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________________ ६४ भी आप आप ने लाग्या। हाथी खरगोस नै गयो देख आपणो - पग नीचे टिकायो । सरीर रो संतुलन नीं सभाळ सकरण र कारण वो जमी माथै पड़ ग्यो घर मरग्यो । आपणो प्रारण देर भी वीं हाथी खरगोस री रक्षा करी । पसु जू में आपणी इसी कष्ट सहि गुना ना नै यादकर' र मेघकु वर रो हिरदी नूवै प्रकास भरग्यो । वी प्रभु रा चरणां में माथो टिकाय दियो म्हनै माफ करो । अवै म्हूं धारा सु ऊजाळा में प्रायग्यो । ग्रापणी भूल अर अहम् पर म्हनै पछतावा है । अर दया भाव - नौंवी चेतना सू र कयौ प्रभु र इण भात मेघकुंवर रैटूटते मनोवळ नै थाम र महावीर उरणनै प्रतम कल्याण रे मारग पर बढ़ण री प्रेरणा दीवी । नंदीसेण री प्रतिज्ञा : राजगृही में भगवान महावीर रै कनै जद मेघकुंवर भ्रमण जीवन गंगीकार करियो नो राजकुंवर नदीसेण रै मन में परण साधना र मारग पर बढ़रण री इच्छा जागी । नन्दीसेण आपण पिता महाराजा श्रेणिक रै सामै या भावना परगट करी, तद श्रेणिक कयौ - मेघकुवर र देखादेख तूं दीक्षा लेवरण रो विचार मत कर । महल में रैयर मन नै साध । थारी प्रकृति भोग बिळास री है। तू पैली उरणनै सांत कर, पछै दीक्षा ले | कुवर नंदी सेण कयौ - म्हू तप पर ध्यान से आपरणी प्रकृति वदळ लूंगा । इणीज विसवास रे सागै वीं भगवान महावीर कनै प्रव्रज्या ग्रहरण करी । दीक्षा लैर नंदीवेग कठोर तपस्या करणी सरू करी । तप साधना रै दिव्य प्रभाव सू वांने घरणी चमत्कारी शक्तियां (लब्धियां) प्राप्त हुई ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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