी हुय सके। हूँ अबार जा'र वीने आपण साधना रे गेला सू' डिगाय देऊला । आ केय' र सगम जठै महावीर ध्यान में लीन ऊभा हा, बठै आयो । प्रा'र महावीर नै उपसर्ग देवरणा सरु कर दिया । वी कुदरत रै सुहावणे सांत वातावरण नै डरावणो बरपाय दियो । धूड भरी श्रधियां चालण लागी । चारू' कांनी डरावणी आवाजां आवरण लागी । प्रभु रो सरीर माटी स भरग्यो । हिसक सू जिनावर वांने काटबा पर नोचबा लाग्या पण महावीर श्रापणी साधना सू कोनी डिगिया । संगम महावीर री फैरू परीक्षा लेगो चावतो हो । वीं प्राकस सू रूपाळी अपसरावां उतारी, वां रो संगीत र नाच करायो, भांत भांत रे फुलां री खुसब से वातावरण नै सुगंधित Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. • जिनावरां री हत्या हुवै, एडौ व्याव म्हूंनी करूंला। यूं केयर नेमिकुमार प्रापरो रथ तोरण सूपाको मुड़वा लियो। . अब तो नेमिकुवर मुनि घरम अंगीकर करण रो निश्चम कर लियो । आपणां कीमती गैरणा-गामा उतार सारथि नै दे दिया पर खुद संयम मारग पर चालवा खातर पग वढा दिया। सब जणा वांसू व्याव करण खातर घरणी विनती करी, पण धरमवीर नेमिनाथ किरणीरी बात कोनी मुणो। दीक्षा अंगीकार कर प्रभु गिरनार परवत री ऊंची चोटी पर जाय कठोर तपस्या करी। महाराज उग्रसेन री पुत्री राजुळ नै जद आ मालूम पड़ी के जिनावरां रो करुण क्रन्दन सुरण अहिंसा रा पुजारी प्रभु नेमिनाथ तोरण पर पाया थका पाछा मुड़ग्या, तो वा मन में संकल्प कर्यो के म्हूं अवै किणी दूजा पुरुष र सागै ब्याव नी करू ला। राजकुंवर नेमि इज म्हारा पति है। वी राजसी सुखों ने छोड़ मुनि धरम अंगीकार करर्या है तो म्हू भी वणारे मारग रो इज अनुसरण करू ला । पछै राजूळ पण दीक्षा लेय नै गिरनार परवत पर घोर तपस्या करी। केवळज्ञान पाम्या पछ प्रभु जगां-जगा विचरण कर अहिंसा घरम रो उपदेस दियो अर गिरनार परवत सूनिर्वाण पायो। यादवकुमार अरिष्टनेमि विशिष्ट व्यक्तित्व रा धरणी हा। महाभारत, स्कन्दपुराण, श्रीमद्भागवत जिसा पुराणा ग्रंथा में इणांरो उल्लेख मिले । महाभारत रै 'शान्तिपर्व' में प्रभु रा दियोड़ा उपदेसां रो वर्णन आवै । अरिष्टनेमि प्रभु राजा सगर नै उपदेश देतां कयौ के संसार में मगति रो सुख इज सांचो सुख है। जो मिनख धन दौलत पर विषय सूखां में रम्यौ रैवै बो अज्ञानी है, जो मिनख प्रासस्ति सूअळगो है बोइज इण संसार में सुखी है। हरेक Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राणी अकेलो जनम लेवे, बड़ो हुवै अर संसार में सुख-दुख भोग'र मौत री सरण लेवै । सांसारिक सुख-दुख पूरब जनम में कोड़ा करमा रा फळ है। तीर्थकर नेमिनाथ रो जनम हुयो जद याज्ञिक अर वैदिक संस्कृति रो प्रभाव बत्तो हो । बीके सामै श्रमण संस्कृति फीकी पड़गी ही। चारुकानी हिसा रो बोलबालो हो । बी समै लोगां नै अहिंसा धर्म रो उपदेश देय नै प्रभु श्रमण संस्कृति रो पाछो उत्थान करियो। कहयो जावै के छप्पन दिनां री कठोर तपस्या र उपरांत गिरनार पर्वत पर आसोज वदी एकम रै दिन प्रभु नै केवल ज्ञान हुयो। जैनागयां रे मुताबिक तीर्थकर अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण रा आध्यात्मिक गुरु हा । 'ज्ञाता धर्म कथा' मे भगवान अरिष्टनेमि अर श्रीकृष्ण री आपसी चर्चा रा घणाई वर्णन मिले। श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि सूघणाई प्रश्न पूछया पर वां सबां रो पालो समाधान पायो। कहयो जावै है के कृष्णजीरी पार्टी राणियां पुत्र अर परिवार रा घणाई लोग भगवान अरिष्टनेमि सू दीक्षा अंगीकार करी ही। 'यजुर्वेद' में स्पष्ट रूप सूअरिष्टनेमि रो वर्णन मिलै । सौराष्ट्र अर गुजरात में नेमिनाथ री शिक्षावां रो घणो प्रचार यो । आज पण गिरनार, सत्रुजय अर पालीतारणा जैनियां रा सिद्ध क्षेत्र मानिया जावे। २३. पार्श्वनाथ : तेइसवां तीर्थकर पार्श्वनाथ भगवान हुया । आपरो जनम वाराणसी में हुयो । आपरै पिता रो नाम राजा अश्वसेन पर माता रो वामादेवी हो आपरो गोत्र कश्यप हो पर लांछण सरप है । इतिहासकारां रै अनुसार भगवान पावं ऐतिहासिक महापुरुष है । इणां रो जनम पौष वद दसम रै दिन ईसा पूर्व ८७७ मे हुयो। कठोर तपस्या करर सम्मेदशिखर सं निर्वाण प्राप्त करियो। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ भगवान पार्श्व रो व्यक्तित्व घरणो अनोखो हो । श्राप टावरपण तू ई दृढ प्रतिज्ञ, स्वाभिमानी, शांत, दयालु, चिन्तनशील अर मेघावी हा । एकदा पंचान्नि तप करता हुया कमठ नामरै बड़े तपस्वी र चारू कानी वळती धूणीरी लाकड़ियां सू आप नागनागली री रक्षा करी । इण घटना सू' ग्रापरे दिल में संसार सू विरक्ति हुयगी अर धाप प्रातमकल्याण खातर संन्यास ले लियो । 1 धर्म साधना करवा में भगवान पार्श्व चारित्रिक नैतिकता पर धरणो बल दियो । आप पंचाग्नि जिसा तपां में हुवरण आळी जीव हत्या कांनी लोगां रो ध्यान खिच्यो र कयौ के धर्म रो मूळ दया है। ग्राग जला तो से भांत रा जीवां रो नास हुवै। जिरण तप में जीवां रो नास हुवै वीं में धर्म कोनी । विना पाणी री नदी री भांत दया शून्य बरम भी बेकार है । जिरग भांत तीर्थकर नेमिनाथ पशुहत्या रो बहिष्कार करियो उरणीज भांत भगवान पार्श्व धर्म रे नाम पर हुवरण ग्राळी जीव हिसा रे विरुद्ध प्रावाज उठाई । प्रभु पात्रं आपण युग मे फैल्योड़ी कुरीतियों ने देख अहिसा सत्य, अस्तेय र अपरिग्रह या चार व्रता रो उपदेश दियो, जो चातुर्याम धर्म र नाम सूं प्रसिद्ध है। प्रभु र आध्यात्मिक र नैतिक विचारां नू प्रभावित होयर वैदिक परम्परा रो एक प्रभावशाली दळ याज्ञिक हिसा रो विरोधी बग्यो हो । इरण भांत दो विरोधी विचारधारा से संगम इण काळ में हुयो । थाचार पर विचार में जितरा बत्ता परिवर्तन इरण काळ में हुया, उतरा किरणों युग में नीं हुया । इरगीज कारण जैन तीर्थंकरां में पार्श्वनाथ सबसू घणा लोकप्रिय है । भारतवर्ष र जुदा-जुदा भागां में जितरा, मिंदर, मूर्तियां, तीर्थस्थान इरणां रे नाम रा मिळे उतरा दूजा तीर्थकरां रानीं मिले। गजपुर रै नरेश स्वयंभू, कुशस्थपुर रै राजा रविकीर्ति, ₹ तेरापुर र स्वामी करकंडु जिसा कई बड़ा बड़ा राजा मणांरा Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परम भगत पर अनुयायी हा । उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, मांध्रप्रदेश ताई पार्श्वनाथ रो घणो प्रभाव हो। पार्श्वनाथ पर महावीर रै समै में लगभग ढाई सौ बरसा रो प्रतिरो है। इण बीच पाश्वं रा उपदेश पर वांकी श्रमण परम्परा अविच्छिन्न रूप सूचालती रैयी। महावीर रो मातृकुल पर पितकुल पार्श्व परस्परा रोइज अनुयायी हो। केवळज्ञान प्राप्त करिया पाछै महावीर जद उपदेश देवण लाग्या, तद पार्श्वनाथ परम्परा रा मुनि केशि श्रमण मौजूद हा । २४. महावीर : चौवीसवां तीर्थकर भगवान महावीर हुया । इणां रो लांछण सिह है। महावीर तीर्थ कर परम्परा रा आखरी तीर्थकर है। वीर, अतिवीर सन्मति, वर्धमान आदि अनेक नामां सूपाप याद करिया जावै । भगवान महावीर रो जनम आज सू २५७३ बरसां पैली इणीज भारत भूमि पै हुयो। आगे रा अध्यायां में महावीर ₹ जीवरण पर शिक्षवां री प्रोळिखारण है। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. महावीर रै जनमकाल रो स्थिति जिण नमै भगवान महावीर रो जनम हुयो उरण समै देस पर समाज री हाळन वगो लगन हो। परम है नाम पर चारुकांनी टोग पर पाबा बोलबालो हो । यन में घी, सैत जिसी चीजां नै छाउर जोबना मिनाय पर जिनावरां री बळि दी जावती। पण नंस्कृति ने माना पाळा लोग जीव हिंसा रो विरोध करता तो लोग कंवता के भगवान जिनावगं ने यन में बलि देवरण खातर ज बगाया है, यज्ञ में जिनावगं री बलि देवण सूपाप कोनी लागे, प्रा हिमा कोनी। उग समै मत्र-तंत्रा में लोगा रो घणो विसवास हो। वी प्रातमशृद्ध मे धम्म नी मान र सिनान आदि बाहरी सरीर री गफाई न इज घगो महत्त्व देता र कैवता के सरीर नै कष्ट देणे इज मगांत मिले। कई तपस्वी पंचाग्नि तप करता हा। वी प्रापरणे ग्रामरण र चारूपानी प्राग जळा'र ऊपरसू सुरज री तेज गरमी महण करता। घणखरा तपस्वी नुकोलो मुइयां पर सूवता पर वीमूहोण पाळी शारीरिक पीडा ने मुगति रो साधन मानता। ___चारुकानी ब्राह्मण लोगा रो वर्चस्व हो । लोग वान भगवान दाई उत्तम समझता हा, भलैइ वे कित्ताइ दुराचार अर पाप करता। भगवान पार्श्वनाथ तप, संयम पर अहिसा री जा पवित्र धारा बहाई वा २५० बरसां पछ सूखण लागी। भगवान महावीर जद गाधना र क्षेत्र में पधारिया तद समाज में एक नी अनेक विषमतावां फंल्योड़ी ही। समाज मे धरम सूवत्तो धन रो महत्त्व हो । धनवान गरीबां नै जिवावरां जियां खरीद'र उग्णांने आपणा दास वरणाय लैवता । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालिका नै दास बरणायोड़ा लोगां नै कड़ी सजा देवण रो पूरो अधिकार हो । अमीर लोग खुद नै बड़ा ऊंचा प्रादमी समझ र गरीब मिनखां पर घणा अत्याचार करता हा । जात पांत रो भावना रो बोलबालो हो । मिनख री पूजा गुणां सूनी हो र जाति, धन, पर दण्डशक्ति सूहुवती। सेवा करणिया सूद्र लोगां रै प्रति ऊंचा तबका रे लोगां रो रवैयो घणो खराब हो। बां ने पढ़ा-लिखण रो अधिकार नी हो अर नी धरम रा बोल सुणबा रो। सूद्र लोग जद कदैइ धरम (वेद) रा बोल सुरण लैवता तो वरणां रै कानां में ऊनौ-ऊनौ सीसो भरबा रो रिवाज हो अर जद कोई धरम रा बोल बोल लैवता तो वारी जबान काट ली जावती । ऊंचा तबका रा लोग नीचा लोगों ने कैवता के थां खोटा करम करने आया हो जि खातर थां नै ओ फळ भुगतणो पड़र्यो है । बिचारा सूद्र लोग विवस भाव सू से तकलीफी सहन करता। स्त्री जाति री वीं वगत घरणी बुरी हालत ही। बां नै धार्मिक पोथियां पढबा रो अधिकार नी हो। नारी सब भांत उपेक्षित पर अधिकारहीन ही। बी रो मोल गाजर मळी सूबत्तो नी हो। गायां भैसा दाई लुगायां चौराया पर ऊभी करर बेची जांवती। नारी घर री लिछमी नी होय'र एक मात्र दासी ही। उण वगत री राजनीतिक हालत पण घरणी बोदी ही। सबळ राजा कमजोर राजा सू जुद्ध करता अर उरणारी सुन्दर स्त्रियां नै गुलाम बरगा'र उरणारो उपभोग अर शोषण करता । कासी, कौसल, वैसाली, कपिलवस्तु आदि राज्यां में गणतन्त्र शासन व्यवस्था ही पण वा राज-काज रै काम ताई सीमित ही। साधारण जनता नै कोई लोकतन्त्रीय अधिकार नी मिल्यौडा हा । अंग, मगध, सिन्धुसौवीर, अवंती आदि देसां में राजतन्त्र शासन पद्धति ही। अठा रा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ लोग धार्मिक रूढ़ियां अर सामाजिक गुलामी रो भावना सूदुखी हा। छोटी-छोटी वातां नै लै'र गणराज्यां में आपसरी लड़ाइयां हुवती। राजा-महाराजा री दाई सेठसाहूकार लोग परण दासदासियां रो लम्बो-चौड़ो परिवार राखता हा । ऊपर लिख्योड़ी धार्मिक रूढ़ियां, अन्धविश्वास अर सामाजिक विसमता सूमिनख धरणा अवग्या हा । इण विषम परिस्थितिया में जनपलैर भगवान महावीर भूल्या-भटक्या दुखी मिनखां ने सही रास्तो दिखायो। - - -- Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनम अर टाबरपरण ‘भगवान महावीर रो जनम वैसाली गणतंत्र रै क्षत्रिय कुष्गांव में हुयो । आपरै पितारो नाम राजा सिद्धार्थ अर माता रो नाम महाराणी त्रिसलादेवी हो ! अाप इक्ष्वाकुवंसीय काश्यप गोत्रीय क्षत्रिय हा । आपरा माइत अर मामा (चेटक) भगवान पार्श्वनाम घरमसासन री परम्परा नै मानवानाळा हा । सुभ सुपना जब भगवान महावीर माता त्रिसला रै गरभवास में आया तो त्रिसला चवदह दिव्य अर उत्तम सुपना देखिया । सपना देख राणी नै घणो खुसी हुई। वीं रो रु-रु हरख भर उमाव सू भरण्यो । उगीज वगत वा उर राजा सिद्धार्थ कनै गई। वान खुसी-खुसी प्रापण सुपना री बात सुरगाई। राजा सिद्धार्थ राणी रा सुपना सुण राजी हुया! दिन उगताई राजजोतसी नै बुलार सिद्धार्थ राणी रं देत्योडा सुपनां रो फळ पूछियो । राजजोतसी न्तायो के इणां सुन सपनां तूं मालम व्है के राणी त्रिसलादेवी भागसाळी पुत्र री माता वर्गणमाळी है। इणारं जो पुत्र हुनेला १. उबदह सुपना रा नाम इण भांत है (१) हारी (२) बळद (३) ना'र (सिंह) (४) लिछसी (५) फूलारी मका (६) चन्दरमा (७) सूरज (८} ध्वना (8) कळस (१०) पदमसरोवर (११) क्षोर सागर (१२) विमान (१३) रतना रो हेर (१४) निरघूम भाग। दिगम्बर परम्परा सोलें सुपना मान । ७) यूरज (MR) (४) लिमी । बरोबर (१११ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ वो या तो तीर्थंकर वला या चक्रवर्ती सम्राट श्री वाळक' श्राप कुळ, वंस अर राज में सें भांत री सुख समृद्धि में वढोतरी करसी । सुपना रो फळ सुख राजा-राणी समेत सगळो राज - परिवार हरखियो । महावीर गरभ में प्राया जद सूई राजा सिद्धार्थं रै खजाने मे बढ़ोतरी हुवरण लागी । चारुं कांनी सूं खुमी र उन्नति रा आछा समाचार आवरण लाग्या । त्रिसला र सिद्धार्थ सोचियो के प्रो सब पुण्य परताप गरभ में आयोड़े बालक रो इज है | जद बाळक जनमेला, आपां वीरो नाम वर्धमान राखांला । माता रै प्रति भगति : महावीर जद माता त्रिसला र गरभवास में हा, बांरै मन में विचार प्रायो के म्हारे हलरण चलण सूं माता ने कित्तो कष्ट हुवै । जै हूँ आ हलचल री किरिया बन्द करदू तो माता ने धरणो आराम मिलला । श्रा सोच र महावीर गरभ में प्रापणो हिलगोहुलरणो बंद कर दियो । बाळक रो हालणो- चालरणो बंद हुवतो देख माता त्रिसला धरणी घवरायगी । वां ने लाग्यो के गरभ रो बाळक या तो मांदो है या कोई बेजां हरकत होयगी है । वा दुखी हुय'र भांत - भांत सू विलाप करण लागी । राजा सिद्धार्थ राणी री व्यथा समभंग्या । राजा-राणी ₹ ईं दुख सू' सगळो राज परिवार उदासहुय' र चिन्ता में डूबग्यो । महावीर आ हालत जारगर आप हलरण - चलण री किरिया पाछी सरु कर दी, तद जा'र राणी रै जीव में जीव आयो । महावीर मन माय सोच्यो - म्हारे कुछेक क्षणां रं वियोग सू मा नै कित्ती दुख हुयो | जद म्ह्णू संसार छोड र दीक्षा लूगा तद मा रो कांई हाल हुवेलो, वां ने कित्ती पीड़ा हुवैली ? यू' सोचता- सोचता मां ₹ प्रति स्नेह भाव सू ं भीग्योड़ा महावीर गरभवास में इज या प्रतिज्ञा करली के जठा ताई मां-बाप जीवता रेवेला म्ह वरणां री सेवा करू ला उणारं आंख्यां सामै घरवार छोड' र संजम नी लेऊ' ला । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनम: ईसा सू५६९ बरसा पैली चैत सुद तेरस रै दिन राणी विसला एक रुपाळ गुणवान पुत्र नै जनम दियो। पुत्र जनम रा समीचार सुरण राजा पर प्रजा सै घणा हरखिया। इण खुसी में राजा सिद्धार्थ जेळखाना रा सगळा कैदियाँ नै सजा में छूट दी। गरीबां ने खूब दान-दक्षिणा दीवी। नगर रा मकान, गलियां, चौराया, भांतभांत सूसजायागया। भांत भंतीला खेल तमासा अर नाच-गाणा हुया । जनम रो मोछब घणे हरख अर उमाव सूमनायो गयो। वामकरण: भगवान महावीर रै जनम रै बारह दिन पछ राजा सिद्धार्थ एक बहोत बड़ो जीमण करियो । ई मांय आपण सगळा रिसतेदारां, मित्रां पर जाति भाइयों ने बुलाया। घरण आदर मान सू सगळा नै भोजन जिमायो अर पछै एक बड़ी सभा बुलाई। सभा मांय सिद्धार्थ बोलिया-जद सूओ बाळक त्रिसलादेवी रै गरभ में पायो वद सू धन, धान अर राजकोष में घणी बढोतरी हुई। ई खातर ईण भागसाळी पुत्र रो नाम वर्धमान राखणो चाइज। आयोड़ा से पावरणापाई नै 'यथा नाम तथा गुण' होवरण सू ओ नाम घणो दाय आयो। परिवार: वर्धमान आपणे माइतो री तीजी संतान हा । इणारे नंदिवर्धन नाम रो बड़ो भाई अर सूदर्शना नाम री एक बैन हो। वर्तमान रा मामा चेटक नैसाली गणराज्य रा. अध्यक्ष हा। इणों र दस पुत्र अर सात पुत्रियां ही। सबसू बड़ा पुत्र सिंहभद्र हा । वी वज्जीगण रा प्रधान सेनापति हा। इण भांत वधमान । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ पारिवारिक रिश्तो 'ग, मगध, अवंती सू' लै'र सिन्धु-सोवीर देश राघरा राजपरिवारां सूं जुड़ियोड़ो हो । वर्धमान महावीर : सू वाळक वर्धमान रो पाळण-पोषण घरणा ठाटवाट सू हुयौ । श्ररणा र चारुकांनी सुख-सुविधा पर ग्रामोद-प्रमोद रा घरणा साधन हा | महाराणी त्रिसला खुद ग्राप हाथ सू इणांरो लालरण - पाळण करती ही । वर्धमान रो सरीर गठ्योड़ो र कान्ति सू दमकतो हो । इरणा रै मुखमण्डळ पर घरणो तेज हो । ज्यू ज्यू बाळक वर्धमान उमर में वधवा लागा त्यू - त्यूां धीरता, वीरता श्र ज्ञान री गरिमा परण वधवा लागी । श्रापणं बुद्धिवळ, विनय अर विवेक सू ं आप लोगां रा दिल जीत लिया। आप कदैई किणी रा दिल कोनी दुखावता र सदा सांत भांत सू' रैवता | वर्धमान जनम सूई अनन्त वळ रा धरणी हा । एकदा शकेन्द्र आपणी देवसभा में वर्धमान री चरचा करतां को कै- राजकुवर वर्धमान बाळक हुवता थकां भी धरणो पराक्रमी र साहसी है। कोई मिनख, देवता र राक्षस वीने नी तो हरा सके अरनी डरा सकै । आठ वरसां रै छोटे से बाळक रं बळ अर पराक्रम री इतरी बड़ाई सुरगर एक देवता नै रोस प्रायग्यो । वो वर्धमान री परीक्षा लेग खातर त्यार हुयी। वो सांप रो रूप बरणा'र जठे वर्धमान आपण गोठड़ा सा रूख पर चढ़रण- उतरण रो खेल खेलरिया हा, बठे पोंच्यो र उरगीज रूख सू ं लिपटग्यो । वर्धमान रा सगळा साथी सरप नै देख' र डरग्या । वे अठी उठी भागवा लागा । सांप फरण ऊंचा 'र फूंकाड़ा मारवा लाग्यो । वी आपण गोठीड़ा नै कैवरण लाग्या - डरपोमती, सान्तरैव । हे अवार ई नै पकड़' र छैटी छोड़ दूंला । वी सरप ने पकड़बा खातर वीके नैड़े गया। सरप जोर सू झपटो मारियो पण बहादुर वर्धमान वीने रस्सी दाई' पकड़' र छैटी कांकड़ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८. में छोड़ श्राया । वर्धमान री बहादुरी नै देख सगळा साथी भरणा राजी हुया । 1 जद वर्धमान देव र सरप रूप सूं नीं डर्या तो देवता फेरु परीक्षा लेवरण री सोची। वो बाळक रो सरूप बरगाय ने वर्धमान री टोळी में चाय मिल्यो । हार-जीत रे ई खेल में हार्योड़ो बाळक जीत्योड़े बाळक नै प्रापरं कांबा पर बैठा'र ते करयोडी ठौड़ ताई लैजावतो । देव बाळक टाबरां सागै खेलग लागो । खेल में वो हारग्यो । नियेम मुताबिक वीरी वर्धमान ने कांधा पर बैठावरण री बारी आयी । देव वाळक वर्धमान नै आपर कांधा पर बैठा'र चालबा लाग्यो । चालतां - चालतां देव ताड़ जितरो ऊ चो- व्हैग्यो और विकराळ रूप धारण कर र वर्धमान नै डराबा-धमकावा लाग्यो । देव रो डरावणो सरूप देख' र सें साथीड़ा डरग्या । पण आतमबळरा धरणी वर्धमान तो नाममातरइ कोनी डर्या । वरणां छद्मवेषधारी देव री पीठ माथै एक मुक्की मारी । मुक्की मारताई वो हेठे बैठग्यो । । देव असल रूप में प्रगट हो' र राजकुवर वर्धमान र साहस अर बळ री घरणी बढ़ाई करी । आठ बरसां री उमर में अद्भुत वीरता र कारण इज वर्धमान महावीर नाम सू प्रसिद्ध हुया । चटसाल कांनी : वर्धमान जनम सूई मति, श्रुति र अवधिज्ञान रा घणी हा । एक दिन सुभ घड़ी देख माइतं वां ने पढ़वा खातर चटसाळ मोकलिया । वर्धमान माइतां रो करणो मानरणौ अर गुरू रो आदर करणो आपणो फरज समझता हा । वां कदे भी आप ज्ञान रो दिखावो नी करियो । चटसाळ में गरुजी रे सामै वर्धमान विनीत चेला रो दाई बैठ्या । पैलड़े दिन गरुजी वां ने वरणमाळा, रो पैलो पाठ पढ़ायों । कुमार रै जनमजात ज्ञानी हुवरण री बात नीं माइत जाणता हा अरनी गरुजी । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ महावीर नै चटसाळ जावता देख इन्द्र तिळकधारी पंडित रो रूप वरणार चटसाळ कांनी आयो। पंडित र सरीर सू ब्रह्म तेज टपक र्यो हो । इसो लखावतो के भो तो कोई मोटो ऋषि है। ऋषि प्रायर वर्धमान रे पगां पड़ियो। वांसू सास्त्र पर व्याकरण रा घणखरा टेढ़ा-मेढा सवाल पूछिया। वर्धमान तुरत-फुरत सगळा जवाव प्राच्छी तरैऊ दे दिया। वर्धमान रोप्रो ज्ञान देख इन्द्र गरुजी ने कह्यो-प्रो वाळक घणो बुद्धिमान पर अवधिज्ञान रो धारक है । ई नै साधारण ज्ञान देवरण री जरूरत कोनी। आ सुरण गरुजी समेत पूरी चटसाळ रा वाळक वर्धमान र चरणों में झुक्रग्या। राजा सिद्धार्थ जद आ बात सुणी तो वी पण नेह सू गळगळा व्हंग्या । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - | विवाह पर वैराग वर्धमान बाळपणा सूई गंभीर प्रकृति राहा । वां ने संसार रा राग-रंग चोखा नी लागता । वी प्रापणी व्यारुमेर री राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक समस्यावां र चिन्तन में लीन रैवता | वी चिन्तन में इत्ता गहरा डूब जावता के वां ने नी भूख लागतो, नी तिस । पिता सिद्धार्थ र माता त्रिसला वर्धमान है इस गंभीर अर सांत सुभाव नै पळटणौ चावता हा । ई खातर वरणा वर्धमान रो ब्याव करण री सोची । परण वर्धमान व्याव करणो नीं चावता | वी तो संयम रं मारग पर वढरणौ चावता हा । ई कारण व्याव रै प्रस्ताव नै वी बार-बार नामंजूर करता । वर्धमान री विरक्ति देख एक दिन माता त्रिसला घरणी दुखी हुई। मां ने दुखी देख वर्धमान ब्याव रो प्रस्ताव मंजूर कर लियो । समरवीर महातामन्त री बेटी जसोदा रै सागे वर्धमान रो व्याव हुयो । उरगांरै एक कन्या पर हुई जिरो नाम प्रियदर्शना हो । इरो व्याव जमालि सारौ हुयो । सांसारिक मोह माया में महावीर नीं उलक्ष्यावी ई जीवन नै काम, क्रोध अर विषय-वासना र कीचड़ में कनळ री दांई सुद्ध र पवित्र राखणो चात्रता हा । भोग नीं योग : महावीर रै चारुकांनी घरगखरी भोग-सामग्री बिखरी पड़ी ही । माइतां री ममता, भाई नन्दिवर्धन रोहेत, श्रर पत्नी जसोदा १ - दिनम्बर परम्परा मुजब महावीर व्याव नीं करियो । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रो प्रेम नितहमेस वणा पर वरसतो हो, पण फेर भी महावीर रो मन उणां मे रम्यो कोनी । वणारी प्रातमा बाहरी भौतिक सुखां में मुख रो अनुभव नी करती। वा तो जीवन रे सांचा सुखां री खोज में लाग्योड़ी ही । उरण समै मिनख आपण सुत्रारथ खातर बीजा प्राणियां नै तकलीफ देवता हा, धरम रै नाम पर घणखरा अंधविसवास समाज मे फैल्योड़ा हा। चारूंकांनी दुखी मानखा रो हाहाकार हो । महावीर रो हिरदय आ दसा देख पसीजग्यो । वां प्रो निश्चय करियो के म्हन इण मायावी संसार सूऊपर उठणो है, दुखी मिनखां रो दुख मिटावरगो है। ई दुख नै मेटण सारुपातमवळ री जरूरत है अर प्रो आतमवळ त्याग रै मारग नै अपराया बिगर कोनी मिल सके। माता-पिता रो वियोग : जद महावीर अट्ठाइस बरस रा हा, वां रा माता-पिता देवलोक हया । वर्धमान नै आपणां मां-बाप सू घगो हेत हो। फेर भी वणां रोवणो-कळपणो नी करियो। वी आच्छी तरेऊ जाणता हा के प्रो सरीर नासवान है। उपरो मरणो-मिटणो वांक वासतै कोई इचरज नी हो। माता-पिता रै देवलोक हयां पछै महावीर री गरभवास में करियोड़ी प्रतिज्ञा पूरी व्हग्यी ही। अवै वणा रै मन में दीक्षा लेवरण री भावना जागी । वां आपण बड़े भाई नंदिवर्धन रै सामै अापण मन री वात राखी।. छोटे भाई रै संजम लैण री वात सुरण एकर तो नंदिवर्धन रो काळजो काप ग्यो। वी गळगळा हो'र वोल्या- माइता रै विजोग दुख नै हाल पापा भूल्या कोनी अर अवै थां भी संजम लेय नै म्हनै एकलो छोड़णो चावी । मो समै थारै योग कांनी बढ़ण रो कोनी, थोड़ा औरुं रो। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ भाई री बात मान र महावीर दो वरस तांई श्रीरु' घर मे रवण रो ते करियो । इग दो वरसां में महावीर भोग-विळास सू अळगा रेय' र आत्मचिन्तन करियो । दाता रे रूप में : संजम लेग रै एक वरस पैलां सूं महावीर जरूरतमंद लोगां में आपरणी संपत्ति बांटणी सरु करी । वी नितहमेस एक करोड़ पाठ लाख सोना रा सिक्का दान में देवता । वी नी चावता के धन किणी एक ठोड़ एकठो हुवतो रे । धन समाज री सम्पत्ति है । उणरो उपयोग समाज खातर हुवण में इज गरी सार्थकता है । संजम है पथ पर : ' दो वरस पूरा हुयां पर्छ वर्धमान भाई नंदिवर्धन पर चाचा सुपार्श्व रै साम्हे दीक्षा अंगीकार करण रो प्रस्ताव राखियो | दोन्यू राजी राजी वर्धमान ने प्रव्रज्या अंगीकार करण री आज्ञा दीवी । वर्धमान र दीक्षा लेवण रा समीचार विजळी री दांई सगळा कानै फैलग्या । दीक्षा मोछव री धरणी त्यारिया हुई । मिगसर वद दसम रै दिन राजकुंवर वर्धमान मेहलां सू चन्द्रप्रभा नाम री पाळकी में विराज र ज्ञानखण्ड बाग में गया । वा रै पाछे - पाछै हजारां-लाखां लोग लुगाई मंगळ गीत गावता चाल्या । इण मोछव नै देखना खातर देवता भी धरती पर आया । सुपार्श्व पर नंदिवर्धन भी सागे हा वडेरा वर्धमान ने श्रासीसां टीवी | वर्धमान पाळकी सू उतर अशोकव्रक्ष रे नीचे गया । वठे वरणा गिरस्ती रा गाभा उतार निग्रन्थ रो रूप धारण करियो । सब Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ संकल्प रा धरणी महावीर रो ध्यान तिळ भर भी नीं डिगियो । उमंगों रो क्रम ग्रागे बढतो ई । एक भूखो तिरसो टाऊ प्रायो । यो नख मिटावण मारू खारगो वरणावरणो चावतो हो । बीड चुल्हो निजर नी आायो । वी ध्यान में लीन ऊभा महाबीररावां मूं चूल्हा से काम लेयर खारणो वरणा लियो । इण घोर पीडा मूं भी महावीर रा ध्यान भंग कोनी हुयो । एकइ रात में धान्व उपसर्गो सू महावीर री साधना रो तेज ग्रीरू निखरग्यो । नूई चेतना सू भर र दिन उगे वरणां आगे कदम बढ़ाया । पण संगम हाळताई महावीर से साथ कोनी छोडियो । उरगां नै यो तकलीफ देवण खातर वो भी उरणारं सागे-सागे चालियो । एकदा तो लगाव रे बाग में महावीर ध्यान मगन हा । उणां नै ध्यान मगन देख संगम साधु से भेस वगार गांव में चोरियां करण नै गयो ! लोगां वी ने पकड़' र मारियो - कूटियो । वो बोल्योम्हने मती मागे । है तो म्हारै गुरु र केवरण सू चोरी करी है । जै ₹ थां ग्रमली चोर ने पकड़नो चादो तो वाग मे जावो । वठे म्हारो गुरु ध्यान से मांग वणा'र ऊभी है । लोग बाग में जा' र प्रभु पर लकडियां घर लाठिया मूं वार करिया, परण महावीर डौल वरण'र ध्यान में लीन रह्या । इरण भात सगम देव छह महिना नाई महावीर रै पाछे पड़ियौ यौ र उपसर्ग देवतो । इण उपसर्गा मे महावीर नै ग्रन्नपाणी भी नी मिल्यो । संगम देख्यो के इतरा कष्टां सू भी महावीर ग्रापणं ध्यान सू अळगा नी हुया तो उरणारी साधना सू प्रभावित रे हु'र वो महावीर रैपगां पड़ियो र वासू माफी मागी । महावीर ₹ मन में कष्ट देवगिया संगम रै प्रति नी रोस हो अर नी द्वेष । