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५. ध्यान :
ध्यान रो प्ररथ है-मन री एकाग्रता। मन नै असुभ विचारां सूसुभ कांनी मोडणो। सुभ कांनी बढतो मन किणी विषय में तन्मय हुय जागे तो वो ध्यान कहीजै। ध्यान सूपातम बळ रो विकास हुने । ध्यान चार भांत रो हुने-पात, रौद्र, धर्म पर शुक्ल । पैला दो ध्यान असुभ मानीजै । अत्यागण जोग है। पाखर रा दो ध्यान सुभ है । लम्बी तपस्या उपवास सूजितरा करम क्षय नी हुने, उतरा मुहूर्त भर रै सुभ ध्यान नहुय जाने । ६. व्युत्सर्ग:
व्युत्सर्ग रो अरथ है-विशिष्ट विधिपूर्वक त्याग करणो। धन, सम्पत्ति, सरीर श्रादि र प्रति आसक्ति पर कपाय (काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि रो त्याग करणो व्युत्सर्ग तप है। इण तप में देह रे प्रति प्रासक्ति सू मुक्त रवण रो अभ्यास करियो जाने।
ऊपर बतायोड़ा तप री साधना सू करमां री निर्जरा पर अनेक गुणां रो विकास हुने जै स्वस्थ समाज अर प्रगतिशील मजबूत राष्ट्र र विकास रा मूल आधार वर्ण ।
[५] गृहस्थ-धर्म भगवान महावीर साधुओं पर गृहस्थां रेखातर जिण धरम री व्यवस्था दीवी, को क्रमश: श्रमण धरम अर श्रावक धरम कही जै । साधुनां खातर महाव्रतां रो पर श्रावकां खातर अणुवतां रो विधान है । महाव्रतां रै पाळरण में मुनि सगळा पाप करमां सूबचे पण गिरस्त री कुछ सीमावां, मर्यादावां हवै जिरण कारण वै सम्पूर्ण पाप करमां रो त्याग कोनी कर सके। पापां रो आंशिक त्याग इज अणुव्रत या श्रावक धरम कहीजै। पाप, प्राणियां रै आन्तरिक या आत्मिक विकारां रो इज दूजो नाम है । विकार इज दुखां रो कारण है। इणां विकारां सूदुख वढं अर इणारी कमी सूदुख घटै।