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गणधर इन्द्रभूति गौतम भिक्षा खातर जावता थकां लोगों रै मूडा सूदो तीर्थङ्करां री वात सुणी तो वां आयनै प्रभु सूरज कर पूछियो-भगवन ! भाजकाल श्रावस्ती में दो तीर्थङ्करां रे होवण री दरचा चाल री है। कांई गोसाळक सर्वज्ञ पर तीर्थ
भगवान वोल्या-गौतम ! गोसाळक तीर्थंकर कहलाबा लायक कोनी। वीरो हिग्दो राग-द्वेष पर अज्ञान, अहंकार सू भरियोड़ो है। ग्राज सूचौबीस बरस पैला ओ म्हारो शिष्य बणियो हो । पण उद्दण्ड पर स्वच्छन्द सुभाव रै कारण जगां-जगांई रो अपमान हयो । एकर तो तापस वेस्यायन री तेज सक्ति सूबळतावळता म्हें ई नै बचायो अर इणनै तप पर साधना रेवळ सू तेजोलब्धि पावरण री विधि बताई। थोड़ी सी सक्ति अर लब्धि पाय ो खुद ने तीर्थङ्कर केवण लागग्यो है।
गोसाळक र कानां में जद प्रभु रा कह्योडा अं सबद पहुंच्यातो वीनै गुस्सो आयग्यो। वो बार निकळर आयो । वी श्रमण प्रानन्द ने भिक्षा खानर आवता देखिया। देखताई वी जोर सूहाको पाडियोमानन्द ! जरा ठहर । तू पापण धर्माचार्य महावीर नै जाय कैय दीज के वी म्हार वार में कोई बात नी करे, चुप रैवै । म्हारै सू वोलणो या म्हारे बारे में कोई बात करणी सूता सांप नै छेड़णो है । हूँ देखो ,ह के म्हारो आव-यादर देख वी म्हारै सूईया कर है । मुहूं अवार प्राय थां सवांरी बुद्धि ठिकाणे लगाय दू'ला । इतरो कवता-कैवता गोसाळक रा होठ फड़कबा लाग्या। वीरो चेहरो तमतमा उठ्यो। गोसाळक री बात सुण आनन्द महावीर कनै आया अर सगळी वात केय सुणायी। वां महावीर सूपूछियोभगवन ! गोसाळक नापणे तेज सू कीनै बाळ भी सकै काई ?
महावीर बोल्या-हाँ! गोसाळक आफ्णी तेज सक्ति सू किणी नै वाळ सकै पण तीर्थडार वो नी जलाय सके। यू तो