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर री इण क्षमा भावना नै देख संगम लाजां मरग्यो अर मन ही मन खुदरी आत्मा नै धिक्कारबा लाग्यो। कुलथ सूपारणो : गांव-गांव विचरण करता हुया महावीर वैसाळी पधारिया। चौमासो अठेइ पूरो करियो । पारणा रै दिन भिक्षा खातर महावीर पूरण सेठ रं घरां गया । द्वार पर महावीर नै ऊभा देख सेठ उणां री उपेक्षा करीअर दासी सू कयो के वारै भिक्षु ऊभो है। वीन भिक्षा देय दे। दासी एक कुडछो भर'. कुळथ प्रभु ने दिया । महावीर उणा कुळथ सूचातुर्मासिक तप रो पारणो कियो। बारमो बरस : चमरेन्द्र नै सरण : ___ महावीर सुन्सुमारपुर वन खंड में असोक वृक्ष र हेठ ध्यान लीन हुया। एकदा चमरेन्द्र (अमुरकुमागं रो इन्द्र) आपण ज्ञानबळ सूदेखियो के-इरण संसार मे म्हारै सूधनवान अर वळवान कुरण है । बीनै इन्द्र दिव्य भोग भोगतो निजर पायो । यो देख चमरेन्द्र रो किरोध बधग्यो । वी आपणै साथी असुरकुमारां नै पूछियोओ विवेकहीन घमण्डी देव कुग है ? असुर कुमार व यी के ओ तो सौधर्मेन्द्र देव है, पर आपणे सूबत्ती ताकतवर है । ईसूछेड़छाड़ करणो प्रापणी जान जोखम मे नाकरणी है। ___ चमरेन्द्र असुरकुमारां री मजाक वणावतां बोलियो-था सव कायर हो, म्हूं किणी नै म्हारै माथा पर बैठ्यो देख नी सकू। अबार वीकी टांग पकड़'र वीं ने आपण पासण सूकाई देवलोक सू हेठे पटक टूला । चमरेन्द्र रा रोस भरिया सवद सूण देवराज इन्द्र नै परण रोस मायग्यो । वां सिंहासरण पर बैठ्या-बैठ्या वज्र हाथ में लेयर Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चमरेन्द्र रै दे मारियो । वज्र आग उगलतो थको चमरेन्द्र कांनी आवा लाग्यो । वीनै देख असुरराज डरपग्यो । वो ध्यानस्थ भगवान रैकन जाय उरणार पगां में पड़ियो अर कवा लागो-भगवान म्हने शरण दो। देवराज इन्द्र अवधि ज्ञान सूदेखियो के चमरेन्द्र प्रभु महावीर रे चरणों में पड़ियो है । कठे म्हारै छोड्योड़े इण वज्र सू भगवान ने तकलीफ नी हवे, या सोच वो भगवान रै कनै पायो पर बम चार पांगळ दूरी मवज्र नै पाछो पकड लियो। भगवान रे चरणासरणा में होवरण सू देवराज इन्द्र चमरेन्द्र नै माफ करियो। कठोर अभिग्रह : सुन्सुमारपुर, भोगपुर नन्दिग्राम, मेढ़िया ग्राम होता हुया प्रभु महावीर कोसाम्बी पवारिया । अठ पोस वदी एकम र दिन महावीर एक कठोर अभिग्रह धारियो-छाजळे रे कूणे में उड़द रा वाकुळा लियां देहरी रै वीचे कोई राजकुवरी दासी वणियोड़ी ऊभी हुवे । वीके हाथों में हथकडियां पर पगां मांय वेड़ियां हुवै । माथो मूडियोड़ो हुदै । पाख्या मांय आँसूअर होठां पर मुळक हुदै । वीक तेला (तीन दिन री भूखी) री तपस्या हुवै । भिक्षा रो समय बीतग्यो हुदै । अड़ी वगत इसी कवारी राजकन्या म्हनै भिक्षा देवला तद म्ह' आहार करूंला पर नी तो छह महिना ताई भूखो रेऊ ला। श्रा कठोर प्रतिज्ञा ले'र महावीर नित हमेस भिक्षा खातर जावता । पर अभिग्रह पूरो नी हुवरण रै कारण विना काँई लियां पाछा पाय जावता । लोग अचभा मे हा के महावीर आहार कांनी लेवै ? इण नगर में इसी काँई कमी है, कांइ बुराई है, जिसू भगवान विना अन्न-पाणी लियां पाछा-पाछा फिर जावै ? इण भांत बिना पाहार करियां पांच महिना पर पच्चीस दिन बीतग्या। अचाणचक Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के दिन भिक्षा ले वरण नै प्रभू धन्ना सेठ रै घरै गया । वठे राजकंवरी चन्दणबाळा तीन दिन री भूखी-प्यासी छाजळे में उड़द रा बाकुळा लियां देहरी में ऊभी-ऊभी मुनिराज नै आहार देवा री शुद्ध भावना भाय री ही (सेठाणी मूळा ईर्ष्यावश चन्दन बाळा रा केस कतराय, हथकडियां अर बेड़ियां पैराय, उणनै भूवार में बंद कर राखी ही।) प्रभु महावीर नै भिक्षा खातर आवतां देख वा घरणी राजी हुई । वीको रू-रू खुमीऊ भरग्यो । अभिग्रह री सगळी वातां मिल री ही। बस, एक बात री कमी ही। वीरी ऑख्यां में आंसू नी हा । आ कमी देख आयोड़ा महावीर बिना अन्न-पाणी लियां पाछा फिरग्या। आपणै बारण आयोड़ा महात्मा नै खाली हाथ जावता देख चन्दणा रो जीव उदास व्हैग्यो । वीरी खुसियां पर पाणी फिरग्यो । वा सोवरण लागी-- म्हूं कितरी अभागण हूं। संसार-समुद्र सू तारबा आळा प्रभु म्हनै मझधार में छोड़'र चल्याग्या । इण मुसीबत मे नाता-रिस्ता आळा लोगा तो म्हनै बिसराय दीवी ही । म्हूं तो प्रभु महावीर र आसरै ईज दिन काट री ही । म्हनै तो पूरो भरोसो हो के प्रभु म्हारै हाथां सूौं आहार ले'र म्हारो उद्धार करैला । पण हाय ! इस खोटा समय मे भगवान भी म्हनै भूलाय दी । आ सोचतां-सोचतां वींकी आंख्यां पासूां सभीजगी। महावीर पाछे मुड र देखियो। चदन बाळा री आंख्यां में प्रांसू हा । महावीर नै भिक्षा खातर पाछा मुड़ता देख, वीरी उदासी मिटगी। ओठां पर मुळक आयगी । सै बातां मिलती देख महावीर चन्दण बाळा रै हाथा सू पाहार लियो। इणरै सागै इ चन्दणा रो सकट टळग्यो। महावीर नारी जाति रो उद्धार करणो चावता हा । समाज में नारी नै इज्जत देवरण खातरईज महावीर इसो कठोर अभिग्रह धारियो । प्रभु महावीर कयौ-पुरुष री भांत नारी नै भी साधना रे Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ मारग पर वढण से पूरो अधिकार है । चन्द्ररणा महावीर री पैली शिष्या अर साध्वी संघ री प्रमुख वरणी । कानां में कीला : साधना काळ रैतैरमां वरस र सरुप्रात मे महावीर छम्मारिण गांव वा'रै ध्यान मे ऊभा हा । सांझ एक गवाळियो वळदां नै महावीर कनै छोड' र किरणी काम सूं प्रापणे गांव गयो । पाछो प्राय जद वी प्रापरणां वळदा नै जोया तो वी नी मिल्या । गवाळियै महावीर सू पूछियो - म्हारा वळद कठै गया ? महावीर तो आतमचिन्तन में लीन हा । वी की नी बोलिया । महावीर ने मौन देख गवालियै नै रीस ग्रायगी। वो बोल्यो - ढोगी बावा ! तुम्हारी बात सुरग्य है के नी ? कठं तू बहरो तो नी है ? परण महावीर की उत्तर नी दियो । गवाळियै रो किरोध श्रोरू बढ़ग्यो । वीं कनै पडियोड़ी तीखी सळाका उठा'र महावीर रै कानां में आरपार ठोक दीवी । डग सळाका - छेदणा मूं महावीर ने घणी वेदना हुई। पर ई परीसह नै वी सांत भाव सू सहन करताय । छम्मारण गांव सू विहार कर'र महावीर मध्यम पावा पधारिया । अठा सू भिक्षा खातर घूमता-घामता सिद्धारथ नामक वणिक रै घरै श्राया । इरण वगत सिद्धारथ से मित्र खरक वैद्य परण ग्रहो । प्रभु नै प्राया जारण खरक वैद्य वां नै वन्दना करी । वीं देख्यो के महावीर से चेहरो अपार तेज सूपं चमक है पर ग्रांख्या में गहरी वेदना झळकै । खरक भांपग्यो के भगवान र सरीर मे सळाका चुभरी है । ग्राहार लेवती वगत बी भगवान रे सरीर नै देखियो । बी नै झटठा पड़गी के प्रभु रे कानां में किणी कीला ठोकिया है । दोन्यू मित्र प्रभु सू रुकरण सारु अरज करी पण महावीर रुक्या कोनी | वी पाछा गांव रै बा'रै जाय ध्यान में लीन हुयग्या । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ सिद्धारथ पर खरक दवा लेय महावीर जठे ध्यानमगन हा, बढ़ गया। वठे पोंच'र वां देख्यो कै असह्य वेदना हुयां पारण भी महावार सात भाव सूध्यान में लोन है। खरक संडासी सूसळाका खैच'र बारै काढ़ी। सळाका रै सागै लोही री धारा बैवरण लागी। साधक जीवन री आ आखरी वेदना ही। कानां री सळाका बा'र निकलण स महावीर बाहरी दुखां सूईज मुक्त नी हुया । अब वी साधना रै इत्तें ऊंचै सिखर पर चढ़ग्या हा के वी सदा सर्वदा खातर आन्तरिक दुखा सूभी मुक्त हुयग्या। महावीर री तपस्या : छमस्थकाळ रै साढ़े बारा वरसां रै लम्बे समय में महावीर तीन सौ उनचास दिनां इज अाहार ग्रहण करियो। बाको रा दिनां में बिगर अन्न-पारणी लियां वी कठोर तपस्या करता रया । महावीर री प्रा तपस्या सब तीर्थकरां सूघरणी कठोर पर बेसी ही। इण री तालिका इण भांत हैछह मासिक तप-१ (१८० दिनां रो) पांच दिन कम छह मासिक (१७५ दिनां रो) तप-२ चातुर्मासिक तप-६ (१२० दिनां रो एक तप) तीन मासिक तप-२ (६० दिनां रो एक तप) सार्ध द्विमासिक तप-२ (७५ दिनां रो एक तप) द्विमासिक तप-६ (६० दिनां रो एक तप) सार्ध मासिक तप-२ (४५ दिनां रो एक तप) मासिक तप-१२ (३० दिनां रो एक तप) पाक्षिक तप-७२ (१५ दिनां रो एक तप) भद्र प्रतिमा-१२ (२ दिनां रो एक तप) महाभद्र प्रतिमा-१ (४ दिनां रो एक तप) पर्वतोभद्र प्रतिमा-१ (१० दिनां रो एक तप) Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ सोलह दिनां रो तप-१ अष्टम भक्त तप~१२ षष्ट भक्त तप-२२६ (३० दिनां रो एक तप) (२ दिनां रो एक तप) इगर अलावा महावीर दसम भक्त (चार दिन रो उपवास) आदि घणी तपस्यावां कीवी । वां री तपस्या निरजळ (बिगर जळ री) हुवती, अर ध्यान साधना री उणमें खासियत रेवती। मूल्यांकन : भगवान महावीर रै साधना रोप्रो लम्बो समय वां री अग्नि परीक्षा रो कठोर समय हो । साढ़ा बारा वरसां में वांकी सहनशक्ति, समता, अहिंसा, करुणा अर ध्यानलीनता री अंडी कठोर परीक्षावां हुई के वां री कल्पना सू इज मन थर-थर कांपवा लाग जावे। साधक जीवन में महावीर नै जे उपसर्ग मिलिया वी एक तरफो हा । महावीर उणां रो कोई प्रतिकार नी कियो । यू तो किगेध सूकिरोध री अर अहङ्कार सूअहवार से टक्कर हुवे, पण श्रमण महावीर तो सब विकारां सूअळगा हा, मुक्त हा । वां किरोध नै क्षमा सूमर अहङ्कार नै समभाव सूजीतियो। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ केवलीचर्या केवलज्ञान । महावीर री साधना रै तैरमे बरस रो सातवो महीनो हो । वैसाख सुद दसमी रो चौथो पहर । महावीर जभिय ग्राम रे बारे ऋजुबालुका नदी रै किनारे स्यामाक नाम रै गाथापति रै खेत में साळ रुख रै हेटै ध्यानमगन हा। बांके दो दिनां रो निजळ उपवास हो । इणीज ध्यान मुद्रा में भगवान नै केळवज्ञान री प्राप्ति हुयी। अब वी प्रत्यक्ष ज्ञानी बणग्या । सगळा लोक रै जीवां-अजीवा री सब पर्याया नै देखबा पर जाणबा री खमता वांमें पायगी। महावीर री केवळज्ञान सू पैलां री साधना आतमकल्याण री साधना ही। अब लोककल्याण री भावना वाँकै मन में आई। प्रबार तांई प्रातमदरसण खातर वी मून राख'र सूनी ठौड मे ध्यान पर तप करता हा । अब वानै कठोर साधना रो फळ मिलग्यो हो । वांनै आतम साक्षात्कार हुयग्यो। अब वी जातपात रो भेदभाव मेट'र वासना अर दासता री बेडिया सू मिनखां नै मुक्त करर आजादी रो वातावरण देणो चावता हा। महावीर री अनन्त करुणा अर भाईचारा री भावना वांनै संसार रो कल्याण करण री प्रेरणा देय री ही। ग्यारह गराधर केवळज्ञान पाम्या पछै महावीर मध्यम पावा पधारिया । अठ आर्य सोमिल एक बहुत बड़ो यज्ञ रचियो। बड़ा-बड़ा पंडित यज्ञ में Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रायोड़ा हा। यज्ञ रो में काम इन्द्रभूति जिसा वेदान्त पडित र हाथां मे हो। वैसाख सुदी ग्यारस रो मंगळ परभात हो । देवता एक बड़े समवसरण ( सभागृह ) री रचना करी ॥ उण समवसरण में भगवान जनता नै उपदेश देणो सरू करियो। वारी अमरत वाणी सुग से जण हरख अर उमाव सूभरग्या। महावीर री वाणी मुणवा खातर पाकास मारग सू देवगण भी पाया हा । या देख इन्द्रभूति गौतम नै पापणी विद्वता पर आंच श्रावती सी लागी। महावीर नै उणीज नगरी मे आया जाण वा प्रभ रै अलोकिक ज्ञान री परख करवा पर सास्त्र ज्ञान में वांनै हरावण रै भाव सूउण समवसरण मे पाया । वारै सागै पांच सौ चेला अर बीजा पडित पण हा । इन्द्रभूति गौतम जिण समय समवसरण में पहुंचिया, वार मन मे महावीर बदळो लेवण री भावना उमड री ही । वां उठे पौंच'र महावीर कानो देखियो । वान लागौ के महावीर री प्रांख्या यूप्रेम र मित्रता री अमरत वरवा वैयरो है।। इन्द्रभूति नै आवता देख महावीर वोलिया-गौतम ! था आयग्या ! गौतम नै लाग्यो-महावीर री वाणी में प्रेम, अपणायत अर मित्रता रो भाव है। वारै मन में उठी बदळ री भावना सांत हुयगी। महावीर रै भूडा सूअापणो खुदरो नाम सुण गौतम नै घणो अचम्भो हुयो। वी सोचण लाग्या-म्हारी ज्ञान री चरचा सगळी जगां है, ई खातर महावीर म्हारै नाम जाणता वेला । पण जठा ताई म्हारै - १ दिगम्बर परम्परा मुजब भगवान महावीर री पैली देसना राजगृह र विपुलाचळ पर सावरण वदी एकम र दिन हुई। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ मन में उठयोड़ा सवाला रा जवाब वी नी देला, बठा ताई म्है प्रणा नै सर्वज्ञ नी मानूला। गौतम रै मन री आ भावना जाण महावीर बोलियाआयुस्मान गौतम ! थांन प्रातमा रै अस्तित्व पर संका है। यां सोचरया हो के पातमा (जीव) नाम रो कोई तत्त्व है या नी ? गौतम आतमा रो अस्तित्व है । वा प्रांख्यां सूकोनी देखी जा सके। प्रातमा इन्द्रिय ज्ञान सू परै अनुभव री वस्तु है। महावीर कैवता जायऱ्या हा-इन्द्रभूति ! तत्त्व नै तर्क सूसमझो, अनुभव सूजाणो अर हरदय सूबीन मंजूर करो । थां खुद विद्वान हो । थानै बत्तो कैवण री जरूरत कोनी। __ महावीर रा प्रेम भऱ्या सबद सुरण इन्द्रभूति री सै संकावां मिटगी। वारो अहंकार गळग्यो । वी विनय भाव सूकैवरण लाग्याभगवन् ! आज म्हारै भरम रा मैं आवरण दूर व्हैग्या । आप म्हनै सांचो रास्तो बतावरण आळा हो । म्हूं आज सूआपनै म्हारा गुरु मानू हूं। म्हनै आप रै सरणा में राखो पर आतम साक्षात्कार करण रो गैलो बतावो। ज्ञान रा प्यासा, सांच रा इच्छुक इन्द्रभूति महावीर रा शिष्य बरणग्या । वार साग वांरा पांच सौ चेला भी महावीर रै चरणों में दीक्षा ग्रहण करी ।। इन्द्रभूति गौतम रै दीक्षित होणे रा समीचार विजळी री दाई सब ठौड़ फैलग्या । सोमिल रै यज्ञ में तहळको मचग्यो । वेदान्त पंडित अग्निभूति पर वायुभति परण महावीर ने आपण ज्ञानबळ सू पराजित करण री भावना सू भगवान रै कनै प्राया, पण नड़े आवतां-आवतां वांरो अहंकार चूर-चूर व्हैग्यो। प्रभु महावीर सूप्रापरणी सकावां रो समाधान पार वै भी भगवान रा शिष्य बरणग्या। शिष्य इण भात आर्य व्यक्त, सुधर्मा, मंडित, मौर्यपुत्र, प्रकम्पित, अचळाभ्रता, मेतार्य पर प्रभास जिसा पंडित महावीर ₹ चरणां में दीक्षा लीवी । महावीर रा औ पैला ग्यारह शिष्य गणधर कहीजै । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ धरम संघ री थरपणा : ___ मध्यम पावा री पैली धरम सभा मांय ईज इग्यारे बड़ा वडा विद्वान अर उरणारा चार हजार चार सौ शिष्य, भगवान महावीर रै कनै प्रवजित हुया। आ एक बडी इचरजकारी घटना ही। इण भांत भगवान महावीर र उपदेसा सूप्रभावित हुयर कई राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार, अर वोजा घणाई लोग-लुगाई महावीर रा शिष्य वरिणया। भगवान मिनखां नै थ न धर्म पर चारित्र धर्म री सीख देयर साधु. साध्वी पर श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ री थरपणा करी । इण व्यवस्था नै प्रभु दो भागों में बांटी। एक पूरो त्यागी वर्ग अर दूजो आंशिक त्यागी वर्ग । पूरो त्याग करणिया साधु अर साध्वियां रो न्यारो-न्यारो सघ बगायो । इपीज भांत आंशिक त्यागियां मांय भी श्रावक अर श्राविका रो न्यारो-न्यारो संघ कायम कियो। घरवार छोड़'र पांच महावतां रा पाळण करणिया नर-नारी श्रमण पर श्रमरणी कैवाया पर गृहस्थी में रैयर वारा अणुव्रतां रा पाळण करणिया नर-नारी श्रावक अर श्राविका रै रूप मे भगवान रै धर्म संघ में भेळा इया। श्रमण संघ री शिक्षा-दीक्षा, व्यवस्था अर अनुशासन री देखभाळ रो भार गणधरां रै जिम्मै रहियो । श्रमणी संघ रो भार आर्या चंदणा नै सूप्यो गयो । वा छतीस हजार साध्वियां री प्रमुख ही। महावीर र धर्म शासन में जाति, पद, अधिकार या उमर सू कोई साधु वड़ो नी मानीजतो । उरण रै बड़प्पन रो कारण उरण री साधना मानीजती । महावीर रै श्रमण संच मे राजा, राजकुमार, ब्राह्मण, बारिणया, सूद्र, चांडाळ आदि सगळी जातियां रा लोग भेळा हा। संघ में सवरै सागै समता रो व्यवहार हो । जात-पांत सूकोई ऊंचो-नीचो नो मान्यो जावतो। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० प्रभु महावीर रै शासनकाळ मे मुनिगरण स्वेच्छा से नियम, धरम री पाळणा करता हा संघ व्यवस्था में विनय, सरळता अर समानता ही । से श्रमरण गुरु री आज्ञा अर अनुशासन में चालता हा । साधना री दृष्टि सूं धरम संघ में तीन भांत रा श्रमण हा 1 श्रमण सरूं सू ं ई संघ री मरजादा सू १ प्रत्येक बुद्ध : अळगा रैय' र धरम साधना करता हा । २. स्थविरकल्पी : - श्रमण संघ री मरजादा अर अनुशासन मे रैय' र साधना करता । ३. जिनकल्पी : - श्रमण किरणी खास साधना पद्धति नै अपणा'र संघ री मरजादा सू' अळगा रैयर तपस्या प्रादि करता । प्रत्येक बुद्ध पर जिनकल्पी साधु स्वतंत्र रेवता । इणां नै किरणी रै अनुशासन की जरूरत नीं ही स्थविरकल्पी साधुवां खातर धरम संघ मे नीचे मुजब सात पदां री व्यवस्था ही : १. आचार्य - प्रचार विधि री सीख दे आळा २. उपाध्याय - श्रुत - शास्त्र रो अभ्यास कराण आळा । ३. स्थविर - वय, दीक्षा र श्रुत ज्ञान में बत्ता जाणकार । ४. प्रवर्तक - श्राज्ञा, अनुशासन री प्रवृत्ति कराण आळा | ५. भरणी - गण री व्यवस्था करण आळा | ६. गणधर - गण रो पूरो भार संभाळणिया । ७. गरगावच्छेदक संघ री संग्रह - निग्रह व्यवस्था रा जाणकार । सगळा पदाधिकारी संघीय जीवरण में शिक्षा, साधना, लाचार-मरजादा, सेवा, धर्म प्रचार, विहार जिसी व्यवस्थावां ने Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ सम्भाळता । अनुशासन र नाम पर किशोरी भावनावां ग्रर स्वतंत्रता रोलोर व नी हुवतो | नेत्रा करण बाला या श्राज्ञा रो पाळण करशिया साबु यूं नीं सोचता के म्हानै यो काम जबरन करण पड़ है | सै श्रमण आत्मीय भाव सूं आपूत्राप सेवा करता अर श्राज्ञा से पाळण करता । केवलचर्या रो पैलो वरस धरम संघ रो थरपणा कर, महावीर राजगृह र गुणसील चंत्य में आप साधु परवार ननेन याय ठहरिया | आर्या चन्दनवाळा घर ग्यारह बड़ा बड़ा विद्वान पंडितां रै श्रमरण दीक्षा अंगीकार करण र समांचारां सूं लोगां में तहळको मन्त्रग्यो अर धर्म रं प्रति वांरी आस्था जागी । महावीर ₹ पधारण री खवर सुरण राजा श्रेणिक, आपण राजपरिवार समेत प्रभु-दरसरण कररण ने चाया | महावीर रा उपदेस मुरग राजा श्रोणिक समकित लीवी अर राजकुंवर अभयकुमार श्रावक धर्म अंगीकार करियो । मेघकुंवर नै प्रातमबोध : श्रेणिक पुत्र मेत्रकुवर पण भगवान् महावीर र दरसरण खातर आया। महावीर से उपदेन सुग्ग मेघकुंवर रो मन भोग सू योग कांनी मुड़ग्यो । वां ने ग्रापणो जीवन सफळ वरणावरण री कळा प्रभु मिलगी | मैत्रकुंवर भगवान महावीर रै चरणां में वदना कर र वोल्या - भगवन् ! म्हारी सोई आतमा जागगी है। श्रव म्ह परण दीना लेय ने साधना रैई मारग पर आगे बढ़ो चाऊ । प्रभु ! म्हन दीक्षा देवो । मेघकुंवर री भावना देख भगवान् वोल्या - देवानुप्रिय | जिरण मारग पर चालण में थारी आतमा नै सुख मिले, उण मारग पर बढ़ा में जेज मत कर । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभु महावीर री आज्ञा पाय मेघकुवर माता-पिता कनै गया पर वांक सामै आपण मन री (श्रमण बणण री) इच्छा परगट करी । पुत्र मेघ रा सबद सुण पिता श्रेणिक अर मां धारिणी री प्राख्यां भर आई। पण माता-पिता रो मोह मेघ नै साधनारै मारग पर बढ़ण सू रोक नी सक्यो। मेघ कुवर र श्रमण बरगण रो अटळ निश्चय जाण माता धारिणी आपणी आखरी इच्छा परगट करतां बोली-बेटा ! म्हू थनै राजसिंहासरण पर बैठ्यो देखणो चाऊं । थारै जिस्या लायक बेटा नै पाय म्हूं राजमाता रो गौरवशाली पद पावणो चाऊ। तू म्हारी आ मनसा पूरण कर, भलेइ एक दन खातर ई तूं राजसिहासन पर बैठ। मां रा प्रेम भरिया करुण सबद सुरण मेघकुवर एक दिन खातर राजसिहासण पर बैठ'र लोगां ने सीख दी कै पा जिंदगानी भी एक दिन रो राज है। इण राज री सफळता भोग पर वैभव में कोनी । ई री सफळता योग पर साधना में ईज है। दूजे दिन मेघकुवर संसार रा सगळा ऐस आराम छोड़ार महावीर रा चरणा में जाय दीक्षा लीवी । दीक्षा लियां पछै दिन तो बीतग्यो पण रात पड़ियां, दीक्षा मांय सबसू छोटा हुवरण रै कारण, मेघकुंवर नै मैं मुनिया रै लारै दरवाजा रै कनै सोवण री ठौड़ मिली । सबारै लारली जगा में सोणे सू मेघवर नै नींद नी आई। अंधारा में ध्यान आदि खातर बा'रै आवता - जावता मुनियां रा पग कदैई वणां रै हाथां पं लागता तो कदैई पगां पर । ई कारण मेघ मुनि नै रोस आयग्यो । वी सोचण लाग्या-हूं राजकुंवर हो, महलां मे म्हारो कितरो आव-प्रादर हो । पण अठ म्हारो ओ अपमान ? महलों में म्हं मखमळ रा गादी-तकिया पर सूबतो हो, पण अठ कड़ी जमीन पर सूवणो पड़े । गादी-तकिया तो ठीक पण बीछावरणौंई पूरो कोनी । म्हारै सोवरण रा कमरा में कितरी शान्ति ही अर अठै कितरी भीड । अठ तो म्हनै सबरी Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ ठोकरां खावरणी पडरी है। सांचाई साधु रो र्ज वन घरणो कठोर है। म्हूं तो इसो जीवन नी जी सकूला। कांई सारी रातां जागतोई रेवू ला ? इण उधेडबुन में मेघकुंवर ने रात भर नींद नीं आई । वां निश्चय करियो के परभात व्हताई म्हूं भगवान महावीर ने सें बातां अरज कर पाछो गिरस्त बरण जाऊला । परभात व्हैताई मेघकुंवर महावीर कनै गया । अन्तरजामी महावीर मेघ री मन री पीड़ा समझग्या हा । वां फरमायो - मेघ ! थोडा सा कष्टां सू दुखी व्हैइने ग्रागे वढया चरण पाछा पळणा काई ठीक है ? छणिक वेदनावां सूं दुखी होय तूं उजाळे सूं अंधारा मे भटकरणो चावै । तू याद कर आपण वीत्योड़े भव नै जद पसु जूग (हाथी री जू'ग) में तू घरणा कष्ट भोग्या हा उण पसु जूग में थोड़ी सहन शक्ति रे कारण ईज थनै पाछो श्रो मिनखजमारो मिल्यो है | दुरळभ मिनखजमारो पायने तू क्यूं कायर बाँ है ? I 1 महावीर से वारणी सुरांता-सुगंता मेघ नै जाति समरण ज्ञान व्हैग्यो । वीने प्रापण पूरव जनम री घटनावां एक-एक कर निजर ग्रावा लागी । वीनै याद आयो- वो हाथी री जंग में रूप अर बळ रो घणी हो । ईं खातर वो पूरा हस्तिमण्डळ रो नायक हो । एक बार अचारणचक जंगल में लाय लागो । में पशु-पक्षी आपणी रक्षाखातर भाग'र वै एक मैदान में भेळा हुया । ईं मुसीबतरी घड़ी में नार, हिरण, लोमड़ी पर खरगोस जिसा जिनावर आपसी बैर भाव भूलग्या हा । श्राखी मैदान जिनावरां सू खचाखच भरग्यो । पग घरवा री जगां नीं हो । उण बगत वो हाथी खाज खुजाबा ताईं एक पग ऊंचो करियो । इतरा में एक खरगोस उण रा पग हेटै रक्षा ताई और बैठग्यो । हाथी देख्यो के म्हूं पग घर दूंला तो श्रो खरगोस मर जावेला । ई कारण वी उठायोड़ो पग नीचे नी मेलियो श्रर तीन पगां पर दो दिन-रात ऊभो । तीजै दिन लाय सांत हुब पर खरगोस वठा सू दूजी ठौड़ चल्यो ग्यो । दजा जिनावर Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ भी आप आप ने लाग्या। हाथी खरगोस नै गयो देख आपणो - पग नीचे टिकायो । सरीर रो संतुलन नीं सभाळ सकरण र कारण वो जमी माथै पड़ ग्यो घर मरग्यो । आपणो प्रारण देर भी वीं हाथी खरगोस री रक्षा करी । पसु जू में आपणी इसी कष्ट सहि गुना ना नै यादकर' र मेघकु वर रो हिरदी नूवै प्रकास भरग्यो । वी प्रभु रा चरणां में माथो टिकाय दियो म्हनै माफ करो । अवै म्हूं धारा सु ऊजाळा में प्रायग्यो । ग्रापणी भूल अर अहम् पर म्हनै पछतावा है । अर दया भाव - नौंवी चेतना सू र कयौ प्रभु र इण भात मेघकुंवर रैटूटते मनोवळ नै थाम र महावीर उरणनै प्रतम कल्याण रे मारग पर बढ़ण री प्रेरणा दीवी । नंदीसेण री प्रतिज्ञा : राजगृही में भगवान महावीर रै कनै जद मेघकुंवर भ्रमण जीवन गंगीकार करियो नो राजकुंवर नदीसेण रै मन में परण साधना र मारग पर बढ़रण री इच्छा जागी । नन्दीसेण आपण पिता महाराजा श्रेणिक रै सामै या भावना परगट करी, तद श्रेणिक कयौ - मेघकुवर र देखादेख तूं दीक्षा लेवरण रो विचार मत कर । महल में रैयर मन नै साध । थारी प्रकृति भोग बिळास री है। तू पैली उरणनै सांत कर, पछै दीक्षा ले | कुवर नंदी सेण कयौ - म्हू तप पर ध्यान से आपरणी प्रकृति वदळ लूंगा । इणीज विसवास रे सागै वीं भगवान महावीर कनै प्रव्रज्या ग्रहरण करी । दीक्षा लैर नंदीवेग कठोर तपस्या करणी सरू करी । तप साधना रै दिव्य प्रभाव सू वांने घरणी चमत्कारी शक्तियां (लब्धियां) प्राप्त हुई । