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चम्पानगरी पधारिया पर अठै पूर्णभद्र नाम रै चैत्य में बिराजिया। इण समय वैसाली में जुद्ध चालर्यो हो । इरण में एक कांनी अठारह गरणराज हा पर बीजी कांनी कौणिक अर उणारा दस भाई आपण दळबळ सागै जूझ र्या हा । प्रभुरै आवरण रा समीचार सुण राजराणियां प्रभुरा दरसरण करण नै आई। महावीर रा उपदेस सुण राणियां वा सूपूछियो-भगवन् ! युद्ध में गयोडा म्हांका पुत्र राजीखुसी कद घर आवला ? उत्तर में दसूई पुत्रा रै युद्ध में मरण री बात सुण राणियां नै घणो दुख हुयो । वी सोचण लागी-ई संसार में सबरो मरणो निश्चित है। वां रो जीवन धन्य है जे आपण मिनख जमारा नै सार्थक करै। ई बोध रै सागै विरक्त हो र दसू राणियां आर्या चन्दना रे कनै दीक्षा अङ्गीकार करी। पन्दरमो बरस : गोसालक रो उतपात अर पश्चाताप :
मिथिला सूवैसाळी कांनी होय भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी पधारिया । अठ राजा कोणिक रा भाई हल्ल, वेहल्ल (ज्यारै खातर वैसाळी में युद्ध होर्यो हो) भगवान रै दरसण खातर आया पर प्रभु र उपदेस सूप्रभावित हुयर मुनिधर्म अंगीकार करियो।
__ मंखलिपुल गोसाळक पण वां दिनां श्रावस्ती रै ऐड़े नई 'घूमर्यो हो । हलाहल कुम्हारिण अर अयपुळ गाथापति गोसाळक
रा घणा पक्का भगत हा । गोसाळक तेजोलब्धि पर निमित्तज्ञान जिसी सक्तियां पाय'र घमंड में आयग्यो । वीं श्रावस्ती री जनता माथै आपणो सिक्को जमाय राख्यो हो । बो सबांन कैवतो के मुहूं तो प्राजीवक मत रो प्राचार्य हूँ, तीर्थङ्गर हूँ । भगवान महावीर रे श्रावस्ती प्रावण रा समीचार जाण वो लोगों ने कैवा लागोआजकाल श्रावस्ती नगरी में दो तीर्थ कर विचरण करै है।-एक महावीर पर दूजो म्हूँ।