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काल रो पहियो
जैन सास्त्रां रै माफिक काळ रो प्रवाह अनादि-अनन्त है। काळ री मवमूछोटी अविभाज्य इकाई 'समय' पर सवसू बडी 'कळपकाळ' कहीजै । एक कळरकाळ रो परिमाण वीस कोड़ाकोडि 'सागर' मानीज जो मोटे तौर सूसंख्यातीत वरसां रो व्है। हरेक कळपकाळ रा दो विभाग व्है-एक 'अवसर्पिणीकाळ' अर दूजो उत्सपिरणीकाळ । जिण भांत दिन पूरो हयां पछै रात पावै अर रात पूरी हुयां पछ दिन प्रावै. उणीज भाँत अवसपिणीकाळ अर उत्सपिणीकाळ एक दूसरां रे लारै प्रावता रैवै । अवसर्पिणी लगोलग ह्रास पर अवनति रो काळ व्है अर उत्सपिरगी उत्तरोत्तर विकास पर बढ़ोतरी रो काळ कही । अवसपिरणीकाळ नीचे लिख्योड़ा छह भागा मै वांट्यो जा सके
1. सुखमासुखम 2. सुखम 3. सुखमादुखम 4. दुखमासुखम 5. दुखम
6. दुखमादुखम पैलड़े सुखमासुखम काळ में जीव ने किणी भांत री कोई तकलीफ नी व्है । इण काळ मैं मिनख री काया रो वळ, उमर, डीलडील वत्तो व्है । मिनख नै गुजारा खातर सगळी चीजां बिगर मनत-मजूरी कर्यां कळपव्रक्षा सू सहज रूप में मिल जावै । कुदरत रे चोखै, शांत वातावरण में मिनख रो मन हर वगत आनन्द सू हिलोरां लेवतो वै । दूजे सुखम काळ में पैलडै काळ री सुख-सांति में थोड़ी कमी पावै अर तीजै सुखमादुखम काळ ताई आवताश्रावतां मिनख नै सुख र सागै दुखां रो अनुभव पण होवरण लागे । में तीन्यू काळ सुख प्रर भोग प्रधान हुवै । मिनखां रो पूरो जीवण