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकदा वेळे रे पारणे रे दिन वी गोचरी खातर एक गणिका घरं गया। दरवाजे पर जावताई मुनि बोल्पा-धरम लाभ । मुनि रघरम लाभरीवात सुण गणिका हंस पड़ी। पर वोलो-मुनिवर । तो धरम लाभ नी अरथ लाभ री चावना है। गरिएका रो हंसपो मुनि नै बागे लाग्यो । वरण बठंई बापणी चमत्कारी शक्ति सू रतनां रो ढेर कर दियो पर पायो-ले! ओ अरथलाभ ! साम रतनां रो ढेर लाग्यो देव गणिका मुनि र पाछे पडगी पर कवरण लागीप्रागनाय ! म्हने छोइ र पाठे जायो ? पाप म्हार सागै रेवो । प्रावियोग में म्ह प्राण छोटूली । गणिका रै बार-बार कैवरण नदीमेग बहाया। बठेवता थका नंदीसेण या प्रतिज्ञा करीक नित हमेस जठा ताई म्ह दस मिनखां ने धरम रो उपदेश नी दंऊला बठा ताई भोजन ग्रहण नी करु ला, अर जी दिन म्हू दस मिनन्यां ने प्रतिबोध नी दे सक्ला ऊदिन पाछो प्रभ र चरणां में चल्यो जाऊंला। गरिएका रे साग रैवतां दस मिनखा ने नंदीसेण रोज उपदेस देवता अर वान दीक्षा खातर प्रभु रे चरणा में मोकळता, जद जार वी रसोई जीमता। एक दिन नी मिनखां ने उपदेस देय नै दीक्षा खातर तैयार कर दिया, पण दसवो मिनख उपदेस सुगर भी दीक्षा लैण खातर राजी नी हुयो। गणिका बार-बार नदीसेण नै रसोई प्रारोगवा खातर बुलाय री ही, पण आज वां को संकल्प पूरो नीं होर्यो हो । ई खातर नदीसेरणा रमोई नी जीमा हा। जद दसवों आदमी कोई राजी नी हुयो तद दृढ संकल्पी नंदीसेण खुद उठ'र प्रभु रै चरगां मे चल्याग्या अर कठोर तपस्या कर'र प्रातम सुद्धि करण लाग्या। इण भांत नंदीसेरण नै पाछो प्रापरणो चेलो बरणाय महावीर सांची सहानुभूति पर वत्सल भाव रो परिचय दियो । महावीर रो कैवरणो हो-घ्रिणा पाप सू करणी चाइज, पापी सुनी। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूजो बरस : ऋपभदत्त अर देवानन्दा नै प्रतिबोध : गांव-गांव विचरण करता हुया भगवान महावीर ब्राह्मण कुण्ड ग्राम में पधार र बहुसाळ चैत्य में विराजिया। भगवान रे श्रावण री बात सगळी जगां फैलगी ही । पडित ऋषभदत्त देवानन्दा ब्राह्मणी र सागै प्रभु रै दरसण खातर आया। भगवान नै देखताई देवानन्दा रै मन में प्रेम उमड़ आयो। खुसी झूवीको मन हरखियो। कंठ गळगळो सो व्हैग्यो । हिवडो हेत सूभाग्यो। वात्सल्य भाव रे वेग सूबोबा सूदूध री धारा बेवरण लागी । या अनोखी घटना देख गणधर गौतम भगवान महावीर सूई को कारण पूछियो । भगवान बोल्या-गौतम ! प्रा देवानन्दा ब्राह्मणी म्हारी माता है। त्रिशला क्षत्रियागी रै गरभ सूजनम लेवरण रै पैला म्हैं बयासी रातां माता देवानन्दा रै गरभ में पूरी करी । भगवान री बात सुरण सारी सभा चकित रैयगी। ऋषभदत्त पर देवानन्दा दोन्यू नै घणो अचभो हुयो। इसा भाग्यशाली पुत्र री मां हुवरण री नात सुरण देवानन्दा हरखी अर पछ पुत्र रा बतायोड़ा मारग पर चालण रो सकल्प करियो पर दीक्षा लेयर ऋषभदत्त गणधरां रै अर देवानन्दा चन्दनबाळा रै नेश्राय में तप साधना करी। प्रियदर्शना अर जमालि री दीक्षा : ब्राह्मणकुण्ड सू प्रभु क्षत्रियकुण्ड ग्राम (महावीर री जनम भूमि) पधारिया। प्रभु रै आवरण री खबर सुण पाखो गाम हरखियो । महावीर री पुत्री प्रियदर्शना अर जवांई जमालि पण भगवान रा दरसरण नै आया पर वांकी इमरत वाणी सुरणी। भगवान रो उपदेश सुणता ई जमालि नै संसार सूवैराग्य हुयग्यो। मां-बाप रो मोह, आई राणियां रोप्यार, अर राजलिछमी रो लोभ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ जमालि ने वैराग्य पथ पर बढण सूं कोनो रोक सक्या। वो पांच सौ साथिया रे सागे महावीर रे चरणों में प्रव्रजित हुया । राणी प्रिय दर्शना (महावीर से वेटी) परण पति ने वैराग्य रे मारग पर बढ़ता देख संजम लियो । महावीर रा उपदेस घरणा प्रभावी हा सुरगतां पांरण लोगां नै प्रापै ई संसार री नश्वरता से बोध व्हे जावतो । भगवान मिनखा ने दीक्षा लेवण खातर वाव्य नी करता घर नी की दीक्षा से स्वर्ग में जावरण रो लोभ देवता । वो तो सहज भाव से जीवन री सांची स्थिति री खाण करावता । वा की बात सुरण लोग कैवा लागता - भगवन ! यापरी वाणी सांची है, आतमहित करण थाळी हे म्हां श्रपरं बतायोडा मारग पर काला री इच्छा राखां । I तीजो वरस : जयन्ती रा सवाल : माळी सू विहार कर भगवान कौसाम्वी पधारिया अर चन्द्रावतरण चैत्य में विराजमान हुया । भगवान रे पधारवा रा समीचार सुरण वैसाळो गणराज चेटक री पुत्री मृगावती, उण रो पुत्र उदायन र उदायन री भुत्रा जयन्ती महावीर रा उपदेस सुगरण खातर ग्राया । जयन्ती भगवान सू धरणाइ सवाल पूछिया, जियां १. जयन्ती पूछियो - भगवन् ! जीव हळको घर भारी कियां हुवै ? प्रभु कहो - पाप करम करण सू' जीव भारी र पापां री निवृत्ति सू जीव हळको हुवै । २. जयन्ती पुछियो - भगवन् ! मोक्ष री योग्यता जीव में सुभाव सू हुवे के परिणाम सू' श्रावे ? भगवान बोल्या - मोक्ष री योग्यता सुभाव सूं हुवै, परिणाम सूनीं । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गन्ती पूछिया जीव सूतोवीरो सूवरो ३. जयन्ती पूछियो-भगवन् ! जीव सूतो आछो के जागतो? भगवान बोल्या--कोई जीव सूतो प्राछो पर कोई जागतो। जो जीव अधरभी है, अधरम रो प्रचार करै, वीरो सूवणो आछो, जिसू वीका पाप करम बत्ता नी वधै। पण जो जीव धरम रो आचार-विचार राखे, धरम रो प्रचार कर. वीको जागणो आछो । वोकै जागणे सूखुद रो पर बीजां रो हित हुवै। इण भांत जयन्ती भगवान सूघणाई तात्विक सवाल पूछिया। वांका संतोष जनक उत्तर सुण जयन्ती नै विराग हुयग्यो अर वीं संजम ग्रहण करियो। कौसाम्बी सूविहार करर भगवान सावस्ती पधारिया। अठ सुमनोभद्र पर सुप्रतिष्ठ दीक्षा लीवी । अठा सूविहार कर'र महावीर वारिगज गांव पधारिया । आनन्द गाथापति नै श्रावक धरम रो उपदेस दियो पर अठैइज चौमासो पूरो कियो। चौथो बरस : सालिभद्र नै वैराग : __वाणिज ग्राम सूविहार कर'र मगध कांनी होता हुया भगवान राजगृही पधारिया । अठ गोभद्र नाम रो एक सेठ हो। उण री पत्नी रो नाम भद्रा हो । उणां रो पुत्र सालिभद्र घणो रूपाळो अर सुकुमार हो । बत्तीस रूपाळी राणिया र सागै उरण रो व्याव हुयो । सालिभद्र रा मां-बाप कनै अपार धन संपत्ति ही ।ई कारण वो दिन-रात भोग-विळास पर ऐस आराम में डूब्यो रैवतो। एकदा राजगृही में रतन कम्बळ रा वैपारी रतन कम्बळ बेचण खातर प्रायाहा। कम्बळ घणा मंहगाहा। इण कारण राजा श्रीणिक परण कम्बळ खरीदण सूइनकारी करदी। कम्बळ री बिकरी नी हुवरण स्वैपारी दुखी हुया। सेठाणी भद्रा नै जद वैपारियां रै प्रावण रीठा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ी तो वी मूडे माग्यो धन देयर उरणा सूसगळा रतन कम्बल खरीद लिया । कम्बळ कुल मिला'र सोला हा । ईखातर एक-एक कम्बळ रा दो-दो टुकड़ा कर'र भद्रा आपणो बहुनां नै पग पूछत्रा खातर दे दिया। राजा श्रेणिक नै जद पाठा पड़ी के सगळा रतन कम्बळ सेठाणी भद्रा खरीद लिया पर उणां रा टुकड़ा कर'र बहुसां ने पग पूंछवा खातर दे दिया तो वांनै घणो अचरज हुयो । उणा रे मन में जिज्ञासा हुई के इसी मूकुमार राणियां रो पति पितरो कोमळ व्हैला । इसा सेठ-पुत्र सूजरूर मिलयो चाइजे। या मोच'र राजा श्रेणिक भद्रा नै सदेसो मोकल्यो के-हूं सालिभद्र सूमिलणो चाऊ । भद्रा राजा रो संदेसो सुण राजी हुई । वीं राजा ने सपरिवार पापणे महला तेड़िया । राजा सपरिवार उठ पधारिया। सेठाणी भद्रा राजा रो खूब स्वागत-सत्कार करियो। सेठाणी रे महल री सुन्दरता पर साही ठाठ-वाठ देख राजा दंग रैयग्यो। सालिभद्र कदैई महलां सूनीचे नी उतर्यो हो । आज राजा उरण रै महलां पधारिया हा। ईण खातर भद्रा बीनै राजा सूमिलण खातर नीच बुलायो । माता री बात सुण एक'र तो सालिभद्र नीचे श्रावण सू ना कर दियो । पण भद्रा सालिभद्र नै समझावता कयोअाज आपणां स्वामी, आपणां नाथ पधारिया है । वी थारे सू मिलगो चात्र है। तू नीचे चाल'र उरणा रा दरसरण कर। _ 'पापणा स्वामी! ''पापणा नाथ !' इसा सबद सालिभद्र पैनी बार सुरिणया हा। वो सोचवा लाग्यो-म्हूं इत री धन-सम्पदा रो मालिक हूँ। म्हनै आज ताई किणी चीज र अभाव रो अनुभव नी हुयो । फेरू म्हारै ऊपर कोई दूजो स्वामी है, नाथ है अर म्हू उण रै अधीन · हूँ। ई पराधीनता री गैह री ठेस सालिभद्र रे काळजा में लागी। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Go सालिभद्र राजा श्रेणिक से मिलरण खातर नीचे भायो । राजपरिवार समेत राजा श्रेणिक सालिभद्र रे रूप र वैभव ने देख राजी हुआ । पण सालिभद्र पर इण मुलाकात रो कांई असर न पड़ियो । वी ने इसो जोवन जोवरणा चावता हा जठे सांची स्वतंत्रता मिलै घर किरगी री अधीनता नीं हुँने । श्रातम कल्याण रे नारग पर बढ़रण री वांरै मन में भावना जागी । वां ने विषय सुखां सूं विरक्ति हुवरण लागी । वो नित हमेस एक-एक राणी अर सुख-सेजां रो त्याग कररण लागा । सालिभद्र ने त्याग मारग पर चालतां देख उरणारी छोटी वहन सुभद्रा ने धरणो दुख हुयो । सुभद्रा उणीज गांव रं धन्ना सेठ री पत्नी हो । एक दिन सुभद्रा ने उदास देख धन्ना सेठ उण ने उदासी रो कारण पूछियो । सुभद्रा बोली- म्हारो भाई सालिभद्र नित हमे एक-एक पत्नी अर सुख-सामग्री रो त्याग कर भोग सू योग कांनी बढ़ है | श्रा बात कैवतां-कैवतां सुभद्रा रे प्रख्या मांय त्रसू त्रायया । सुभद्रा री आख्या मांय आसू देख धन्ना सेठ व्यंग्य सू बोलियाथारो भाई कायर है । एक-एक स्त्री रो बारी-बारी सूं त्याग करण आळो कर्द साधुपणो नी लैय तकै । इसा कमजोर मनोवळ रो पुरुष वैराग रे मारण पर नीं चाल सकै । धन्ना सेठ रा सब्द सुरण सुभद्रा परण व्यंग्य सूं बोली- नाथ ! कंत्रग्गो सरळ है, करणो मुस्किल है । आप सू तो एक भी पत्नी नीं छूटं ? सुभद्रा रा मजाक में कयोड़ा में सवद धन्ना रै हिरदय में गेहरो असर करग्या । वीं बोलिया - लो, आज सूं म्हू सगळी पत्नियां श्रर धन सम्पत्ति रो त्याग करू घर प्रातम कल्याण खातर संजम मारग पर वढण रो निश्चय करूं । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्ना री विरवित रा भाव जाण परिवार रा से जणा वांने भोग कांनी मुड़वा खातर धरणा समझाया पर धन्ना जी किण री वात नी मानी । अवै वांरो मनोवळ घणो मजबूत हो। वी प्रापण निर्णय पर सैठा हा। सालिभद्र (साला) अर पन्ना (बहनोई) दोन्यू घर सू निकळ'र महावीर कने आया पर श्रमण धरम री दीक्षा अंगीकार करी । दोन्यूं श्रमण तपस्या करता हुया वैभारगिरि पर अनशन व्रत धारण कर काळ धरम पायो। पांचमो बरसः राजगृह रो चौमासौ पूरो कर'र महावीर चम्पा पधारिया । अठ पूर्णभद्र जक्षायतन मे विराजिया । प्रभुरै प्रावण रा समाचार सुण अठारा महाराजा दत्त सपरिवार दरसरण खातर पाया । प्रसुरी वाणी सुण राजकुबर महाचन्द्र श्रावक धर्म अंगीकार करियो पर थोड़े समै पाछै राजसी ठाठ ने छोड़'र श्रमण धर्म अंगीकार करियो। उदायन रो क्षमाभाव : राजगृह रो चौमासो पूरी कर महावीर चम्पा सू होता हुया वीतभय नगर पधारिया । अठ महाप्रतापी राजा उदायन राज करतो हो । उदायन तापस परम्परा नै मानवा पाळो हो पण उणरी पत्नी राणी प्रभावती (वैसाळी गणराज चेटक री पुत्री) निग्रन्थ धरम नै मानवा पाळी ही । उगरी प्रेरणा सूराजा उदायन भी निग्रन्थ धरम नै मानवा लागो। निग्रन्थ धरम र दया, समता, क्षमा जिसा प्रादसा सू प्रभावित हुयर उदायन पण आपण जीवन में उण प्रादर्सा नै उतारण रो संकल्प करियो। उदायन रै क्षमा भाव रो एक अनूठो उदाहरण मिले । वी अवन्ती र चण्डप्रद्योत जिसा पराक्रमी साजा नै पराजित कर बंदी Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ बगायो। ईसू उदायन री चारुमेर धाक जमगी। उदायन बाहुबळ में इज वीर नी हो वो पातमबळ अर क्षमाभाव में पण घरपो पराक्रमी हो । जद पजूसण परब आयो । वी जेल में जाय बंदी चण्डप्रद्योत सूअापरणे अपराधां री क्षमा मांगी । उदायन नै यूक्षमायाचना करतां देख चण्डप्रद्योत कहयो-म्हतो आपरो कैदी हूँ, अपराधी हूँ, पराधीन हूं। प्रा किसी क्षमा ? किणी ने गुलाम अर पराधीन बणार उपासूक्षमा मांगणी क्षमा नों, क्षमा भाव रो अपमान है। चण्डप्रद्योत रा में सबद उदायन नै चुभग्या । बीरै हिरदै पर अणारो तेज असर हुयो । वी सोचण लाग्या-सांचैई म्हूंचण्ड सूअसली क्षमा नी मांग, क्षमा रो नाटक कर र्यो हूँ । म्ह विजयी हुयर आज अपराधी हूं उणनै बंदी बणार उणसू माफी मांगणी सांचो क्षमा धरम कोनी । यू सोच'र उदायन चण्डप्रद्योत नै कारागार सू मुक्त कर दियो । उदायन री इण दया अर क्षमा भाव सू चण्डप्रद्योत धणो राजी हुयो ! इण घटना सूउदायन रै क्षमा भाव अर आध्यात्मिक भावनावां री चरचां सगळी जगां हुवण लागी। भगवान महावीर पण उण री या बात जाणी। एकदा राजा उदायन पौषधशाला में बैठो-बैठो विचार कर र्यो हो के वी गांव अर नगर धन्य है जठे प्रभु महावीर रा चरण पड़े अर वी लोग धन्य है जै उणारा दरसरण कर बांकी अमरत वाणी सुणै। वो सोचो हो कदाच भगवान महावीर वीतभय नगर पधारै तो म्हूं पण उणा रा दरसण कर आपणो मिनख जमारो सफळ बरणाऊँ। भगतां रै हिरदा री बात भगवान जाणे । महावीर उदायन रैमन री भावना जाग आपण शिष्य समुदाय सागै वीतभय नगर पधारिया । चम्पा सू वीतभय नगर घरणो अळगो हो । मारग में Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ रेगिस्तान पड़तो हो । गरमी रा दिन हा कोमां दूर ताई वसती नों ही । भूख रतिम मूं साधुग्रां ने धरणी परेसानी हुई। पण से तकलीफ उठा'र भी महावीर वीतभय नगरी पचारिया | उदायन प्रभु रा दरसरण करिया । उणांरी श्रमरतवाणी सुगी । श्रवै वीने राजकाज सू मोह नी । वी राजपाट त्याग'र मुनि वणण रो संकल्प लियो । वीरं श्रभीचि कुमार नाम रो पुत्र हो पण वीं राज रो भार उगने नो मूंप्यो । वी मन में सोचियो कं जिण राज नै वंधन समझ'र म्हूं उरणरो त्याग कर हूं उरण राज रे बंधन में आपण पुत्र नै क्यूं फंसाऊ ? ग्रा सोच वी राज रो वारिस भारगंज केसी कुमार ने वरणायो र खुद महावीर कनै दीक्षा प्रगीकार करी । मुनि उदायन दीक्षा ले' र कठोर तपस्या करण लागा । विचरण करता हुया एकदा वी वीतभय नगर पधारिया । केसीकुमार रो मंत्री खोटा सुभाव रो हो । मुनि नै नगरी में बाया जारण वी राजा रा कान भरिया - महाराज ! उदायन पाछा गृहस्थी वरण है। उणां री राज करण री मनसा है । वी श्राप दियोड़ो राज पाछो खोसरगो चावें । ई कारण मुनि वेस में ईज उरगा रो काम तमाम कर देणो चाइजै । नी रेवेला वांस ग्रर नीं वाजेली वांसुरी । राजा केसी मत्री है वहकावा में प्रायग्यो । एक दिन वां भिक्षा में मुनि उदयन नै जहर दे दियो । भोजन मे जहर रीठा पड़ियां पारण भी वां नै नी तो राजा पर किरोध प्रायो अर नीं ईर्ष्या हुई । वां समता भाव र साग समाधि मरण अंगीकार करियो । छट्ठो बरस : चुलनीपिता अर सुरादेव : वाणिज गांव सू विहार कर महावीर वाराणसी कांनी पधारिया | कोष्टक चैत्य में विराजिया । चुलनीपिता अर सुरादेव वाराणसी रा नामी गृहस्थ हा । इणारं कनै २४ - २४ करोड़ 1 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ सोनैया री सम्पत्ति श्नर गाय रा आठ-आठ गोकुळ हा । महावीर ने नगरी में त्राया जांरंग दोन्यू सपरिवार दरसण खातर गया । प्रभु री घरम देखना सुग चुलनोपिता घर सुगदेव आपणो सम्पत्तिरी निश्चित मर्यादा क'र श्रावक धर्म रा वांरह व्रत ग्रहण करिया । अरजुनमाली रो प्रसंग : वाराणसी सू आलंभिया नगरी होता हुया महावीर राजगृहो पघारिया । ॐ अरजुन नाम रो एक माळी हो । नगर सूं बार उरणरो एक बहुत बड़ो रूपाळो बाग हो । उगीज बाग में उपरै कुळ देवता मुद्गरपाणि जअ रो पुराणो मिन्दर हो । रोज री भांत एक दा परभात अरजुन श्रापणी पत्नी बंधुमती रै सागै फूल तोड़ण खातर बाग में प्रायो । उणरै सागै नगरी रा छह व्दमात पण बाग में घुस आया । वन्धुमती रै रूप नै देख वी उण पर मोहित हुयग्या 1 वां लोगां अरजुन ने रस्सी सूं एक पेड़ रै वांध दियो र उणरी पत्नी सागै वेजां बरताव करियो । दुष्ट लोगां रे इण अत्याचार नै देख अरजुन नै घग्गो किरोध आयो पर वो रस्सी सूं वंध्यो हुवरण र कारण लाचार हो । कोवावेस में चाय वीं आपण कुळदेवता मुद्गर पारिण जक्ष नै कोसरणो सरु कर्यो । वो कैवा लागोम्ह्णू थांरणी वाळपणा सू उपासना करतो प्रायो हूं । आज म्ह मुसीबत में पड़यो परण थां म्हारो कांई नदद नीं करो | म्हारो प्रो अपमान थां भाटा री मूरत दाई ऊभा ऊभा देखऱ्याहो । म्हन लागे यांगा में अबै कांई सत नीं र्यो । अरजुन री श्री क्रोध भरी पुकार सुग जक्ष अरजुन र सरीर में बड़ग्यो । वीमें धरणी ताकत यायची । वीं बंध्योड़ी रस्सी तोड़ नाखी अर मुद्गर हाथ में ले'र विसयवासना में घांघा हुयोड़ा वदमासां पर श्रापणी पत्नी वंधुमती री खूब पिटाई करी । जिरण तूं उणां प्रारणांत हुयच्यो । पर फेरू ं अरजुन रो किरोध सांत नीं हुयो । उपने मिनखजात सू' इज नफरत हुयगी 1 वो जे मिनखां ने आपणी कांनी Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ श्रावतां देखतो उरणां पर भूखा ना'र जियां टूट पडतो। अरजुनमाळी ₹रा अातंक सू लोग उठी कर पारगो-जागो छोड़ दियो। राज री तरफ सूअरजुन री कांनी आणं-जाणं पर प्रतिबंध लागग्यो। इगीज समय भगवान महावीर राजगृह पधारिया। हजारां लोग महावीर रा दरसरण करणा चावता हा । परण अरजुन माळी रै डर सूकिणी मे उण ठौड़ जावरण री हिम्मत नो ही। पाखर एक सरवावान श्रवक सुदरसरण दृढतारै सागै प्रभु दरसण खातर प्रागे कदम बढ़ायो । वो नगर सूवा'रै प्रायो। चारुकांनी सन्नाटो हो । एक अकेले मिनख नै सामै श्रावतां देख अरजुन माळी आग ववूलो हुयग्यो। उगने मारण खातर वो मुद्गर लय उण पोर झाटियो । सुदरसरण वोरी या हरकत देख किंचित भी नी डर्यो । वो प्रभु रो सुमरण कर ध्यान मे सांत भाव सूखड़ो हुयग्यो । पण प्रो काई ? अरजुन रो उठ्यो मुद्गर उठ्योई रेयग्यो। वी सुदरसरण ने मारण री घणी कोसिस करी, पण मुद्गर हिल्योई कोनी। सुदरसण री हिम्मत अर घरम री मजबूती रै सामै अरजुन रो किरोध सांत हुयग्यो । वो उण रै चरणां में पड़ग्यो अर प्रापणं कूर करमां रो प्रायश्चित करण लागो । अरजुन नै यू पस्चाताप करतां देख सुदरसण बोलियाअरजुन तू घवरा मत । तू साचैइ मिनख है, दानव कोनी। किरणी कारण सूथारै सरीर मांय राक्षसी प्रवृत्तियां हावी हुयगी है। अब थारा मिनखपणो पाछो जागग्यो है । तू म्हारै सागै चाल र क्षमानिधि प्रभु महावीर रा दरसरण कर। अरजुन सुदरसण रै सागै महावीर कनै आयो । प्रभु रा उपदेस सुण वीं आंख्यां सू पश्चाताप अर करुणा रा पासू वेवण लाग्या। वी भगवान रै सामै सगळा पाप करमा रोप्रायश्चित कर मुनि धरम अंगीकार करियो। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सातमो बरस : श्रेणिक री जिज्ञासा : भगवान महावीर राजगृही में बिराजऱ्या हा । एकदा श्रेणिक महावीर रै कने बैठा हा । वीं समय एक देव कोढ़ी रो सरूप बणार आयो अर भगवान सूबोल्यो-बेगा मरजो, पछ कोढ़ी राजा श्रोणिक कांनी मूडो कर बोल्यो-जीवता रैवो अर अभयकुमार पाड़ी देख'र बोल्यो-चावै जीवो, चावै मरो। आखिर में कालसोकरिक सू बोल्यो-न मर, पर नी जी। कोढ़ी रा इसा अंटसंट सबद सुण श्रोणिक नै रोस आयग्यो। राजा नै रोस में भरियो देख वी को सेवक कोढ़ो नै मारबा खातर दौड़ियो पण कोढ़ी तो बठा सूअोझल हुयग्यो। दूजै दिन श्रोणिक वीं कोढ़ी रा कयोड़ा सबदां रो अरथ भगवान महावीर सूपूछयो । प्रभु बोल्या-राजन् ! वो कोढी नीं वो तो देवता हो। म्हनै मरण खातर कयो ईको मतलब है कै मह बेगो मोक्ष जासू । हूं अठ देह-बन्धन में हूं। आगै म्हारी मुगति है । शाश्वत सुख है । थारण जीवा खातर कयो-ई रो मतलब है-थारो प्रागळो भव नरक रोहै । इण भव में जठा ताई थां जीवोला बठां ताई थांनै सुख है । नरक में थानै दुख भोगणो पड़ेला। अभयकुमार आपण धर्माचरण अर व्रत-नियमां री आराधना सूअठ भी आछो सुखी जीवन जी र्यो है पर इनै आगे भी सुख है । ओ देव गति रो अधिकारी बगला । कालसौकरिक रा दोन्यू भव दुखमय है। इण रो नी जीणो आछो है अरनी मरणो। आ सुण श्रेणिक पूछियो-भगवन् ! मुहूं किण उपाय सू नरक रा दुखां सूबच सकू ? भगवान बोल्या-जद कालसौकरिक सूजीव-हत्या करणो छुड़वाय दे या कपिळा ब्राह्मणी सूदान दिलाय Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ दे या पूणिया धावक री एक सामायिक मोल ले सके, तो थांने नरक गति सू छुटकारो हुँय सके। राजा श्रेणिक घणी कौसिसां करी पण नी तो। कालसोकरिक कसाई हत्या करणी बंद करी, नी कपिला ब्राह्मणी दान दियो अर नी श्रोणिक पूणिया श्रावक री सामायिक खरीद सक्या। पण इण घटना सूोणिक नै सांसारिक सुखां सूविरक्ति हुयगी । वी ससार रो त्याग तो नीं कर सक्या पण वां लोगां नै त्याग मारग पर बढ़ण री प्रेरणा देवण खातर आ घोसणा कराई के जो कोई श्रमण धर्म अंगीकार करेला म्हू वीं नै राज री तरफ सूसव भांत री मदद देऊला । ई घोषणा सूप्रभावित हुयर घणा ई लोग दोक्षा लीवी। आठमो बरस : चण्डप्रद्योत नै प्रतिबोध : राजगृही सूपालभिया नगरी होता हुया भगवान कौसाम्बी पधारिया। अठ महावीर युद्ध करण खातर आयोड़ा अवन्ती रा गजा चण्डप्रद्योत नै प्रतिवोध दय'र मृगावती नै शील-संकट सू मुक्त करी । चण्डप्रद्योत मृगावती रे रूप अर गुरणां पर मुग्ध हुय'र वीने प्रापणी पटराणी वणावणो चावतो हो। इण भावना सूवी प्रार कोसाम्बी रै चारु कांनी घेरो डाल दियो । उण समय कौसाम्बी पर लगोलग विपत्तियां प्राय री ही । एक कांनी दुसमन धावो बोला हा । दूजी कांनी राजा सतानीक परलोकवासी हुयग्या हा । राजकुवर उदायन बाळक हो । राज रो से काम राणी मृगावती नै देखणो पड़तो। इण मुसीबत में शील धरम पर आंच पावती जाण राणी हिम्मत नीं हारी। वा क्षत्रियाणी ही । वी में घणो साहस हो । वा आपणां प्राण देय ने भी धरम पर शील री रक्षा करणी जाणती ही। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ संकट री घडी में वी चतुराई सू काम लियो । दुत लारै चंडप्रद्योत नै वी संदैसो मोकल्यो के ग्राप जिण उद्देश्य सूअठ पधारिया हो, उण रै अनुकूल समय कोनी। राजा रै देवलोक सू सगळो राजपरिवार इण वगत दुखी है । आप अनुकूल समय देख'र पाछा प्रावो । राणो प्रापरी बात मान लैला। श्रो संदेसो सुण चंडप्रद्योत सोच्यो-राणी कठ जाण पाळी तो है नौं । राजा री मृत्यु रो सोग खतम हुवण पर वा न्हारी बात मान लै ला । आ सोच चरप्रद्योत बिगर युद्ध करियां अवंती जावण री त्यारिया करण लागो। इणीज समय भगवान महावीर धरम दसना देता हुया कौसाम्बी पधारिया। मृगावती नै प्रभु रै आवण रीठा पड़ी तो वा उणां रा दरसण करण आई। चंडप्रद्योत पण भगवान रै समवसरण में देसना सुणवा आयो । प्रभु देसना देय र्या हा-मिनख रो जीवन बेवती नदी रै जळ री दाई अस्थिर अर चंचळ है । धन, दौलत, जोवन, सक्ति सब छणिक है । काम-भोग री इच्छावां अनन्त है । उणां सू कदै तरपति नी हुवै । काम वासना रै दळदळ में फंसियोड़ा जीवां री हमेस दुरगति हुवं । आपणी इच्छावां पर अकुस राखण आळो मिनख इज सांसारिक दुखाँ सूमुक्त हुय सके । प्रभु रै उपदेसां सूप्रभावित हुय'र राणी मृगावती बोलीम्हारै दीक्षा लेवण रा भाव है। पण दीक्षा लेवण सूपैला म्है अठं प्रायोडा राजा चंड प्रद्योत सू आपण अपराध खातर माफी मांगू है। क्यू के शील धरम री रक्षा खातर इणा सूछळ कपट रो विवहार करियो अर चालाकी सू काम लियो। - मृगावती री आ बात सण चंडप्रद्योत लाजां मरग्यो। वीं रो हिरदय बदळग्यो । वो कैण लाग्यो-बैन ! म्हनै माफ करदे । थे Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ म्हने भुलावै में राख'र म्हारो मारग दरमा करियो । म्हने पथ भ्रष्ट हुवण सूबचायो । थारो ओ उपकार म्हू कदैई नी भूलू ला। चण्डप्रद्योत नै सुमारग पर आयोड़ो देख मृगावती घणी राजी हुई । वीं को-आप म्हारा घरमभाई हो । म्हनै दीक्षा लेवण री आज्ञा दे ओ। उदायन री रक्षा रो से जिम्मो आप पर है। चण्डप्रद्योत उदायन रो राजतिळक कियो अर मृगावती दीक्षा ले'र प्रातम कल्याण रे मारग पर आगे बढ़ी। नवमो बरस: भगवान महावीर मिथिला होता हुया काकंदी आया अर सहस्राम्र उद्यान में विराजमान हया। भगवान रै आवरण रा समीचार सुरण राजा जितसत्रु दरसरा खातर आया। प्रभु रा उपदेस सुण वी घणा प्रवावित हुया । वां नगरी में डिडोरो पिटवाय दियो कै जनम-मरण रा बन्धन काटवा खातर जो भी कोई राजी-राजी संजम लेगो चावै, वो लेवै। वी रै परिवार री देखभाळ म्हूं खुद करू ला। भद्रा सार्थवाहिनी रै पुत्र धन्यकुमार री दीक्षा महाराज जितसत्रु घणा ठाट-बाट सूकरवाई। मुनि धन्यकुमार कठोर तपस्या कर'र अनसनपूर्वक सरीर रो त्याग करियो । . काकंदी सूविहार कर भगवान कम्पिलपुर पधारिया। अठ कुंडकौलिक श्रावक व्रत अंगीकार करिया । पछै महावीर पोलासपुर पधारिया। अठ कुम्हार सद्दालपुत्र श्रावक रा बारा व्रत अङ्गीकार करिया। पोलासपुर सूप्रभु वाणिजगांव होता हुया वैसाली पधारिया अर चौमासो अठई पूरो करियो। दसमो बरस: महावीर राजगृह रै गुणसीळ बाग में विराजमान हा। अठ प्रभुरा उपदेस सुरण महासतक गाथापति श्रावक धरम अंङ्गीकार Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० करियो। एक दिन रोहक मुनि मन में कई संकावां उठी। वी भगवान रै कनै पाया अर पूछियो-प्रभु ! लोक अर अलोक मांय सूपैली कुरण अर पाछै कुरण है ? __ भगवान कह्यो-लोक पर अलोक दोन्यू शाश्वत है, ई कारण पैली अर पार्छ रो फरक कोनी। रोहक मुनि दूजो सवाल पूछियो-भंते ! जीव पैला हुयो के अजीव ? भगवान फरमायो-लोक अर अलोक री भांत जीव पर अजीव पण शाश्वत है। इण कारण प्रणां में आगे-पाछै रो काई भेद कोनी । इणीज भांत रोहक मुनि महावीर सू केई सवाल पूछ या अर वां रो समाधान पायो । ग्यारमो बरस : राजगृह सूविहार कर र भगवान कयंगळा नगरी पधारिया। अठ छत्रपळास उद्यान में विराजिया । कयंगळा रै नेड़े श्रावस्ती नगर में स्कंदक नाम रो एक परिव्राजक रैवतो हो। वो विविध सास्त्री रोजाणकार हो । एकदा पिंगळ निग्नथ स्कदक सूलोक री स्थिति रैवार में सवाल पूछिया। स्कदक ऊरणां सवाला रो जवाब नी दे सक्यो । स्कन्दक नै ठा पड़ी के भगवान महावीर छत्रपळास उद्यान में रुक्योड़ा है । वी इणां सवाला रो जवाब देय सके। स्कन्दक भगवान ₹ कनै आयो अर वंदन नमस्कार करर आपणी जिज्ञासा परगट करी । स्कन्दक रा सवाल सुगण भगवान फरमायो स्कन्दक ! लोकचार भांत रा है-द्रव्यलोक, क्षेत्र लोक, काळलोक अर भावलोक । द्रव्य री अपेक्षा सू लोक सांत हैं, क्षेत्र री अपेक्षा सू असख्य कोड़ाकोडि योजन विस्तार आळो है, काळ सूलोक री नी कदै सरुपात हुवे पर नी समाप्ति, अर भाव री अपेक्षा सू लोक अनन्त-अनन्त पर्यायां रो भंडार है। इण भांत लोक सांत परण है पर वर्णादि पर्यायां रो अन्त नी हुवरण सूअनन्त परण है। