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सुख रै बजाय दुख री अनुभूति हुने। लाभ अर लोभ री पाग में वळतो रैवरण र कारण वीनै रात नै नीद पण नी पाने। प्रो परिग्रह सगळा दुखां रो मूल है। ई परिग्रह रा मुख्य दो भेद है (१) अन्तरंग परिग्रह पर (२) बाह्य परिग्रह ।
अन्तरग परिग्रह
अन्तरग परिग्रह रा चवदा भेद मानीज-(१) मिथ्यात्व, (२। राग, (३) द्वेष, (४) क्रोध, (५) मान, (६) माया, (७) लोभ, (८) हास्य, (६) रति, (१०) अरति, (११) शोक, (१२) भय, (१३) जुगुप्सा, (१४) वेद न (स्त्री-पुरुप र प्रति अभिलाषा रूप परिणाम)। श्रो अनन्त परिग्रह पातमा री ऊंची उठण री सक्ति नै नष्ट कर'र उगर पतन रो कारण वणे। इण सूक्षमा, दया, करुणा जिसा पात्मिक गुण नष्ट हुय जाने।
बाह्य परिग्रह :
वाह्य परिग्रह मोटे रूप दस भात रो हुनै
(१) क्षेत्र-खेत, खुली भूमि गांव-नगर, पर्वत, नदी, नाळा आदि । (२) वस्तु : - मकान, महल, मदिर दुकान आदि। (३) हिरण्य : सोना चांदी रा सिक्का, नोट प्रादि । (४) सुवर्ण-मोनो (५) धन-हीरा, पन्ना, मोती आदि जेवरात (६) धान्य-गेहें, चावल आदि अन्न (७) द्विपद चतुष्पद-मिनख परिवार तथा गाय, वल आदि चौपाया जिनावर (८) दासदासी, नौकर चाकर आदि (8) कुप्य ~वस्त्र, वर्तन, पलंग, अलमारी आदि घरेलू सामान (१०) धातु-चांदी, तांबा, पीतल, लोहा आदि। इण वस्तुवां रो संग्रह करणो अर इणां सू ममत्व राखरगो वाह्य परिग्रह है। ईसू प्रातमिक सांति नी मिल । ज्यू-ज्यू बाहरी परिग्रह वध