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विवाह पर वैराग
वर्धमान बाळपणा सूई गंभीर प्रकृति राहा । वां ने संसार रा राग-रंग चोखा नी लागता । वी प्रापणी व्यारुमेर री राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक समस्यावां र चिन्तन में लीन रैवता | वी चिन्तन में इत्ता गहरा डूब जावता के वां ने नी भूख लागतो, नी तिस ।
पिता सिद्धार्थ र माता त्रिसला वर्धमान है इस गंभीर अर सांत सुभाव नै पळटणौ चावता हा । ई खातर वरणा वर्धमान रो ब्याव करण री सोची । परण वर्धमान व्याव करणो नीं चावता | वी तो संयम रं मारग पर वढरणौ चावता हा । ई कारण व्याव रै प्रस्ताव नै वी बार-बार नामंजूर करता । वर्धमान री विरक्ति देख एक दिन माता त्रिसला घरणी दुखी हुई। मां ने दुखी देख वर्धमान ब्याव रो प्रस्ताव मंजूर कर लियो । समरवीर महातामन्त री बेटी जसोदा रै सागे वर्धमान रो व्याव हुयो । उरगांरै एक कन्या पर हुई जिरो नाम प्रियदर्शना हो । इरो व्याव जमालि सारौ हुयो । सांसारिक मोह माया में महावीर नीं उलक्ष्यावी ई जीवन नै काम, क्रोध अर विषय-वासना र कीचड़ में कनळ री दांई सुद्ध र पवित्र राखणो चात्रता हा ।
भोग नीं योग :
महावीर रै चारुकांनी घरगखरी भोग-सामग्री बिखरी पड़ी ही । माइतां री ममता, भाई नन्दिवर्धन रोहेत, श्रर पत्नी जसोदा
१ - दिनम्बर परम्परा मुजब महावीर व्याव नीं करियो ।