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ स्कन्दक फेरु दूजो प्रश्न पूछियो - भते ! किसा मरण सू जनम-मरण रा बन्धरण टूटै अर किसा सू ं वधै ? भगवान उत्तर दियो - भरण दो भांत राहुवै - बाळ मरण अर पंडित मरण | बाळ मरण सूं संसार वधै अर पंडित मरण सू संसार घटै । क्रोध, लोभ, मोह आदि भावां सूं असमाधि सूरौं मरणो वाळमरण है अर सांत भाव सूं मरणो पडित मरण है । ज्ञान पूर्वक समाधिपूर्वक बारमो बरस : वाणिज गांव सू' विहार कर' र प्रभु ब्राह्मणकुण्ड श्राया श्रर वहुसाळ चैत्य मे विराजिया । ग्रठे अणगार जमालि महावीर सू अलग विचरवा री आज्ञा मांगी। परण महावीर की नीं बोलिया । महावीर ने मौन देख वो पांच सौ साधुवां सागै स्वतन्त्र विहार करण खातर निकलग्यो । वठा सूळ गांव-गांवा विचरण करता हुया, लोगा री संकावां रो समाधान करता हुया प्रभु चौमासो राजगृही में पूरो करियो । तेरमो बरस : राजगृह सू विहार कर' र महावीर चम्पापुर पधारिया अर पूर्णभद्र उद्यान में विराजिया । चम्पा रो राजा कोरिणक भगवान ₹ आवरण री बात सुरण बड़ी सज-धज रे सागै वन्दरण करण नै आयौ । भगवान महावीर री देसना सुरण कैई लोग मुनि धरम अर श्रावक वरत अङ्गीकार करिया । चवदमो बरस : चम्पा भगवान विदेह कांनी विहार करियो । काकन्दी नगरी में गाथापति खेमक श्रर धृतिधर प्रभु रे कनै दीक्षा श्रङ्गीकार करी | मिथिला में चौमासो पूरो कर विहार करतां भगवान पाछा Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चम्पानगरी पधारिया पर अठै पूर्णभद्र नाम रै चैत्य में बिराजिया। इण समय वैसाली में जुद्ध चालर्यो हो । इरण में एक कांनी अठारह गरणराज हा पर बीजी कांनी कौणिक अर उणारा दस भाई आपण दळबळ सागै जूझ र्या हा । प्रभुरै आवरण रा समीचार सुण राजराणियां प्रभुरा दरसरण करण नै आई। महावीर रा उपदेस सुण राणियां वा सूपूछियो-भगवन् ! युद्ध में गयोडा म्हांका पुत्र राजीखुसी कद घर आवला ? उत्तर में दसूई पुत्रा रै युद्ध में मरण री बात सुण राणियां नै घणो दुख हुयो । वी सोचण लागी-ई संसार में सबरो मरणो निश्चित है। वां रो जीवन धन्य है जे आपण मिनख जमारा नै सार्थक करै। ई बोध रै सागै विरक्त हो र दसू राणियां आर्या चन्दना रे कनै दीक्षा अङ्गीकार करी। पन्दरमो बरस : गोसालक रो उतपात अर पश्चाताप : मिथिला सूवैसाळी कांनी होय भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी पधारिया । अठ राजा कोणिक रा भाई हल्ल, वेहल्ल (ज्यारै खातर वैसाळी में युद्ध होर्यो हो) भगवान रै दरसण खातर आया पर प्रभु र उपदेस सूप्रभावित हुयर मुनिधर्म अंगीकार करियो। __ मंखलिपुल गोसाळक पण वां दिनां श्रावस्ती रै ऐड़े नई 'घूमर्यो हो । हलाहल कुम्हारिण अर अयपुळ गाथापति गोसाळक रा घणा पक्का भगत हा । गोसाळक तेजोलब्धि पर निमित्तज्ञान जिसी सक्तियां पाय'र घमंड में आयग्यो । वीं श्रावस्ती री जनता माथै आपणो सिक्को जमाय राख्यो हो । बो सबांन कैवतो के मुहूं तो प्राजीवक मत रो प्राचार्य हूँ, तीर्थङ्गर हूँ । भगवान महावीर रे श्रावस्ती प्रावण रा समीचार जाण वो लोगों ने कैवा लागोआजकाल श्रावस्ती नगरी में दो तीर्थ कर विचरण करै है।-एक महावीर पर दूजो म्हूँ। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधर इन्द्रभूति गौतम भिक्षा खातर जावता थकां लोगों रै मूडा सूदो तीर्थङ्करां री वात सुणी तो वां आयनै प्रभु सूरज कर पूछियो-भगवन ! भाजकाल श्रावस्ती में दो तीर्थङ्करां रे होवण री दरचा चाल री है। कांई गोसाळक सर्वज्ञ पर तीर्थ भगवान वोल्या-गौतम ! गोसाळक तीर्थंकर कहलाबा लायक कोनी। वीरो हिग्दो राग-द्वेष पर अज्ञान, अहंकार सू भरियोड़ो है। ग्राज सूचौबीस बरस पैला ओ म्हारो शिष्य बणियो हो । पण उद्दण्ड पर स्वच्छन्द सुभाव रै कारण जगां-जगांई रो अपमान हयो । एकर तो तापस वेस्यायन री तेज सक्ति सूबळतावळता म्हें ई नै बचायो अर इणनै तप पर साधना रेवळ सू तेजोलब्धि पावरण री विधि बताई। थोड़ी सी सक्ति अर लब्धि पाय ो खुद ने तीर्थङ्कर केवण लागग्यो है। गोसाळक र कानां में जद प्रभु रा कह्योडा अं सबद पहुंच्यातो वीनै गुस्सो आयग्यो। वो बार निकळर आयो । वी श्रमण प्रानन्द ने भिक्षा खानर आवता देखिया। देखताई वी जोर सूहाको पाडियोमानन्द ! जरा ठहर । तू पापण धर्माचार्य महावीर नै जाय कैय दीज के वी म्हार वार में कोई बात नी करे, चुप रैवै । म्हारै सू वोलणो या म्हारे बारे में कोई बात करणी सूता सांप नै छेड़णो है । हूँ देखो ,ह के म्हारो आव-यादर देख वी म्हारै सूईया कर है । मुहूं अवार प्राय थां सवांरी बुद्धि ठिकाणे लगाय दू'ला । इतरो कवता-कैवता गोसाळक रा होठ फड़कबा लाग्या। वीरो चेहरो तमतमा उठ्यो। गोसाळक री बात सुण आनन्द महावीर कनै आया अर सगळी वात केय सुणायी। वां महावीर सूपूछियोभगवन ! गोसाळक नापणे तेज सू कीनै बाळ भी सकै काई ? महावीर बोल्या-हाँ! गोसाळक आफ्णी तेज सक्ति सू किणी नै वाळ सकै पण तीर्थडार वो नी जलाय सके। यू तो Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जितगे बळ गोसाळक में है ऊसूकई गुणो बत्ती बळ निग्रंथ प्रणगार में हुवे । पण अणगार क्षमासील हुवै, पापणी तपरी सक्ति रो दुरुपयोग नी करै । वी किणी नै कष्ट नी देव। महावीर सावचेत करतां आनन्द सूकयो- गोसाळक अठ प्रावण आळो है । वो किरोध अर मान रा नसा में आंधो हुयोड़ो है । वो कोई भी खोटो काम कर सकै । ई कारण वीसूकोइ मुनि वात नी करै। सैं मौन रैवे । उणीज ताळ लाल-पीळी आंख्या काढतो गोसाळक आपण दळबळ सागै वठे आय पोंच्यो अर बोल्यो-महावीर ! थां सर्वज्ञ हुवता थकां भी म्हनै नी ओळखो । थारो शिष्य मंखळिपुत्र गोसाळक तो कदकोई मरग्यो। म्हूं तो कौडिन्यायन उदायी हूँ। म्हारो ओ सातमो सरीरातर प्रवेस है। पण थां अणजाण बण'र अबार भी वाइज पुराणी रट लगाऱ्या हो के ओ म्हारो शिष्य गोसाळक है। गोसाळक री आ बात सुरण महावीर बोल्या-गोसाळक ! जिरण भांत कोई चोर आपण बचाव रो दूजो साधन नी देख, एक तिनका री आड़ मे खुद नै लुकावण री कोसिस करै ! पण यू चोर लुक नी सकै भलेई वो समझै के मुहूं लुक्योड़ो हूं । इणीज भांत गोसाळक तूं गोसाळक ही है, पण तूं आपनै छिपावरण खातर कूडो बोले । प्रभु री प्रा बात सुण गोसाळक पापा सूबारै व्हैग्यो । अर गुस्से में प्राय अंटसंट बकवा लागो । वीं कह्यो-थारो काळ नैड़ो आयग्यो है । तूं प्रबार जलबळ नष्ट हुय जावैला। ' गोसाळक रा रोस भर्या में सबद सुण'र भी महावीर नै किरोध नी प्रायो। दूजा मुनि भी शांत हा । पण सर्वानुभूति अरणगार गुरु रै प्रति इसा अपमान भरिया सबद सुण चुप नी रैय सक्या । वी बोल्या-गोसाळक ! भगवान महावीर नै तो थे आपणा गुरु मानिया हा । आज थूइणां री निन्दा कर रयो हो है ? आ चोखी बात कोनी । किरोध में विवेक नै मत बिसर । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ मुनि रा वचन भाग में घी से काम करग्या । गोसाळक मुनि पर तेजोलेस्या छोड़ दीवी, जिमू मुनि रो शरीर बठेइ वळग्यो । गोसाळक फेरू मन में यावे जूई बोलर्यो । वीरां सवद सुण सुनक्षत्र नाम रा मुनि भी चुप नी रेय सक्या । वी उरणने समझावा लागा। गोसाळक वां पर भी तेजोलेस्या छोड़ी पण अवै उण रो असर मन्दो पड़ग्यो हो जिनमुनि रोप्राणान्त तो नी हुयो पण वी बुरी तरै घायल हुयग्या । वान असीम पीड़ा ही। काळ नै नैडो जारण वां समाधि मरण अंगीकार करियो । महावीर री धरम सभा में दो निरपराध मुनि इण भांत शहीद हयग्या । चारु कांनी सन्नाटो छायग्यो पण गोसाळक रो किरोष हाल ताई मात कोनी हुयो। वी भगवान महावीर पर भी तेजोलब्धि छोडी। बीने पूरो विसवास हो कै म्हारो तेजो सक्ति सू महावीर रो शरीर पग नष्ट हुई जावला । पण प्रभु रा अपार तेज र आगे गोसाळक री तेजोलेस्या कोई असर नी कर सकी । गोसाळक री छोड्योड़ी तेजोलेस्या री किरणा महावीर रै शरीर री प्रदक्षिणा कर'ने पाछी फिरगी अर गोसाळक ने बाळती थकी वीरै सरीर में ईज प्रविष्ट हुयगी । इण सूगोसाळक र सरीर में जलण हुआ लागी । वो इण पीड़ा सूघणो दुखी हुयो । गोसाळक री आ हालत देख महावीर नै दया आयगी । वी वोल्या-गोसाळक ! थारी तेजोलेस्या रै प्रभाव सूथू खुद ही बळ र्यो है । अवै थारो काळ नैड़ो है । प्रापरणो जीवण सुधारण खातर थू आपण कियोड़े खोटा करमां पर प्रायश्चित कर। . महावीर गोसाळक रै कल्याण री कामना करऱ्या हा, पण वो अवार भी रोस मे भरयोड़ो हो । उग री व्यथा धीरे-धीरे बधती जाय री ही । हाय ! हाय करतो वो कोष्ठक चैत्य सूनिकळ' र Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपण आवास कांनी भागियो । बठे सरीर री जळण सांत कवार खातर वो कदैई गीली माटी रो लेप करतो पर कदैई पीडा भुलावरण खातर पागळ दाई नाचतो-गावतो । इण भांत घणी वेदना अर आकुळता सूवीको समय बीत र्यो हो । ज्यू-ज्यूमौत री घड़ी नैड़ी आवा लागी, त्यू-त्यू गोसाळक । रो मन पळटा खाबा लागो । वो महावीर रै सागै कियोड़े बुरे बरताव अर दो मुनियां री हत्या सू दुखी होबा लागो । वीं अबै सच्चाई नै मंजूर कर लो। वो पापणं शिष्यां रै सामै कैयर्यो हो-महावीर जिन है, सर्वज्ञ है, म्हूं पाखंडी हूं, पापी हूँ। म्हैं यांनै अर सगळे संसार नै धोखो दियो। म्हारी प्रातमा नै धिक्कार है। जिन्दगी भर खोटा करम करण पाळो गोसाळक पाखरी समै में पश्चाताप री आग में बळ'र सोना री दाई खरो हुयग्यो। वीं से गुस्सो सांत हुयग्यो। वी पापणे मरण नै सुधार लियो । रेवती रो निरदोस दान : _____ कोष्ठक चैत्य सू विहार करर महावीर मेढ़िया गांव कांनी पधारिया पर साल कोष्ठक चैत्य में बिराजिया। गोसाळक री तेजोलेस्या र प्रभाव सू महावीर र सरीर में तकलीफ रैवरण लागी। वां नै रक्तातिसार जिसी बीमारी हुयगी। जिसू वांको सरीर घणो कमजोर हुयग्यो । महावीर रा सरीर नै देख'र लोग कैवता के गोसाळक रै कह्यां मुताबिक कठै महावीर बेगोई आउखो पूरो नी कर जावै । आ बात सालकोष्ठक रै नई मालुयाकच्छ में तप साधना करता हुया सीहा अरणगार पण सुणी । महावीर री अस्वस्थता अर काळ परम पावण री बात सुण सोहा अणगार रो.ध्यान टूटग्यो अर वी चिन्ता में पड़ग्या । प्रभु महावीर नै आपण ज्ञानयोग सूमालम पड़ी के सीहा मुनि म्हारी पीड़ा सूघणा दुखी है। वां आपण श्रमणां तूं कह्यो Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ यो जार सीहा मुनि ने अबुलाय लावो । वी म्हारी पीड़ा सूदुःखी होयर चिन्ता कर रखा है। प्रभु महावीर रीअाज्ञा पात्र श्रमण सोहा मुनि कने गया पर वान कह्यो-धर्माचार्य भगवान महावीर प्रापन वुलावै है। सीहा मनि प्रभु रा चरणां में पांच'र वंदना करी । महावीर कमजोर सरीर नै देख वो उदास हो'र ऊभा रेयग्या । महावीर गेल्या-सीहा ! तूं चिन्ता मत कर । तेजोलेस्था रै प्रभाव सू म्हूं मरण पाळो कोनी । म्ह दीरघकाळ ताई इणीज पृथ्वी पर मोरु विचरण कल्ला ।पा बात सुण र सोहा अणगार वोल्या-भगवन ! म्हां भी प्रोईज चावां । आप किरपा कर बतायो के ई रोग रो काई इलाज है? प्रभु वोल्या-मेढिया गांव में रेवती गाथापत्नी रे कनै ई रोग ने दूर करण री सोखध है। वी कुम्हडे सूवरिणयोड़ी पोखध म्हार खातरइज त्यार करी है। पण अमण प्रापणं खातर त्यार करयोड़ी कोई चीज लेवे कोनी-इण सूवा तो म्हारे कळपै कोनी पण टूजी मोखब बीजोरापाक किणी दूजा मतलव सूवणाई है । थां जाय ने वी मूवीजोरापाक री मांग करो। वी दवा रे उपयोग सूपा बीमारी ठीक हुय जावै ना। भगवान रोपा बात सुण सोहा मुनि रेवती र घर गया पर वी सूवीजोरापाक री मांग करी । सुद्धोखध रो दान देयर रेवती भापणो मिनस्व जमारो सफळ करियो। वों दवा रै उपयोग सू महावीर री तबियत ठीक हुयगी पर वा पेला री भांत सुख सं विचरण करण लागा। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९ सोलमो बरस केसी-गौतम मिलन ___ महावीर रा शिष्य इन्द्रभूति गौतम साधु मुनिया रै सागे विचरण करता हुया श्रावस्ती पाया पर कोष्ठक उद्यान में बिराजिया। उणीज वगत भगवान पार्श्वनाथ री परम्परा रा केसीकुमार पण आपण मुनि मण्डळ रै सागै तिन्दुक उद्यान में रुक्योड़ा हा । श्रावस्ती नगरी मांय केसीकुमार अर इन्द्रभूति गौतम रा साधु आपस में मिलिया। दोन्यूरै आचार-विचार अर वेशभूषा में फरक हो। फरक देख उणारे मन में संका हुई कै एक लक्ष्य री कांनी बढ़बा पाळी इण धरम परम्परा मे भेद क्यू है ? मुनियां री आ बात जाण इण संकावा नै मिटावरण खातर गौतम अर केसीकुमार दोन्यू आपस में मिलण रो विचार करियो । गौतम केसीकुमार नै साधुपरणां में बड़ा मान'र मुनि मंडळी समेत वारै कनै गया। केसीकुमार गौतम मुनि नै आवता देख उणारो घणो आव-आदर करियो, बैठण खातर पासण दियो । दोन्यू मुनियां रै मिलण रोप्रो घणो बाछो दृस्य हो । __ मुनि केसीकुमार गौतम मुनि सूघणा हेत सू मिलिया अर पूछियो-मुनिराज ! पार्श्वनाथ चातुर्याम धरम कह्यो पर महावीर पंच महाव्रत रूप धरम । इणरो काई कारण है ? गौतम मुनि बोलिया-महाराज! धरम रै तत्त्वां रो निर्णय बुद्धि सूदुवै । जी समय लोगां री जिसी मति हुवै बी समै विसोइ धरम रो उपदेस दियो जावै । पैला तीर्थङ्कर रै समय लोग बुद्धि रा सरळ अर जड़ हा । बांनै धरम रो तत्त्व समझावणो मुश्किल हो पर आखरी तीर्थङ्कर रै समै लोग बुद्धि रा वक्र (तार्किक) अर जड़ है। इणा सू धरम रो पाळण करणो मुश्किल हुवै । ई खातर भगवान ऋषभ पर महावीर दोन्यू पंच महाव्रत (अहिमा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अर अपरिग्रह) रूप धरम बतायो अर बीच रै तीर्थङ्करां रै समय लोग सरल अर बुद्धिमान हुवे। थोड़े में वी सारी बातां समझ'र उणां रो पाळण कर Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ लेवै । ई खातर बीचरा बाईस तीर्थङ्करां चातुर्याम धरम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह) बतायो । ___ इण भांत केसी मुनि इन्द्रभूति गौतम सूघणांई तात्त्विक प्रश्न पूछिया पर उणांरो संतोषप्रद उत्तर पाय'र घणा राजी हुया । वारी इण ज्ञान गोष्ठी सू श्रावस्ती नगरी में ज्ञान अर शील धरम रो घणो विकास हुयो। सभा मे ज्ञान चरचा सूणरिणयाँ लोग धरम मारग कानी प्रवृत्त हुया। राजर्षि शिव रो संशय-निवारण भगवान महावीर मिथिला सू बिहार कर'र हस्तिनापुर पधारिया । अठारा राजा शिव घणा संतोषी पर धरम प्रेमी हा । वनि सुखोपभोग सू घृणा हुथगी। राज्य रो त्याग करर जंगल में जाय वी वल्कलधारी तापस वरणग्या अर घोर तपस्या करण लागा। लम्बी तपस्या सूवांनै विशेष ज्ञान उत्पन्न हुयो जिरणसू उरणां में सात समन्दर पर सात द्वीपां ताई देखण री खमता आयगी । वी लोगां नै कैवता-ईण संसार में सात समन्दर अर सात द्वीप ईज है, इण रै प्रागै कांयनी है। तापस री पा वात जद गणधर गौतम सुणी, वां भगवान महावीर नै पूछियो-प्रभु! इण तापस री आ बात कठा ताई साची है ? प्रभु कयौ-इण पृथ्वी पर असंख्य द्वीप पर अनेक समन्दर है। तापस रै कानां में महावीर री आ बात पड़ी तो वां सोच्योम्हारै ज्ञान में कमी है। सर्वज्ञ महावीर रो कथन सांचो है। इण भावना रै सागै वी महावीर कनै आय'र उणारो उपदेस सुरिणयो। उपदेस सुणण सू वारो संसय मिटग्यो अर, उणां सू प्रभावित इयर वी महावीर रा शिष्य बरणग्या । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर रा . उपदेसां ने सुरगर धरम में सरधा राखणिया घणा लोगां मुनि धरम अङ्गीकार करियो। उणां में पोट्टिल अणगार रो नाम प्रमुख है । हस्तिनापुर सूप्रभु 'मोका' नगरी होता हुया वाणिज गांव पधारिया पर उठई चौमासो पूरो करियो। सतरमो बरस : विदेह प्रदेस में विचरण करता हुया महावीर राजगृही रे गुणसील चैत्य में पधारिया। अठे इण समै बौद्ध, आजीवक आदि से धरम परम्परावां रा साधु हा। में लोग समय-समय पर भेळा हुय'र ज्ञान चरवा करता । एकदा इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर सूपूछियो के आजीवक म्हाने पूछ है कै जै थारां श्रावक सामा. यिक व्रत में हुवे पर उरणारो कोई भांड (बरतन आदि) चोरी चल्यो जावै तो सामायिक पूरी करियां बाद वै उपरी तलास कर के नी, पर जै वे तलास करै तो आपण भांड री करै या पराये री? भगवान महावीर इण प्रश्न रो उत्तर देवता फरमायोगौतम ! वी आपण भांड री इज तलास करै, पराये री नीं। सामायिक अर पौषधोपवास करण सू उणारो भांड, अभांड नी हुवे । जी समैं वी सामायिक आदि वरत में रैवै उगीज समैं उगारो भांड, अभांड मानियो जावै। इण भांत प्रभु श्रावक धरम री विशेष जारणकारी दीवी। ओ चोमासो महावीर राजगृही में इज पूरो कियो । अठारमो बरस : राजगृह रो चौमासो पूरी करर भगवान चम्पा कांनी सू होता हुया पृष्ठचम्पा नाम रै उपनगर में विराजिया। प्रभू रे आवरण रा समीचार सुण पृष्ठचम्पा रा राजा शाळ अर युवराज महाशाळ . Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्ति भाव सूप्रभु रा दरसण करण ने आया। धर्मोपदेस सुणन सू दोन्यून संसार सूविरक्ति हुई अर वां पापणे राज रो भार भागज गांगळी नै संभळाय दीक्षा अंगीकार करी। कामदेव रो समभाव : पृष्ठचम्पा सू भगवान चम्पा नगरी र पूर्णभद्र चैत्य में पधारिया। अठ कामदेव श्रावक प्रभू री धरम देसना सुरगन खातर प्राया। धरम देसना फरमायां पछै भगवान श्रमरणां सू कह्यो कैकामदेव श्रावक गृहस्थपणां में रैयर भी घणाइ उपसर्ग समभाव सू सहन करिया । एकदा जद वी पीपध में हा, आधी रात में एक मायावी देव, दैत्य, हाथी, सरप आदि रा विकराळ रूप धारण कर कामदेव ने घरम सूविचलित करण रा घणाई प्रयास किया पण कामदेव धरम मारग सूकिंचित् भी नी डिगिया । उणारी धरमनिष्ठा, सहनशक्ति पर समभाव दख दैत्य परास्त हुयग्यो अर आपणे असली रूप में आर वी कामदेव सूअापणे दुष्कृत्यां री माफी मांगी। कामदेव रो श्रो समभाव श्रमणां खातर भी अनुकरणीय है पर ई सू साधुमां ने प्रेरणा लेणी चाइजै। दसारणभद्र नै आतमबोध : चम्पा सू विहार करर भगवान दसारणपुर पधारिया । अठा रो राजा दसारणभद्र प्रभु महावीर रो बड़ो भगत हो। वो चतुरङ्ग सेना पर राजपरिवार र साग बड़ी सजधज सूप्रभु वंदण ने निकल्यो। वी रै मन में प्रो विचार आयो कै-म्हारै समान ठाटबाट सूप्रभु-वंदरण नै कुरण पायो वेला? या बात इन्द्र जाप ली। दसारणभद्र नै नीचो दिखावरण खातर इन्द्र उगवत्ती रिद्धसिद्ध रै सांग प्रभु-वन्दरण नै आयो । जद दसारणभद्र इन्द्र री आ रिद्ध-सिद्ध Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देखी तो वीं रो गरब चूर-चूर हुयग्यो । पण वीं हार नीं मानी। वी री दीठ बदळगी । वी नै प्रा बाहरी रिद्ध-सिद्ध निस्सार लागण लागी । वी आत्मिक रिद्ध-सिद्ध नै प्राप्त करण रो निश्चय कर लियो पर राजपाट छोड़'र प्रभु महावीर कनै दीक्षा अङ्गीकार करी। दसारणभद्र री आ हिम्मत अर धरमनिष्ठा देख इन्द्र लाजां मरग्यो अर वां नै नमस्कार कर लौटग्यो। सोमिल री तत्त्व चरचा : दसारणपुर सूप्रभु वाणिजगांव पधारिया। अठ सोमिल नाम रो एक पडित हो । वो सास्त्रां रो आछो जाणकार हो । वी रै पांच सौ शिष्य हा । महावीर जद दूतिपळास उद्यान में पधारिया तो सोमिल वांकै दरसण खातर आयो। वीं भगवान सूघणाई द्वैत, अद्धत, नित्यवाद, क्षणिकवाद जिसा गूढ़ दार्शनिक सवाल पूछिया । महावीर अनेकान्त सिद्धान्त सूसगळा सवालां रा पडूतर दिया। सही समाधान पा'र सोमिल घणो राजी हुयो। वीं घरणी सरधा सू प्रभु री धरम देसना मुणी अर प्रभु सू श्रावक धरम अङ्गीकार करियो। उगरणीसमो बरस : अम्बड़ री निष्ठा : कौसल, साकेत, सावत्थी होता हया प्रभु पांचाळ कांनी पधारिया। अठै सू विहार कर'र कपिळपुर रे सहस्राम्र वन में विराजिया । अठै अम्बड़ नाम रो एक ऋषि सात सो शिष्यां रै सागै रैवतो हो । वो घणो चमत्कारी महात्मा हो। वीं नै कई लब्धियां प्राप्त ही । इण र प्रभाव सूजद वो भिक्षा खातर जावतो, सौ घरों सूएकै सागै आहार लेवतो वी रो सरूप लोग देखता। इन्द्रभूति गौतम जद आ बात सुणी तो वां भगवान सू पूछियो -भगवन् ! Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड़ ऋषि री या वात कठाताई सांची है ? भगवान पडूत्तर दियो- गौतम ! अम्बड़ परिव्राजक बेळे -बेळे री तपस्या करै। उरणरी भावना मूद्ध है। ई कारण ई नै इण भात री लब्धियां प्राप्त है। महावीर रै आवण री खबर सुण अम्बड़ आपण शिष्यां सागै उरणारा दरसरण करण नै प्रायो। महावीर री धरम देसना सुण वो उणारै ज्ञान अर चारित सूघणो प्रभावित हुयो। सब भात री सक्तियां हुवता थकां भी सरळ परिणामां रै कारण वी महावीर सू श्रावक धरम अंगीकार करियो। पर उरणारो उपासक वणियो। बीसमो बरस: ___ भगवान वाणिजगांव र दूतिपळास चैत्य में विराजमान हा । वां की धरम देसना सुरणन खातर हजारां मिनख रोजीना पावता। एकदा भगवान पारसनाथ री परम्परा रा गांगेय मुनि भगवान महावीर री धरम सभा मांय पाया। वा भगवान सूजीव, सत, असत आदि रै वार में कई तात्विक सवाल पूछिया। महावीर सू उणारो अाच्छो समाधान पा'र वी धरणा प्रभावित हुया अर महावीर रै घरम संघ मे सम्मिलित हुयग्या। इक्कीसमो बरस : मदुक रो तत्त्वज्ञान . भगवान महावीर वैसाळी सू मगध कांनी विहार करता हया राजगृह रै गुणसील चैत्य में ठहरिया। मठ काळोदायी, सैलोदायी आदि परिव्राजका रो आश्रम हो । एकदा भगवान रै पंचास्तिकाय (घरम, अधरम, आकास, जीव अर पुद्गल) सिद्धांत रै विसय पथ परिव्राजक चरचा कररया हा । इणीज वगत भगवान र पारण Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ री बात सुरण अठा रो एक श्रद्धावान प्रमुख श्रावक मदुक प्रभु दरसरण जायरो हो। चरचा करणियां परिव्राजकां नै मालूम हयो के मद्दुक नै भगवान महावीर रै सिद्धान्तां रो पाच्छो ज्ञान है तो उणां मद्दुक सूघणाई तात्विक प्रश्न पूछिया। मद्दुक सगळां प्रश्नां रो तरक संगत उत्तर दियो। मद्दुक र इण तत्वज्ञान री महावीर पण घरणी प्रशंसा करी। ओ चौमासो महावीर राजगृही में ही पूरो करियो । अठ प्रभु री धरम देसना सुरण लोगां घणाई व्रत-नियम अङ्गीकार करिया। बाइसमो बरस : पेढालपुत्त उदक री जिज्ञासा ! राजगृही सूजुदी-जुदी ठौड विचरण करता हुया प्रभु पाछा राजगृही पधारिया अर गुणसील चैत्य में विराजिया । प्रभु सू प्रापरणी तात्विक संकावां रो समाधान पार काळं दायी तैर्थिक घणा राजी हुया। वां भगवान सू उपदेस सुरगण री इच्छा परगट करी। महावीर रै उपदेसां सू प्रभावित हुयर वी निग्नथ धरम मे दीक्षित हुया। एकदा प्रभु महावीर नाळन्दा रै हस्तियाम उद्यान में ठहरियोडा हा । अठै पार्श्वपत्य श्रमण पेढालपुत्त उदक री भेट इन्द्रभूति गौतम सूहुई । उदक गौतम सूबोल्या-म्हारै मन में थोड़ी संकावा है। आप उरणांरो समाधान करो। गौतम उदक रा लाम्बा-चौडा प्रश्नां रो सांति र सागै समाधान करियो। इतरा में अठ पार्श्वपत्य परम्परा रा बीजा स्थविर पण आयग्या। वी भी चरचा सुणण लागा। उदक पापणी संकावां रो समाधार पा'र बिगर आवमादर करियां पर बिगर बोल्यां वठा सूजावा लागा तद गौतम कह्यो Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थां विगर अभिवादन करियां उठ'र जायऱ्या हो । कांई थान मामूली शिष्टाचार रो ज्ञान कोनी ? गौतम रै इण स्पष्ट पर मार्मिक कथन सूउदक वठे रुकन्या पर बोल्या-हां मुनिवर ! म्हने इण धरम व्यवहार रो ज्ञान नी हो । अवै म्हूं प्रापरै कथन पर सरधा राखर चातुर्याम घरम परम्परा सू पंच महानतिक धरम मार्ग अङ्गीकार करणो चाऊ। उदक री उत्कट जिज्ञासा देख, गौतम उदक ने महावीर कनै लेयग्या । उदक प्रभुरी पाना पाय वारे धरम संघ में सम्मिलित हुया। तेइसमो बरस : चौमासो पूरो कर'र भगवान नाळन्दा सू विहार कर'र वाणिजगांव रै दूतिपळास चत्य में पधारिया। ओ गांव वरणज-वैपाय .रो बाछो केन्द्र हो । अठ सुदर्शन नाम रो एक बडो वैपारी हो । वो प्रभु रा अमृत वचन सुणण ने पायो । वणी भगवान सू कैई तात्त्विक प्रश्न पूछिया । इणांरो उत्तर देवतां प्रभु सेठ ने वीर पूरव भव रो सगळो हाल सुरणाय दियो। भगवान रै मुख सू वीत्यौड़े भवां रो हाण सुरण सेठ रो अन्तरमानस जागग्यो। वी नै प्रातमसरूप रो वोध हुयो अर वी महावीर सूश्रमण धरम अङ्गीकार करियो । गाथापति आनन्द अर गगवर गौतम : गणधर गौतम महावीर री आज्ञा लेयर वाणिजगांव मे भिक्षा खातर पधारिया। वी भीक्षा लेयर जद पाछा लौटा हा तद वां लोगां सूअानन्द गाथापति रै संथारा री चरचा सुगी । वी प्रानन्द श्रावक नै दरसरण देवण खातर कोल्लाग सन्निवेस पधारिया। इन्द्रभूति गौतम नै आमा देख मानन्द घणा राजी हुया । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरण वंदन करने वी बोल्या-भगवन् ! गृहस्थी नै काई अवधिज्ञान हुय सके। गौतम कह्यो-हां ! हुय सके । प्रानन्द बोल्या-म्हनै अवधिज्ञान हुयग्यो । म्है पूरब, पश्चिम अर दखण दिसा में लवण समुद्र रै पांच-पांच सौ जोजन ताई, उत्तराध में हिमवंत पर्वत ताई, ऊर्ध्वलोक में सौधर्म देवलोक ताई, पर अधोलोक में लोलच्चुन नाम रै नरकावास ताई रा सगळा पदारथ देखू हूं। इण पर गौतम बोल्या-आनन्द ! गृहस्थी नै अवधिज्ञान हुवै तो जरूर. पण इतरी दूरी रो नी हुवै । थांने इण मिथ्या कथन पर आलोचना करणी चाइजै। गणधर गौतम रा भै सबद सुण विनयपूर्वक दृढ़ सवदां में आनन्द बोल्या-भगवन् ! म्हूँ जो भी कांई कैयर्यो हूं वो यथार्थ पर सांच है । आप इण नै झूठ मत समझो । झूठ बोलण रो प्रायश्चित म्हनै नी, आपनै ईज करणो पड़ेला। आनन्द री आ बात सुण गौतम दुगध्या में पड़ग्या। वां महावीर रै कनै आय सगळी बांत बताय दी। गौतम री बात सुरण महावीर कह्यो-गौतम ! आनन्द रो कैवणो सांचो है। थां वीके सत्य नै असत्य बतायो है। आ थांरी गलती है, ई वास्ते थांबेगासा' आनन्द रै कनै जानो अर वींसू माफी मांगो। परम सत्य रा खोजणहार गौतम पग पाछा फेरिया पर आनन्द रै कनै जा'र वीसू माफी मांगी। एक श्रावक रै साम्है श्रमणसंघ रा सबसू बड़ा मुनि नै ! माफी मांगता देख आनन्द गद्गद् हुयग्या अर मन में सोचण लागा-निनथ धरम में सांच रो कित्तो महत्त्व है। