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२. अजीव तत्त्व :
जिण में चेतना नों हुवे जो सुख-दुख रो अनुभव नी कर वो अजीव कहीजे । अजीव तत्त्व जड़ पर अचेतन हुदै। सोनो, चांदी, टि. चूनो आदि मूर्त अर प्राकास, काळ ग्रादि अमूर्त जड़ पदार्थ अजोय तत्त्व है। अजीव तत्त्व रा पाँच भेद हुव-(१) पुद्गल, (२) धर्म, (३) अधर्म, (४) प्राकारा अर (५) काल ।
जिग मे रूप, रस, गंध पर पर्श हुवे । जो आपस मे मिल'र आकार ग्रहगा कर लें पर विळग हो र परमाणु वरण जावै वो पुद्गल है । इगा में मिलगा पर पळग होवरण गे या क्रिया स्वभाव सूहुवे। दर्गन री भाषा में मिलण री क्रिया नै मघात अर विळग होणै रो क्रिया न भेट कैवे ।
धर्म तत्त्व गति में सहायक हुदै । जियां मछली खातर पाणी अप्रत्यक्ष रूप सू सहकारी है, उणीज भांत जीव अर पुद्गल द्रव्यां रै गति करगा मे धर्म सहकारी कारण है ।
क्रियायुक्त जीव अर पुद्गल नै ठहरण मे जो अप्रत्यक्ष रूप सू महायता देवं वो अधर्म द्रव्य है । धर्म द्रव्य अर अधर्म द्रव्य जीव अर पुद्गल द्रव्यां ने जबरदस्ती नी चलावै अर नी ठहरावै। अं तो निमित्त रूप मू उरणाग महायक वर्ग।
जो सब द्रव्यां नै अाधार देव वो आकाश है। इण रा दो भेद लोकाकास अर अलोकाकास हुवै । जीव, पुद्गल, धर्म अधर्म, काल ये द्रव्य जितरा अाकाश मे व्हरै वो लोकाकास पर जठ आकास रै सिवाय दूजा द्रव्य नी हुवै वो अलोकाकास कहीजै।
जो द्रव्या रै परिवर्तन मे सहकारी हुवै वो काळ द्रव्य कही जै। घंटा, मिनट, समय आदि काळ राईज पर्याय है।