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सातमो बरस : श्रेणिक री जिज्ञासा :
भगवान महावीर राजगृही में बिराजऱ्या हा । एकदा श्रेणिक महावीर रै कने बैठा हा । वीं समय एक देव कोढ़ी रो सरूप बणार आयो अर भगवान सूबोल्यो-बेगा मरजो, पछ कोढ़ी राजा श्रोणिक कांनी मूडो कर बोल्यो-जीवता रैवो अर अभयकुमार पाड़ी देख'र बोल्यो-चावै जीवो, चावै मरो। आखिर में कालसोकरिक सू बोल्यो-न मर, पर नी जी।
कोढ़ी रा इसा अंटसंट सबद सुण श्रोणिक नै रोस आयग्यो। राजा नै रोस में भरियो देख वी को सेवक कोढ़ो नै मारबा खातर दौड़ियो पण कोढ़ी तो बठा सूअोझल हुयग्यो।
दूजै दिन श्रोणिक वीं कोढ़ी रा कयोड़ा सबदां रो अरथ भगवान महावीर सूपूछयो । प्रभु बोल्या-राजन् ! वो कोढी नीं वो तो देवता हो। म्हनै मरण खातर कयो ईको मतलब है कै मह बेगो मोक्ष जासू । हूं अठ देह-बन्धन में हूं। आगै म्हारी मुगति है । शाश्वत सुख है । थारण जीवा खातर कयो-ई रो मतलब है-थारो प्रागळो भव नरक रोहै । इण भव में जठा ताई थां जीवोला बठां ताई थांनै सुख है । नरक में थानै दुख भोगणो पड़ेला। अभयकुमार आपण धर्माचरण अर व्रत-नियमां री आराधना सूअठ भी आछो सुखी जीवन जी र्यो है पर इनै आगे भी सुख है । ओ देव गति रो अधिकारी बगला । कालसौकरिक रा दोन्यू भव दुखमय है। इण रो नी जीणो आछो है अरनी मरणो।
आ सुण श्रेणिक पूछियो-भगवन् ! मुहूं किण उपाय सू नरक रा दुखां सूबच सकू ? भगवान बोल्या-जद कालसौकरिक सूजीव-हत्या करणो छुड़वाय दे या कपिळा ब्राह्मणी सूदान दिलाय