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ बीस वरसां ताई गृहस्थ धरम री सुद्ध श्राराधना कर र श्रानन्द समाधिपूर्वक देह त्याग करियो । चौबीसमो बरस : वेसकीमती भावरतन : वैसाळी रो चौमासो पूरो कर र महावीर कोसळ नगरी रै ऐड़े-नैड़े विचरण करता हुया साकेतपुर पधारिया । यठे जिनदेव नाम से एक बड़ो वैपारी हो । एकदा वो विराज-वैपार खातर कोटि बग्स नगर गयो अर ग्रठा रा राजा किरातराज नै कीमती रतन अर गंणा आदि निजर करिया | वांने देख राजा बोल्या - इसा रतन कठे पैदा हुवे ? राजा री प्रावात सुरण जिनदेव बोल्यो - राजन् ! म्हार देस में इरण सूं भी बत्ता कीमती रतन पैदा हुवे । किरातराज रै मन में इसा रतना आळा देस नै देखण री इच्छा हुई । जिनदेव साकेतपुर रा राजा ने इण वात री खवर दीवी । पछे किरातराज जिनदेव रै सागै साकेतपुर श्राया । वठे वां दिनां भगवान महावीर आयोड़ा हा । राजा सत्रु जय ग्रर हजारां री तादाद मे घणाई लोग प्रभु दरसरण खातर श्राया हा । नगर में श्रा भीडभाड अर चहल-पहल देख किरातराज ने घणो इचरज हुयो । वी जिनदेव स पूछियो - सार्थवाह ! औ इतरा मिनख कठै जायऱ्या है ? जिनदेव पडूत्तर दियो- राजन् ! रतनारो एक बड़ो वैपारी अठे आयो है वो सबसू बढिया बेसकीमती रतना रो धरणी है । जिनदेव री बात सुण किरातराज ₹ मन में उण वैपारी सू ं मिलण री जिज्ञासा हुई । जिनदेव र किरातराज दोन्यू' महावीर (ज्ञान, दर्शन चारित्र इरण तीन रतनां रा धारक) री धरम सभा में गया । वठे जा'र प्रभु रा चरणां में वंदना - नमस्कार करने, उणां सूं किरातराज रतना रै प्रकार घर कीमत रे बारे में पूछियो । महावीर बोल्या - देवानुप्रिय ! रतन दो भांत राहुवै । एक द्रव्य रतन भर दूजा भाव Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रतन तीन भात रा हुवै-(१) दर्शन रतन (२) ज्ञान रतन (३) चारित्र रतन । रतन घणा प्रभावशाली है। जै कोई इणां वे धारण करै वीरो रो लोक अर परलोक दोन्यू सुधर जावै। द्रव्य रतनां रो प्रभाव सीमित है। वीसू बाहरो चमक-दमक रैवै । परण भाव रतनां सूअन्तरमानस जगमगा उठे अर सांचे सुख-सान्ति री अनुभूति हुनै । भगगन री न्तनां विषयक या चरत्रा पुण किरातराज घणो प्रभावित हुयो । - भगवान सूप्रार्थना करी-प्रभु! म्हनै भाव रतन प्रक्षन करो । प्रभु महाबीर उणनै आतम कल्याण रो मारग बतायो अर वो उणां रै श्रमण संघ में दीक्षित हुयो। पच्चीसमो बरस कालोदारी रा प्रश्न : मिथिला नगरी में चौमासो पूरो कर र भगवान मगध कांनी सूविहार करता राजगृह पधारिया पर गए.सील चैत्य में विराजिया । अठै काळोदायी श्रमरण प्रभु सूकई संकावाँ रो समाधान करियो । वां प्रभु सू पूछिगे-भगवन् ! जीव खुद असुभ फल देण माळा करम किरण भांत करै? भगवान बोलिया-काळोदायी ! ज्यू दुसित पकवान पर मादक पदारथ सेवन करती वगत घणा रु अर खावरिणयां लोग सुवाद में मस्त होर वां सूवरण आळा नुकसान बीसर जावै, पण उणारो नतीजो घणो खोटो हुदै । सेहत पर बुरो प्रभाव पड़े । इणीज भांत जद जीव हिंसा, भूर, चोरी जिसा पाप करम करै अर रागद्वेष र वशीभून होर क्रोध, मान, माया, लोभ जिसी प्रवृत्तियां में जून्योड़ो रेवे, उरण ताळ असगळा काम घणा रुचिकर अर मन मोबणा लागै परम इण बंच्योड़ा करम घरमा अनिष्टकारी हुवे । अर करता नै भोगणा ईज पड़े। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काळोदायी फेर दूजो प्रश्न पूछियो-भगवन ! जीव खुद सुभ फळ देण आळा करम किरण भांत कर ? महावीर ल्या-काळोदायी ! ज्यू रोग री दवा कड़वी हुवरण पर भी मरीर नै फायदो पोंचावै, उगीज भांत सत्य, अहिंसा, शील,क्षमा अग्लोभ जिसी प्रवृत्तियां व्यवहार मे थोड़ी भारी लागे पण नागे उरणां रो परिणाम घणो सुखदायी हुने। इण भांत काळोदायी प्रभु और कई प्रश्न पूछिया पर उरणां रो बाछो समाधान पा'र को संतुष्ट हुयो। छाईसमो बरस : ___ गांव-गांव विहार करता हुया प्रभु महावीर राजगृही पधारिया अर गुणमील चैत्य में विराजिया । गणवर गौतम प्रभु सू घगाई तात्विक प्रश्न पूछिया अर उणारो समाधान पायो । इणीज बरस में अचळनाता पर मेतार्य गरगवर प्रनगन कर निर्वाण प्राप्त करियो । ओ चौमासो भगवान नाळन्दा में पूरो कियो। सत्ताइस बरस : ___ नाळन्दा मू विहार कर'र प्रभु विदेह जनपद कांनी होता हुया मिथिला नगरी पधारिया पर मणिभद्र चैत्य में विराजिया । अारा राजा जितसत्रु प्रभु दरसरण करण नै प्राया। महावीर री धरम देसणा सू लोग घणा प्रभावित हुआ । इन्द्रभूति गौतम सौरमंडळ, उणरं भ्रमण, प्रकास, उण रै क्षत्र आदि रे बारे में घणाई प्रश्न पूछिया । अट्ठाइसमो वरस : मिथिला सूविहार कर प्रभु महावीर विदेह रै गांवा-गांवा में विचरण कर अनेक सरधावान लोगां नै धरम देसना दीवी। कई लोग श्रमण परम मे दीक्षित हुया पर कई श्रावक व्रत अङ्गीकार करिया । यो चौमासो पण महावीर मिथिला में ईज पूरो कियो। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणतीसमो बरस : महासतक अर रेवती : १०० मिथिला सूर विहार कर' र मगध कांनी होता हुया प्रभु राजगृही पधारिया र गुणसीळ चैत्य में बिराजिया । वां दिनां प्रमुख श्रावक महासतक अनसन व्रत कर राख्यो हो । संयम र तप सुद्धि रे प्रभाव सू वीने अवधिज्ञान हुयग्यो । महासतक री पत्नी रेवती दुष्ट प्रकृति री ही । वींरी धरम मे रुचि नी ही । महासतक री तपसाधना पर धरम क्रिया सूं वा खुस नी ही। एक दिन पौषधशाला में जा' र गुस्से में प्राय वीं महासतक नै खरी खोटी सुरगाई, जिस महासतक रो ध्यान टूटग्यो । बो रेवती र इण बैवार सूं घणो दुखी हुयो पर बोल्यो- रेवती ! तू इसी खोटी चेप्टा क्यूं कर री है ? खोटा करमां रो आछो फल नीं मिले। तू इसा खोटा करम करण सूं सात दिनां माय अलस रोग सू दुखी हुय' र असमाधि भाव सूं मरेली । महासतक रा वचन सुरण रैवती डरगी । वा सोचरण लागी - महासतक ने सांचैई म्हारे पर किरोध है । कुरण जाणे म्हने और कोई दण्ड मिलसी ? या सोचता- सोचता रेवती उठा सू व्हीर हुयगी । महासतक री बात सांची निकली। महासतक ध्यान सू विचलित होणे री बात जद भगवान महावीर जाणी तो वी गणधर सू बोल्या - गौतम ! श्रठे म्हारो अन्तेवासी महासतक पौषधशाला में अनसन वरत में है। वीने रेवती बुरा सबद कया है जिसू रूष्ट हो वीं रेवती ने असमाधि मरण जैड़ी खरी बात कही है। श्रावक महासतक नैऐड़ा सबद नीं बोलणा चाइजै । थां जा'र उगने केवी के प्रपणे इण कथन री वीने मालोचना करणी चाइजै । 1 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर री प्राजा मानर गौतम महासतक कने गया पर उगने प्रभु महावीर रो संदेसो कह्यो। महासतक सदेस रं मुजब प्रापर्ण किये पर पश्चाताप कर र मातम सुद्धि कीवी । तीसमो बरस: ___ राजगृही सूदिहार कर महावीर पावापुरी रै राजा हस्तिपाल री रज्जुग सभा में पधारिया। प्रो आखरी चौमासो अठ इज पूरा हुयो । हजारों लोग प्रभु रा उपदेस सुरगण नै आया। प्रभु कयोहरेक प्राणी नै प्रापणो जीव वाल्हो है । मौत पर दुख कोई नी चाद । मिनख नै दूजा र सागै इसोईज बैवार करणो चाइजै जिसो वो खुद प्रांपणै वास्तै चामै । मोईज सांचो मिनखपणो पर धरम रो मळ है। प्रभु रा उपदेस सुगरण राजा पुण्यपाळ पण आयो हो । का पिछली रात में देख्या पाठ सुपना (हाथी. बानर, क्षीरतरू, कामको, नार, कमळ, बीज अर घड़ो) रोफळ महावीर सूपूछियो । महावार रो पड्त्तर सुण राजा पुण्यपाळ नै संसार सूविरक्ति हुयगी। वः राज वैभव छोड़र साधु धरम अङ्गीकार करियो। चौमासे रा तीन महिना पूरा हुयग्या । चौथो महीनो चालयौ हो। काती वद चवदस (अंमाक्स) रै दिन परभात र सम भगवान रज्जुग सभा में आखरी धरम देसना देयऱ्या हा । प्रभुरे मोक्ष पधारण रो समय नैड़ो जाण इन्द्र आपणै परिवार र सागै महावीर कनै पायो अर वांसू आपणो उमर बढ़ाबा सारु अरज करी। महावीर कहयो-उमर नै घटाबा अर बढ़ाबा री ताकत किरणी मे कोनी। भगवान री आ बात सुण इन्द्र मौन रैयग्यो। वो चन्दना नमस्कार कर पाछो चल्योरयो । मूल्यांकन इण भांत तीस बरसां ताई केवळीचर्या में विचरण करतां हु या प्रभु महावीर विगर जातपांत, वरगभेद अर वर्णभेद सूमैं Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ लोगां नै धर्म देपना दीवी। वारे प्रभाव सू संस्कार सुद्धि रो एक वो अभियान सरू हुयो । आतम तत्त्व री सही अोळखाण कर कई परिव्राजक, राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार महावीर रै धरम संघ मे सम्मिलित हुया। वारै संघ में चवदह हजार साधु, छत्तोस हजार साध्वियां, एक लाख गुणसठ हजार श्रावक अर तीन लाख अठारह हजार श्राविकावां हो । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | परिनिर्वाण आपणो पाउखो नड़ो जाण भगवान महावीर प्रापणे प्रिय शिष्य गौतम नै देवसरमा नाम र ब्राह्मण नै उपदेश देवण सातर अळगा मोकळ दिया। प्रभु र वेळे री तपस्या हो । इगा दिन वो सोला पहर ताई घरम उपदेस देवता र्या । घणाई तात्विक रावाल जवाब या । इणीज रात मांय काती वद चवदस ने (प्रमादम) प्रभु चार अघाति करम रो नास कर'र ७२ वर्ष ॥ अवस्था में सिद्ध-बुद्ध मुक्त हुया । ज्ञान रो अद्भुत ज्योत अचारणचक लुकगी। अ समाचार चारु कांनी फैलाया। जद गौतम ने इण वात रीठा पड़ी तो वी शोक विव्हल हुय'र विलाप करण लाग्पा-भगवन् आप प्रो काई करियो ? इण मौके पाप म्हनै अळगो क्यूं भेज दियो । हूंकाई टावर दाई प्रापरं लारै पड़तो, आपने मोक्ष पधारण सू राक लेवता ? म्हूं अवै किण नै वन्दणा करूं ला, किरण रै माम पापणी सकावा राखूला। देर ताई यू मोह ग्रस्त वणिया गोतम आंसूडा टळकावता र्पा । पण जद विहलता रो रो तूफान थमग्यो तद वाँरी दीठ बदळगी । वी सोचण लाग्या-अरे ! म्हारो गो मोह किण र खातर है ? भगवान तो वीतराग है. उणां रै प्रति प्रो किसो राग! क्यू नी म्हूं भगवान रै चरणां रो अनुसरण करू? ओ सरीर तो जड़ है, इण नै छोडियां विगर मुक्ति कोनी । भगवान पण इण पार्थिव सरीर नै छोड़ मुगत पधारिया है । म्हनै भी इणीज मारग पर प्राग बढ़णो है । इणं भांत सोचण सू गौतम रा मोहनीय करम हटग्या। वांन केवलज्ञान हुयग्यो । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जिण रात में प्रभु महावीर रो निर्वाण हुयो वीं रात में नौ मल्लवी, नौ लिच्छवी अठारह कासी-कोसल रा गणराजा पौषधवत में हा । वां कयौ-प्राज संसार सूभाव उद्योत उठग्यो । अब म्हां द्रव्य उद्योत करांला । घणघोर अंधारी रात में देवतावां रतना रो आलोक बिखेर र अर मिनखां दीया जला'र सै ठौड़ चांनणो कर दियो । चारू कांनी प्रकास रा पग मंडग्या । महावीर रो देहत्याग ओछब रो रूप ले लियो । इण भांत दीपमाळा री नूई भांत सू सरुआत हुई । __ महावीर रै निर्वाण रै सागै ससार री एक दिव्य ज्योत विलीन हैगी। तीस बरस री भरी जवानी में महावीर साधना रै कंटीले भारग पर बढ़या । साढे बारा बरसां वा कठोर तपस्या कीवी पर साधना रै बळ सू केवळज्ञान प्राप्त करियो । केवळी बण्या पार्छ तीस बरसां ताई वां लोक कल्याण खातर उपदेस देर लाखों लोगा नै संजम मारग कांनी वढण री प्रेरणा दीवी। ___ महावीर रा उत्तराधिकारी गणधर सुधर्मा प्रभु महावीर रै प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करतां कयो-जियां हाथियों में ऐरावत, पसुवां में सिह, नदियां में गगा, पक्षियां में गरुड़, पुष्पां में कमळ अर रसां में इक्षुरस श्रेष्ठ है, उगीज भांत तपस्वी ऋषि-मुनियां में भगवान महावीर श्रेष्ठ है। - - - Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Dassa १० महाबीर रा सिद्धान्त भगवान महावीर आज सू ढाई हजार बरस पैलां जै उपदेस दिया वै आज भी तर्क पर विज्ञान री कसौटी पर खरा उतरै है । वांरा सिद्धान्त प्राणिमातर री स्वतत्रता, समानता पुरुषार्थवादिता, वैचारिक उदारता अर मैत्री भाव पर आधारित है। वां में जो सत्य व्यजित है वो किणी एक जुग, काळ अर देश रो कोनो वो सार्वजनीन अर सार्वकाळिक है । जुग जुग तांई वांसू लोगां ने प्रेरणा मिलती रैवेली। उणां रा प्रमुख सिद्धान्त इण भांत है । [१] तत्त्व-चिन्तन जैन धरम साधना रो धरम है। ओ अनादिकाळ सूकलुषित आत्मा रै अशुद्ध रूप नै दूर करर शुद्ध रूप री प्राप्ति रो मारग बतावै । साधक नै संसार र बंधण सू मुक्ति हवरण खातर आत्मा री शुद्ध अर अशुद्ध स्थिति अर उरगर कारणां रो ज्ञान जरूरी है । प्रो ज्ञान तत्त्व ज्ञान कहीजै । नौ तत्त्व : जैन दर्शन में मुख्य तत्त्व नौ मानीज-(१) जीव (२) अजीव (३) पुण्य (४) पाप (५) आस्रव (६) बंध (७) संवर (८) निर्जरा अर (९) मोक्ष । इणांरो परिचय इण भात है - १. जीव तत्त्व : जीव तत्त्व रो लक्षण उपयोग-चेतना है । जिनमें ज्ञान पर दर्शन रूप उपयोग है, वो जीव है । जीव चेतन पण कहीजै। इण में Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ सुख-दुख, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि भावां रै अणभव र खमता हुदै । जीव तत्त्व रा दो भेद हुवै-(१) मुक्त अर (२) संसारी जो जीव करम मळ सूरहित हुयर ज्ञान, दरसन रूप अनन्त शु. चेतना में रमण करै, वो मुक्त भर करमां रै कारण जनम-मरण रू संसार में मिनख, तिर्यच, देव पर नारक गतियां में घूमतो रैवै व संसारी कहीजै । ससारी जीवां मांय सूदेव अर्व लोक में, मिनख अर पर मध्यलोक में अर नारक अधोलोक में निवास करै । मिनख रै स्पर्शन (सरोर) रसन (जीभ) प्राण (नाक) चक्षु (ख) अर श्रोः (कान) अ पाँच इन्द्रियां मन सहित हुवै, इण कारण वो मिनरू कहीजै । जीव री पाच जातियां हुवै-(१) एकेन्द्रिय, (२) द्वीन्द्रिय , (३) त्रीन्द्रिय (४) चतुरिन्द्रिय अर (५) पचेन्द्रिय । एकेन्द्रिय जीव रै सिर्फ एक इन्द्रिय सरीर हुवै । पृथ्वी, पानी अग्नि, वायु, वनस्पति राजीव एकेन्द्रिय जीवा है। द्वीन्द्रिय जीवां रै स्पर्शन (सरीर) अर रसन (जीभ) . दो इन्द्रियां हुवै । लट, सख, जौक आदि जीव द्वीन्द्रिय है। त्रीन्द्रिय जीवां रै स्पर्शन, रसन अर घ्राण (नाक). तीन इन्द्रियाँ हुदै । चींटी, कानखजूरा आदि जीव त्रीन्द्रिय है। चतुरिन्द्रिय जीवां रै स्पर्शन, रसन, अर घ्राण चक्षु (प्रांख अं चार इन्द्रियाँ हुदै । मक्खी, मच्छर. टिड्डी, पतंगा प्राति चतुरिन्द्रिय जीव है। पंचेन्द्रिय जीवॉ रै स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु पर श्रोत्र (कान अपांच इन्द्रियां हुवै । नारक, मनुष्य, देव, गाय, भैंस, कागला' कबूतर आदि पंचेन्द्रिय जीव है । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ २. अजीव तत्त्व : जिण में चेतना नों हुवे जो सुख-दुख रो अनुभव नी कर वो अजीव कहीजे । अजीव तत्त्व जड़ पर अचेतन हुदै। सोनो, चांदी, टि. चूनो आदि मूर्त अर प्राकास, काळ ग्रादि अमूर्त जड़ पदार्थ अजोय तत्त्व है। अजीव तत्त्व रा पाँच भेद हुव-(१) पुद्गल, (२) धर्म, (३) अधर्म, (४) प्राकारा अर (५) काल । जिग मे रूप, रस, गंध पर पर्श हुवे । जो आपस मे मिल'र आकार ग्रहगा कर लें पर विळग हो र परमाणु वरण जावै वो पुद्गल है । इगा में मिलगा पर पळग होवरण गे या क्रिया स्वभाव सूहुवे। दर्गन री भाषा में मिलण री क्रिया नै मघात अर विळग होणै रो क्रिया न भेट कैवे । धर्म तत्त्व गति में सहायक हुदै । जियां मछली खातर पाणी अप्रत्यक्ष रूप सू सहकारी है, उणीज भांत जीव अर पुद्गल द्रव्यां रै गति करगा मे धर्म सहकारी कारण है । क्रियायुक्त जीव अर पुद्गल नै ठहरण मे जो अप्रत्यक्ष रूप सू महायता देवं वो अधर्म द्रव्य है । धर्म द्रव्य अर अधर्म द्रव्य जीव अर पुद्गल द्रव्यां ने जबरदस्ती नी चलावै अर नी ठहरावै। अं तो निमित्त रूप मू उरणाग महायक वर्ग। जो सब द्रव्यां नै अाधार देव वो आकाश है। इण रा दो भेद लोकाकास अर अलोकाकास हुवै । जीव, पुद्गल, धर्म अधर्म, काल ये द्रव्य जितरा अाकाश मे व्हरै वो लोकाकास पर जठ आकास रै सिवाय दूजा द्रव्य नी हुवै वो अलोकाकास कहीजै। जो द्रव्या रै परिवर्तन मे सहकारी हुवै वो काळ द्रव्य कही जै। घंटा, मिनट, समय आदि काळ राईज पर्याय है। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० अंजीव अर अजीव तत्त्व संसार रै निर्माण रा मुख्य तत्व है । संसार अनादि अनन्त है । ईरी रचना किणी ईश्वर नी करी। ३. पुण्य तत्त्व : पुण्य शुभ करम हुवै अर पाप अशुभ करम । अ दोन्यूअजीव द्रव्य है । शास्त्रीय दृष्टि सूपुण्य रा नौ भेद है । वी इण भांत है(१) अन्न पुण्य, (२) पान पुण्य [३) लयन ( स्थान ) पुण्य, (४) शयन (शैया। पुण्य. (५) वस्त्र पुण्य, (६) मन पुण्य, (७) वचन पुण्य, (८) काय पुण्य अर (8) नमस्कार पुण्य । अर्थात् अन्न, पाणी, औखध आदि रो दान करणो, ठहरण खातर जग्यां देवणी, मन में आच्छा भाव राखणा, खोटा वचन नी वोलणा, सरीर सू आच्छा काम करणा, देव गुरू नै नमस्कार करणौ अ सगळा पुण्य करम है। ४. पाप तत्त्व: पापां रा कारण अनेक हवे पण संक्षेप में अठारा मानी-जै। में पापस्थान पण कहीजै । इणारा नाम इण भांत है(१) हिंसा (२) झूठ (३) चोरी ( ४ ) अब्रह्मचर्य (५) परिग्रह (६) क्रोध (७) मान (4) माया (8) लोभ (१०) राग (११) द्वेष (१२) कलह (१३) अभ्याख्यान (झूठो नाम लगायो, दोस देवरणो। (१४) पैशुन्य (चुगली) (१५) परनिन्दा (१६) रतिअरति पाप में रुचि धरम में अरूचि) (१७) माया-मृपावाद, (कपट सूझूठ बोलणो) अर (१८) मिथ्या दर्शन । व्यावहारिक दृष्टि सूपा बात कहीजे के पाप करण सूनरक रो दुख मिले, लोक में अपयश मिलै अर निन्दा हुवै । पुण्य करण सू देवलोक रो सुख मिले, अर लोक में यश, सन्तान, वैभव आदि रो प्राप्ति हुदै । पण पूर्ण मुक्ति र मारग पर वढ़णिया साधक खातर Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाप अर पुण्य दोन्यू हेय है। युभ-असुभ ने छोड़'र सुद्ध वीतराग भाव मै रमण करणोइज अध्यात्म रो लक्ष्य है। ५. प्रास्त्रव तत्त्व : पुण्य-पाप रूप करमा रै श्रावण रो रास्तो प्रास्रव कहीजै । नवरा पांच भेद इण भांत है- (१) मिथ्यात्व, (२) अविरति, (३) प्रमाद (४) कपाय अर (५) योग। मिथ्यात्व रो अरथ है विपरित सरधा राखणी, तत्व ज्ञान नीं हुवरणो। इण में जीव जड पदारथा में चेतना, अतत्त्व में तत्त्व, अधरम में धरम वृद्धि प्रादि विपरीत भावना री प्ररूपणा करै। अविरति रो अरथ हव-त्याग री भावना रो अभाव, त्याग में अरुचि, भोग मे मुख पर उत्साह री भावना। प्रमाद गे अग्थ है-पातम कल्याण खातर आच्छा काम करण री प्रवृत्ति में उत्साह नी हवरणो, आलस्य, मद्य, मांस आदि रो सेवन करगो। वपाय रो अरथ है-क्रोध, मान, माया, लोभ री प्रवृत्ति । योग रो अरथ है-मन, वचन काया री शुभाशुभ प्रवृति। योग दो भांत रा हुदै । सुभयोग पर असुभ योग । सुभ योग सूपुण्य रो बंध हुवै अर असुभ योग सूपाप रो। ६. बंध तत्त्व . सुभ-असुभ करम जद प्रातमा रै सागै चिपक जागै तद वा अवस्था वध कही । औ बंध चार भांत रा हुवै-(१) प्रकृति बंध, (२) स्थिति वध, (३) अनुभाग बन्ध अर (४) प्रदेस बन्ध । प्रकृति बंध करमा रै सभाव नै निश्चित करें। स्थिति बंध करमा र काळ रो निश्चय कर । अनुभाग बंध करमा रो फळ निश्चित Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करै अर प्रदेस बन्ध ग्रहण करियोड़ा करम पुद्गलां नै कमवेसी परिमारण में बांटे। ७. सवर तत्त्व : करम रै आवण रो रास्तो रोकणो संवर है । संवर प्रातमा री राग-द्वष मूलक असुद्ध वृत्तियां नै रोकै । संवर रा पांच भेद इण भांत है (१) सम्यक्त्व-विपरीत मान्यता नी राखणी। (२) व्रत-अठारह प्रकार रै पापां सूबचणो । (३) अप्रमाद-धरम रै प्रति उत्साह राखणो। (४) अकषाय -क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायां रो नास करणो। (५) अयोग--मन, वचन, काया री क्रियावां रो रुकणो। ८. निर्जरा तत्त्व : आतमा में पैलां सूआयोड़ा करमां रो क्षय करणो निर्जरा है । निर्जरा प्रातम सुद्धि प्राप्त करण रै मारग में सीढियां रो काम करै । प्रा दो भांत री हुवै-(१) सकाम निर्जरा अर (२) अकाम निर्जरा । सकाम निर्जरा में विवेक सूतप आदि रो साधना करी जावै । अकाम निर्जरा मे बिना ज्ञान अर सयम सूतप साधना करी जावै । विना विवेक अर सयम सूकरियोड़ो तप बाळ तप कहीजै । इण सूकरम निर्जरा तो हुवै, पण सांसारिक बधण सू मुक्ति नीं मिले । ६. मोक्ष तत्त्व : मोक्ष रो अरथ है-सगळा करमा समुक्ति । राग अर द्वेष रा सम्पूर्ण नास। मोक्ष प्रातम विकास री चरम पर पूर्ण अवस्था है। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इण अवस्था में स्त्री-पुरुप, पशु-पक्षो छोटा-बड़ा आदि रो काँइ भेद नी रवै । प्रातमा रा सगळा करम नष्ट हुवण पर वा लोक र अग्न भाग में पौन जावै । व्यावहारिक भाषा में उण नै सिद्धशिला कैवै । यूं मोक्ष कोई स्थान नी है । जिण भांत दीपक री लौ रो सुभाव ऊपर जावणो है, उणीज भांत करम मुक्त पातमा रो सुभाव पण ऊपर उठण ( अर्ध्वगामी हुवण ) रो है। करमा सू मुक्त हुवण पर प्रातमा पापणे सुद्ध सुभाव सूचमकबा लागे । उणी रोइज नाम मुक्ति, निर्वाण पर मोक्ष है। ____मोक्ष प्राप्ति रा चार उपाय है-सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र अर तप री आराधना । ज्ञान सूतत्त्व गे जाणकारी हुवै । दर्शन सू तत्त्व पर सरचा वढं । चारित्र सू करमा नै रोक्या जागै अर तप सूअात्मा रै बध्योडा करमा रो क्षय हुने । इण चारु उपाय सूजीव मोक्ष प्राप्त कर सके । इण री साधना मे जाति, कुळ, नश आदि रो कांई बंधण कोनी । जो यातमा आपण पातम गुणां नै प्रकट कर लेवै वा मोक्ष री अधिकारी वण जागे । [२] प्रातमा भगवान महावीर पातमा नै अनादि, अनन्त अर अनासवान बताई । वार मत में प्रातमा इज प्रापरणे गुणां रो विकास कर परमातमा वरण जावै। वीजा दार्शनिकां री मान्यता है के प्रातमा परमातमा रो इज अंस है। वारै मुताविक जियां आग सू"एक चिनगारी छिटक र न्यारी हुय जावै अर पाछी आग में मिल जावै, उणीज भांत पातमा पर परमातमा रो सम्बन्ध है । पण भगवान महावीर आतमा रो स्वतंत्र अस्तित्व मानियौ पर कयो-प्रातमा जद करम मळ रो नास कर'र निर्विकार हुय जावै तद वा खुदइज परमातमा बरण जाई। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ . प्रभु महावीर प्रातमा री अोळखाण करावतां कयौ- आतमा अमूर्त है। वा प्रांख्यां सूदेखी नी जा सके । वा शुद्ध चैतन्य स्वरूप है। सरीर में चेतना री अनुभूति प्रातमा रै कारण सू इज है। करमा रै मुताबिक पातमा मिनख पर जिनावरां रो सरीर धारण करै अर उणां रै कारण इज कदै नारकी रो दुख भोगै तो कदै देवलोक रो सुख । प्रातमा इज आपण सुख-दुख री कर्ता है अर वाइज उणां री भोक्ता। ____ महावीर री दृष्टि में प्रातमा अर सरीर जुदा-जुदा है। जठा ताई पातमा संसार सूमुक्त नी हुवै वा एक सरीर नै छोड' र वीजो सरीर धारण करती रैवै । भगवान महावीर परमातमा री कल्पना सृष्टि री रचनाकरण आला रे रूप में नी करी। वारी दृष्टि सूपरमातमा वीतरागी हवै। वांनै संसार सू काई लेगोदेणो नी । आतमा रो चरम विकास इज परमातमा हैं । इण दृष्टि सूजितरी आत्मावां तपसंयम रै मारग पर चाल' र आपणा करम क्षय कर देवै, वी सब परमातमा वा जावै। परमातमा बगियां पछै भी उणारो स्वतंत्र अस्तित्व रैवे । किणी एक जोत में मिल' र वी पापणो अस्तित्व नष्ट नी करै। स्वातंत्र्य बोध री आ मान्यता महावीर रै आतमवाद री खास विशेषता है। महावीर री दृष्टि में आतमा अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, पर अनन्त बळ री धरणी है। वींनै ओ बळ किरणी बीजी शक्ति सूनी मिलै । वा खुद आपणी साधना सू आपण में छिप्यौड़ा इण बळ नै जागृत करै। चार घातिक करम (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अर अन्तराय) आतमा री मूळ शक्ति रै स्रोत नै रोक लैवै । जद नै घाती करम नष्ट हुय जावै तद प्रातमा रो विकास पर उगरी अनन्त शक्ति रो बोध हुवै । श्रातमा री तीन अवस्थावां 1. बहिरातमा : आतमा री तीन अवस्थावां मानी-बहिरातमा, अन्तरातमा Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३ पर परमातमा । १ बहिरातमा: बहिरातमा वा अवस्था जिणमें आतमा जागृत नींहुवे, वीनै प्रातमजान नी हुवै । जीव, सरीर पर इन्द्रियाँ नैइज वा प्रातमा ममझे। २. अन्तरातमा: अन्तरातमा वा अवस्था है जद जीव नै ज्ञानी पुरुसां रै सम्पर्क सूत्रातमज्ञान हुवे। वो नै सरीर सू आपण अळग अस्तित्व रो भान हवे । वाया वात समझ जावे के जिण भांत म्यान पर तलवार एक नी है, उगीज भांत पातमा अर सरीर पण एक कोनी । अन्तमुंख नातमा सरीर नै पर पदारथ समझ' र उण पर मुग्ध नी हुवे। उरण नै संसार घर उगरे पदार्थी सू हर्ष अर विषाद नी हुदै । उपने इष्ट-सयोग में सुख अर इप्ट-वियोग में दुख नी हुवै । समभाव री जोत उणरै मानस ने जगमगावा लागै। राग-द्वेष रो भाव नष्ट हृय जावै । दुनियां री से वस्तुग्रां पर घटनावां ने वा मध्यस्थ भाव सूदेखें। ३. परमातमा: परमातमा वा अवस्था है जद प्रातमा नै अतीन्द्रिय ज्ञान हुय जाने। वा अनन्त सुख, अनन्त ज्ञान पर अनन्त सक्ति रो स्रोत वण जागे । उणमे किरणी भांत रो विकार नी हुने । बा परमानन्दमयी पर विशुद्ध चैतन्य स्वरूप पाळी हुय जाने। श्रा परमातम दसाइज परमब्रह्म है, जिनराज है, परम-तत्त्व हैं, परमगुरु, परमज्योति, परमतप, अर परम ध्यान है। जै इग सरूप नै जाग लियो बी से कुछ जाण लियो अर जै इण सरूप नै नीं जाणियो वां से कुछ जाण' र भी कांई नी जाणियो। [३] कर्म विश्व रै विशाल रंगमंच पर निजर डालण तूं मालूम हुवै के पण में चारकांनी विविधता पर विषमता है । चार गतियां पर Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारासी लाख जीव योनियां में भ्रमण करण आळा जीव एक जिसा रूप अर शक्ति आळा कोनी । कोई मिनख है तो कोई पसु, कोई पंछी है तो कोई कीड़ा-मकोड़ा। मनुष्य गति में पण अनेक भांत री विषमतावां देखण ने मिलै । कोई मिनख हृष्ट-पुष्ट है तो कोई दुबळो-पातरो। कोई रूपाळो मनमोवरणो है तो कोई कालो-कलूटो। कोई धनवान है तो कोई गरीब । कोई सुखी है तो कोई दुखी । कोई नीरोगी है तो कोई जनमजात रोग आळो । प्रभु महावीर इण सगळी विषमतावां रो कारण प्रापणा-प्रापणा करमा नै बतायो । पाच्छा करम रै बंध सूमिनख नै सुख अर बुरा करमां रै बंधण सूदुख मिलै । करम रो सरूप लोक व्यवहार पर सास्त्रां में करम सबद काम-धन्धा पर व्यवसाय करण रै अरथ में प्रयुक्त हुवै । खावरण-पीवण, हलण-चलण आदि कामां में भी करम सबद रो प्रयोग हुदै । परण जैन दर्शन में करम सबद रो एक विशेष प्ररथ, हुवै। संसारी जीव, जद राग-द्वेष युक्त मन, वचन, काया री प्रवृत्ति कर तद आतमा में एक स्पन्दन हुवै जिसू वा चुम्बक री दाई बीजा पुद्गळ परमाणुवां नै पापणी तरफ खीचे, अर नै परमाणु लोहे री दाई उरण सूचिपक जाने । औ पुद्गळ परमाणु भौतिक अर अजीव हुने पण जीव री राग-द्वेषास्मक मानसिक, वाचिक अर कायिक क्रिया रे द्वारा खींच'र प्रातमा रै सागै दूध-पाणी दाई घलमिल जाने, आग अरलो हपिण्ड री दाई आपस में एकमेक हुय जावै । जीव रै द्वारा कृत (क्रिया) हुवण सू में कर्म कहीजै । कर्म बंध रा मूल कारण राग अर द्वेष है । रागद्वेष री भावना रै वसीभूत हुय जै करम करै उण रो फळ वान अवस मिले । आच्छा करमा रो फळ आच्छो पर बुरा करमां रो फळ बुरो मिलै । