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एकदा वेळे रे पारणे रे दिन वी गोचरी खातर एक गणिका घरं गया। दरवाजे पर जावताई मुनि बोल्पा-धरम लाभ । मुनि रघरम लाभरीवात सुण गणिका हंस पड़ी। पर वोलो-मुनिवर ।
तो धरम लाभ नी अरथ लाभ री चावना है। गरिएका रो हंसपो मुनि नै बागे लाग्यो । वरण बठंई बापणी चमत्कारी शक्ति सू रतनां रो ढेर कर दियो पर पायो-ले! ओ अरथलाभ ! साम रतनां रो ढेर लाग्यो देव गणिका मुनि र पाछे पडगी पर कवरण लागीप्रागनाय ! म्हने छोइ र पाठे जायो ? पाप म्हार सागै रेवो । प्रावियोग में म्ह प्राण छोटूली । गणिका रै बार-बार कैवरण
नदीमेग बहाया। बठेवता थका नंदीसेण या प्रतिज्ञा करीक नित हमेस जठा ताई म्ह दस मिनखां ने धरम रो उपदेश नी दंऊला बठा ताई भोजन ग्रहण नी करु ला, अर जी दिन म्हू दस मिनन्यां ने प्रतिबोध नी दे सक्ला ऊदिन पाछो प्रभ र चरणां में चल्यो जाऊंला।
गरिएका रे साग रैवतां दस मिनखा ने नंदीसेण रोज उपदेस देवता अर वान दीक्षा खातर प्रभु रे चरणा में मोकळता, जद जार वी रसोई जीमता। एक दिन नी मिनखां ने उपदेस देय नै दीक्षा खातर तैयार कर दिया, पण दसवो मिनख उपदेस सुगर भी दीक्षा लैण खातर राजी नी हुयो। गणिका बार-बार नदीसेण नै रसोई प्रारोगवा खातर बुलाय री ही, पण आज वां को संकल्प पूरो नीं होर्यो हो । ई खातर नदीसेरणा रमोई नी जीमा हा। जद दसवों
आदमी कोई राजी नी हुयो तद दृढ संकल्पी नंदीसेण खुद उठ'र प्रभु रै चरगां मे चल्याग्या अर कठोर तपस्या कर'र प्रातम सुद्धि करण लाग्या।
इण भांत नंदीसेरण नै पाछो प्रापरणो चेलो बरणाय महावीर सांची सहानुभूति पर वत्सल भाव रो परिचय दियो । महावीर रो कैवरणो हो-घ्रिणा पाप सू करणी चाइज, पापी सुनी।