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________________ १०४ जिण रात में प्रभु महावीर रो निर्वाण हुयो वीं रात में नौ मल्लवी, नौ लिच्छवी अठारह कासी-कोसल रा गणराजा पौषधवत में हा । वां कयौ-प्राज संसार सूभाव उद्योत उठग्यो । अब म्हां द्रव्य उद्योत करांला । घणघोर अंधारी रात में देवतावां रतना रो आलोक बिखेर र अर मिनखां दीया जला'र सै ठौड़ चांनणो कर दियो । चारू कांनी प्रकास रा पग मंडग्या । महावीर रो देहत्याग ओछब रो रूप ले लियो । इण भांत दीपमाळा री नूई भांत सू सरुआत हुई । __ महावीर रै निर्वाण रै सागै ससार री एक दिव्य ज्योत विलीन हैगी। तीस बरस री भरी जवानी में महावीर साधना रै कंटीले भारग पर बढ़या । साढे बारा बरसां वा कठोर तपस्या कीवी पर साधना रै बळ सू केवळज्ञान प्राप्त करियो । केवळी बण्या पार्छ तीस बरसां ताई वां लोक कल्याण खातर उपदेस देर लाखों लोगा नै संजम मारग कांनी वढण री प्रेरणा दीवी। ___ महावीर रा उत्तराधिकारी गणधर सुधर्मा प्रभु महावीर रै प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करतां कयो-जियां हाथियों में ऐरावत, पसुवां में सिह, नदियां में गगा, पक्षियां में गरुड़, पुष्पां में कमळ अर रसां में इक्षुरस श्रेष्ठ है, उगीज भांत तपस्वी ऋषि-मुनियां में भगवान महावीर श्रेष्ठ है। - - -
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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