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________________ १०० अंजीव अर अजीव तत्त्व संसार रै निर्माण रा मुख्य तत्व है । संसार अनादि अनन्त है । ईरी रचना किणी ईश्वर नी करी। ३. पुण्य तत्त्व : पुण्य शुभ करम हुवै अर पाप अशुभ करम । अ दोन्यूअजीव द्रव्य है । शास्त्रीय दृष्टि सूपुण्य रा नौ भेद है । वी इण भांत है(१) अन्न पुण्य, (२) पान पुण्य [३) लयन ( स्थान ) पुण्य, (४) शयन (शैया। पुण्य. (५) वस्त्र पुण्य, (६) मन पुण्य, (७) वचन पुण्य, (८) काय पुण्य अर (8) नमस्कार पुण्य । अर्थात् अन्न, पाणी, औखध आदि रो दान करणो, ठहरण खातर जग्यां देवणी, मन में आच्छा भाव राखणा, खोटा वचन नी वोलणा, सरीर सू आच्छा काम करणा, देव गुरू नै नमस्कार करणौ अ सगळा पुण्य करम है। ४. पाप तत्त्व: पापां रा कारण अनेक हवे पण संक्षेप में अठारा मानी-जै। में पापस्थान पण कहीजै । इणारा नाम इण भांत है(१) हिंसा (२) झूठ (३) चोरी ( ४ ) अब्रह्मचर्य (५) परिग्रह (६) क्रोध (७) मान (4) माया (8) लोभ (१०) राग (११) द्वेष (१२) कलह (१३) अभ्याख्यान (झूठो नाम लगायो, दोस देवरणो। (१४) पैशुन्य (चुगली) (१५) परनिन्दा (१६) रतिअरति पाप में रुचि धरम में अरूचि) (१७) माया-मृपावाद, (कपट सूझूठ बोलणो) अर (१८) मिथ्या दर्शन । व्यावहारिक दृष्टि सूपा बात कहीजे के पाप करण सूनरक रो दुख मिले, लोक में अपयश मिलै अर निन्दा हुवै । पुण्य करण सू देवलोक रो सुख मिले, अर लोक में यश, सन्तान, वैभव आदि रो प्राप्ति हुदै । पण पूर्ण मुक्ति र मारग पर वढ़णिया साधक खातर
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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