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सिद्धि प्राप्ति री आड़ में आ बहुत बड़ी हिसा है । इण हिंसा रो एक मात्र कारण अज्ञान, अधविसवास पर भोगासक्ति है।
अहिंसा पर शुभ प्रवृत्ति :
जिण भांत पापांनै सुख वाल्हो है, उणीजभांत दूजां नै पण सुख वाल्हो है। जियां प्रापांनै कष्ट अप्रिय है उणीज भांत दूजा नै भी कष्ट अप्रिय है । प्रा सोच'र प्राणिमात्र रै साग एकत्व री अनुभूति पर मैत्री भाव राखणो चाइजै ।
अहिंसा रा हजार रूप अर स्रोत है। भगवान महावीर क्ह्यो. दया, समाधि, क्षमा, सम्यक्त्व, चित्तरी दढ़ता, प्रमोद, विसवास, अभय, समत्व, मैत्री आदि भाव अहिमा रै परिवार में गिरणीजै । अं गुण अहिंसा रो विकास करै । इणां रै चिन्तन पर बैवार सूप्रमाद भाव घटै। अहिंसा रे पाळण खातर मन, वचन अर काया री स्वच्छन्द (असद्) प्रवृत्तियां पर रोक लगावणी जरूरी है।
मानवीय वृत्ति री अशुभ सूनिवृत्ति पर सुभ में प्रवृत्ति करण खातर जो विधि सास्त्रां में वणित है. समिति कहीजै । समिति रा पांच प्रकार है-(१) इर्या समिति, (२) मन समिति, (३) वचन समिति, (४) एषणा समिति, (५) आदान निक्षेपरण समिति ।
चालतां, उठतां-बैठतां, काम करतां छोटा-बड़ा जीवां नै पीड़ा नीं पोंचावरणी ईर्या समिति है। मन में उठ्योड़ा भावां गे निरीक्षण करणो के अ भाव दूजां खातर सुखकारी है या दुखदायी, पापकारी है या अपापकारी। इगा भांत सोच'र मन नै सुभ भावना में लगायां राखणो मन समिति है। कठोर, दुखकारी, वाणी नी बोल'र हितकारी, सत्य, मधुर वचन बोलणा वचन समिति है। गुजारा खातर