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पारिवारिक रिश्तो 'ग, मगध, अवंती सू' लै'र सिन्धु-सोवीर देश राघरा राजपरिवारां सूं जुड़ियोड़ो हो ।
वर्धमान महावीर : सू
वाळक वर्धमान रो पाळण-पोषण घरणा ठाटवाट सू हुयौ । श्ररणा र चारुकांनी सुख-सुविधा पर ग्रामोद-प्रमोद रा घरणा साधन हा | महाराणी त्रिसला खुद ग्राप हाथ सू इणांरो लालरण - पाळण करती ही । वर्धमान रो सरीर गठ्योड़ो र कान्ति सू दमकतो हो । इरणा रै मुखमण्डळ पर घरणो तेज हो । ज्यू ज्यू बाळक वर्धमान उमर में वधवा लागा त्यू - त्यूां धीरता, वीरता श्र ज्ञान री गरिमा परण वधवा लागी । श्रापणं बुद्धिवळ, विनय अर विवेक सू ं आप लोगां रा दिल जीत लिया। आप कदैई किणी रा दिल कोनी दुखावता र सदा सांत भांत सू' रैवता |
वर्धमान जनम सूई अनन्त वळ रा धरणी हा । एकदा शकेन्द्र आपणी देवसभा में वर्धमान री चरचा करतां को कै- राजकुवर वर्धमान बाळक हुवता थकां भी धरणो पराक्रमी र साहसी है। कोई मिनख, देवता र राक्षस वीने नी तो हरा सके अरनी डरा सकै । आठ वरसां रै छोटे से बाळक रं बळ अर पराक्रम री इतरी बड़ाई सुरगर एक देवता नै रोस प्रायग्यो । वो वर्धमान री परीक्षा लेग खातर त्यार हुयी। वो सांप रो रूप बरणा'र जठे वर्धमान आपण गोठड़ा सा रूख पर चढ़रण- उतरण रो खेल खेलरिया हा, बठे पोंच्यो र उरगीज रूख सू ं लिपटग्यो । वर्धमान रा सगळा साथी सरप नै देख' र डरग्या । वे अठी उठी भागवा लागा । सांप फरण ऊंचा 'र फूंकाड़ा मारवा लाग्यो । वी आपण गोठीड़ा नै कैवरण लाग्या - डरपोमती, सान्तरैव । हे अवार ई नै पकड़' र छैटी छोड़ दूंला । वी सरप ने पकड़बा खातर वीके नैड़े गया। सरप जोर सू झपटो मारियो पण बहादुर वर्धमान वीने रस्सी दाई' पकड़' र छैटी कांकड़