________________
१४२
दाय रो उद्भव हुयो । ई सम्प्रदाय रा मूल संस्थापक प्राचार्य भीखण जी है । वर्तमान समय में ईण सम्प्रदाय रा नवमा पट्टधर आचार्य तुलसी है । आप अणुव्रत आंदोळण रो प्रर्वत्तन कर नैतिक जागरण री दिसा मे विशेष पहळ करी । भीखरण जी पर आपरै बीचै सात आचार्य हया, जिणां रा नाम है-सर्वश्रो भारमल जी, रायचंद जी. जीतमल जी (जयाचार्य), मघवा गरणी, माणक गणी, डाल गरणी अर काल गणी। वर्तमान में इण सम्प्रदाय में सर्वश्री नथमल जी, बुद्धमल जी, नगराज जी जिसा कई विद्वान मुनि है। सांस्कृतिक देन :
देस मे संस्कार-शुद्धि रै आन्दोलन में जैन धरम री इण महान् परम्परा रो महत्त्वपूर्ण योगदान रह्यो है । इण परम्परा में जै घरण खरा गणगच्छ है, वां में जो भेद लखावै वो व्यावहारिक दृष्टि सू इज है। आतमा, परमातमा, मोक्ष, संसार आदि रै सम्बन्ध में इणां में कोई भेद कोनी । जैन धरम रै आचार्या', साधु-संतां पर श्रावका रो सम्पर्क साधारण जनता सूले'र बड़ा-बड़ा राजा-महाराजा ताई रह्यो । प्रभावशाली जैन श्रावक अठ राजमत्री, फोजदार सलाहकार, खजांची अर किल्लेदार जिसा विशिष्ट ऊंचा पदां पर रह्मा । गुजरात मे कुमारपाळ ₹ समै बस्तुपाळ तेजपाळ जैन धर्म री घणी प्रभावती करी । मेवाड़ में रामदेव, सहणा, कर्मासाह, भामा साह. क्रमश: महाराणा लाखा, महाराणा कुभां, महाराणा सांगा पर महाराणा प्रताप रा राजमंत्री हा। कुभलगढ रा किलेदार प्रासासाह बाळक राजकुवर उदयसिह रो गुप्त रूप सूपाळन-पोषण कर अदम्य साहस पर स्वामिभक्तिं रो परिचय दियो । बीकानेर रा मन्त्रियां में वत्सराज, करमचन्द बच्छावत, वरसिह, संग्रामसिंह आदि री सेवावां घरणी महत्वपूर्ण है । बीकानेर रा महाराजा राय सिह जी, करणसिह जी, सूरतसिह जी जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि, धर्म वर्धन और ज्ञानसार जी ने बड़ो सम्मान दियो। जोधपुर राज्य रा