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सुख-दुख, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि भावां रै अणभव र खमता हुदै ।
जीव तत्त्व रा दो भेद हुवै-(१) मुक्त अर (२) संसारी जो जीव करम मळ सूरहित हुयर ज्ञान, दरसन रूप अनन्त शु. चेतना में रमण करै, वो मुक्त भर करमां रै कारण जनम-मरण रू संसार में मिनख, तिर्यच, देव पर नारक गतियां में घूमतो रैवै व संसारी कहीजै ।
ससारी जीवां मांय सूदेव अर्व लोक में, मिनख अर पर मध्यलोक में अर नारक अधोलोक में निवास करै । मिनख रै स्पर्शन (सरोर) रसन (जीभ) प्राण (नाक) चक्षु (ख) अर श्रोः (कान) अ पाँच इन्द्रियां मन सहित हुवै, इण कारण वो मिनरू
कहीजै ।
जीव री पाच जातियां हुवै-(१) एकेन्द्रिय, (२) द्वीन्द्रिय , (३) त्रीन्द्रिय (४) चतुरिन्द्रिय अर (५) पचेन्द्रिय ।
एकेन्द्रिय जीव रै सिर्फ एक इन्द्रिय सरीर हुवै । पृथ्वी, पानी अग्नि, वायु, वनस्पति राजीव एकेन्द्रिय जीवा है।
द्वीन्द्रिय जीवां रै स्पर्शन (सरीर) अर रसन (जीभ) . दो इन्द्रियां हुवै । लट, सख, जौक आदि जीव द्वीन्द्रिय है।
त्रीन्द्रिय जीवां रै स्पर्शन, रसन अर घ्राण (नाक). तीन इन्द्रियाँ हुदै । चींटी, कानखजूरा आदि जीव त्रीन्द्रिय है।
चतुरिन्द्रिय जीवां रै स्पर्शन, रसन, अर घ्राण चक्षु (प्रांख अं चार इन्द्रियाँ हुदै । मक्खी, मच्छर. टिड्डी, पतंगा प्राति चतुरिन्द्रिय जीव है।
पंचेन्द्रिय जीवॉ रै स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु पर श्रोत्र (कान अपांच इन्द्रियां हुवै । नारक, मनुष्य, देव, गाय, भैंस, कागला' कबूतर आदि पंचेन्द्रिय जीव है ।