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महावीर नै चटसाळ जावता देख इन्द्र तिळकधारी पंडित रो रूप वरणार चटसाळ कांनी आयो। पंडित र सरीर सू ब्रह्म तेज टपक र्यो हो । इसो लखावतो के भो तो कोई मोटो ऋषि है। ऋषि प्रायर वर्धमान रे पगां पड़ियो। वांसू सास्त्र पर व्याकरण रा घणखरा टेढ़ा-मेढा सवाल पूछिया। वर्धमान तुरत-फुरत सगळा जवाव प्राच्छी तरैऊ दे दिया। वर्धमान रोप्रो ज्ञान देख इन्द्र गरुजी ने कह्यो-प्रो वाळक घणो बुद्धिमान पर अवधिज्ञान रो धारक है । ई नै साधारण ज्ञान देवरण री जरूरत कोनी। आ सुरण गरुजी समेत पूरी चटसाळ रा वाळक वर्धमान र चरणों में झुक्रग्या। राजा सिद्धार्थ जद आ बात सुणी तो वी पण नेह सू गळगळा व्हंग्या ।