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२८.
में छोड़ श्राया । वर्धमान री बहादुरी नै देख सगळा साथी भरणा राजी हुया ।
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जद वर्धमान देव र सरप रूप सूं नीं डर्या तो देवता फेरु परीक्षा लेवरण री सोची। वो बाळक रो सरूप बरगाय ने वर्धमान री टोळी में चाय मिल्यो । हार-जीत रे ई खेल में हार्योड़ो बाळक जीत्योड़े बाळक नै प्रापरं कांबा पर बैठा'र ते करयोडी ठौड़ ताई लैजावतो । देव बाळक टाबरां सागै खेलग लागो । खेल में वो हारग्यो । नियेम मुताबिक वीरी वर्धमान ने कांधा पर बैठावरण री बारी आयी । देव वाळक वर्धमान नै आपर कांधा पर बैठा'र चालबा लाग्यो । चालतां - चालतां देव ताड़ जितरो ऊ चो- व्हैग्यो और विकराळ रूप धारण कर र वर्धमान नै डराबा-धमकावा लाग्यो । देव रो डरावणो सरूप देख' र सें साथीड़ा डरग्या । पण आतमबळरा धरणी वर्धमान तो नाममातरइ कोनी डर्या । वरणां छद्मवेषधारी देव री पीठ माथै एक मुक्की मारी । मुक्की मारताई वो हेठे बैठग्यो । । देव असल रूप में प्रगट हो' र राजकुवर वर्धमान र साहस अर बळ री घरणी बढ़ाई करी । आठ बरसां री उमर में अद्भुत वीरता र कारण इज वर्धमान महावीर नाम सू प्रसिद्ध हुया ।
चटसाल कांनी :
वर्धमान जनम सूई मति, श्रुति र अवधिज्ञान रा घणी हा । एक दिन सुभ घड़ी देख माइतं वां ने पढ़वा खातर चटसाळ मोकलिया । वर्धमान माइतां रो करणो मानरणौ अर गुरू रो आदर करणो आपणो फरज समझता हा । वां कदे भी आप ज्ञान रो दिखावो नी करियो । चटसाळ में गरुजी रे सामै वर्धमान विनीत चेला रो दाई बैठ्या । पैलड़े दिन गरुजी वां ने वरणमाळा, रो पैलो पाठ पढ़ायों । कुमार रै जनमजात ज्ञानी हुवरण री बात नीं माइत जाणता हा अरनी गरुजी ।