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म्हने भुलावै में राख'र म्हारो मारग दरमा करियो । म्हने पथ भ्रष्ट हुवण सूबचायो । थारो ओ उपकार म्हू कदैई नी भूलू ला। चण्डप्रद्योत नै सुमारग पर आयोड़ो देख मृगावती घणी राजी हुई । वीं को-आप म्हारा घरमभाई हो । म्हनै दीक्षा लेवण री आज्ञा दे ओ। उदायन री रक्षा रो से जिम्मो आप पर है। चण्डप्रद्योत उदायन रो राजतिळक कियो अर मृगावती दीक्षा ले'र प्रातम कल्याण रे मारग पर आगे बढ़ी।
नवमो बरस:
भगवान महावीर मिथिला होता हुया काकंदी आया अर सहस्राम्र उद्यान में विराजमान हया। भगवान रै आवरण रा समीचार सुरण राजा जितसत्रु दरसरा खातर आया। प्रभु रा उपदेस सुण वी घणा प्रवावित हुया । वां नगरी में डिडोरो पिटवाय दियो कै जनम-मरण रा बन्धन काटवा खातर जो भी कोई राजी-राजी संजम लेगो चावै, वो लेवै। वी रै परिवार री देखभाळ म्हूं खुद करू ला। भद्रा सार्थवाहिनी रै पुत्र धन्यकुमार री दीक्षा महाराज जितसत्रु घणा ठाट-बाट सूकरवाई। मुनि धन्यकुमार कठोर तपस्या कर'र अनसनपूर्वक सरीर रो त्याग करियो । . काकंदी सूविहार कर भगवान कम्पिलपुर पधारिया। अठ कुंडकौलिक श्रावक व्रत अंगीकार करिया । पछै महावीर पोलासपुर पधारिया। अठ कुम्हार सद्दालपुत्र श्रावक रा बारा व्रत अङ्गीकार करिया। पोलासपुर सूप्रभु वाणिजगांव होता हुया वैसाली पधारिया अर चौमासो अठई पूरो करियो। दसमो बरस:
महावीर राजगृह रै गुणसीळ बाग में विराजमान हा। अठ प्रभुरा उपदेस सुरण महासतक गाथापति श्रावक धरम अंङ्गीकार