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ करम रा भेद : आतमा रा मुख्य पाठ गुण हुनै । इणांन आच्छादित करण सूकरम भी आठ प्रकार रा मानीज (१) ज्ञानावरण (२) दरसनावरण (३) वेदनीय (४) मोहनीय (५) आयु (६) नाम (७) गोत्र अर (८) अन्तराय। इणा पाठ करमां मांय सूज्ञानावरण, दरसनावरण, मोहनीय अर अन्तराव प्रचार घाती करम कहीजे पर वाकी रा चार वेदनीय, प्रायु, नाम पर गोत्र अघानी करम कहीजै । घाती करम ग्रातमा रै साग रचे । प्रातमा रै ज्ञान, दरसण, चारित्र, सुख आदि मूल गुणां रो घात करै। इण करमा नै नष्ट कियां विगर आतमा सर्वन पर केवळो नी वण सके। अघाती करम आतमा रै मूल स्वरूप नै नष्ट नी करै । इणांरो असर केवल सरीर, इन्द्रिय, उमर आदि पर पड़े । इणांरो सम्बन्ध इगीज जनमताई रवै। १. ज्ञानावरण : जो करम प्रातमा री ज्ञान शक्ति नै अाच्छादित कर वो ज्ञानावरण करम कहीजे । ज्यू प्रांख्यां पर लाग्योड़ी कपड़े री पट्टी देखण में बाधा डालै, उणोज भांत नानावरण करम पातमा नै पदारथ रो जान करण मे रुकावट डाले। २. दरसनावरण : दरसनावरण करम पातमा री पदारथां नै देखण री शक्ति नै आच्छादित करै । ओ करम पैरेदार रै समान है जो राजा रै दरसण करण या मिलण में रुकावट डाले। ३. वेदनीय । वेदनीय करम रा दो भेद हुगे-साता वेदनीय अर असाता वेदनीय । साता वेदनीय र उदय सूजीव सारीरिक र मानसिक Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ सुख रो अनुभव करै अर असाता वेदनीय रै उदय सूजीव दुख रो अनुभव करै । वेदनीय करम सैंत सूपुत्योड़ी तलवार रै माफिक है। सैंत पुत्योड़ी तलवार री धार चाटतां समय जो छणिक सुख मिल वो साता वेदनीय अर चाटतां वगत तळवार री धार सूजीभ कटण रो जो दुख मिले वो असाता वेदनीय । कवा रो मतळब प्रो के संसार रा सगळा सुख दुख-मिश्रित है। ४. मोहनीय मोहनीय करम दारू रै माफक है । ज्यू दारु मिनख री बुद्धि नै नष्ट करै अर वो बेभान हुय जाग, वीं नै हिताहित रो ज्ञान नीं रैवै, उणीज भांत प्रो करम आत्मा रै ज्ञान सुभाव नै विकृत बणाने । उणमै पर पदार्थारै प्रति ममत्व बुद्धि जगायै । आठ करमां माय मोहनीय करम सगळा सू भयंकर अर ताकतवर है । प्रो करमा रो राजा कहीजै। ५. आयु प्रायू करम री स्थिति सू प्राणी जीने पर उणरै नष्ट हुवण सूजीव मरै । इण करम रो सुभाव कैदखाना रै माफिक है । जियां अदालत सू सजा पायोड़ो अपराधी पूरी सजा पायां बिगर पैलां नीं छूट सकै, उणीज भांत आयु करम जठा ताई बणियो रैनै बठा ताई जीव आपण सरीर रो त्याग नी कर सके। आयु करम रा नरकायु, निर्यञ्च प्रायु, मनुष्य प्रायु अर देव आयु अ चार भेद है । ६. नाम : नाम करम जीव नै एक जूण सूदूसरी जूण में ले जाने । इण करम रै कारण इज जीव री जूण अर जूण सम्वन्धी सरीर री अवस्था-व्यवस्था निश्चित हुनै। ओ करम चित्रकार रै मुजब है। जियां चित्रकार भांत-भांत रा चित्र बणाने उणीज भांत भो करम Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव, नारक, मनुष्य, पशु-पंछी रे सरीर, इन्द्रिय, अवयव वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि री रचना करें । नाम करम रा दो भेद हुने-सुभ पर असुभ । सुभ नाम करम सूरूबाळो, सुडौळ, आकर्षक पर प्रभावशाली सरीर वर्ण अर असुभ नाम करम सूबदसूरत, वेडोल सरीर री स्थिति हुगे। ७. गोत्र : गोत्र करम जीव री उण स्थिति से निर्धारण कर जिण रे कारण जीव इसा कुळ, जाति, परिवार आदि में जनम लेने के वो ऊंचो-नीचो समस्यो जावै । ई करम से तुलना कुम्हार सू करी जानै। जियां कुम्हार भात-भतीला धड़ा वरणागै, उणांमें सूकुछेक घड़ा इसा हुवी के लोग वारी अक्षत, चंदरा आदि सू पूजा करै पर कुछेक घड़ा इसा हुौ के दारु मादि राखण में काम आने पर खराव समझया जाने। ८. अन्तरायः अन्तराय करम रै उदय सू प्रातमा रो दान, लाभ, भोग उपभोग पर वीर्य (वळ ) सम्बन्धी सक्तियां में रुकावट प्रानै । इण करम रै कारण इज लोगां में साहस, वीरता, प्रातम विश्वास आदि री कमी-बेसी हुगे । ओ करम खजांची ₹ मानिन्द है । जियां राजा रो हुकम हुवरण पर भी खजांची रै विपरीत होणे सूइच्छा माफक धन री प्राप्ति में रुकावट पड़े, उणीज भांत पातमा रूप राजा री दान, लाभ आदि री अनन्त शक्ति होता इयां भी ओ करम उण रै उपभोग में बाधा डाले। पुरुसारथ पर करम : मिनख प्रापण करमा (भाग्य) रो खुद निरमाता है। वो मापण कियोड़े करमा नै भुगतरण खातर बाध्य है, पण इतरो बाध्य Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ कोनी के वो उरणांमें कोई बदळाव नी ला सके। करम बांधण में मिनख नै जित्ती स्वतंत्रता है, उत्तीई स्वतंत्रता उणनै करम भोगण में भी है । पुरुसारथ रै बळ सूमिनख करम रे फळ में परिवर्तन ला सके । भगवान महावीर करम-परिवर्तन रा चार सिद्धान्त बताया-- १. उदीरणा -नियत अवधि सू पैलां करम रो उदय में आवरणो। २. उद्वर्तन-करम री अवधि अर फळ देण री शक्ति मे बढ़ोतरी हुवणी। ३ अपवर्तन-करम री अवधि भर फळ देण री सक्ति मे कमी होवरणी। ४. संक्रमण-एक करम प्रकृति रो बीजी करम प्रकृति में संक्रमण हुवरणो। इण सिद्धान्त र माध्यम सूप्रभु महावीर बतायो के मिनख आपरणे पुरुसारथ रै बळ सूबंध्योड़ा करमां री अवधि कम-बेसी कर सकै । वो करमां री फळ-सक्ति नै मंद या तीव्र पण कर सके । इण भांत नियत अवधि सूपैलो करम भोग्यो जा सके । तीव्र फळ पाळो करम मंद फळ आळं करम रै रूप में अर मंद फळ पालो करम तीव्र फळ पाळे करम रै रूप में भोग्यो जा सकै । पुण्य करम रा परमाणु पाप रे रूप में अर पाप करम रा परमाणु पुण्य रे रूप में संक्रात हुय सके। करम रा में सिद्धान्त मिनख नै निरासा, अकर्मण्यता, पर पराधीनता री मनोवृत्ति सू बचावै । जैमिनख रो वर्तमान पुरसारथ सत् हुवै तो वो अतीत रा असुभ करम-संस्कारी नै नष्ट कर सके या उरणांनै सुभ में बदळ सकै । पर जै उणरो वर्तमान पुरसारथ असत् हुवै तो वो आपण लाभ सू भी वंचित रैय जावै । संक्षेप में कयौ जा Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९ सके के जो मिनख प्रापणे पुरषारथ रै प्रति सांची है, जागरूक है, तो वो आपण कर मां री अधीनता सू बार निकळ सके। महावीर रो करम सिद्धान्त इण बात पर जोर देव कै मिनख नै मिल्योड़ा दुखसुख किरणी ईश्वर र विरोध या किरपा रा प्रतिफळ कोनी। वां रो कर्ता-भोक्ता मिनख खुदईज है पर वीं में ईज आ ताकत है के वो प्रापणं साधना रै बळ सूअापणो भाग्य (कर्म) बदळ सकै । ईश्वरनिर्भरता सू छुड़ा'र मिनख नै प्रातम निर्भर वरणावरण में महावीर रै करम सिद्धान्त री महत्त्वपूर्ण भूमिका है । [४] तप राग-द्वषादि पाप करमां सूजै पातमा मलीन पर असुद्ध हुवी। उगरी सुद्धि खातर तप रो विधान है। तप एक इसी आग है जिमें तप'र आत्मा विसुद्ध वरण जाने। तप दो भांत रो हुवै-(१) बाह्य तप (२) याभ्यन्तर तप । वाह्य तप: जिरा क्रिया रे करण सू, इन्द्रियां रो निग्रह हुवे, वृत्तियां रो संयम हुवै, लोगां ने भी मालूम हुने के ओ तप कर र्यो है वो बाह्य तप कहीजै, जियां उपवास या दस बीस दिनांरी लाम्बी तपस्या या विगय (घी, दूध, दही आदि) त्याग तथा सरीर नै सरदी, गरमी आदि में राख'र तकलीफा सहन करण रो अभ्यास करणो आदि । वाह्य तप रा छ भेद : वाह्य तप रा छ भेद है-अनसन, ऊरपोदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, कायकलेस पर प्रतिसंलीनता । १. अनसन अनसन रो अरथ है-याहार रो त्याग करणो। यो तप Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सगळा तपां में पैलो है आहार र प्रति सगळा प्राणियां री आसक्ति हुनै । भूख पर विजय पाणो सबसूदोरो है । आहार त्याग रो मतलब हुनै प्राणां रो मोह छोड़णो, मौत रै डर नै जीतणो। आहार त्याग सू मानसिक विकार दूर हुनै । ओ तप उपवास कहीजै। उपवास सबद दो सबदां सूबण्यो है। उप+वास । उप रो अरथ हुवै समीप पर वास रो अरथ है-रैवरणो । अर्थात् आत्मा रै नैड़ेरैवणो । पातमा रो सुभाव आनन्दमय अर ज्ञानमय है। इण आनन्द री अनुभूति वोईज कर सके जो राग-द्वेष आदि विकारा सूअळगो रैर समभाव में रमण करे। २. ऊरणोदरी : तप रो दूजो भेद ऊरणोदरी है। इण रो मतलब है भूख सू कम खावणो । इण तप सू खाद्य-संयम री भावना नै बळ मिले पर अनावश्यक धन संचय करण री प्रवृत्ति पर अंकुस लागे । ओ तप धार्मिक दृष्टि रै साग-सागै आर्थिक र सामाजिक दृष्टि सू भी घणो उपयोगी है। ३. भिक्षाचरी: तीजै तप भिक्षाचरी रो सम्बन्ध निरदोस आहार ग्रहण करण री विधि सू है । इण तप रो सम्बन्ध विशेष कर मुनियां सू है । मुनि निरदोस आहार ग्रहण करबा खातिर भिक्षावृत्ति करै । वीं कई घरां सूथोड़ो-थोड़ो भोजन लै'र प्रापणो गुजर-बसर करै। इण तप में साधक रै खातर विधान है के वो अभिग्रह आदि नियमां सूलूखो-सूखो जिसो भी निरदोस आहार मिल जावै, समभाव सू ग्रहण करै । श्रावक नोतिपूर्वक जोवननिर्वाह रा साधन जुटावै। ४. रसपरित्याग : चौथै रस परित्याग तप में सूवाद वत्ति पर विजय पावरण रो Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ प्रादर्श है । जीभ रे मुवाद पर विजय पावणी घणी मुसकल है। इण कारण इण साधना नै भो तप मानियो है । इण तप रो साधक सवाद पर विजय पा'र अभक्ष्य चीजा रे ग्रहण सू बचे । ५. कायक्लेस: पांचमो कायकलेस तप है। कलेस रो अर्थ है-कष्ट । प्रातम कल्याण खातर शरीर नै कष्ट देवरणो कायाकलेस तप है। इण तप में प्रातमा रा करम मळ दूर करण खातर सरीर नै भूख, तिस, सर्दी, गरमी, ध्यान, आसन आदि धार्मिक क्रियावां सू तपायो जावै । इण क्रिया सूपातमा में स्थिरता, शुद्धता अर सहनशीलता जिसा गुणां रो विकास हुवे। ६. प्रतिसंलीनता: __छटो प्रतिसलोनता तप है। इन्द्रियां नै असद्वृत्तियां सू हटा'र सद्वृत्तियां में प्रवृत्त कराणो प्रतिसंलीनता तप है। इण रा मुख्य रूप सूचार भेद है। इन्द्रिय प्रतिसंलीनता तप में पांचू इन्द्रियां (प्रांख, नाक, कान, जीभ, सरीर) नै विषय विकारां सूदूर राखण री कोसिस हुवै । कषाय प्रतिसंलीनता में कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) री प्रवृत्ति रो निग्रह कियो जावै। योग प्रति संलीनता में मन, वचन अर काया नै असुभ भावां सूसुभ भावां कांनी मोडयो जावै । मन नै एकाग्र कियो जावै, मौन राख्यो जानै । विवक्त सय्यासन सेवना तप में इसी ठौड़ रैवरण री मना हु जिसू काम, क्रोध आदि मनोविकारां नै उत्तेजना मिले। प्राभ्यन्तर तप: आभ्यन्तर तप री साधना सू सरीर नै कष्ट तो कम मिले पर मन री एकाग्रता, सरळता, भावां री शुद्धता रो प्रभाव बेसी रैन। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ आभ्यन्तर तप रा छह भेद : प्राभ्यन्तर रा छह भेद हुगे-प्रायश्चित, विनय, नैयावत्या, स्वाध्याय, ध्यान पर व्युत्सर्ग। १. प्रायश्चित : प्रायश्चित रो अरथ है-प्रमाद या अणजाण में हुई भूला रे प्रति मन में ग्लानि या पश्चाताप करणो पर उणां नै फेर दुबाग नी करण रो संकल्प लेवणो । इण भांत प्रातम निरीक्षण सू जीवन शुद्ध पर सरळ बणै । २.विनय : विनय रो प्ररथ है नम्रता । प्रापणे सूबड़ा रे प्रति नम्रता पर छोटा र प्रति स्नेह पर वात्सल्य भाव राखणो विनय तप है। विनय सूअहकार टूट पर सदाचार री भावना में बढ़ोतरी हुगे। ३. वैयावृत्य : नैयावृत्य रो अरथ है-सेवा । जो साधक निस्काम भाव सू समाज सेवा पर राष्ट्र सेवा करै वो भी बड़ो तपस्वी मानीजै। जैन आगमां मुजब सेवा करण सूतीर्थङ्कर गोत्र करम री प्राप्ति हुने । सेवा परम धर्म है । इण सूकरमा री निरजरा हुने। ४. स्वाध्याय : __स्वाध्याय रोप्ररथ है-विधिपूर्वक सत् शास्त्रां रो अध्ययन करणो। अध्ययन में तल्लीन हुवण सू मन एकाग्र हुवै, शुद्ध विचार पावै पर ज्ञान बधै। इण सूज्ञानावरणी करम रो नास हुवे । वाचना, पृच्छता, परिवर्तना, अनूप्रेक्षा, धरमकथा आदि स्वाध्याय रा पांच प्रकार है। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ ५. ध्यान : ध्यान रो प्ररथ है-मन री एकाग्रता। मन नै असुभ विचारां सूसुभ कांनी मोडणो। सुभ कांनी बढतो मन किणी विषय में तन्मय हुय जागे तो वो ध्यान कहीजै। ध्यान सूपातम बळ रो विकास हुने । ध्यान चार भांत रो हुने-पात, रौद्र, धर्म पर शुक्ल । पैला दो ध्यान असुभ मानीजै । अत्यागण जोग है। पाखर रा दो ध्यान सुभ है । लम्बी तपस्या उपवास सूजितरा करम क्षय नी हुने, उतरा मुहूर्त भर रै सुभ ध्यान नहुय जाने । ६. व्युत्सर्ग: व्युत्सर्ग रो अरथ है-विशिष्ट विधिपूर्वक त्याग करणो। धन, सम्पत्ति, सरीर श्रादि र प्रति आसक्ति पर कपाय (काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि रो त्याग करणो व्युत्सर्ग तप है। इण तप में देह रे प्रति प्रासक्ति सू मुक्त रवण रो अभ्यास करियो जाने। ऊपर बतायोड़ा तप री साधना सू करमां री निर्जरा पर अनेक गुणां रो विकास हुने जै स्वस्थ समाज अर प्रगतिशील मजबूत राष्ट्र र विकास रा मूल आधार वर्ण । [५] गृहस्थ-धर्म भगवान महावीर साधुओं पर गृहस्थां रेखातर जिण धरम री व्यवस्था दीवी, को क्रमश: श्रमण धरम अर श्रावक धरम कही जै । साधुनां खातर महाव्रतां रो पर श्रावकां खातर अणुवतां रो विधान है । महाव्रतां रै पाळरण में मुनि सगळा पाप करमां सूबचे पण गिरस्त री कुछ सीमावां, मर्यादावां हवै जिरण कारण वै सम्पूर्ण पाप करमां रो त्याग कोनी कर सके। पापां रो आंशिक त्याग इज अणुव्रत या श्रावक धरम कहीजै। पाप, प्राणियां रै आन्तरिक या आत्मिक विकारां रो इज दूजो नाम है । विकार इज दुखां रो कारण है। इणां विकारां सूदुख वढं अर इणारी कमी सूदुख घटै। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ पांच अणुव्रत : मोटे रूप सू पाप पांच भांत रा हुने हिंसा, झूठ, चोरी, कुसील पर परिग्रह । इरण पापां रो अंशतः त्याग अणुव्रत कहीजै । भी उणीज क्रम सू पांच भांत रा हुने - ( १ ) अहिंसा ( २ ) सत्य (३) अचौर्य ( ४ ) ब्रह्मचर्य र (५) परिग्रह - परिमाण । १. अहिंसा : इण व्रत रो धारक हिंसा रो देशतः त्याग करें। वो संसार रे सगळा प्राणियां ने आपणी आत्मा रे समान समझे। वो सोच के जियां दुख म्हने नी पसन्द है उणीज भांत दूजा प्राणियां ने भी दुख पशन्द कोनी | श्रा सोच वो दूजा प्राणियां रो अहित नी करें। उणां कष्ट नीं देवै । अहिसा में उणरी पूरी सरधा हुने । हिंसा ने वो त्याज्य समझे । परण गिरस्ती में सम्पूर्ण हिसा सू बचणो संभव कोनी | इ कारण अहिसारणुव्रत रो संकल्प ले'र वो निरपराध प्राणियां ने तकलीफ नी देने, उण रो वध नीं करें, पसुवां आदि पर बत्तो भार नीं लादै, चाबूक, बैत श्रादि उणां पर वार नीं करें। वांने भूखा-तिसा न राखे । किणी सागै क्रूरता पूर्ण अमानवीय बैवार नीं करें। इरण व्रत रे पाळण सूळ हिसा क्रूरता कम हुय' र अपणायत अर लोककल्याण री भावना में बढ़ोतरी हु- । • २. सत्य इण व्रत में असत्य रो देशतः त्याग करियो जागे । इण व्रत ₹ धारक में सत्य रं प्रति पूर्ण निष्ठा हुने । वो झूठी साख नीं देवने । जाळी दस्तखत नीं करें। किणी री राखीयोड़ी धरोहर ने पाछी देवरण सू ना नीं करें। झूठा लेख, भाषण र विज्ञापन आदि नां देने । इरण व्रत रे पाळण सू अविश्वास मिटर विसवास, सत्यता, ईमानदारी, प्रामाणिकता जिसा गुणां री बढोतरी हुने । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ ३. अचार्य : इस व्रत में चोरी रो देशतः त्याग करियो जागै । इण व्रत र धारक रो अत्रौर्य में पूरी विसवास हुने । वो दूजां री वस्तु चोरी री नियत सूनी लैवे। चोर ने चोरी करण में की भात री मदद नीं दे । नकली वस्तु नै असली वतार पर असली नै नकली वतार नीं वेचे । वस्तु में किणी भात री मिलावट नी करै। राज रै नियमांरे विरुद्ध काम नी कर । जेब काटण अर सैध लगाए जिसा चोर करमा सू सदा बचियो री। कम ज्यादा नाप तौल नी करे। मिनख रैथम, सक्ति पर सम्पत्ति रो अपहरण नी करै। न्याय अर नीति सूधन कमार आजीविका चलागे। इण व्रत रै पाळण सू सम्पत्ति रो अपहरण मिटर न्याय-नीति रो प्रसार हुगे। ४. ब्रह्मचर्य : इण व्रत रो धारक परस्त्रीगमन रो त्याग व स्वस्त्री गमन री मर्यादा राखे । अप्राकृतिक काम भोग नी करै । नग्न नृत्य, अश्लील गायन, भद्दी मजाका ग्रादि सूबचे। इण व्रत सूव्यभिचार, दुराचार मिटर सदाचार रो प्रसार व पोषण हुवे । ५. परिग्रह-परिमारण : इण व्रत में परिग्रह र परिमाण रो नियम कियो जाग।ई व्रत रोधारक या सोचे के परिग्रह वृत्ति विपय कषायां ने बढ़ाय पाळी है,। गिरस्त होवरण रे कारण वो पूर्ण रूप सूतो परिग्रह रो त्याग नीं कर सके पण धन-धान्य, खेती, पशु, दुकान, मकान, सोना, चांदी, आदि राखण री निश्चित मर्यादा अवश्य करें। इस व्रत रै पाळण सू आर्थिक विषमतावां पर संघर्ष मिटर समता व शान्ति रो प्रसार हगे। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ तीन गुणवत: पांच अणुव्रतां नै गुणाकार रूप में वढ़ावण खातर गुणाब्रतां री योजना हुनै । अगुणवत तीन प्रकार रा है१. दिग्वत : इण रो प्ररथ है चारू दिसावां में प्राण-जाणं रो परिमाण निश्चित करणो। २. देसवत : इण रो अरथ है-क्षेत्र विषयक हद वांधणी, अमुक नदी, पहाड़ आदि री सीमा सूबार नैपार नी करणो। ३. अनर्थदण्ड विरमण व्रत सरीर री चंचळता, अस्थिरता, वाणी रो अनर्गल उपयोग आदि अनर्थ दण्ड है। इण व्रत में इसा कामां सूबच्यो जाने जिण रै करण सूआपणो कोई भी प्रयोजन नी सर पर बिना कारणई पाप करमां रो संचय हुने। चार शिक्षावत: पांच व्रतां नै मजबूत बणावण खातर शिक्षावतां रो विधान करियो गयो है । औ शिक्षावत चार प्रकार रा है१. सामायिक व्रत : इणमें सगळा पापां रो त्याग कर समभाव नै प्राप्त करण री साधना की जानै । सामायिक करतां वगत श्रावक निष्पाप जीवन बितानै । इण सूतन, मन, अर वापी में स्थिरता माने। २. देसावकासिक व्रत : दैनिक व्रत ग्रहण करणरी प्रवृत्ति देसावकासिक व्रत कहीजे । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ श्रावक हिंसादि प्रास्त्रवां रो द्रव्य, क्षेत्र, काळ री मर्यादा सूनितहमेस संकोच करै । इण र अभ्यास सूजीवन संयत अर नियमित वर्ण । ३. पोसवोपवास व्रत : इण व्रत में साधक हिंसादि पाप करमा रो एक दिन रात खातर त्याग करै। पौषध व्रत में वो खुद पाप कर्यां नवचै अर दूजा सू भी वो हिसादि रा काम नी कराने। ४. अतिथि संविभाग व्रत घर आयोड़ो अतिथि देव री भांत हुनै । साधु-साध्वी पर साधर्मीजनां रो भावनादर करणो हरेक गृहस्थ रो फरज हुने । समतावृत्ति वढावरण में तथा समाज में सौहार्द भाव री थरपणा में ओ व्रत घणो उपयोगी है। [६] अहिंसा अहिंसा सवद रो अर्थ है-हिंसा नी करणी, किणी जीव नै नों मारणो । अहिंसा रो मरम भलीभांत समझरण खातर हिंसा रो सरूप समझरणो जरूरी है। जैन परिभाषा मुजब हिंसा सवद रो अरथ हुवै-प्रमाद युक्त मन, वाणी पर सरीर सूदूजा रै अथवा आपण प्राणां रो नास करणो । प्राण दस हुवै-पांच इन्द्रियां, मन, वाणी, सरीर, सांस पर आयु । इण दसूप्राणां मांयसूकिणी एक ने भी प्रमाद रै वसीभूत हुयर नुकसाण पोहचाणों, हिंसा है हिंसा रो मूल कारण प्रमाद । प्रमाद पांच भांत रा हुवै(१) इन्द्रियाँ री विषयासक्ति (२) कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ आदि मनौवेग Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ (३) आलस्य या असावधानी । (४) विकथा-बेकार री बातां । (५) मोह-राग-द्वेष आदि अप्रमाद हृदय नै विकृत अर संकुचित बणावै । इणा सू प्रेरित हुय'र दूजा रै प्राणां नै आघात पोहचाणो हिंसा है। प्रमाद भाव नै नष्ट करण खातर मैत्री अर अभेद भावना रो विकास करणो चाइजै । द्वेष अर सुवारथ नै मैत्री अर समानतारी भावना सूजीतणो चाइजै । सब जीव जीवणो चावै, मरणो कोई नी चावै । सव जीवां ने आपण समान समझ'र किणी नै नुकसान नी पहचाणो, जिसो बैवार आपांनै आपरणे सागै पसन्द है विसोइ बैवार दूजां रै सागै करणो, अहिसा है। हिसा रो मूल कारण प्रमाद युक्त आचरण होता हुयां भी पांच ओरु बीजा कारण है जिरणां रै वसीभूत होय'र मिनख हिंसा करै। वै इण भांत है (१) अर्थ दण्ड (२) अनर्थ दण्ड (३) हिंसा दण्ड (४) अकस्मात दण्ड (५) दृष्टि विपर्यास दण्ड । मनोरंजन खातर किणी प्रांणी नै मारणो, दुख पोंचावणो, अंग-भंग करणो अनर्थ दन्ड है। इण हिसा सूनी तो सरीर री रक्षा हुवै अर नी परिवार, कुटुम्ब पर मित्र रो कोई प्रयोजन सिद्ध हुवै । कोई जीव ापान मार सकै या किणी भांत रो नुकसान पोंचाय सकै इगरी आसंका मात्र सूईज उणनै मार डालणो हिसा दण्ड । है । अचाणचक गलती सू एक र बदळ दूजा जीव री हिसा कर देवणी अकस्मात दण्ड है। इणीज भाँत भ्रम सूमित्र नै शत्रु समझर या साहकार नै चोर समझ र उरणनै दण्ड देवणो दृष्टि विपर्यास दण्ड है। इण कारणां रै अलावा हिंसा रा मुख्य निमित्त है-राग पर द्वेष । राग रा दो प्रकार है-माया पर लोभ पर ष रा भी दो प्रकार है-क्रोध अर मान ।, Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ क्रोध में प्राय पुत्र-पुत्री आदि पारिवारिक सदस्यांने मारणो, पीटगो, सरदी-गरमी में उघाड़े सरीर ऊभोकर देणो, आ हिंसा क्रोध निमित्तक हिसा कहीजै । जाति, कुळ, बळ रूप, तप, ऐश्वर्य, प्रज्ञा आदि में खुद नै वड़ो मानर घमण्ड करगो, दूजां नै नीचो • समझणो, उरणारो अपमान करणो मान निमित्तक हिंसा है। ऊपर सूसभ्य अर शिप्ट वण'र छिप्योड़े रूप सूपाप करणो, दूजां नै ठगणो, कपट करणो, उरणां रै गुप्त भेदां सूबेजो फायदो उठाणो मायानिमित्तक हिसा है। ऊपर सूभोग रै प्रति उदानीनता रो भाव धारर कामभोगां री पूरति खातर, विपय भोगां री चीजां रो संग्रह करणो, उरण संरक्षण री चिन्ता करणी लोभनिमित्तक हिंसा है। जैन धरम में प्रातमघात करणो बहुत बड़ी हिसा है । घणकरा लोग कैव के श्रापणी आत्मा रो घात करण में हिंसा कोनी, पण पा बात गलत है। आतमघात करगियो मिनख भय, क्रोध, अपमान, लोभ, राग आदि भावां सूप्रेरित हुय'र आतमघात करै । अं कारण हिंसा रा ईज है । आतमघाती मिनख में प्रातम विसवास पर कस्ट सहिप्णुता नी हुवे । कायरता, भय, दीनता, आतमविसवास रो कमी आदि अवगुण, सद्गुरणां रो नास करै । इण वास्तै आतमघात महापाप अर हिसा मानीजै । पण साधक जद काळ नै नैडो जारण समभाव पूर्वक अनशन व्रत अंगीकर कर'र आतमसरूप मे रमण करता हुयो मरण प्राप्त करे तो वो आतमधात नी कहीजे । श्रो समाधि मरण कहीजै । साधना री दृष्टि सूईरो घणो महत्त्व है । मिनख आजीविका, आमोद-प्रमोद पर सवाद रै वसीभून हुय'र दारू, मांस, चमड़ा, दांत आदि सूवरणी चीजां रो उपयोग करै । जैन दृष्टि सूआ भी हिसा मानीजै । - रूढ़िवादी लोग लौकिक मान-मनौतियां पूरी करण खातर देवी-देवता रै सामै अनेक जीवां री बळि देव । देवी-भक्ति पर Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० सिद्धि प्राप्ति री आड़ में आ बहुत बड़ी हिसा है । इण हिंसा रो एक मात्र कारण अज्ञान, अधविसवास पर भोगासक्ति है। अहिंसा पर शुभ प्रवृत्ति : जिण भांत पापांनै सुख वाल्हो है, उणीजभांत दूजां नै पण सुख वाल्हो है। जियां प्रापांनै कष्ट अप्रिय है उणीज भांत दूजा नै भी कष्ट अप्रिय है । प्रा सोच'र प्राणिमात्र रै साग एकत्व री अनुभूति पर मैत्री भाव राखणो चाइजै । अहिंसा रा हजार रूप अर स्रोत है। भगवान महावीर क्ह्यो. दया, समाधि, क्षमा, सम्यक्त्व, चित्तरी दढ़ता, प्रमोद, विसवास, अभय, समत्व, मैत्री आदि भाव अहिमा रै परिवार में गिरणीजै । अं गुण अहिंसा रो विकास करै । इणां रै चिन्तन पर बैवार सूप्रमाद भाव घटै। अहिंसा रे पाळण खातर मन, वचन अर काया री स्वच्छन्द (असद्) प्रवृत्तियां पर रोक लगावणी जरूरी है। मानवीय वृत्ति री अशुभ सूनिवृत्ति पर सुभ में प्रवृत्ति करण खातर जो विधि सास्त्रां में वणित है. समिति कहीजै । समिति रा पांच प्रकार है-(१) इर्या समिति, (२) मन समिति, (३) वचन समिति, (४) एषणा समिति, (५) आदान निक्षेपरण समिति । चालतां, उठतां-बैठतां, काम करतां छोटा-बड़ा जीवां नै पीड़ा नीं पोंचावरणी ईर्या समिति है। मन में उठ्योड़ा भावां गे निरीक्षण करणो के अ भाव दूजां खातर सुखकारी है या दुखदायी, पापकारी है या अपापकारी। इगा भांत सोच'र मन नै सुभ भावना में लगायां राखणो मन समिति है। कठोर, दुखकारी, वाणी नी बोल'र हितकारी, सत्य, मधुर वचन बोलणा वचन समिति है। गुजारा खातर Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तामसिक, राग-द्वेष सू भरियोड़ी उत्तेजित वस्तुवा रो सेवन नीं कर'र स्वास्थ्य प्रद, सात्विक भोजन, पाणी, वस्त्र, पात्र आदि रो ग्रहण (उपयोग) करणो एपणा समिति है। रोजमर्रा काम प्राण पाळी चीजो रे लेण-देश, रखरखाव आदि में सावधानी राखणी आदान निक्षेपण समिति है। किणी जीव या प्राण नै नी मारणो यो अहिंसा गे निषेधास्मक रूप है । अहिंसा रो विधेयात्मक रूप है-लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियों में रस लेगो, पातमहितकारी क्रियावां करणी, प्राणीमातर नै प्रातमवत समझशो, उरणांमें किणी भात री भेदबुद्धि नी राखरणी, मब साग उदारता रो वैवार करणो पर नितहमेस मैत्रीभाव रो चिन्तन करो। समतामूलक समाज अहिंसा सिद्धान्त रो विधायक तत्त्व है समता, विषमता रो प्रभाव । दुनियां मे कोई छोटो-बड़ो कोनी । सगळा समान है। समतावाद र इण सिद्धान्त र महावीर जातिभेद, वर्णभेद, रंगभेद नीति रो खडन करियो पर बतायो के-मिनख जनम या जात सूबड़ो कोनी । वी नै बड़ो बगावै उरगरा गुण, उरणरा कर्म। महावीर कह्यो-सिर मुडाणे सू कोई श्रमण नी वण जावै, ओंकार रो नाम लेणै सू कोई वामण, वन मे निवास करण सूकोई मुनि अर कुसचीर धारण करण सू कोई तापस नी वण जावै । पण समभाव राखरण सूश्रमण, ब्रह्मचर्य सूब्राह्मण, ज्ञान सू मुनि पर तपाराधना सूतापस वणै । धर्म, सम्प्रदाय, अर जाति रै नाम पर आज विश्व में घणो तनाव पर भेदभाव है। महावीर र इण सिद्धांत नै.आज सांचा अरथां सूअपणा लियो जावै तो प्रो विश्व सगळा खातर स्वर्ग बण जावै। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ [७] अपरिग्रह : मानव री इच्छावां आकास रै समान अनन्त है। एक री पूरति करतां पारण दूजी इच्छा प्राय ऊभी है जावै । दूजी री पूरति करण पर फेरू अनेक इच्छावा पैदा हुय जावै । इणरो नतीजो प्रो हुवै के मिनख री सत-असत् वृत्तियां में संघर्ष होबा लागै। कथनी पर करणी में भेद पड़ जावै । अनन्त इच्छावां री पूरति करण खातर मिनख अनावश्यक जमाखोरी अर धन संग्रह करै। वो आ बात भूल जावै के जां चीजां री उरणनै जरूरत है, उरणारी जरूरत दूजा ने भी हुनै। वो आपणै सुवारथ में आंधो बरण'र चीजां नै एकठी करण लागै। इणरो परिणाम हुवै के समाज में दूजी ठोड चीजां री कमी हुय जानै। इण सू कालाबाजारी बढ़े, समाज में विषमता फैले अर वर्ग-सघर्ष नै बढावो मिले, व्यक्तिगत, सामाजिक पर राष्ट्रीय जीवन असात हुय जानै । इण असांति नै मिटावरण खातर प्रभु महावीर लोगां नै अहिसारै सागै अपरिग्रह रो, परिग्रह री मर्यादा तय करण रो उपदेस दियो। अपरिग्रह रो प्ररथ है—किणी वस्तु र प्रति प्रासक्ति या ममत्व भाव नी राखणो। प्रो ममत्व भाव या मूर्छा इज परिग्रह है । ज्यू-ज्यू मूर्छा भावना बढे त्यू-त्यूमिनख रै प्रातम विकास रो मारग रुकै, उरणरी ज्ञान अर विवेक री ज्योति नष्ट हुनै । मिनख सुवारथ पर लोभ में आँधो बण जानै। ममत्व भाव जरूरत सू बेसी चीजा जमा करण री प्रेरणा दे। बेसी नीजां जमा करण खातर, बत्तौ धन कमावण खातर मिनख अन्याय करै, राजनियमां रो उल्लघन कर'र बेजां फायदो उठानै। इण भांत ज्यू-ज्यू वीं नै लाभ मिलै त्यू -न्यू वीरोलोभ बढ़तो जावै । पण फेरू मिनख नै संतोष अर तृप्ति नी हुनै । उणरी इच्छा और बत्तौ लाभ कमावण री रैवे । माकडी रै जाळा री भांत मिनख लाभ पर लोभ र चक्कर में फंसतो जानै। जिसू वीने आत्मिक सांति रै बजाय असांति मिले, Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुख रै बजाय दुख री अनुभूति हुने। लाभ अर लोभ री पाग में वळतो रैवरण र कारण वीनै रात नै नीद पण नी पाने। प्रो परिग्रह सगळा दुखां रो मूल है। ई परिग्रह रा मुख्य दो भेद है (१) अन्तरंग परिग्रह पर (२) बाह्य परिग्रह । अन्तरग परिग्रह अन्तरग परिग्रह रा चवदा भेद मानीज-(१) मिथ्यात्व, (२। राग, (३) द्वेष, (४) क्रोध, (५) मान, (६) माया, (७) लोभ, (८) हास्य, (६) रति, (१०) अरति, (११) शोक, (१२) भय, (१३) जुगुप्सा, (१४) वेद न (स्त्री-पुरुप र प्रति अभिलाषा रूप परिणाम)। श्रो अनन्त परिग्रह पातमा री ऊंची उठण री सक्ति नै नष्ट कर'र उगर पतन रो कारण वणे। इण सूक्षमा, दया, करुणा जिसा पात्मिक गुण नष्ट हुय जाने। बाह्य परिग्रह : वाह्य परिग्रह मोटे रूप दस भात रो हुनै (१) क्षेत्र-खेत, खुली भूमि गांव-नगर, पर्वत, नदी, नाळा आदि । (२) वस्तु : - मकान, महल, मदिर दुकान आदि। (३) हिरण्य : सोना चांदी रा सिक्का, नोट प्रादि । (४) सुवर्ण-मोनो (५) धन-हीरा, पन्ना, मोती आदि जेवरात (६) धान्य-गेहें, चावल आदि अन्न (७) द्विपद चतुष्पद-मिनख परिवार तथा गाय, वल आदि चौपाया जिनावर (८) दासदासी, नौकर चाकर आदि (8) कुप्य ~वस्त्र, वर्तन, पलंग, अलमारी आदि घरेलू सामान (१०) धातु-चांदी, तांबा, पीतल, लोहा आदि। इण वस्तुवां रो संग्रह करणो अर इणां सू ममत्व राखरगो वाह्य परिग्रह है। ईसू प्रातमिक सांति नी मिल । ज्यू-ज्यू बाहरी परिग्रह वध Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ मन में चिन्ता अर परेसानियां भी वधवा लागै। ई कारण ईज सगळा बाहय पदारथ परिग्रह मानीया जावै । बाहय पदारथां रै सागै-सागे संकीर्ण विचार अर दुराग्रह पण परिग्रह है। इण नैचारिक परिग्रह नै दूर करण खातर भगवान महावीर अनेकान्त रो सिद्धान्त वतायो। अनेकान्तवादी दृष्टिकोगा सूसोचरण पर विचारां में किरणी रो आग्रह नी रखें। विज्ञान री उन्नति सूअाज वस्तुबां रो उत्पादन कई गुणां वढग्यो है। पण फेरू उणागे प्रभाव इज अभाव चारूकांनी लखावै। आज पण घणाखरा इसा लोग है जिणांनै पेट भरण खातर पूरो अन्न अर सरीर ढांकण खातर पूरो कपड़ो नी मिले। इणरो मूळ कारण व्यक्ति समाज अर राष्ट्र री संग्रहवृत्ति है । प्राज रो मिनख घणो लोभी है । वो वस्तुवां रो संग्रह कर बाजार में उपां रो प्रभाव देखणो चानै । ज्यूई चीजां री कमी हुगे वो जमां कर्योड़ी वस्तुवां नै ऊ चै मोल बेच'र वेगोसो'क लखपति पर करोडपति बरगणो चान। आज गोदामां में लाखां टण अनाज पड़ियो-पड़ियो सड जानै परग लोभी मिनख पर राष्ट्र जरूरतमंद लोगों में उरणने नी वाटै । भगवान महावीर रा परिग्रह परिमारण सिद्धान्त नै ध्यान में राख'र जै आवश्यकता सूवेसी चीजां रो सग्रह नी कियो जाने तो आज पूंजीवाद पर साम्यवाद नाम सूजो विरोध पर संघर्ष चाल, वो यापैइ खतम हुय जाने पर समाजवादी समाज रचना रो सुपनो साकार हुत्रण में जेज नो लागे । [८] अनेकान्त असांति रो मुख्य कारण हठवादिता, दुराग्रह पर एकान्तिकता है। विज्ञान रै विकास र सागै मिनख घणो तार्किक वरणग्यो । वो प्रत्येक बात नै तर्क री कसौटी पर कसर देखणो चावै। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ दूसरा रै दृष्टिकोण नै समझवारी कोसिस नी करै । इण अहभाव अर एकान्त दृष्टिकोण सूअाज व्यक्ति, परिवार, समाज पर राष्ट्र से पीडित है । इणीज कारण उणा में संघर्ष है, बेचैनी है। __ भगवान महावीर इण स्थिति सूमिनख नै उवारण खातर अनेकान्त रो सिद्धान्त प्रतिपादित करियो। उरणारो कवरगो हैप्रत्येक वस्तु रा अनन्त पक्ष हुवै । उणां पक्षा नै वां 'धरम' री सज्ञा दीवी । इण दृष्टिकोण सूससार री प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। किण भी पदार्थ नै अनेक दृष्टियां सूदेखरगो, किरणी भी वस्तु तत्त्व रो भिन्न-भिन्न अपेक्षा सू पर्यालोचन करगो, अनेकान्त है। वस्तु अनन्त धर्मात्मक हुने। कोई वीनै एक धरम में बांधणो चान, पर उण एक परम सू होण आळा जान नै इज समग्र वस्तु रा साचो अर पूर्ण ज्ञान समझ बैठे तो वो ज्ञान यथार्थ नी हुने। सापेक्ष स्थिति सू ईज वो सांच हो सके। निरपेक्ष स्थिति मे नी। हाथी नै थांभा जिसो वतावरण आळो व्यक्ति प्रापरणी दृष्टि सूसाचो है, पण हाथी नै रस्सी दाई वतावरण प्राळा री दृष्टि में वो सांचो कोनी। हाथी रो समग्र ज्ञान करण वास्ते समूचे हाथी रो ज्ञान कराण पाळी दृष्टियां रो अपेक्षावा रैनै । इणीज अपेक्षा दृष्टि सू अनेकान्त वाद रो नाम अपेक्षावाद पर स्यावाद परण है। स्यात् रो अर्थ है-किणी अपेक्षा सू, किणीदृष्टि सू, अर वाद रो अरथ हैकथन करणो। अपेक्षा विशेष सू वस्तु तत्व रो विवेचन करणो ईज स्याद्वाद है। सप्तभंगी। विवेचन करण री प्रा शैली सप्तभगी कहीजे। ई बचनशंली रा सात विकल्प इण भांत है (१) स्याद्ग्रस्ति-किणी अपेक्षा सू है। (२) स्यादनास्ति-किणी अपेक्षा सूनी है। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) स्याद्मस्ति-नास्ति-किणी अपेक्षा है, किणी अपेक्षा सूनी है। (४) स्याद्.अवक्तव्य-है भी, नी भी, पण एक सागै कयो नीं जा सके। (५) स्याद् अस्ति-प्रवक्तव्य-कथचित है, पण एक सागै कयौ नीं जा सके। १६) स्याद् नास्ति अवक्तव्य-कथचित् नी है पण कयौ नी जा सके। (७) स्याद अस्ति-नास्ति अवक्तव्य-किणी अपेक्षा सू है, किणी अपेक्षा सूनी है, पण दोन्यू बातां एक सागै प्रगट नी की जा सके। इण सात विकल्पां मांय सूपला चार विकल्प अधिक व्यावहारिक है । आखरी तीन विकल्पां मांय पैलड़ा चार विकल्पां रो ईज विस्तार कियो गयो है । अं नीचे दियोड़ा उदाहरण सूसमझ्या जा सके तीन आदमी एक ठौड़ ऊभा है । किणी आवणिय मिनख एक सूपूछियो-काई थां इण रा पिता हो ? वीं उत्तर दियो-हां (स्याअस्ति) आपण इण बेटे री अपेक्षा सू म्हू पिता हूँ। पण इण पिताजी री अपेक्षा सूम्ह पिता नीं हूं (स्याद्नास्ति) मुहूं पिता हूं भी अर नीं भी (स्याद् अस्तिनास्ति), पण एक सागै दोन्यूबातां कही नी जा सकै (स्याद् प्रवक्तव्य), इण वास्तै कांई कवू? Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ स्यादवाद री या वचन शैली जीवन रो सहज धरम है, बेवार रो सीधी सादी भाषा है। जं कोई इण नै प्राच्छी तरेऊ' समझ लेवे तो सगळा वैचारिक झगड़ा, टकराहट र संघर्ष मिट जाने । श्रनेकान्तवाद इण वात पर जोर देवी कं प्रा वस्तु एकान्त रूप सू' इसी 'ही' है, श्रावात मत कैवो । 'हो' री जगा 'भी' रो प्रयोग करो । इण कथन आपसी संघर्ष नी वढला, एक दूजा रे वोचे सोहार्दपूर्ण, मधुर वातावरण वरीला मंत्री भाव से विस्तार इनैलो र विचार उदार वगेळा । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨ ११| महाबीर री परम्परा पट्ट- परम्परा : भगवान महावोर र निर्वाण रे सागैइ तीर्थङ्कर परम्परा समाप्त हु जानै | महावीर रा पैला और सब सूं बड़ा शिष्य इन्द्रभूति भी केवलज्ञानी बरणग्या । इण कारण वी संघ रावारिस नीं बरिया | महावीर रै धरम मासन से भार पांचवा गणधर सुबरमा सूपियो गयो । आर्य सुधरमा महावीर री शिक्षावां आपणां शिष्यां नै मौखिक विरासत ₹ रूप में सूपी । वर्तमान में आगम रूप में जो महावीर वाणी प्रसिद्ध है वा सुधरमा इज प्रापण शिष्य जम्बूस्वामी अर अन्य स्थविरा ने दीवी । जम्बू स्वामी र पछै उणारा पट्टधर प्रभव स्वामी हुया । जम्बू स्वामी रे सागैइज केवळज्ञान री परम्परा समात्त हुयगी अर जम्बू स्वामी केवळज्ञानी नी बण सक्या । श्वेताम्बर परम्परा मुजब जम्बू स्वामी रै बाद क्रमशः प्रभव, सय्यंभव, यसोभद्र, संभूति विजय र भद्रबाहु प्राचार्य हुया । परण दिगम्बर परम्परा माने के जम्बूस्वामी रै पर्छ नन्दी, नन्दीमित्र, अपराजित, गोवरधन अर भद्रबाहु आचार्य हुया | दोन्यू परम्परा सू आठा पड़े कै आर्य प्रभव र समं जै मतभेद हुया ने भद्रबाहु रे समय में सांत हुयग्या अर सगळा एक मते सू ं भद्रबाहु ने आपणा आचार्य मजूर करियो । । महावीर ₹ निर्वाण रै १६० बरसां पर्छ भद्रबाहु र नेतृत्व में विद्वान श्रमणां री एक सभा हुई जिरण में महावीर ₹ उपदेसां रो ग्यारा अंगां रे रूप में संकळन कियो गयो । कुछेक श्रमणां इग Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ भागमा नै प्रामाणिक मानवा सू इन्कार कर दियो । श्वेताम्बर मान्यता रै मुजव अठा सूईज वास्तविक रूप में दिगम्बर परम्परा री सरूपात हुई। वल्लभी-संगीति : ___ याददास्त र आधार परटिक्योडो श्रत साहित्य धीरे-धीरे लुप्त हुवरण लागो। स्मृति दोष रै कारण भांत-भांत रा मतभेद पगा खड़ा हुयग्या । ई कारण महावीर रै निर्वाण रै लगभग एक हजार बरसां पार्छ प्राचार्य देवद्धिगरिग री अध्यक्षता में श्रमण संघ री एक सगीति वल्लभी (गुजरात) में हुई अर याददास्त रै आधार पर चल्या प्रायोड़ा आगम लिपिवद्ध करिया गया। इरंग लिपि करण सू साहित्य में स्थिरता अर एकरूपता आई पर आपस रा मतभेद भी कम हया । आगे जा'र आचार्य हरिभद्र, सिद्धसेन, समन्तभद्र, अकलक, हेमचन्द्र जिसा महान विद्वाना जैन साहित्य री घणी सेवा करी पर दर्शन, न्याय, काव्य, कोस, व्याकरण, इतिहास आदि सगळी दृष्टि सू जैन साहित्य नै समृद्ध बगायो । परम्परा-भेद: ओ तथ्य जागबा लायक है के महावीर रै निर्वाण र लगभग ६०० बरसां पाछै जैन धरम दो मतां में बटग्यो-दिगम्बर पर श्वेताम्वर । जो मत साधुग्रां री नग्नता रो पक्षधर हो पर उगने इज महावीर रो मूळ प्राचार मानतो हो वो दिगम्बर कहलायो। प्रो मत मूळ संघ रै नाम सू भी जाणीजै, अर जो मत साधुना रे वस्त्र, पात्र रो समर्थक हो वो श्वेताम्बर कहलायो। दिगम्बर-परम्परा आगे जा'र दिगम्बर मत कई संघा में बंटग्यो । इणां में मुख्य हैद्राविड़ संघ, काष्ठा संघ पर माथुर सघ। कालांतर में सुद्ध Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० प्राचारी, तपस्वी, दिगम्बर मुनियां री संख्या कम हुयगी पर एक नूवै भट्टारक वरग रो उदय हयो । जींरी साहित्य र क्षेत्र में महत्वपूर्ण देन है | जद भट्टारकां में आचार री शिथिलता आई तो उ ₹ खिलाफ एक क्रांति हुई, जिगरा अगुना हा - बनारसी दास । प्रो पथ तेरापंथ कहलायो । इण में टोडरमल जिसा विद्वान दार्शनिक हुया । वर्तमान में दिगम्बर परम्पर रा श्री देशभूषणजी, विद्यानंदजी आदि प्रमुख आचार्य अर मुनि है । श्वेताम्बर - परम्परा : श्वेताम्बर मत परण आगे जा'र दो भागों में बंट गयो - चैत्य वासी श्रर बनवासी । चैत्यवासी उग्र विहार छोड़' र मिन्दरां में रैवरण लागा । कालान्तर में श्वेताम्बर परम्परा में कैई गच्छ बरणग्या, जिगरी सख्या ८४ मानीजै । इरण में खरतरगच्छ अर तपागच्छ मुख्य है । कयो जावे के वर्धमानसूरि रा सिष्य जिनेश्वर सूरि सम्वत् १०७६ में गुजरात रे अणहिलपुर पट्टण रे राजा दुरलभराज री सभा में जद चैत्यवासियां नै पराजित किया तद राजा उणां नै 'खरतर ' नाम रो विग्द दियो । इरण भांत खरतरगच्छ नाम चाल पड़ियो । तपागच्छ रा संस्थापक श्री जगत्चन्द सूरि मानिया जावे । संवत् १२८५ में इरणां उग्र तप करियो । इरण रे उपलक्ष में मेवाड़ रा महाराणा जैतसिंह इणाने 'तपा' उपाधि से विभूषित कियो । तदसू श्र गच्छ तपागच्छ नाम से प्रसिद्ध हुयो । खरतरगच्छ श्रर तपागच्छ दोन्यू इ मूरति पूजा में विसवास राखे । ~ इण परम्परा में तरुण प्रभ सूरि, सोमसुन्दर सूरि, माणिक्य सुन्दर सूरि, मेरूसुन्दर, हीर विजय सूरि, राजेन्द्र सूरि, विजयवल्लभ सूरि जिसा कैई प्रभावी आचार्य अर मुनि हुया । वर्तमान में सर्वश्री धर्मसागरजी, विजय समुद्र सूरिजी यशोविजयजी जनकविजय जी, कान्तिसागर जी, कल्याण विजय जो, भद्र कर विजयजी, भानुविजय जी, विशाल विजय जी आदि प्रमुख आचार्य र मुनि है । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ लौकापंथ पन्दरवीं-मोलवीं सती में घरम र नाम पर फैल्योडे बाहरी प्राडम्बर से सत लोगां विरोध कियो । जिस भगवान री निराकार उपासना ने वळ मिल्यो । श्वेताम्बर परम्परा रा स्थानकवासी, तेरापयी र दिगम्बर परम्परा रा तारणपंथी मूरति पूजा में विश्वास नी राखे । लोकासाह (सम्वत् १५०८ ) तूं वै लोकापथ रो थरपणा करी । वां मूरति पूजा र प्रतिष्ठा रो विरोध करियो र पौषध, प्रतिकमरण, संयम आदि पर विशेष वळ दियो । श्रो पंथ ग्रागे जा'र कैई गच्छां में वंग्यो । इरणरी तीन मुख्य शाखावां है - गुजराती लौकागच्छ, नागौरी लौकागच्छ, लाहोरी- उत्तरार्द्ध लोकागच्छ । 1 स्थानकवासी परम्परा : श्रागे जा' र इण परम्परा में जद ग्राडम्बर बढ़ियो तद सर्वश्री जीवराज जी. लवजी, धरमसिंह जी, धरमदास जी हरजी, धन्नाजी श्रादि श्राचार्या क्रियोद्धार करियो अर तप त्याग मूलक सधर्म रो प्रचार करियो । अँ स्थानकवासी परम्परा रा अगवा मानीजै । आ 1 सम्प्रदाय वाइस ठोळा रे नांम सू भी प्रसिद्ध है। ई में सर्वश्री भूधर जी, रघुनाथजी, जयमल्ल जी, कुशळोजी, रतनचद जी, अमरसिंह जी, हुकमीचंद जी, श्रमोळक ऋषि जी, जवाहरलालजी नानकराम जी, श्रात्माराम जी, पन्नालाल जी, घासीलाल जी, समरथमल जी, चौथमल जी जिसा घरणखरा प्रभावशाली आचार्य पर संत हुया । वर्तमान में इरण सम्प्रदाय में सर्वश्री श्रानन्द ऋषि जी, हस्तीमलजी, नानालाल जी, अमर मुनि, सुशील मुनि, पुष्कर मुनि, मरुधर केसरी मिश्रीमल जी, मधुकर मुनि, किस्तूर चंद जी, सूर्य मुनि, प्रतापमल जी, श्रम्वालाल जी जिसा कैई प्रभावशाली आचार्य अर मुनि है । तेरापंथ : स्थानकवासी परम्परा सू' इज संवत् १८१७ में तेरापंथ सम्म Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ दाय रो उद्भव हुयो । ई सम्प्रदाय रा मूल संस्थापक प्राचार्य भीखण जी है । वर्तमान समय में ईण सम्प्रदाय रा नवमा पट्टधर आचार्य तुलसी है । आप अणुव्रत आंदोळण रो प्रर्वत्तन कर नैतिक जागरण री दिसा मे विशेष पहळ करी । भीखरण जी पर आपरै बीचै सात आचार्य हया, जिणां रा नाम है-सर्वश्रो भारमल जी, रायचंद जी. जीतमल जी (जयाचार्य), मघवा गरणी, माणक गणी, डाल गरणी अर काल गणी। वर्तमान में इण सम्प्रदाय में सर्वश्री नथमल जी, बुद्धमल जी, नगराज जी जिसा कई विद्वान मुनि है। सांस्कृतिक देन : देस मे संस्कार-शुद्धि रै आन्दोलन में जैन धरम री इण महान् परम्परा रो महत्त्वपूर्ण योगदान रह्यो है । इण परम्परा में जै घरण खरा गणगच्छ है, वां में जो भेद लखावै वो व्यावहारिक दृष्टि सू इज है। आतमा, परमातमा, मोक्ष, संसार आदि रै सम्बन्ध में इणां में कोई भेद कोनी । जैन धरम रै आचार्या', साधु-संतां पर श्रावका रो सम्पर्क साधारण जनता सूले'र बड़ा-बड़ा राजा-महाराजा ताई रह्यो । प्रभावशाली जैन श्रावक अठ राजमत्री, फोजदार सलाहकार, खजांची अर किल्लेदार जिसा विशिष्ट ऊंचा पदां पर रह्मा । गुजरात मे कुमारपाळ ₹ समै बस्तुपाळ तेजपाळ जैन धर्म री घणी प्रभावती करी । मेवाड़ में रामदेव, सहणा, कर्मासाह, भामा साह. क्रमश: महाराणा लाखा, महाराणा कुभां, महाराणा सांगा पर महाराणा प्रताप रा राजमंत्री हा। कुभलगढ रा किलेदार प्रासासाह बाळक राजकुवर उदयसिह रो गुप्त रूप सूपाळन-पोषण कर अदम्य साहस पर स्वामिभक्तिं रो परिचय दियो । बीकानेर रा मन्त्रियां में वत्सराज, करमचन्द बच्छावत, वरसिह, संग्रामसिंह आदि री सेवावां घरणी महत्वपूर्ण है । बीकानेर रा महाराजा राय सिह जी, करणसिह जी, सूरतसिह जी जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि, धर्म वर्धन और ज्ञानसार जी ने बड़ो सम्मान दियो। जोधपुर राज्य रा Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३ मंत्रियां मैं मेहतां रायचन्द, वर्धमान, ग्रासकरण, मूगोत नैणसी, इन्द्रराज मेहता, श्रखैराज, लखमीचंद आदि रो विशेष महत्व है । जयपुर रा जैन दीवाना री लाम्बी परम्परा रयी है । इणां में मुख्य है- मोहनदास संघी, हुकुमचंद, विमलदास छाबड़ा, रामचन्द्र छाबड़ा, कृपाराम पाण्ड्या, मानकचंद गोलेछा, नथमल गोलेछा आदि । अजमेर रा घनराज सिंघवी बड़ा योद्धा हा सगळा वीर मंत्री प्राप प्रभाव सू जैन मंदिरा र उपासरा रो निरमाण करायो । घरगखरी जन कल्याणकारी प्रवृत्तियां र विकास पर संचालक मे भी इरगां रो बड़ो हाथ रयो । 1 देस रे नव निर्माण री सामाजिक, धारमिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, प्रार्थिक प्रवृत्तियां में जैन मतावलम्बी महत्त्वपूर्ण योगदान दियो । सम्पन्न जैन श्रावक श्रापणी श्रामदनी रो निश्चित भाग लोकोपकारी प्रवृत्तिया मे खरच करें। जीवदया, पशुवळि निषेध, वृद्धाश्रम विधवाश्रम, जिसी कई प्रवृत्तियां चालै । जरूरतमंद लोगां नै मदद देवगण सारू भी कैई ट्रस्ट काम करें। समाज में अछूत कहाबा शाळा लोगां रे जीवन स्तर ने ऊंचो उठा र वामे फैल्योडी कुरीतियां मिटावरण खातर वीरवाळ ग्रर धरमपाळ जिसी प्रवृत्तियां चाले । लोक शिक्षण र सार्ग नैतिक शिक्षण खातर घरखरी शिक्षण संस्था वां, स्वाध्याय मंडळ पर छात्रावास काम करें। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधारणी दिसां में जैन लोगां घरणखरा अस्पताल खोलिया । रोगियां ने मुफ्त में या रियायती दर पर इलाज री सुविधा दी जावे । पुराणे साहित्य री रक्षा करण में जैनियां रो महत्वपूर्ण योग दान रह्यो । जैन साधु नी केवळ मौलिक साहित्य री रचना करी वरन् जीर्ण शीर्ण दुरलभ ग्रंथा रो प्रतिलेखन कर वांने नष्ट हुवरण सू बचाया | वांरी प्रेरणा सू ठौड़-ठौड़ ग्रंथ भंडार थरपीजग्या । ग्रंथ भडार राष्ट्र री सांस्कृतिक निधि रा सांचा रक्षक है । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ महावीर री परम्परा में आज हजारू साधु मुनिराज अर. साध्वियांजी है। में चौमासे में एक ठौड़ रैवे अर शेषकाल गांवगांव पदयात्रा करै। इणां री प्रेरणा अर उपदेसां सू सम-समै नैतिक जागरण आध्यात्मिक साधना अर तप-त्याग रा विविध कार्यक्रम बणै। लोककल्याण री घणखरी प्रवृत्तियां पण चाले । इण भांत व्यक्तिगत जीवन निरमळ, उदार अर पवित्र बरण तथा सामाजिक जीवन मांय मैत्री, बातसल्य, बन्धुत्व जिसा भावां री बढोतरी हुदै। कुळ मिला'र कयौ जा सकै के महावीर री परम्परा में जीवन रै सर्वागीण विकास कांनी लगोलग ध्यान रैवे। प्रा परम्परा मानव जीवन री सफलता नै इज मुख्य नी मान, इण रोवळ रैवे मिनखपणा री सार्थकता अर मातमसुद्धि पर । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ महावीर-वाणी लोकभाषा रो प्रयोग : भगवान महावीर आपणा उपदेस लोकभाषा में दिया। वा र प्रवचनां री भाषा अर्धभागधी (प्राकृत) ही जो उरण वगत मगध अर अंग देसां में बोली जावती। महावीर रा उपदेस किणी खास वर्ग, धर्म या जाति खातर नी हा । वरणां री घरमसभा में राजा-रंक, महाजन-हरिजन, वामरण-सूद्र से जरणा समान भाव सूावता। __ महावीर सूत्र रूप में उपदेस देवता । वांरो संकलन गराधर गाथा या ग्रंथ रूप में कियो । अाज भगवान महावीर रा जै उपदेस वचन मिले, वै गणधरां पर स्थविर मुनियों द्वारा संकलित मान्या जावै । महावीर रा उपदेस ग्रंथ 'पागम' कहीज। आगम साहित्य : जैन धर्म री दिगम्बर परम्परा रो विसवास है के भगवान् महावीर री वाणी आज मूल रूप में सुरक्षित कोनी । वणारा बाद रा आचार्या याददास्ती रै आधार पर जिरण शिक्षावाँ रो संकळन कियो, वो इज अाज मिलै । परण श्वेताम्बर परम्परा मान के भगवान महावीर री शिक्षावा आज भी उगीज भाषा में प्रागम रूप में सुरक्षित है । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा आगमां री सख्या ४५ मान । स्थानकवासी अर तेरापंथी परम्परा री मान्यता ३२ मागमां री है । ३२ आगमां रा नाम इण भांत है ग्यारह अंग १.प्राचारांग बारह उपांग १२. औपपातिक Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ २. सूत्रकृतांग १३. राजप्रश्नीय । ३. स्थानांग १४. जीवाभिगम ४. समवायांग १५. प्रज्ञापना ५. भगवती (व्याख्या प्रज्ञप्ति) १६. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ६. ज्ञाताधर्म कथा १७. सूर्यप्रज्ञप्ति ७. उपासक दशा १८. चन्द्र प्रज्ञप्ति .अन्तकृद्दशा १६. निरयावलिका । ६. अनुत्तरौपपानिक २०. कल्पावतसका १०.