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________________ १५२ तवेसु वा उत्तम-बंभचेरं । सूत्र. ११६॥२३॥ तपां में उत्कृष्ट तप ब्रह्मचर्य है। प्रणेगा गुणा अहीणा भनंति एक्कमि बंभचेरे । प्रश्न २४॥ ब्रह्मचर्य री साधना करणे सूअनेक गुण आपाप प्राप्त हुय जावै। ___कुसीलवड्ढणं ठाणं, दूरओ परिवज्जए । दश. ६१५६) ब्रह्मचारी नै वा जगां दूर सूइज त्याग देणी चाइजै जठे रवण सूकुसील आचरण री वृद्धि हुवे । ६. अपरिग्रह . मुच्छा परिग्गहो वुत्तो। दश० ६।२० वस्तु रै प्रति रह्यो हुयो ममत्व-भाव परिग्रह है। नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अत्थि, सव्व जीवाणं सव्वलोए । प्रश्न० ११५ प्रमत्त पुरुस धन सूनी तो इण लोक में प्रापणी रक्षा कर सकै भर नी परलोक में इज। इच्छा हु मागास समा अणंतिया उत्त० ६४८ इच्छावां आकास रै समान अनन्त है। परिग्गहनिविट्ठाणं,वे तेसि पवड्ढई। सूत्र. ११६।३। जो मिनख परिग्रह-संग्रहवृत्ति में व्यस्त रैवै, वो इण ससार में वैर री बढ़ोतरी करे। अन्ने हरति तं वित्तँ, कम्मी कम्मेहिं किच्चती सूत्र० १९.
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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