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(३) आलस्य या असावधानी । (४) विकथा-बेकार री बातां । (५) मोह-राग-द्वेष आदि
अप्रमाद हृदय नै विकृत अर संकुचित बणावै । इणा सू प्रेरित हुय'र दूजा रै प्राणां नै आघात पोहचाणो हिंसा है। प्रमाद भाव नै नष्ट करण खातर मैत्री अर अभेद भावना रो विकास करणो चाइजै । द्वेष अर सुवारथ नै मैत्री अर समानतारी भावना सूजीतणो चाइजै । सब जीव जीवणो चावै, मरणो कोई नी चावै । सव जीवां ने आपण समान समझ'र किणी नै नुकसान नी पहचाणो, जिसो बैवार आपांनै आपरणे सागै पसन्द है विसोइ बैवार दूजां रै सागै करणो, अहिसा है।
हिसा रो मूल कारण प्रमाद युक्त आचरण होता हुयां भी पांच ओरु बीजा कारण है जिरणां रै वसीभूत होय'र मिनख हिंसा करै। वै इण भांत है
(१) अर्थ दण्ड (२) अनर्थ दण्ड (३) हिंसा दण्ड (४) अकस्मात दण्ड (५) दृष्टि विपर्यास दण्ड । मनोरंजन खातर किणी प्रांणी नै मारणो, दुख पोंचावणो, अंग-भंग करणो अनर्थ दन्ड है। इण हिसा सूनी तो सरीर री रक्षा हुवै अर नी परिवार, कुटुम्ब पर मित्र रो कोई प्रयोजन सिद्ध हुवै । कोई जीव ापान मार सकै या किणी भांत रो नुकसान पोंचाय सकै इगरी आसंका मात्र सूईज उणनै मार डालणो हिसा दण्ड । है । अचाणचक गलती सू एक र बदळ दूजा जीव री हिसा कर देवणी अकस्मात दण्ड है। इणीज भाँत भ्रम सूमित्र नै शत्रु समझर या साहकार नै चोर समझ र उरणनै दण्ड देवणो दृष्टि विपर्यास दण्ड है।
इण कारणां रै अलावा हिंसा रा मुख्य निमित्त है-राग पर द्वेष । राग रा दो प्रकार है-माया पर लोभ पर ष रा भी दो प्रकार है-क्रोध अर मान ।,