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११| महाबीर री परम्परा
पट्ट- परम्परा :
भगवान महावोर र निर्वाण रे सागैइ तीर्थङ्कर परम्परा समाप्त हु जानै | महावीर रा पैला और सब सूं बड़ा शिष्य इन्द्रभूति भी केवलज्ञानी बरणग्या । इण कारण वी संघ रावारिस नीं बरिया | महावीर रै धरम मासन से भार पांचवा गणधर सुबरमा
सूपियो गयो । आर्य सुधरमा महावीर री शिक्षावां आपणां शिष्यां नै मौखिक विरासत ₹ रूप में सूपी । वर्तमान में आगम रूप में जो महावीर वाणी प्रसिद्ध है वा सुधरमा इज प्रापण शिष्य जम्बूस्वामी अर अन्य स्थविरा ने दीवी । जम्बू स्वामी र पछै उणारा पट्टधर प्रभव स्वामी हुया । जम्बू स्वामी रे सागैइज केवळज्ञान री परम्परा समात्त हुयगी अर जम्बू स्वामी केवळज्ञानी नी बण सक्या । श्वेताम्बर परम्परा मुजब जम्बू स्वामी रै बाद क्रमशः प्रभव, सय्यंभव, यसोभद्र, संभूति विजय र भद्रबाहु प्राचार्य हुया । परण दिगम्बर परम्परा माने के जम्बूस्वामी रै पर्छ नन्दी, नन्दीमित्र, अपराजित, गोवरधन अर भद्रबाहु आचार्य हुया | दोन्यू परम्परा सू आठा पड़े कै आर्य प्रभव र समं जै मतभेद हुया ने भद्रबाहु रे समय में सांत हुयग्या अर सगळा एक मते सू ं भद्रबाहु ने आपणा आचार्य मजूर करियो ।
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महावीर ₹ निर्वाण रै १६० बरसां पर्छ भद्रबाहु र नेतृत्व में विद्वान श्रमणां री एक सभा हुई जिरण में महावीर ₹ उपदेसां रो ग्यारा अंगां रे रूप में संकळन कियो गयो । कुछेक श्रमणां इग