प्रश्न व्याकरण २१ पुष्पिका ११. विपाक श्रुत २२. पुष्पचूलिका २३. वाह्नि दशा चार मूलसूत्र २४. दशवैकालिक २५. उत्तराध्ययन २६. नंदीसूत्र २७. अनुयोग द्वार । चार छेदसत्र २८. निशीथ २६. वृहत्कल्प ३०. व्यवहार ३१ दशाश्रु तस्कंध ३२. आवश्यक ऊपर दियोड़ा ३२ भागमां मांय १० प्रकीर्णक [चतुःशरणं, प्रातुर प्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, संस्तार, तन्दुळवैचारिक, चन्द्रकवैध्यक, देवेन्द्रस्तव, गरिणविद्या, महाप्रत्याख्यान अर वीरस्तव) कल्पसूत्र, चूलिका आदि री गणना करण सू उरणारी सख्या ४५ हुय जावे। महावीर-वाणी: आगमां माय जैन तत्त्वविद्या, जैन आचार, जैन संस्कृति प्रादि विविध विषयां 'री जारणकारी है। अठै महावीर-वाणी रा Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ - इसा मूळ प्राकृत अंश राजस्थानी अनुवाद रै साग दिया जाय रह्या है, जं जीवन पर समाज नै निर्मळ, पवित्र, सयमशील अर आतम'पारण वरणावरण में उपयोगी है। १. धर्म धम्मो मंगल मुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवावि त नमंसन्ति, जस्स धम्मे सयामणो । दशकालिक सूत्र ११ धरम उत्कृष्ट मंगळ है । वो अहिंसा, संयम अर तप रूप है। जिण साधक रो मन हमेशा इण धरम साधना में रमण कर, वीं ने देवता पण नमस्कार करें। एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए । __ स्थानांग सूत्र ११११४०। घरम इज एक इसो पवित्र अनुष्ठान है, जिणसू श्रातमा रो सुद्धिकरण हुवे। सयय मढे धम्म नाभिजाणइ । आचारांग सूत्र ३११ सदा विपय-वासना में मगन रैवा पाळो मिनख (मढ़) धरम रै तत्त्व नै नी जाण सके। समियाए धम्मे पारिएहिं पवेइए प्राचरांग सूत्र १८३ आर्य महापुरुसां समभाव नै धरम कह यो है। अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्ततं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साह ।। भगवती सूत्र १।२।। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अधार्मिक प्रतिमावां रो सूतो रेवणो बाच्छो भर धरमनिष्ठ भातमावां रो जागतो रैवणी श्राच्छो । चत्तारि धम्मदारा - खंती, मुत्ती प्रज्जवे, मद्दवे । स्थानांग सूत्र ४|४ 1 धरम रा चार दरवाजा है - क्षमा, सन्तोस, सरळता अर दीवे व धम्मं नम्रता । सूत्रकृतांग ६१४ धरम दीवा री भांत अज्ञान रूपी अंधारा ने दूर करें । सोही उज्जुन भूयस्स, चिट्ठई । उत्तराध्ययन सूत्र ३।१२ सरळ प्रातमा री इज सुद्धि हुनै अर सुद्ध आतमा में इज धरम टिकै । धम्मस्स विणो मूलं 1 धरम रो दश० हारारा मूळ विनय है। २. अहिंसा सव्वे पारणा पियाउया, सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा । पियजीविगो, जीविउकामा, सव्वेसि जीवियं पिगं ॥ आचारांग सूत्र २|२|३| सगळा जीवां ने आपणी प्रायुष्य वाल्हो लागे, सुख आच्छो अर दुख खराब लागे । मौत सगळा नै खराब र जीवरणो प्राच्छो लागे । हरेक प्राणी जीवा री इच्छा राखे । सगळा ने आपणो जीवन प्यारो लागे । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ एवं खु नारिणरणो सारं, जन हिंसइ किचरण । सूत्रकृतांग १/११/१०/ किणो प्राणी री हिंसा नी करणा में इज ज्ञानी हुवरण रो सार है। आय तुले पयासु। सूत्र १/११/३ सगळा प्रारिणयां रे प्रति प्रातम तुल्य भाव राखणो चाइजै । समया सव्व भूएसु, सत्त मित्त सु वा जगे। उत्त० १६/२५ शत्रु अथवा मित्र सगळा पर समभाव री दृष्टि राखपी अहिंसा है। मेत्ति भूएसु कप्पए। उत्त० ६/२/ सगळा जीवां रै सागै मित्रता रो भाव राखो। तुमंसिनाम सच्चेव, जं हतवं ति मन्नसि । प्राचा. ५/५/ जिणन तू मारणो चावै, वो तू इज है । अर्थात् थारी अर उणरी आतमा एक समान है। से हु पन्नारणमंते बुद्ध आरभोवरए। आचा. ४।४ जो हिंसात्मक प्रवृत्तियां सूअळगो है, वोइज बुद्ध-ज्ञानी है । सव्वपाणा न हीलियम्वा, निदियव्या। प्रश्नव्याकरण २।११ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसार रै किणी प्राणी री नी अवहेलना (तिरस्कार) करणी चाइज अर नी निन्दा। ३. सत्य भासियव्वं हियं सच्च । उत्त. १९॥२६॥ नित हमेस हितकारी अर सांचा वचन बोलणा चाइजै । सच्चं लोगम्मि सारभूय, गम्भीरतरं महासमुहायो । प्रश्नव्याकरण सूत्र २।२। इण लोक में सत्य इज सार तत्त्व है। प्रो महान समन्दर सूभी बत्तो गभीर है। लुद्धो लोलो भरणेज्ज अलियं । प्रश्न २।२। मिनख लोभ सूप्रेरित हुयर झूठ बोले । अप्परणो थवणा, परेसुनिन्दा । प्रश्न २।२। प्रापणी वढ़ाई पर दूजां री बुराई झूठ बोलण रै समान है । सच्चं च हियं च मिय च गाहरण च । प्रश्न २।२। साधक नै इसा वचन बोलणा चावै जै हित, मित पर ग्राह्य हुवै। अप्पणा सच्चमेसिज्जा । उत्त० ६२ आपणी प्रातमा सूसांच री खोज करो। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ ४. अस्तेय दन्त सोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं उत्त० १९२८॥ अस्तेय व्रत में सरधा राखरिणयो मिनख विगर किणी री आज्ञा सूदांत कुरेदवा खातर तिणको भी नी उठावै । अणुनविय गेण्हियवं। प्रश्न २।३। किणी भी चीज नै विगर पाना सू ग्रहण नी करणी चाइजै । लोभाविले आययई अदत्त । उत्त० ३२।२६। . जो मिनख लोभ सूअभिभूत हुवै वो चोरी करै । परदबहरा नरा निरणुकंपा निरवेक्खा । प्रश्न. १॥३॥ दूजा रो धन लेवा पाळो मिनख निरदयी अर परभव री उपेक्षा करण पालो हुदै । पररांतिगऽभेज्जलोभ · मूलं । प्रश्न ११३६॥ पर धन री गृद्धि रो मूळ हेतु लोभ है अर आइज चोरी है।। ५. ब्रह्मचर्य जहां कुम्मे सगाई, मए देहे समाहरे । एक पावाइ मेहावी अझप्पेरण समाहरे। सूत्र. बा१६॥ जिण भांत काछन्बो आपणै अगा नै माय नै सिकोड'र खतरा' सूमुक्त हुय जावै, उरणीज भांत साधक अध्यात्मयोग सू अन्तराभिमुख हुयर खुदनै विषयां सूबचावं। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ तवेसु वा उत्तम-बंभचेरं । सूत्र. ११६॥२३॥ तपां में उत्कृष्ट तप ब्रह्मचर्य है। प्रणेगा गुणा अहीणा भनंति एक्कमि बंभचेरे । प्रश्न २४॥ ब्रह्मचर्य री साधना करणे सूअनेक गुण आपाप प्राप्त हुय जावै। ___कुसीलवड्ढणं ठाणं, दूरओ परिवज्जए । दश. ६१५६) ब्रह्मचारी नै वा जगां दूर सूइज त्याग देणी चाइजै जठे रवण सूकुसील आचरण री वृद्धि हुवे । ६. अपरिग्रह . मुच्छा परिग्गहो वुत्तो। दश० ६।२० वस्तु रै प्रति रह्यो हुयो ममत्व-भाव परिग्रह है। नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अत्थि, सव्व जीवाणं सव्वलोए । प्रश्न० ११५ प्रमत्त पुरुस धन सूनी तो इण लोक में प्रापणी रक्षा कर सकै भर नी परलोक में इज। इच्छा हु मागास समा अणंतिया उत्त० ६४८ इच्छावां आकास रै समान अनन्त है। परिग्गहनिविट्ठाणं,वे तेसि पवड्ढई। सूत्र. ११६।३। जो मिनख परिग्रह-संग्रहवृत्ति में व्यस्त रैवै, वो इण ससार में वैर री बढ़ोतरी करे। अन्ने हरति तं वित्तँ, कम्मी कम्मेहिं किच्चती सूत्र० १९. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ एकठो करियोड़ो धन यथा समय दूजो उड़ा लैवै परण संग्रही नै उणां करमां से फळ भोगणो पड़े । कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । दश० २५श , इच्छावां रो नास (अन्त) करणो दुख रो नास करणो है । एतदेव एगेसि महत्भयं भवई आचा० ५|२| परिग्रह इज इरण लोक में महाभय रो कारण हुवै । असंविभागी ग हु तस्स मोक्खो जो श्रापणी प्राप्य सामग्री बांटे नीं, उगरी मुगति नीं हुवै । दश० ६।२.१३१ ७. तप सउणी जह पंसुगुडिया, विहरिणय धंसयइ सियं रयं । एवं दविप्रोवहाणवं कम्मं खवई तवस्सि माहणे || सूत्र० २।१।१५ जिण भांत सकुनी नाम रो पंछी आपण पंखा नै फड़फड़ार उण पर लाग्योड़ी वूड ने झाड देवै । उगीज भांत तपस्या सूं मुमुक्षु आपण आत्म-प्रदेसां पर लागी करम-रज ने दूर करें । भव कोडिय संचियं कम्मं, तवसा गिज्जरिज्जइ । उत्त० ३०|६| करोड़ा भवां स संचित करियोड़ा करम तपस्या सू जीर्ण अर नष्ट हुय जावै । नो पूरणं तवसा श्रावहेज्जा । सूत्र० ११७/२७ तप सू ं साधक नै पूजा-प्रतिष्ठा रो कामना नीं करणी चाइजै । छन्द निरोहेण उवेइ मोक्खं । उत्त० ४वा. इच्छा निरोध तप सूं मोक्ष री प्राप्ति हुवे । तवेण परिसुभई । तप सू आतमा री सुद्धि हुने । उत्त० २८१३५ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ८. समभाव सध्वं जगं तू समयागु पेही, पियमप्पियं कस्स वि नो करेज्जा । सूत्र ० ० १1१०1६| जो साधक सगळा विश्व ने समभाव सू देखे, वो नी किणी रो प्रिय करै अर नी किणी रो अप्रिय । सामाइयमाहु तस्स ज जो प्रत्पारण भएण दंसए । सूत्र० १।२।२।१७ समभाव वो इज साधक धार सकै जो अपर आपने हर भय सू मुक्त राखे । नो उच्चावयं मरणं नियछिज्जा । आचा० २|३|११ 90/ संकट री घड़ियां में मन नै ऊंचो नीचो प्रर्थात् डांवाडोल नीं हुवण देणो चाइजै । समय सया चरे । सूत्र० २।२।३। साधक ने हमेसा समता रो प्राचरण करणो चाइजै । समता सव्वत्थ सुव्व ए । सूत्र० २३|१३| सुव्रती नै हर जगां समता भाव राखणो चाइजै । ६. वीतराग भाव न लिप्पइ भव मज् वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं । उत्त० ३२-४७ जो आतमा विषयांसू निरपेक्ष है वा संसार में रैवतां हुया भी जल में कमळणी री भांत अलिप्त रंवै । - विमुत्ता हु ते जरणा पारगमिणो 1. आचा० ११२ रा Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ जै साधक इच्छावां पर विजय पाय लीवी, वै सचमुच मुक्त पुरुष है । से हु चक्खू मगुस्साणं जे कंखाए व अन्तऐ । सूत्र० १।१५।१४१ जिण साधक अभिलाषा-आसक्ति ने नष्ट कर दीवी वो मिनखां खातर मार्गदर्शक प्रांख रूप है ।। वोयरागभाव पडिवन्नै वियणं, जीवे सम सुहदुक्खे भवइ । उत्त० २६/३६ । वीतराग भाव नै प्राप्त करण आळो जीव सुख-दुख में समान रवे । अणिहे से पुढे अहियासए । सूत्र० २/१/१३ आतमविद् साधक नै निस्पृह भाव सू आवण आळा कष्ट सहन करणा चाइज । १०. आतमा जे एगं जाणइ, से सव्वं जागइ । जे सव्वं जागइ, से एग जाणइ ॥ प्राचा० १।४। जो एक नै जाणं वो सबन जाणं अर जो सबन जाणं वो एक न जाणे । अप्पा नई वेयरणी, अप्पा में कूडसामली । अप्पा काम दूहा घेणु, अप्पा मे नंदणं वणं ॥ .. उत्त० २०३६) Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म्हारी बुष्प्रवृत्त आत्मा इज वैतरणी नदी पर कूटशाल्मली वृक्ष है। म्हारी सुप्रवृत्त प्रातमा इज काम-दूधा-धेनु (सें इच्छा पूरण करण माळी गाय) अर नन्दन वन है । सरीर माहु नावत्ति, जीवो वुच्चइ नाविनो । संसारो अण्णवो वुत्तो, ज तरन्ति महेसियो ।। सरीर नाव, प्रातमा नाविक अर संसार समन्दर कहयो जाने । मोम री इच्छा राखरिणयाँ महर्षि इणन तैर जाने । परिसा ! अत्ताणमेव अभिनिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ।। आचा० ३।३।११६ हे पुरुष ! तूं अपणे आपरो निग्रह कर, खुद रै निग्रह सू सगला दुखा मुक्त हुय जाबैला ! अप्पा चेव दमेयब्बो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सिं लोए परत्थय ।। उत्त० ॥१५॥ मातमा रो इज दमन करणो चाइजै क्यू के प्रातमा दुरदम्य है । इणरो दमन करण आळो संयमी इण लोक अर परलोक में सुखी हुवे । वरं ने अप्या दन्तो, संजमेण तरेण य । नाऽह परेहि दम्मन्तो, बंधणेहिं वहेहि य॥ उत्त० १११६ दूजा लोग बंधन अर व म्हारो दमन करे, इणरी अपेक्षा प्रो बाच्छो है कै मुहूं खुद संयम अर तप सू आपणी पातमा रो इमन करूं। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ aar मोक्खो भत्थेव । बंधन र मोक्ष आपण भीतर इज है । अप्पाणमेव जुज्झाहि, कि ते जुज्झेण वञ्प्रो । अप्पारणमेव अप्पास, जइत्ता सहमे हुए || उत्त० ६।३५। प्राचा० १||२| आपणी श्रातमा र सागैइज तूं जुद्ध कर, बाहरी दुसमना सू जुद्ध कररण में थनै काई लाभ ? श्रातमा नै प्रातमा सू ं इज जोत' र मिनख सांचो सुख पाय सकै । अप्पाकत्ता विकत्ताय, दुहारण य सुहारण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुपट्ठ सुप्पट्ठियो । उत्त० २० ३७१ आतमा इज सुख-दुख नै उत्पन्न करण आळी अर प्रातमा इज उपरो नास करण आळी है। सत् प्रवृत्ति में लाग्योड़ो प्रातमा श्रापणी मित्र र दुष्प्रवृति में लाग्योड़ी प्रतिमा आपरणी शत्रु है । जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे | एगं विणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जो ॥ उत्त० ६|३४| जो मिनख दुर्जय सग्राम में दस लाख योद्धावां पर विजय प्राप्त करें, उणरी अपेक्षा जं आपने खुद नै जीत लंबे तो आ उपरी सबसू बड़ी जीत है । न तं अरी कंठ छेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा | उत्त० २०१४८ दुराचार में प्रवृत्त प्रातमा जितरो श्रापणो अनिष्ट करें, उतरो अनिष्ट तो एक गळो काटवा आळो दुसमन भी नी करें। पुरिसा ! अत्तारणमेव अभिगिज्झ, एवं दुक्खा प मुच्चसि । आचा० ३१३।१० Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ हे प्रातमन् ! तूं खुदइज आपणो निग्रह कर। इसो करबा सूतूदुखां सूमुक्त हुय जावैलो।। ___ अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे । नोपरकडे। भग० ७१ प्रातमा रो दुख आपणो खुद रो कर्योड़ो है । प्रो दूजां रो दियोड़ो कोनी। दुज्जयं चेव अप्पाणं, सव्वमप्पो जिए जियं। उत्त० ६३६ एक दुर्जय प्रातमा नै जीत लेवा पर सब कुछ जीत लियो जावै। ११. मोक्ष नाणं च दंसरणं चेव, चरित्त च तवो तहा। एस मग्गुत्ति पन्नतो, जिणेहि वर दंसिहि ॥ उत्त० २८ार ज्ञान, दर्शन, चारित्र पर तप इज मोक्ष रो मारग है। आ बात सर्वदर्शी ज्ञानीजण बतावी। नादंसरिणस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा। अगुरिगस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं॥ उत्त० २८।३० सरधा रै बिना ज्ञान नी हुने, ज्ञान रै बिना आचरण नी हुवै अर पाचरण रै बिना मोक्ष नी मिलै । सयमेव कड़ेहि गाहइ, नो तस्स मुच्चेज्जऽपुठ्ठयं सूत्र० १।२।१।४। प्रातमा प्रापणा खुद रा बांध्योड़ा करमा सू बध । करियोड़ा करमा नै भोगियां बिना मुगति नी मिलै । आहंसु विज्जाचरणं पमोक्ख । सूत्र० १।१२।११ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ज्ञान भर करम सू' इज मोक्ष प्राप्त हुवे । कडारण कम्मारण न मोक्ख श्रत्थि । उत्त० ४।३। बांध्योडा करमां रो फळ भाग्यां बिना मुगति नी मिलें । बन्धप्प मोक्खो तुज्भज्भ त्येव । आचा० ५|२| १५० वन्ध सू' मुक्त हवणो थांरे इज हाथ है। परीस हे जितस्स, सुलहा सुगइ तारिसगस्स । दश० ४ |२७| जो साधक परिसहां पर विजय पात्रै, उगरे वास्ते मोक्ष सुलभ है। १२. विनय विरए ठविज्ज प्रणां इच्छतो हियमप्पणो । उत्त० १६ प्रातमहिन करण श्राळी साधक आपने खुद नै विनय घरम में स्थिर राखे । सिया ह से पावय नो डहिज्जा, सीविसो वा कुविओो न भक्खे | सिया विसं हालहलं न मारे, न यावि मुक्खो गुरु हीलरखाए || दश० ६१७ संभव है कदाच आग नी जळावे, संभव है किरोधी नाग नीं उसे अर ओ भी सम्भव है के हलाहल विष मिनख ने नीं मारै। परण गुरु री अवहेलना करणिय साधक खातर मोक्ष सम्भव कोनी | रायखिए विषय पर जे । दश० ८१४० वडेरा रे सागै विनयपूर्ण वैवार करणो चांइजं । मूला खवप्पभवो दुमस्स, खोज पच्छा समुवैन्ति साहा । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० सहप्पसाहा विरुहन्ति पत्ता, तन सि पुष्पं च फल रसो य ॥ दश० ६|२|१ वृक्ष रे मूळ सूं स्कन्ध उत्पन्न हुवै, स्कन्ध सूं शाखावा श्रर शाखावांसू प्रथाखावां निकळ । इणारे पछे फूळ, फळ अर रस पैदा हुवे । एवं धम्मस्स विण. मूलं परमो से मोक्खो । चाइजै । जेण कित्ति, सुय, सिग्धं, निस्सेसं चाभिगच्छई । दश० ह|२|२ इणीज भांत धरम रूपी वृक्ष रो मूळ विनय है अर उपरो प्रांखरी फळ मोक्ष । विनय सूं मिनख नै कीरति, प्रशंसा र श्रुतज्ञान आदि इष्ट तत्त्वां री प्राप्ति हुवै । वेयावच्चेणं तित्थयरनाम गोयं कम्मं निबंधेइ । उत्त० २६।४३ वैयावृत्त्य सेवा सू जीव तीर्थ कर नाम गोत्र जिसा उत्कृष्ट पुण्य करमां रो उपार्जन करें । गिलाणम्स गिलाए वेयावच्चकरण्याए अब्भुठ्ठे यव्वं भवइ । स्था० ८ रोगीं री सेवा करण खातर नितहमेस जागरूक रैवरणो तम्हा विषयमेसिज्जा, सीलं पडिलभेज्जनो उत्त० १७ विनय सू' साधक नै शील र सदाचार री प्राप्ति हुवे । इ वास्तै उगरी खोज करणी चाइजै । विरयमूले धम्मेपन्नते । ज्ञाता० ११५ धरम रो मूल विनय (सद्द्माचार ) है । अरसासियो न कुपिज्जा । गुरुजनां री सीख पर किरोध न करणो चाइजै | उत्त० ११६ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३. संयम चउबिहे संजमेमणसंजमे, वइसंजमे, कायसंजमे उवगरण संजमे । स्था० ४।२ संयम चार प्रकार रो हुवै-मन रो संयम, वचन रो संयम, काया रो संयम अर उपधि (सामग्री) रो संयम । संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ उत्त० २६:२६ संयम सूजीव पाश्रव (पाप) रो निरोध करै । अजमे नियति च सजमे य पवत्तरणं उत्त० ३११२ असंयम सूनिवृत्ति पर संयम में प्रवृत्ति करणी चाइजै । तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अवम्भ सेवगं। इच्छा कामं च लोभं च, संजनो परिवज्जए ।। उत्त० ३५३ संयमी प्रातमाहिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य सेवन, भोगविळास अर लोभ रो सदा खातर परित्याग कर। १४. क्षमा खामेमि सम्वे जीवा, सब्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सन्वभूएसु, वेरं मझ न केणइ ।। आवश्यक सूत्र ४।२२ म्हूँ सव जीवा सूक्षमा मांगू, सव जीव म्हनै क्षमा करै। म्हारी सब जीवां रै सागै मित्रता है। किणोरै साग म्हारो बैर-विरोध कोनी। पुढविसमो मुणी हवेज्जा। दस० १.१ १३ मुनि नै धरती रै समान क्षमाणील हुवणो चाइजै । खतिएणं जीवे परिसहे जिणइ । उत्त० २६४६ क्षमा सूजीव परीसहां पर विजय प्राप्त करें। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ खंति सेविज्ज पंडिए । उत्त० १९ पंडित पुरुष नै क्षमा धरम री आराधना करणी चान। पियमप्पियं सव्वतितिक्खएज्जा। उत्त० २१११५ साधक प्रिय अप्रिय सब शान्ति सूसहन करै । खमावरणयाए णं पल्हायणभानं जरणयर। उत्त० २६।१७ सूअातमा में अपूरव हरख रो भाव प्रगट हुवै । १५. मृत्यु-कला न संत मरणंते, सीलवंता बहुस्सया। उत्त० ५।२६ शीलवान अर बहुश्रुत भिक्षु मौत रै क्षणां मांय भी दुखी नी हुवै। मरणं हेच्च वयंति पंडिया। सूत्र० १।२।३।१ पंडित पुरुष इज मौत री दुर्दम सीमा लांघ'र अविनाशी पद नै प्रात करै। कालं अणवक्रख माणे विहरई। उपा० ११७३ आत्मार्थी साधक कस्टां सूजूझतो हुयो मौत सूअनपेश वण'र रवै। माराभिसंकी मरणा पमुच्चइ। आचा० ११३६१ जो मिनख मौत सू सदा सावचेत रैवै वोईज उणसू मुगति पाय सके। १६. कपाय-विजय अहे वयन्ति कोहेणं, मारणेणं अहमागई। माया गइ पडिग्यायो, लोहोरो दुहानो भयं ।। उत्त० ६।४५ क्रोध सूजीव नीचे पड़े, मान सूजीव नीत्र गति पावै, माया सूजीव सद्गात रो नाश कर अर लोभ सू जीव नै इण लोक अर परलोक में भय उत्पन्न हवै। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउक्कसायावगए म पुज्जो। दश० ६।३।१४ जो चार कपाय सू' रहित है, वो पूज्य है। न विरूज्झज्ज केराइ। सूत्र० १५।१३ किरणी रै भी सागै वैर-विरोध मत राखो। . कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुय सील तवो जलं। उत्त० २३१५३ कपाय (त्रोध, मान, माया, लोभ) आग कहीजे। उण ने बुझावण सारं श्रु त, शील अर तप जल रूप है। जो उवसमइ तस्य अत्यि पाराहणा। वृहत्कल्प ११३५ जो कपाय रो उपशम करै, वो इज वीतराग प्रभु रे पथ रो सांचो पाराधक हुवै। अप्पारणं पिन कोवए। उत्त० ११४० अपने आप पर भी कदै किरोध मत करो। कोहो पीईपणासेइ। दश० ११३८ किरोष प्रीति रो नाश करै। उसमेण हणे कोहं। दश० ८।३६ शान्ति सूकिरोध नै जीतो। मागविजएणं मद्दव जणयइ । उत्त० २६१६८ अहकार नै जीतण सूजीव नै नम्रता री प्राप्ति हुवे। माणो विरणयनासणो। दश० ८।३८ अहंकार विनय गुण रो नास करै । मारण मद्दवया जिणे दश० ८।३९ अहंकार नै नम्रता सूजीतणो चाइज। मायमज्जवभावेण दश० ८३९ सरळता स्माया अर कपट नै जीतणो चाइजै । माया विजएण अज्जवं जरगयइ उत्त० २६/६६ माया नै जीत लेवण सू सरळता प्राप्त हुगे। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ माया मित्तारिण नासेइ। दश० १३० माया मित्रतारो नास करै। लोभो सव्वविणासणो दश० ८३८ लोभ सगळा सद्गुणां रो नास करै। लोभ संतोसो जिणे। दश०८।३६ लोभ नै संतोस सूजीतणो चाइजे। .. जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढइ । दो मासकयं कज्ज. कोडी ए वि न निठ्ठियं ॥ उत्त०८।१७ ज्यू-ज्यूलाभ हुनै त्यू-त्यू लोभ पण वधै । दो मासा सोना सूपूरो होबा आळो काम करोड़ा सूभी पूरो नी हुयो। सुवण्ण-रूप्पस्स उपव्वया भवे, सिया हु कैलास सभा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि इच्छा हु आगाससमा अणन्तिया ।। उत्त० ६।४८ कदाच सोना, चांदी रा कैलास जिसा बड़ा अनेक परवत हुय जावै तो भी लोभी मिनख नै तृप्ति नी हुवै, कारण कै इच्छावां आकास रै समान अनन्त हुवै । करेइ लोहं, वेर वड्ढइ अप्पणो। आचा० २१५ जो आदमी लोभ करै, वो चारु मेर बैर री बढ़ोतरी करै । १७. राग-द्वोष रागो य दोसो वि य कम्मबीय, कम्मं च मोहप्प भवं वयंति । कम्मं च जाई मरणस्स मूलं, दुक्ख च जाइमरणं वयंति ।। उत्त० ३२७ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ राग पर द्वेषौ दोन्यू करमां रा बीज है। करमां रो उत्पादक मोह इज मानीजै । करम सिद्धान्त रा विशिष्ट ज्ञानी आ वात कैवै कै जनम-मरण रो मळ करम है अर जनम-मरण इज एक मात्र दुख है। राग-दोसे य दो पावे, पाव कम्म-पवत्तणे उत्त० ३१॥३॥ राग अर द्वष ये दोन्यू पाप करमां री प्रवृत्ति कराबा में सहायक हुनै। छिदाहि दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए । दश० २।। द्वेष नै नष्ट करो, अर राग नै दूर करो। इयां करण सूइज संसार में सुख री प्राप्ति हुने। अकुत्रयो एवं गत्थि। सूत्र० १११५७ जो पातमा आपण भीतर में राग भर द्वेष रूप भाव करम नीं कर, उण र नूवा करम नी बंधै । १८. कर्म सिद्धान्त सुचिण्णा कम्मा, सुचिण्णफला भवति । दुचिण्णा कम्मा, दुचिण्णफलाभनति ॥ औप०५६ आच्छा करमां रो फळ पाच्छो पर बुरा करसां रो फळ बुरो हुवै। सव्वे सयकम्मकप्पिया सूत्र ११२।३।१८ । प्राणीमात्र प्रापणे करियोड़ा करमा सू इज विविध योनियां में भ्रमण करें। कम्ममूलं च जं छणं प्राचा० १३१ करम रो मूळ क्षण हिंसा है। एगौ सयं पच्चणुहोइ दुक्खं । सूत्र० १।५।२।२२ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ श्रातमा इज प्रापण करियोडा दुखांरी भोगणहार है । तुट्ट ति पावकमाणि, नवं कम्ममकुव्वनो । सूत्र० १|१५||६| जोन वा करमनीं बांधे. उगरा पैल्योड़ा बंध्या पाप करम जावै 1 कतारमेय श्ररगुजाइ कम्मं उत्त० १३/२३ करम सदा कर्त्ता (करमाळा) रे पाछे-पाछें चालै । सयमेव कडेहि गाइ, नो तस्स मुच्चेज्जऽपुट्ठयं । नष्ट हुय सूत्र० १।२|१|४ जीव आपणे खुद रे बरणायोड़ करमजाल में आवद्ध हुवै कियोड़ा करमा सू उरणांनै भोग्यां विगर मुगति कोनी | । १६. शिक्षा र व्यवहार विवत्ती प्रविणीयस्स, संपत्ति विणियस्स य, दश० | २|२१| श्रविनीत ने विपत्ति प्राप्त हुवै श्रर सुविनीत ने सम्पत्ति । ग्रह पंचहि ठाणेहि, जेहि सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पसाएणं, रोगेणालस्सएर य ॥ उत्त० ११।३। अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग र आलस इरण कारणां सू शिक्षा प्राप्त नी हुवै। कह चरे ? कह चिट्ठे ? कहं मासे ? सहं सए ? कह भुजन्तो, भासन्तो, पाव कम्मं न बंधइ ? दश० ४|७| भंते ! किरण भांत चालां, किरण भांत ऊभा रेवां, किरण भांत बैठां, किरण भांत सूवां, किण भांत खावां, किरण भांत बोलां, जिस पाप करमां से बंधरण नीं हुवै । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ जयं चरे, जयं चिठ्ठ, जयं मासे जयं सए, जय भुजन्तो, भासन्तो, पाव-कम्गं न बधाइ।। दश. ४॥८॥ प्राप्मान ! जतना सूचालो, जनना सूउभा रैवी, जतना सूबैठो, जतना सू सूवो, जतना तूं खायो, अर जतना सू बोलो। इण भांत पाप करम नी वंधे। न य पावपरितक्षेत्री, न य मित्ते सु कुप्पई। अप्पियस्तावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासह ।। उत्त० ११।१२। मुशिक्षित मिनख स्खलना हबरण पर भी किरणी पर दोपारोपण नी कर पर नी कदै मित्र पर किरोच करै। दो अप्रिय मित्र री परोल मे पण प्रशंमा करें। चत्तारि अवाणिज्जा पप्णता, तंजहा अविणीए विगइ पडिबद्ध, अविउसविय पाहुडे मायी। स्था० ४१३६३३६॥ अंचार मिनख शिक्षा देवरण र लायक नी हुने-अविनीत, सुत्रादवृत्ति में गृद्ध, किरोधी अर कपटी। २०. मनुष्य-जनम चत्तारि परभंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो। मगुसत्तं सुई सद्धा, संजमाम्मि य वीरियं ।। उत्त० ३१ इण संसार में प्राणियां खातर चार अंग घणा दुरलभ हैमिनखपणो, धरम-श्रवण, सरधा पर संयम में पुरुपारथ । चतुहिठाणेहिं जीवा माणुसत्ताए कम्म पगरेति पगइ भद्दयाए, पगइ विरणीययाए, सारगुक्कोसयाए, अमच्छरियाए । स्था०४/४ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ चार भांत रा मानवीय करम करण सू आतमा मिनख जनम प्राप्त करें - सहज सरळपरणो सहज, विनम्रता, दयालुता अर अमत्स रता । २१. अप्रमाद आचारांग ||२|४| प्रलं कुसलस्स पमाएणं प्रज्ञाशील साधक नै प्रापणी साधना में किंचित् भी प्रमाद नीं करणो चाइजै । भारण्डपक्खी व चरप्पमत्तो । उत्त० ४६ भारण्ड पक्षी री भांत साधक अप्रमत्त ( जागरूक ) भाव सू विचरण करें | सव्वनो पमत्तस्स भयं, सव्व अपमत्तस नत्थि भयं । आचा० १|३|४| प्रमत्त आतमा नै चारूकांनी सूं भय रैवे । परण अप्रमत्त श्रातमा नै किरणी भी श्रोर सूं भय नी रैवै । आचा० ११२/१ धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए धीर साधक मुहूर्त भर है खातर भी प्रमाद नी करें । असंखयं जीविय मा पमायए । उत्त० ४।१ जीवन असंस्कृत (क्षणभंगुर ) है । वोरो धागो टूट जाबा पर दुबारा जोड़ियो नीं जा सके । आ सोच र जरा भी प्रमादनीं करणो चाइजै | उट्ठिए नो पमायए आचा० १५/२ जो साधक एक'र प्रापणै कर्तव्य मारग पर बढभ्यो है, उरणने फेर प्रमाद नीं करणो चाइजै । mn Page #179 -------------------------------------------------------------------------- _