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वो या तो तीर्थंकर वला या चक्रवर्ती सम्राट श्री वाळक' श्राप कुळ, वंस अर राज में सें भांत री सुख समृद्धि में वढोतरी करसी ।
सुपना रो फळ सुख राजा-राणी समेत सगळो राज - परिवार हरखियो । महावीर गरभ में प्राया जद सूई राजा सिद्धार्थं रै खजाने मे बढ़ोतरी हुवरण लागी । चारुं कांनी सूं खुमी र उन्नति रा आछा समाचार आवरण लाग्या । त्रिसला र सिद्धार्थ सोचियो के प्रो सब पुण्य परताप गरभ में आयोड़े बालक रो इज है | जद बाळक जनमेला, आपां वीरो नाम वर्धमान राखांला ।
माता रै प्रति भगति :
महावीर जद माता त्रिसला र गरभवास में हा, बांरै मन में विचार प्रायो के म्हारे हलरण चलण सूं माता ने कित्तो कष्ट हुवै । जै हूँ आ हलचल री किरिया बन्द करदू तो माता ने धरणो आराम मिलला । श्रा सोच र महावीर गरभ में प्रापणो हिलगोहुलरणो बंद कर दियो । बाळक रो हालणो- चालरणो बंद हुवतो देख माता त्रिसला धरणी घवरायगी । वां ने लाग्यो के गरभ रो बाळक या तो मांदो है या कोई बेजां हरकत होयगी है । वा दुखी हुय'र भांत - भांत सू विलाप करण लागी । राजा सिद्धार्थ राणी री व्यथा समभंग्या । राजा-राणी ₹ ईं दुख सू' सगळो राज परिवार उदासहुय' र चिन्ता में डूबग्यो ।
महावीर आ हालत जारगर आप हलरण - चलण री किरिया पाछी सरु कर दी, तद जा'र राणी रै जीव में जीव आयो । महावीर मन माय सोच्यो - म्हारे कुछेक क्षणां रं वियोग सू मा नै कित्ती दुख हुयो | जद म्ह्णू संसार छोड र दीक्षा लूगा तद मा रो कांई हाल हुवेलो, वां ने कित्ती पीड़ा हुवैली ? यू' सोचता- सोचता मां ₹ प्रति स्नेह भाव सू ं भीग्योड़ा महावीर गरभवास में इज या प्रतिज्ञा करली के जठा ताई मां-बाप जीवता रेवेला म्ह वरणां री सेवा करू ला उणारं आंख्यां सामै घरवार छोड' र संजम नी लेऊ' ला ।