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३ | चौबीस तीर्थकर
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'तीर्थ' नाम धरमशासन रो है। जै महापुरुस जनम-मरण रूपी संसार समन्दर सूपार करण खातर धरमतीरथ री थरपणा करै, वै 'तीर्थ कर' कहीजै। जैन परम्परा में तीर्थ करां री संख्या चौवीस मानीजै । इणां तीर्थ करां में पैला तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव पर पाखरी तीर्थकर भगवान महावीर हुया। चौवीस तीर्थङ्करां रा नाम अर ओळखाण इण भांत है
१. ऋषभदेव :
आखरी कुळकर नाभिराय री पत्नी मरूदेवी री कूख सू पैला तीर्थंकर भगवान ऋषभ रो जनम चैत वद आठम (नवमी) रे दिन अयोध्या में हुयौ। बाळक ऋषभ जद मां रै गरम में हा तद मां सुपना में पैलाई पैल वृषभ देख्यो हो पर बाळक रै छाती पै वृषभ रो लांछण पण हो, ई कारण इणांरो नाम ऋषभदेव (वृषभदेव, वृषभनाथ) प्रसिद्ध हुयौ । वाळक ऋषभ वड़ा हुयनै कुळ -री व्यवस्था आपण हाथ में लीवी। ई खातर अ कुळकर अर मनु पण कही जै । मानव सम्यता रै विकास रो श्रेय ऋषभ नैइज दियो जावै। ई कारण औ आदिनाथ, आदिदेव, आदीश्वर,
आदिब्रह्म पण कहीजै । इणां जै काम करिया बिगर किणी री सीख सू आपोआप मतैइ करिया, ई खातर औ स्वयंभू पण कही जै।
जद ऋषभ वड़ा हुया तद आपरौ ब्याव सुनन्दा अर सुमंगळा सूहयो । आ मानी जै कै ब्याव री रीत इणीज काळ सूचाली। ब्याव रै पछै ऋषभ रो राजतिळक हुयो । अमानव सम्यता रै विकास रा सूत्रधार हा। इणासूपैलां से मिनखां रो गुजारो कळपव्रक्षा