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| परिनिर्वाण
आपणो पाउखो नड़ो जाण भगवान महावीर प्रापणे प्रिय शिष्य गौतम नै देवसरमा नाम र ब्राह्मण नै उपदेश देवण सातर अळगा मोकळ दिया। प्रभु र वेळे री तपस्या हो । इगा दिन वो सोला पहर ताई घरम उपदेस देवता र्या । घणाई तात्विक रावाल जवाब या । इणीज रात मांय काती वद चवदस ने (प्रमादम) प्रभु चार अघाति करम रो नास कर'र ७२ वर्ष ॥ अवस्था में सिद्ध-बुद्ध मुक्त हुया । ज्ञान रो अद्भुत ज्योत अचारणचक लुकगी।
अ समाचार चारु कांनी फैलाया। जद गौतम ने इण वात रीठा पड़ी तो वी शोक विव्हल हुय'र विलाप करण लाग्पा-भगवन् आप प्रो काई करियो ? इण मौके पाप म्हनै अळगो क्यूं भेज दियो । हूंकाई टावर दाई प्रापरं लारै पड़तो, आपने मोक्ष पधारण सू राक लेवता ? म्हूं अवै किण नै वन्दणा करूं ला, किरण रै माम पापणी सकावा राखूला। देर ताई यू मोह ग्रस्त वणिया गोतम आंसूडा टळकावता र्पा । पण जद विहलता रो रो तूफान थमग्यो तद वाँरी दीठ बदळगी । वी सोचण लाग्या-अरे ! म्हारो गो मोह किण र खातर है ? भगवान तो वीतराग है. उणां रै प्रति प्रो किसो राग! क्यू नी म्हूं भगवान रै चरणां रो अनुसरण करू? ओ सरीर तो जड़ है, इण नै छोडियां विगर मुक्ति कोनी । भगवान पण इण पार्थिव सरीर नै छोड़ मुगत पधारिया है । म्हनै भी इणीज मारग पर प्राग बढ़णो है । इणं भांत सोचण सू गौतम रा मोहनीय करम हटग्या। वांन केवलज्ञान हुयग्यो ।