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लौकापंथ
पन्दरवीं-मोलवीं सती में घरम र नाम पर फैल्योडे बाहरी प्राडम्बर से सत लोगां विरोध कियो । जिस भगवान री निराकार उपासना ने वळ मिल्यो । श्वेताम्बर परम्परा रा स्थानकवासी, तेरापयी र दिगम्बर परम्परा रा तारणपंथी मूरति पूजा में विश्वास नी राखे । लोकासाह (सम्वत् १५०८ ) तूं वै लोकापथ रो थरपणा करी । वां मूरति पूजा र प्रतिष्ठा रो विरोध करियो र पौषध, प्रतिकमरण, संयम आदि पर विशेष वळ दियो । श्रो पंथ ग्रागे जा'र कैई गच्छां में वंग्यो । इरणरी तीन मुख्य शाखावां है - गुजराती लौकागच्छ, नागौरी लौकागच्छ, लाहोरी- उत्तरार्द्ध लोकागच्छ ।
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स्थानकवासी परम्परा :
श्रागे जा' र इण परम्परा में जद ग्राडम्बर बढ़ियो तद सर्वश्री जीवराज जी. लवजी, धरमसिंह जी, धरमदास जी हरजी, धन्नाजी श्रादि श्राचार्या क्रियोद्धार करियो अर तप त्याग मूलक सधर्म रो प्रचार करियो । अँ स्थानकवासी परम्परा रा अगवा मानीजै । आ 1 सम्प्रदाय वाइस ठोळा रे नांम सू भी प्रसिद्ध है। ई में सर्वश्री भूधर जी, रघुनाथजी, जयमल्ल जी, कुशळोजी, रतनचद जी, अमरसिंह जी, हुकमीचंद जी, श्रमोळक ऋषि जी, जवाहरलालजी नानकराम जी, श्रात्माराम जी, पन्नालाल जी, घासीलाल जी, समरथमल जी, चौथमल जी जिसा घरणखरा प्रभावशाली आचार्य पर संत हुया । वर्तमान में इरण सम्प्रदाय में सर्वश्री श्रानन्द ऋषि जी, हस्तीमलजी, नानालाल जी, अमर मुनि, सुशील मुनि, पुष्कर मुनि, मरुधर केसरी मिश्रीमल जी, मधुकर मुनि, किस्तूर चंद जी, सूर्य मुनि, प्रतापमल जी, श्रम्वालाल जी जिसा कैई प्रभावशाली आचार्य अर मुनि है ।
तेरापंथ :
स्थानकवासी परम्परा सू' इज संवत् १८१७ में तेरापंथ सम्म