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दे या पूणिया धावक री एक सामायिक मोल ले सके, तो थांने नरक गति सू छुटकारो हुँय सके।
राजा श्रेणिक घणी कौसिसां करी पण नी तो। कालसोकरिक कसाई हत्या करणी बंद करी, नी कपिला ब्राह्मणी दान दियो अर नी श्रोणिक पूणिया श्रावक री सामायिक खरीद सक्या। पण इण घटना सूोणिक नै सांसारिक सुखां सूविरक्ति हुयगी । वी ससार रो त्याग तो नीं कर सक्या पण वां लोगां नै त्याग मारग पर बढ़ण री प्रेरणा देवण खातर आ घोसणा कराई के जो कोई श्रमण धर्म अंगीकार करेला म्हू वीं नै राज री तरफ सूसव भांत री मदद देऊला । ई घोषणा सूप्रभावित हुयर घणा ई लोग दोक्षा लीवी। आठमो बरस : चण्डप्रद्योत नै प्रतिबोध :
राजगृही सूपालभिया नगरी होता हुया भगवान कौसाम्बी पधारिया। अठ महावीर युद्ध करण खातर आयोड़ा अवन्ती रा गजा चण्डप्रद्योत नै प्रतिवोध दय'र मृगावती नै शील-संकट सू मुक्त करी ।
चण्डप्रद्योत मृगावती रे रूप अर गुरणां पर मुग्ध हुय'र वीने प्रापणी पटराणी वणावणो चावतो हो। इण भावना सूवी प्रार कोसाम्बी रै चारु कांनी घेरो डाल दियो । उण समय कौसाम्बी पर लगोलग विपत्तियां प्राय री ही । एक कांनी दुसमन धावो बोला हा । दूजी कांनी राजा सतानीक परलोकवासी हुयग्या हा । राजकुवर उदायन बाळक हो । राज रो से काम राणी मृगावती नै देखणो पड़तो। इण मुसीबत में शील धरम पर आंच पावती जाण राणी हिम्मत नीं हारी। वा क्षत्रियाणी ही । वी में घणो साहस हो । वा आपणां प्राण देय ने भी धरम पर शील री रक्षा करणी जाणती ही।